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An initiative of Government of #Bihar to facilitate interaction between the State and the #Diaspora. Core objectives - Bonding, Branding, Business.

Sep 18, 2021, 11 tweets

18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई जिसके कारण उपनिवेशवादी दोहन अपने चरम पर पहुँच गया। अंग्रेजों को काम करने के लिए श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने भारतियों को भारी मात्रा में मॉरिशस, फिजी, ट्रिनीडाड, आदि भेजना शुरू कर दिया।

जिस कागज पर अंगूठे का निशान लगवाकर हर वर्ष हज़ारों श्रमिक अन्य देशों को भेजे जाते थे, उसे श्रमिक और मालिक `गिरमिट' कहते थे. गिरमिट, `एग्रीमेंट' शब्द का अपभ्रंश है और इसी दस्तावेज के आधार पर श्रमिक गिरमिटिया कहलाते थे।

शुरू में 5 वर्ष का क़रार होता। महज 8 रुपये महीने की पग़ार पर काम करने का। बाद में ये क़रार बढ़ता हीं जाता, गिरमिटिया देश वापस नहीं आ पाता और अंत में परदेस की माटी पर हीं दम तोड़ देता।

1871 में कलकत्ता बंदरगाह से मॉरीशस जाने वाले उन हज़ारों अनपढ़ श्रमिकों में से एक थे 18 वर्षीय रामगुलाम महतो जो बिहार के #भोजपुर जिले के #हरिगांव के निवासी थे। मॉरीशस पहुँच कर रामगुलाम महतो अब मोहित रामगुलाम हो गए।

उन्होंने 'बासमती रामचरन' नामक एक विधवा से विवाह किया। वहाँ गुलामी की ज़िंदगी शरू की तो उन्हें इसका ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था की उनका बेटा, जिसका बचपन का नाम केवल था, पूरे मॉरीशस की स्वतंत्रता का कारण बनेगा।

केवल जो बाद में शिवसागर रामगुलाम के नाम से जाने गए उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई लंदन में की और 1935 में मॉरीशस लौट आए और गिरमिटिया मजदूरों के वंशज और गुलाम अफ्रीकियों के लिए काम किया। 1947 में रामगुलाम लेबर पार्टी में शामिल हो गए जिसका उन्होंने 1959 से 1982 तक नेतृत्व किया।

मारीशस मे चाचा के नाम से प्रसिद्ध सर शिवसागर रामगुलाम ने न सिर्फ़ मॉरीशस को आज़ादी दिलाई बल्कि 1961 से 1982 तक वे वहाँ के प्रधानमंत्री भी रहे। वे वहां के छठे गवर्नर-जनरल भी रहे। वे "मॉरिशस के राष्ट्रपिता" भी कहलाते हैं।

शिवसागर रामगुलाम का बचपन भारतीय संस्कृति, दर्शन और भोजपुरी वातावरण में स्थानीय 'बैठका' में हुई। वे हिन्दी भाषा के पक्षधर और भारतीय संस्कृति के पोषक थे। 1975 में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना का विचार सर शिवसागर द्वारा ही प्रस्तुत किया गया था।

३० अगस्त 1976 को जब दूसरा हिंदी सम्मलेन मॉरिशस में आयोजित हुआ तो सम्मलेन की अध्यक्षता मॉरिशस के प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने ही की। उन्होंने मांग की हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान मिले।

बिहार सरकार ने सर शिवसागर रामगुलाम की पटना में एक प्रतिमा स्थापित की है। इसका अनावरण मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री और उनके बेटे नवीनचंद्र रामगुलाम ने किया था।

वर्ष 2008 में जब नवीनचंद्र रामगुलाम अपने पूर्वजों की धरती को नमन करने बिहार आये थे तो उन्होंने कहा था, "मैं अपने पूर्वजों की भूमि पर आकर अपने घर में होने का सकून महसूस कर रहा हूं। मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं अपनी खुशी व्यक्त कर सकूं”।

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