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May 14, 2022, 21 tweets

🌺सनातन धर्म 'मानव कल्याण' का विज्ञान है। सनातन धर्म का आधार ही विज्ञान है।🌺

वेद, उपनिषद, शास्त्र, पुराण आदि से ही विज्ञान संचालित और आदेशित होता है।

सनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कार कहे गए हैं। आइए देखें: 👇

💮1.गर्भाधान संस्कार यानी गर्भ धारण करने का संस्कार।प्राचीनकाल में इस संस्कार का बड़ा महत्व था। पति-पत्नी किसी ज्ञानी ज्योतिषी से दिन और मुहूर्त पूछकर संतान प्राप्ति की इच्छा से भगवान का ध्यान करके संसर्ग करते थे।इस संस्कार का उद्देश्य यह था कि व्यक्ति काम वासनामें लिप्त नहीं हो।

💮2. पुंसवन संस्कार जन्म के तीन माह के पश्चात किया जाता है। पुंसवन संस्कार तीन महीने के पश्चात इसलिए आयोजित किया जाता है क्योंकि गर्भ में तीन महीने के पश्चात गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क विकसित होने लगता है।

💮3. सीमन्तोन्नयन संस्कार- जब महिला का गर्भ 6 महीने का हो जाता है तो उस समय माता को आने वाले शिशु के लिए सीमन्तोन्नयन संस्कार प्राप्त करना चाहिए। इस संस्कार के जरिए गर्भवती महिला को मानसिक बल प्रदान किया जाता है।

💮4. जातकर्म संस्कार- नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ चटाया जाता है।

यह संस्कार विशेष मन्त्रों एवं विधि से किया जाता है।दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चटाने के बाद पिता यज्ञ करता है तथा नौ मन्त्रों के उच्चारण के बाद बालक के बुद्धिमान,बलवान,स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है।इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।

💮5. नामकरण संस्कार- के 10वें दिन सूतिका का शुद्धिकरण यज्ञ कराकर नामकरण संस्कार कराया जाता है। गोभिल गह्यसूत्रकार के अनुसार 100 दिन या 1 वर्ष बीत जाते के बाद भी नामकरण संस्कार कराने का प्रचलन है।

💮6. निष्क्रमण संस्कार- हिन्दू धर्म संस्कारों में निष्क्रमण संस्कार षष्ठम संस्कार है। इसमें बालक को घर के भीतर से बाहर निकालने को निष्क्रमण कहते हैं। इसमें बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाता है। बच्चे के पैदा होते ही उसे सूर्य के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये।

💮7. अन्नप्राशन संस्कार- अन्नप्राशन संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'अनाज का सेवन की शुरुआत'।हिन्दू धर्म में यह भी एक संस्कार है जिसमें माता-पिता पूरी विधि,पूजा संस्कार के साथ अपने बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत करते हैं।यह संस्कार बच्चे को पहली बार चावल खिलाकर किया जाता है।

💮8. चूड़ाकरण संस्कार - हिन्दू धर्म में स्थूल दृष्टि से प्रसव के साथ सिर पर आए बालों को हटाकर खोपड़ी की सफाई करना आवश्यक होता है, सूक्ष्म दृष्टि से शिशु के व्यवस्थित बौद्धिक विकास, कुविचारों के उच्छेदन, श्रेष्ठ विचारों के विकास के लिए जागरूकता जरूरी है।

💮9. कर्णवेध संस्कार- हिन्दु धर्म संस्कारों में कर्णवेध संस्कार नवम संस्कार है।यह संस्कार कर्णेन्दिय में श्रवण शक्ति की वृद्धि,आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है।इस संस्कार को 6 माह से लेकर 16वें माह तक अथवा 3,5 आदि विषम वर्षों में किया जाता है।

💮10. उपनयन संस्कार- हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार। इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है। उप यानी पानस और नयन यानी ले जाना अर्थात् गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। प्राचीन काल में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता थी।

इस क्रम में ब्राह्मण बालक का आठवें साल में उपनयन संस्कार होता है, क्षत्रिय बालक का 11वें साल में होता है। जबकि वैश्य बालक का 15 वें साल में उपनयन संस्कार होता है। इस संस्कार में बालक जनेऊ धारण करता है, जो धागे से बना होता है। कई ग्रंथों में बालिका के भी उपनयन संस्कार के विधान है।

💮11. वेदारम्भ संस्कार - ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का। शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है।

स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यो के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था।

💮12. वेदस्नान या समावर्तन संस्कार विद्याध्ययन का अन्तिम संस्कार है। विद्याध्ययन पूर्ण होजाने केबाद स्नातक ब्रह्मचारी अपने पूज्य गुरु की आज्ञा पाकर अपने घर लौटता है। इसीलिये इसे समावर्तन संस्कार कहा जाता है।गृहस्थ-जीवन में प्रवेश पाने का अधिकारी हो जाना समावर्तन-संस्कार का फल है।

💮13. विवाह संस्कार- हिंदू संस्कारों में विवाह संस्कार बेहद अहम होता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में वैवाहिक विधि-विधानों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति का वर्ण किया गया है। गृहस्थाश्रम का आधार ही विवाह संस्कार है। इस संस्कार के बाद वर-वधू अपने नए जीवन में प्रवेश करते हैं।

💮14. वानप्रस्थ संस्कार- गृहस्थ की जिम्मेदारियाँ यथा शीघ्र करके, उत्तराधिकारियों को अपने कार्य सौंपकर अपने व्यक्तित्व को धीरे-धीरे सामाजिक, उत्तरदायित्व, पारमार्थिक कार्यों में पूरी तरह लगा देने के लिए वानप्रस्थ संस्कार कराया जाता है।

💮15. परिव्राज्य या संन्यास संस्कार पंचदश संस्कार है। संन्यास-आश्रम में प्रवेश करके ब्रह्मविद्या का अभ्यास करना पड़ता है व ब्रह्माभ्यास के द्वारा कैवल्य-मोक्ष की प्राप्ति का उपाय करना होता है।
पुत्रैषणा, वित्तैषणा एवं लोकैषणा आदि समस्त एषणाओं का परित्याग कर देना होता है।

💮16. अंतिम संस्कार या अन्त्येष्टि क्रिया हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से एक है। यह हिंदू धर्म का आखिरी संस्कार है। इस संस्कार को व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों द्वारा किया जाता है।
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