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Apr 27, 2023, 17 tweets

16 कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण
He who is Sampuran avtaar!!

@LostTemple7

1. श्री-धन संपदा- जिस व्यक्ति के पास अपार धन हो और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ नहीं जाए वह प्रथम कला से संपन्न माना जाता है।

2.भू-संपदा
पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है और उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं!

3. कीर्ति- यश प्रसिद्धि- जिसके मान-सम्मान व यश की कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंजती हो। लोग जिसके प्रति स्वत: ही श्रद्घा व विश्वास रखते हों।

4.वाणी सम्मोहन
श्री कृष्ण की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता था। मन में भक्ति की भावना भर उठती थी।

5. लीला
श्री कृष्ण धरती पर लीलाधर के नाम से भी जाने जाते हैं! इनकी लीला कथाओं सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।

6. कांति
जिनके रूप को देखकर मन स्वत: ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है।इस कला के कारण पूरा ब्रज मंडल कृष्ण को मोहिनी छवि को देखकर हर्षित होता था।

7. विद्या- मेधा बुद्धि
श्रीकृष्ण वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ और संगीत कला में पारंगत थे। राजनीति एवं कूटनीति भी सिद्घहस्त थे।

8. विमला-पारदर्शिता-
जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं। श्री कृष्ण सभी के प्रति समान व्यवहार रखते हैं। इनके लिए न तो कोई बड़ा है और न छोटा।

9.उत्कर्षिणि शक्ति - महाभारत के युद्घ के समय श्री कृष्ण ने युद्घ से विमुख अर्जुन को युद्घ के लिए प्रेरित किया और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराई।

10नीर क्षीर विवेक
श्री कृष्ण ने कई बार समाज को नई दिशा दी।गोवर्धन पर्वत की पूजा हो या युद्घ टालने के लिए दुर्योधन से 5 गांव मांगना!

11.क्रिया
जिनकी इच्छा मात्र से दुनिया का हर काम हो सकता है वह कृष्ण सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करते हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देते हैं।

12.योग
जिनका मन केन्द्रित है और अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है इसलिए श्री कृष्ण योगेश्वर भी कहलाते हैं। वे उच्च कोटि के योगी थे।

13.प्रहवि-अत्यंतिक विनय-
संपूर्ण सृष्टि का संचलन इनके हाथों में है फिर भी इनमें कर्ता का अहंकार नहीं है। गरीब सुदामा को मित्र बनाकर छाती से लगा लेते हैं।

14.सत्य-यर्थाथ
श्री कृष्ण कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखते और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते हैं।

15.आधिपत्य
इस कला का तात्पर्य है व्यक्ति में उस गुण का मौजूद होना जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है जैसे श्री कृष्ण।

16.अनुग्रह-उपकार
बिना प्रत्युकार की भावना से लोगों का उपकार करना।भगवान कृष्ण कभी भक्तों से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखते हैं।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्

Hare Krishna 🙏 ❤️

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