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RamcharitManas @RamcaritManas
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गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस रुपी मानसरोवर में छंद, सोरठा, और दोहा को कमल कुल कहा.

"छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥"

उन्होने विभिन्न प्रकार के छंदो का प्रयोग रामचरितमानस में किया है. 1/n
हरिगीतिका छंद - मानस का पहला छंद इस प्रकार का है.

"मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की॥
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥"
ये हरिगीतिका (हरिगीति) छंद के दो चरण हैं. ऐसे चार चरणोंकी एक हरिगीति होती है.
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यह एक हरिगीति हुई
मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की॥
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी॥
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥

हरेक चरणमें २८ मात्राऐं २, ३, ४; ३, ४; ३, ४; २, ३; इस क्रम से होनी चाहिये.
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चवपैया छंद- इसका एक उदाहरण ब्रह्मस्तुति है

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता॥

इस छंद के उपरोक्त एक चरण में ३० मात्राऐं होती हैं.
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त्रिभंगी छंद- इस छंदमें चार चरण होते हैं और हरेकमें ३२ मात्राऐं होती हैं. इसका उदाहरण अहल्याकृत स्तुति है.

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।
देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥

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उपरोक्त हिंदी छंदो से अलग अन्य १२ छंदो (संस्कृत से) का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में किया है. 6/n
इनमें से अनुष्टुभ्, शार्दूलविक्रीडित, वसंततिलका, वंशस्थ, इन्द्रवज्रा, मालिनी, स्न्नग्धरा और रथोद्धता, इन आठ छंदो का उपयोग सात कांडो के मंगलाचरण और ग्रंथ के उपसंहारमें किया है. 7/n
कथाभागमें नगस्वरुपिणी(प्रमाणिका), तोमर, तोटक, और भुजंगप्रयात इन चार छंदो का उपयोग गोस्वामीजी ने किया है. 8/n
अनुष्टुभ्(अनुष्टुप्)- इसमें ४ चरण होते हैं और हरेक में आठ अक्षर होते हैं. हरेक चरण का ५वा अक्षर लघु (ह्रस्व) और छ्ठा अक्षर गुरु (दीर्घ) होता है. दूसरे और चौथे चरण का ७वां अक्षर दीर्घ होता है. मात्राओं की संख्या या गण आदि का नियम नही होता. 9/n
अनुष्टुभ्(अनुष्टुप्) छंद का मानस से उदाहरण:

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥

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शार्दूल विक्रीडित- इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में १९ अक्षर होते हैं। यति १२वे अक्षर पर यति होता है. हरेक चरण में म,स,ज,त,ग ऐसे गण होते है. उदाहरणार्थ:
"यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा:
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।

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वसंततिलका- इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में १४ अक्षर होते हैं। हरेक चरण में त, भ, ज, ज, ग, ग (दो गुरु अक्षर) ये गण होते है. उदाहरणार्थ:
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति॥
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वंशस्थ- इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में १२ अक्षर होते हैं और ज, त, ज, र ये गण होते है.
उदाहरणार्थ:
"प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा॥"
इन्द्रवज्रा - इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में ११ अक्षर होते हैं। त, त, ज, ग, ग ये गण होते हैं.
उदाहरणार्थ:
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
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मालिनी - इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में १५ अक्षर होते हैं। न,न,म,य,य ये गण होते हैं.
उदाहरणार्थ:
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥
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स्न्नग्धरा - इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में २१ अक्षर होते हैं। म, र, भ, न, य,य,य ये गण होते हैं.
उदाहरणार्थ:
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।
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रथोद्धता- इस छंद में ४ चरण होते हैं और हरेक में ११ अक्षर होते हैं। म, र, भ, न, य,य,य ये गण होते हैं.
र,न,र,ल,ग (लघु और गुरु अक्षर) ये गण होते हैं. उदाहरणार्थ:
कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ॥
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नगस्वरुपिणी(प्रमाणिका)- इसमें ४ चरण होते हैं और हरेक में ८ अक्षर होते हैं. ज,र,ल,ग ये गण होते हैं.
उदाहरणार्थ:
नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं॥
भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं॥
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तोमर- यह मात्रागण छंद है. हरेक चरण में १२ मात्रा होती है. २।३।४।३ ऐसे मात्रा खंड होनेपर भी उच्चारण में यतिभंग नही होता.
उदाहरणार्थ:
तब चले जान बान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल॥
कोपेउ समर श्रीराम। चले बिसिख निसित निकाम॥
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तोटक- इसमें चार चरणों के हरेक चरण में १२ अक्षर और चार स गण होते हैं.
जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे॥
भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो॥
तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी॥
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भुजंगप्रयात - चार चरण, हरेक चरणमें १२ अक्षर और चार य गण इसमें होते हैं.
उदाहरणार्थ: रुद्राष्टक

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥
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ये सब छंद उनके नामों से प्रगट होनेवाले अर्थकी यथार्थता सिद्ध हो इस पद्धति से मानसमें गोस्वामी तुलसीदास द्वारा उपयोगमें लाये गये हैं. जैसे भगवान शिव के श्राप से प्राप्त सर्पयोनि से मुक्ति के लिये रुद्राष्टक में भुजंगप्रयात छंद का प्रयोग. 22/22
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