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मोहनभागवत यहाँ की हर जातियों पर किताब लिखवा रहे है लेकिन अपनी खुद की जाति पर लिखने से कतरा रहे है! लिखो भागवत जी कि कैसे आपके बाप दादा बेन इजराइल से भगाए जाने पर शरणार्थी बनकर भारत आये थ?
भाई महावीर प्रसाद खिलैरी ने बडे शोध के साथ मोहनभागवत के खानदान का पुरा पता लगाया है!.१/१३
#आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचालक अर्थात मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं! क्या आप जानते हैं ये चितपावन ब्राह्मण कौन होते हैं ?
लेख को पूरा पढ़े यह तेरह ट्वीट्स को मिलकर संपूर्ण एंव विश्लेषित लेख बना है
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चितपावन ब्राह्मण भारत के पश्चिमी किनारे स्थित कोंकण के शरणार्थी है 18वीं शताब्दी तक चितपावन ब्राह्मणों को देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा निम्न स्तरका समझा जाता था
यहां तक कि देशस्थ ब्राह्मण नासिक गोदावरी स्थित घाटों कोभी पेशवा समेत समस्त चितपावन ब्राह्मणों को उपयोग नहीं करने देते१/११
दरअसल कोंकण वह इलाका है जिसे मध्यकाल में विदशों से आने वाले तमाम समूहों ने अपना निवास स्थान बनाया था जिनमें पारसी, बेने इज़राइली, कुडालदेशकर गौड़ ब्राह्मण, कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण, जो सबसे अंत में भारत आए, प्रमुख हैं!
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आज भी भारत की महानगरी मुंबई के कोलाबा में रहने वाले बेन इज़राइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इज़राइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे!

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चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है! इसी समय के आसपास चितपावन ब्राह्मणों में से एक बालाजी विश्वनाथ भट्ट रत्नागिरी से चलकर पुणे के पास सतारा क्षेत्र में पहुँचा। १/८
उसने किसी तरह छत्रपति शाहूजी का दिल जीत लिया और शाहूजी ने प्रसन्न होकर बालाजी विश्वनाथ भट्ट को अपना पेशवा यानी कि प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। यहीं से चितपावन ब्राह्मणों ने सत्ता पर पकड़ बनानी शुरू कर दी क्योंकि वह समझ गए थे कि सत्ता पर पकड़ बनाए रखना बहुत जरुरी है।
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मराठा साम्राज्य का अंत होने तक पेशवा का पद इसी चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ भट्ट के परिवार के पास रहा।
एक चितपावन ब्राह्मण के मराठा साम्राज्य का पेशवा बन जाने का असर हुआ कि कोंकण से चितपावन ब्राह्मणों ने बड़ी संख्या में पुणे आना शुरू किया जहाँ महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया १/६
चितपावन ब्राह्मणों को न सिर्फ मुफ़्त में जमीनें आबंटित की गईं बल्कि उन्हें तमाम करों से भी मुक्ति प्राप्त थी। चितपावन ब्राह्मणों ने अपनी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के इस अभियान में जबरदस्त भ्रष्टाचार किया।
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इतिहासकारों के अनुसार 1818 में बहुजन मराठा साम्राज्य के पतन का यह प्रमुख कारण था।रिचर्ड मैक्सवेल ने लिखा है कि राजनीतिक अवसर मिलने पर सामाजिक स्तर में ऊपर उठने का यह बेमिशाल उदाहरण हैRichard Maxwell Eaton.A social history of the Deccan,1300-1761:8 Indian lives Volume1.p.192
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चितपावन ब्राह्मणों की भाषा इस देश के भाषा परिवार से नहीं मिलती थी
1940 तक ज्यादातर कोंकणी चितपावन ब्राह्मण अपने घरों में चितपावनी कोंकणी बोली बोलते जो उस समय तेजी से विलुप्त होती बोलियों में शुमारथी आश्चर्यजनक रूप से चितपावन ब्राह्मणों ने इस बोली को बचाने का कोई प्रयास न किया।१/३
उद्देश्य उनका सिर्फ एक था कि खुद को मुख्यधारा में स्थापित कर उच्च स्थान पर काबिज़ हुआ जाए। खुद को बदलने में चितपावन ब्राह्मण कितने माहिर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने जब देश में इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत की तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चो१/२
का दाखिला कारने में चितपावन ब्राह्मण ही अग्रणी थे
इस तरह अत्यंत कम जनसंख्या वाले चितपावन ब्राह्मणों ने,जो मूलरूप से इज़राइली यहूदी थे,न सिर्फ इस देश में खुद को स्थापित किया बल्कि आरएसएस नाम का संगठन बना कर वर्तमान में देश के नीति नियंत्रण करने की स्थिति तक खुद पहुंचाया है
समाप्त
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