उन दोनों को हर सप्ताह परेड के दिन उन्हें जेल के सुपरिन्टेन्डेंट के सामने खडा कर देते थे.. सुपरिन्टेन्डेन्ट अपने समय का बॉक्सर था..
इस मुक्केबाज़ी के कारण डॉ गया प्रसाद 36 घण्टो तक बेहोश रहे..
एक बार सुपरिन्टेन्डेन्ट को अजीब सनक चढ़ी..
एक लकड़ी के चौखट पर बन्दी को इस तरह बांधा जाता था की उसकी पीठ ऊपर को रहे और उनके नंगे नितम्बों पर आसानी से बेंत गिर सके.. हाथ, पैर, कमर को बांध दिए जाते थे.
नमन है ऐसे हिंदुस्तान के वीर सपूतों को.. और क्या वजह रही कि हमें इनके बारे में नही पढ़ाया जाता..इन्होंने भी जेल की यातनाएं सही.. अनशन किये.. फिर इन क्रांतिकारियों को वो सम्मान क्यो नही जो सम्मान जेल में बागबानी करने वालो को दिया गया ?