मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था।तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था।उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे।एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल
Continue...
उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा-व्यथा थी ।
सलावत खां- ठहर जाओ...अमर सिंह जी...आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।
अमर सिंह- मैं राजा हूँ । मेरे पास
सलावत खां- आप राजा थे...अब हम आपके सेनापति हैं...आप मेरे मातहत हैं।आप पर जुर्माना लगाया जाता है...शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।
अमर सिंह- अगर मैं जुर्माना ना दूँ !
सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर... ये काफिर
अमर सिंह के कानों ने काफिर शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया... तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी । मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा... अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया ।
दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ
बादशाह- हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया...या खुदा !
वज़ीर-जी जहाँपनाह
बादशाह-अमर सिंह बहुत बहादुर है... उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ...कहना हमने माफ किया!
बादशाह- अच्छा...सवाल वाजिब है... जवाब कल पता चल जाएगा ।
अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।
शाहजहां- अमर सिंह का कुछ पता चला।
शाहजहां- क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?
दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की... बड़े बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे । लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी।
अर्जुन सिंह- हुज़ूर आप हुक्म दें... मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ ।
बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा.. यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है... हिंदू बहादुर है लेकिन इसीलिए गुलाम हुआ.. देखो.. यही वजह है।
#हिंदू
कृपया शेयर करें
साभार।
🙏🙏🙏