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ॐ नमः शिवाय
हमारे कुछ मित्र सोमरस को ही मदिरा समझते हैं। और ये उनकी गलती नहीं है। दरअसल म्लेच्छों और वामपंथी इतिहासकारों ने सनातन देवी देवताओं और संस्कृति को बदनाम करने के लिए सबको यही पढ़ाया की सोमरस मादक पेय है।
कितने ही टी.वी. सीरियल में भी दिखाया जाता है कि देवता इन्द्र की सभा में सुन्दर अप्सराएँ सोमरस पिलाती हैं और सभी देव उसका आनन्द लेते हैं। इस सोम रस को लोग शराब बताया करते हैं पर ये धारणा बिल्कुल गलत है। अक्सर शराब के समर्थक यह कहते सुने गए हैं कि देवता भी तो शराब पीते थे।
सोमरस क्या था, शराब ही तो थी। क्या सच में वैदिक काल में सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था या ये सिर्फ एक भ्रम है? वैसे उस समय आचार-विचार की पवित्रता का इतना ध्यान रखा जाता था कि जरा भी कोई इस पवित्रता को भंग करता था उसका बहिष्कार कर दिया जाता था
या फिर उसे कठिन प्रायश्चित करने होते थे। तो यह सामान्य-सी बात है कि सनातन धर्म मदिरा पान करने की इजाजत नहीं देता।
ऋग्वेद मैं ही कहा गया है - "यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्र देव को प्राप्त हो।। (ऋग्वेद-1/5/5)"
"हे वायुदेव यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।। (ऋग्वेद-1/23/1)
ऋग्वेद में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता।
भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है। इसलिए यह बात का स्पष्ट हो जाती है कि सोमरस जो भी हो लेकिन वह शराब या भांग तो कतई नहीं थी और जिससे नशा भी नहीं होता था।
सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है। इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना। वैदिक साहित्य में इसका पूरा वर्णन लिखा हुआ है। सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा भेड़ के ऊन की छलनी से छानकर फिर उसमें दुध और दही मिलाकर प्राप्त किए जाने वाले
सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं, तभी तो पूरे विधान से होम (सोम) अनुष्ठान में पण्डित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे।
बाद में प्रसाद के तौर पर सभी जनमानस को देकर और स्वयं लेकर खुद भी खुश हो जाते थे और आजकल उसी सोमरस को ही चरणामृत और पंचामृत कहते हैं।
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