नमस्कार मित्रों ! भारत भूमि विभिन्न धर्म –संस्कृति का देश कहलाता है …हम यहाँ भगवान बुद्ध एवं उनके आम जन को दिए गए संदेशो के विषय में .जानने का प्रयास करेंगे !
आज से लगभग पूर्व २५०० वर्ष पूर्व नेपाल की तराई में ५६३ ईस्वी वैशाख पूर्णिमा के दिन कपिलवस्तु (ऐसे संकेत मिलते है कि इस नगर का नाम महान बुद्धिवादी मुनि कपिल के नाम पर पड़ा है )
बुद्ध धर्म के बारे में आम भारतीय बहुत कम या नहीं के बराबर ही जानता है !
१. शुभ कर्म , अशुभ कर्म तथा पाप
१. शुभ कर्म करो ! अशुभ कर्मो में सहयोग न दो ! कोई पाप कर्म न करो !
२. यही बौद्ध जीवन मार्ग है !
४. भलाई के बारे में यह मत सोचो कि मै इसे प्राप्त न कर सकूंगा ! बूंद बूंद पानी करके घड़ा भर जाता है !
५. जिस काम को करके आदमी को पछताना न पड़े और जिसके फल को वह आनंदित मन से भोग सके ,उस काम को करना अच्छा है !
७. यदि आदमी शुभ कर्म करे ! तो इसे पुनः पुनः करना चाहिए ! उसे उसमे आनन्दित होना चाहिए !शुभ कर्म का करना आनन्ददायक होता है !
१०. शील (सदाचार ) की सुगंध चन्दन, तगर तथा मल्लिका –सबकी सुगंध से बडकर है !
१२. बुराई के बारे में यझ न सोचे कि यह मुझ तक नही पहुचेगी !जिस प्रकार बूंद बूंद करके पानी का घड़ा भर जाता है ,इसी प्रकार थोडा-थोडा अशुभ कर्म भी बहुत हो जाते है !
१४. यदि कोई आदमी दुष्ट मं से कुछ बोलता है या कोई काम करता है ,तो दुख: उसके पीछे-पीछे ऐसे ही हो लेता है ,जैसे गाडी का पहिया खीचने वाले (पशु)के पीछे पीछे !
१६. शुभ कर्मो में अप्रमादी हो !बुरे विचारों का दमन करें !जो कोई शुभ कर्म को करने में ढील करता है ,उसका मन पाप में रमण करने लगता है !
१८. पापी भी सुख भोगता रहता है , जब तक उसका पाप कर्म नहीं पकता ,लेकिन जब उसका पाप कर्म पकता है, तब वह दुःख भोगता है !
२१. यदि एक आदमी पाप करे ,तो वह बार बार न करे ! वह पाप में आनंद न माने ! पाप इकठ्ठा होकर दुःख देता है !
२३. कामुकता से दुख पैदा होता है , कामुकता से भय पैदा होता है ! जो कामुकता से एकदम मुक्त है , उसे न दुःख है न भय !
२५. स्वयं-कृत,स्वयं-उत्पन्न तथा स्वयं पोषित पाप कर्म ,करने वाले को ऐसे ही पीस डालता है ,जैसे वज्र मूल्यवान मणि को !
२७. अकुशल कर्म तथा अहितकर कर्म करना आसान है ! कुशल कर्म तथा हितकर कर्म करना कठिन है !
१.लोभ और तृष्णा के वशीभूत न हो !
२. यही बौद्ध जीवन मार्ग है !
३.धन की वर्षा होने भी आदमी की कामना की पूर्ती नही होती ! बुद्धिमान आदमी जानता है कि,कामनाओं की पूर्ती में अल्प स्वाद है और दुख है!
५.लोभ से दुःख पैदा होता है ! लोभ से भय पैदा होता है ! जो लोभ से मुक्त है उसके लिए न दुःख है न भय है !
७.जो अपने आपको घमंड के समर्पित कर देता है , जो जीवन के यथार्त उद्देश्य को भूलकर , काम भोगो के पीछे पड़ जाता है , वह बाद में ध्यानी की ओर इर्ष्या –भरी दृष्टि से देखता है!
९.काम भोग से दुःख होता है ,काम भोग से भय पैदा होता है , जो आसक्ति से मुक्त है ,उसे न दुःख है न भय है !
११. राग से दुःख पैदा होता है , राग से भय पैदा होता है ! जो राग से मुक्त है , उसे न दुःख है न भय है !
१३. जो शीलवान है , जो प्रज्ञावान है , जो न्यायी है , जो सत्यवादी है , तथा जो अपने कर्तव्य को पूरा करता है – उससे लोग प्यार करते है !
१५.इसी प्रकार शुभ-कर्म करने वाले के गुण कर्म परलोक में उसका स्वागत करते है ! सियाह-बख्ती में कब कोई किसी का साथ देता है !….. कि तारीकी में साया भी जुदा इंसां से होता है
१.किसी को क्लेश मत दो,किसी को से द्वेष मत रखो !
२.यही बौद्ध जीवन मार्ग है .
३.क्या संसार में कोई आदमी इतना निर्दोष है कि ,उसे दोष नहीं दिया जा सकता ,जैसे शिक्षित घोडा चाबुक की मार की अपेक्षा नही रखता .
५.क्षमा सबसे बड़ा तप है,निर्वाण सबसे बड़ा सुख है –ऐसा बुद्ध कहते है !जो दूसरों को आघात पहुचाए ,वो प्रवर्जित नही, जो दूसरों को पीड़ा न दे-वही श्रमण है!
७.न जीव हिंसा करो , न कराओ !
८.अपने लिए सुख चाहने वाला , जो सुख चाहने वाले प्राणियों को न कष्ट देता है और न जान से मारता है , वह सुख प्राप्त करेगा .
१०.जो निर्दोष और अहानिकर व्यक्तियों को कष्ट देता है वह स्वयं कष्ट भोगता है .
१. क्रोध न करो,!शत्रुता को भूल जाओ ! अपने शत्रुओ को मैत्री से जीत लो !
२.यही बौ द्ध जीवन मार्ग है !
३.क्रोधाग्नि शांत होना ही चाहिए !
५. जो ऐसे विचार नहीं रखता उसी का बैर शांत होता है !
७.आदमी को चाहिए कि क्रोध को अक्रोध से जीते ,बुराई को बलाई से जीते , लोभी को उदारता से जीते ,और झूठे को सच्चाई से जीते !
८.सत्य बोले, क्रोध न् करे ,थोडा होने पर भी दे !
११.जय से बैर पैदा होता है ! पराजित आदमी दुखी रहता है ! शांत आदमी जय-पराजय की चिंता छोडकर शुख्पूर्वक सोता है !
शत शत नमन है तथागत भगवान् बुद्ध जी को.
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