शराब की दुकानों के सामने लगी हुई ये भीड़ मेरे मन के कई सवालों का जवाब दे देती है...
अक्सर मन मे एक सवाल उमड़ता था कि अरबो की जनसंख्या वाले देश मे कैसे नेता बड़े बड़े घोटाले कर लेते है? कैसे जनता के पैसे डकार जाते है...
कल इसका जवाब मिल गया - इनको घण्टा फर्क नही पड़ता..!!
इनको इस बात से कोई लेना देना ही नही था, इन्हें ठेके खुलने से ही मतलब था..!!
बैंकर्स को भीड़ करने के लिए नोटिस थमाने वाली पुलिस वँहा लाइन लगवा रही है..!
बैंकर्स को काम पर जाते टाइम पीटने वाले वँहा भाईचारा निभा रहे है..!!
"क्योंकी जनता को इनके होने से फर्क ही नही पड़ता"
रास्ते मे कोई बड़ा पत्थर पड़ा हो तो उसे उठाने के बजाय बगल में से निकलने वाले लोग है हम.. हमे सिर्फ खुद से मतलब है... देश जाए भाड़ में...!!
लोगो को खाने के सामान नही मिल रहे, आवश्यक चीजो की मैन्यूफैक्चरिंग बंद है...
लेकिन सरकार को शराब बिक़वानी है... राजस्व चाहिए... अरे अक्ल के अंधों, देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था तुमसे संभल नही रही जनता को भी डगमगाने का इंतजाम तुम कर रहे हो...!!
भगवान तुम्हे सद्बुध्दि दे...!!