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‘Everyman is free to do that which he wills, provided he infringes not the equal freedom of any other man', and 'Resistance to aggression is not simply justifiable but imperative’ -
Spencer के लिखे ये दो वाक्यों ने उस व्यक्तित्व को उत्प्रेरित किया जिसे आज हम वीर सावरकर कहते हैं
वैसे तो वीर सावरकर पर इतना कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है, कि यदि मैं कुछ लिखने का भी सोचूँ तो ये सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा, किंतु मैं फिर भी एक प्रयत्न अवश्य करूँगा।
सावरकर मेरे विचार में एक क्रांतिकारी होने के साथ इतिहासकार भी थे, साथ ही वो उच्च पूर्वदृष्टि वाले राजनीतिज्ञ भी थे। ग़ौर से देखने पर हम पाएँगे कि सभी महान नेताओं की इतिहास में गहन रुचि रही।
उन्होंने इतिहास को जिस दृष्टि से देखा, उसी के अनुरूप उनकी शैली बन गयी। उन्होंने इतिहास को कैसे देखा और अतीत से वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की तैयारी के लिए कैसे सबक सीखा, यह इस महान देशभक्त की कहानी का एक दिलचस्प आयाम है।
बहुत शुरुआती स्तर पर, सावरकर ने समझा कि किस तरह से इतिहास का निर्माण और वर्णन( narrative) राजनीति और शक्ति के उपयोग से बदल दिया गया।
दो घटनाओं जिन्होंने सावरकर को वो स्वरूप दिया जिसे हम आज जानते हैं, वे थी -
१. उनका मार्गदर्शक श्यामजी कृष्ण वर्मा से सम्पर्क होना - ये श्यामजी ही थे जिनकी मदद से सावरकर को लंदन में लॉ पढ़ने की छात्रवृत्ति मिली और लंदन पहुँचने पर उनका इंडिया हाउस में ठहरना हुआ।
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
इस श्लोक के भावार्थ के समान ही श्यामजी ने उन्हें प्रेरित किया और इंडिया हाउस में रहते हुए ही सावरकर श्यामजी से बहुत प्रभावित हुए और शिष्य की तरह बन गए।
श्यामजी ब्रिटेन में रहते हुए वहाँ आने वाले भारतीय छात्रों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ने के लिए प्रेरित करने के प्रयासों में लगे हुए थे। श्यामजी ने सावरकर के अलावा लाला हरदयाल, मैडम कामा, जैसे लोगों को भी प्रेरणा दी
श्यामजी की प्रेरणा से सावरकर ने फ़्री इंडिया सोसायटी की स्थापना की जो इटालीयन राष्ट्रवादी माजिन्नी के विचारों से प्रभावित थी। उसी समय के दौरान सावरकर ने माजिन्नी की आत्मकथा भी लिखी
जो पाठक यह नहीं जानते हैं कि माजिन्नी कौन थे, उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इटली के एकीकरण में सबसे प्रखर योगदान माजिन्नी और गैरीबाल्डी का माना जाता है
historytoday.com/archive/giusep…
सावरकर की अगुआई में फ़्री इंडिया सोसायटी ने वहाँ सभाओं का आयोजन शुरू किया, और इस बात की चर्चा की जाने लगी कि अंग्रेजों के शासन को भारत से कैसे उखाड़ फेंका जाए। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए युद्ध की भी वकालत की।
इसी दौरान सावरकर ने अपनी पुस्तक “ The Indian War of Independence” लिखी जो १८५७ के संग्राम पर आधारित थी, पहली बार किसी लेखक ने इस संग्राम को सिपाही विद्रोह(Mutiny) की जगह स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी।
सावरकर ने “ The Indian War of Independence” में लिखा -
“The history of the tremendous Revolution that was enacted in the year 1857 has never been written in this scientific spirit by an author, Indian or foreign.”
२. दूसरी घटना थी, सावरकर को दी गयी कालापानी की सजा। इस घटना ने उन्हें राष्ट्रवादी हिंदू से हिंदुत्व की ओर मोड़ दिया। कारावास के एकाकीपन में विकसित हुए विचारों ने सावरकर को 'भारतीयता की सांस्कृतिक पहचान' के लिए अपने ग्रंथ को लिखने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने “हिंदुत्व” लिखी
इस पुस्तक में “हिंदुत्व” की विचारधारा ने किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए जन्म लिया जिसने इस भूमि को अपने पूर्वजों की भूमि माना और हिंदू को - शब्द के धार्मिक अर्थ से नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत पहचान के रूप में परिभाषित किया.
मेरे विचार में सावरकर की सबसे महान रचना थी “ Six Glorious Epochs of Indian History’. कोई भी इतिहास की पाठ्य पुस्तक, जो आज एक छात्र अध्ययन करता है, वह विदेशियों द्वारा आक्रमण होने भारत को बार-बार हारा हुआ ही दिखाता है। यह केवल स्वाभाविक है क्योंकि
इस तरह के ऐतिहासिक आख्यानों ने अंग्रेजों को भारतीयों के मन में यह विचार पैदा करने में मदद की कि वे एक अन्य विदेशी सत्ता या संस्कृति के गुलाम होने के लिए पैदा हुए समाज हैं। इस दृष्टिकोण की सफलता यह है कि आज भी हम खुद को पश्चिम के मन और संस्कृति के दास के रूप में देखते हैं।
दूसरी तरफ़ “Six Epoch” भारतीय इतिहास को दुश्मनों के आक्रमणों का सामना करने वाले भारतीयों के लंबे महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत करती हैं, और बताती है कि कैसे उन्होंने प्रतिरोध का गठन किया और दुश्मनों को उखाड़ फेंका या उन्हें आत्मसात कर लिया या उन्हें भारत के अधीन कर दिया।
सावरकर का दृढ़ विश्वास था कि एक राष्ट्र को जीवित रहने के लिए अपने अतीत को पुनः प्राप्त करना होगा। सावरकर ने लिखा:
“The nation that has no consciousness of its past has no future. Equally true it is that a nation must develop its capacity not only of claiming a past, but also of knowing how to use it for the furtherance of its future.”
सावरकर क्यों आज भी प्रासंगिक हैं, ये इन वाक्यों के आज के परिप्रेक्ष्य में भी लागू होने में स्पष्ट दिखता है।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता इमे सादरं त्वां नमामो वयम् ।
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम् शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ॥
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् ।
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥
राष्ट्रगौरव की अलख जगाने वाले इस वीर को कोटि कोटि नमन🙏🚩🙏
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