१. उनका मार्गदर्शक श्यामजी कृष्ण वर्मा से सम्पर्क होना - ये श्यामजी ही थे जिनकी मदद से सावरकर को लंदन में लॉ पढ़ने की छात्रवृत्ति मिली और लंदन पहुँचने पर उनका इंडिया हाउस में ठहरना हुआ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
इस श्लोक के भावार्थ के समान ही श्यामजी ने उन्हें प्रेरित किया और इंडिया हाउस में रहते हुए ही सावरकर श्यामजी से बहुत प्रभावित हुए और शिष्य की तरह बन गए।
historytoday.com/archive/giusep…
“The history of the tremendous Revolution that was enacted in the year 1857 has never been written in this scientific spirit by an author, Indian or foreign.”
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम् शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ॥
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् ।
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥