My Authors
Read all threads
मुझे लगता है कि आज के समय में जैन धर्म के अनेकान्तवाद की लोग गलत व्याख्या करके बहुत सारी मिथ्या चीजों को अनेकान्तवाद कह कर सही ठहरा रहे है, शायद किसी ने अनेकान्तवाद की गलत व्याख्या कर यह नई परंपरा शुरू कर दी। #अनेकान्तवाद को इस thread के माध्यम से सरल शब्दों में समझें
#jainism
1. अनेकान्त किसे कहते हैं ?

अनेक + अन्त = अनेकान्त। अनेक का अर्थ है एक से अधिक, अन्त का अर्थ है गुण या धर्म। वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक गुणों या धर्मों के विद्यमान रहने को अनेकान्त कहते हैं।
2. अनेकान्त के कितने भेद हैं ?

अनेकान्त के दो भेद हैं -

सम्यक् अनेकान्त - वस्तु के अनेक गुण धर्मो को सापेक्ष रूप से स्वीकार करना।

मिथ्या अनेकान्त - निरपेक्ष रूप से अनेक गुण धर्मों की कल्पना करना।
3. स्याद्वाद किसे कहते हैं ?

अनेकान्त धर्म का कथन करने वाली भाषा पद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। स्यात् का अर्थ है कथचित् किसी अपेक्षा से एवं वाद का अर्थ है कथन करना।

4. स्याद्वाद के कितने भङ्ग हैं ?

स्याद्वाद के सात भङ्ग हैं, जिसे सप्तभङ्गी के नाम से भी जाना जाता है।
5. सप्तभङ्गी किसे कहते हैं ?

“प्रश्न वशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि प्रतिषेध विकल्पना सप्तभङ्गी'। अर्थ– प्रश्न के अनुसार एक वस्तु में प्रमाण से अविरुद्ध विधि निषेध धर्मों की कल्पना सप्त भङ्गी है। (रावा, 1/6/5)

सप्त भङ्गों के समूह को सप्तभङ्गी कहते हैं।
6. सप्त भङ्ग के नाम क्या हैं ?

सप्त भङ्ग के नाम इस प्रकार हैं-1. स्यात् अस्ति एव, 2. स्यात् नास्ति एव, 3. स्यात् अस्ति—नास्ति, 4. स्यात् अवक्तव्य एव, 5. स्यात् अस्ति अवक्तव्य, 6. स्यात् नास्ति अवक्तव्य, 7. स्यात् अस्ति—नास्ति अवक्तव्य।
स्यात् अस्ति एव - किसी अपेक्षा से है। जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी की अपेक्षा से धर्मपत्नी ही हैं।

स्यात् नास्ति एव - किसी अपेक्षा से नहीं है। जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी के अतिरिक्त अन्य पुरुष की अपेक्षा से धर्मपत्नी नहीं है।
स्यात् अस्ति-नास्ति - किसी अपेक्षा से है, किसी अपेक्षा से नहीं है। जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी की अपेक्षा से धर्मपत्नी है, अन्य पुरुषों की अपेक्षा से धर्मपत्नी नहीं है।

स्यात् अवक्तव्य एव - किसी अपेक्षा से अवक्तव्य है। (नहीं कहा जा सकता है)
जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी की अपेक्षा से धर्मपत्नी है, अन्य पुरुषों की अपेक्षा से ही, इन दोनों अपेक्षाओं को एक साथ नहीं कहा जा सकता है। अतः युगपत् अपेक्षा अवक्तव्य है।
स्यात् अस्ति अवक्तव्य - किसी अपेक्षा से है, पर अवत्तव्य है। जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी की अपेक्षा से धर्मपत्नी है एवं उसी समय रामचन्द्रजी एवं अन्य पुरुष इन दोनों की अपेक्षाओं से एक साथ नहीं कहा जा सकता है।
स्यात्नास्ति अवक्तव्य - किसी अपेक्षा से नहीं है, पर अवत्तव्य है। जैसे-सीताजी अन्य पुरुषों की अपेक्षा से धर्मपत्नी नहीं है एवं उसी समय रामचन्द्रजी एवं अन्य पुरुष इन दोनों अवस्थाओं का कथन युगपत् संभव नहीं है, अत: नास्ति अवक्तव्य है।
स्यात् अस्ति-नास्ति अवक्तव्य - किसी अपेक्षा से है, नहीं भी है, पर अवत्तव्य है। जैसे-सीता जी रामचन्द्र जी की अपेक्षा से धर्मपत्नी है, अन्य पुरुष की अपेक्षा से धर्मपत्नी नहीं है एवं उसी समय तीनों अवस्थाओं का कथन युगपत् संभव नहीं है, अत: अस्ति-नास्ति अवक्तव्य है।
8. अनेकान्त हमारे नित्य व्यवहार की वस्तु किस प्रकार से है ?

अनेकान्त हमारे नित्य व्यवहार की वस्तु है, इसे स्वीकार किए बिना हमारा लोक व्यवहार एक क्षण भी नहीं चल सकता। लोक व्यवहार में देखा जाता है। जैसे-एक ही व्यक्ति अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र कहलाता है,
वही अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता भी कहलाता है। इसी प्रकार अपने भांजे की अपेक्षा से मामा एवं अपने मामा की अपेक्षा से भांजा। इसी प्रकार श्वसुर की अपेक्षा से दामाद एवं अपने दामाद की अपेक्षा से श्वसुर कहलाता है। इसी प्रकार अपने गुरु की अपेक्षा से शिष्य एवं शिष्य की अपेक्षा से गुरु।
जिस प्रकार एक ही व्यक्ति में अनेक रिश्ते संभव हैं, उसी प्रकार एक वस्तु में अनेक धर्म विद्यमान हैं। कोई कहे हमारे मामा हैं तो सबके मामा हैं, सब मामा कहो तो यह एकान्त दृष्टि है, झगड़े का कारण है, अनेकान्त समन्वय की वस्तु है।
9. क्या वस्तु में सात ही भङ्ग होते हैं ?

जिज्ञासा सात प्रकार से ज्यादा नहीं हो सकती एवं उनका समाधान भी सात प्रकार से किया जाता है, अत: प्रत्येक वस्तु में भङ्ग7 ही होते हैं।
10. सप्तभङ्गी के मूल में कितने भङ्ग हैं ?

सप्तभङ्गी के मूल में तीन भङ्ग हैं- स्यात् अस्ति एव, स्यात् नास्ति एव एवं स्यात् अवक्तव्य एव इन तीन भङ्गों से चार संयुक्त भङ्ग बनकर सप्त भङ्ग हो जाते हैं।
11. क्या अनेकान्त छल है ?
नहीं। छल में तो दूसरों को धोखा दिया जाता है किन्तु अनेकान्त में अनेक धर्म हैं वत्ता किस धर्म को कहना चाह रहा वह अनेकान्त है। जैसे-‘नव कम्बलो देवदत्त: यहाँ नव शब्द के दो अर्थ होते हैं, 9 व नया। इसके पास 9 कम्बल हैं, श्रोता ने अर्थ किया इसका नया कम्बल है
12. बनारस के पंडित गङ्गारामजी से मित्र ने पूछा आप जैन धर्मावलंबियों में पैदा नहीं होकर भी इस धर्म में इतना अनुराग क्यों रखते हैं ?

पंडितजी ने अपने मकान के चारों ओर से लिए हुए 4 फोटो उठाए। चारों दिशाओं के लिए थे। फोटो दिखाकर पंडितजी ने कहा किसके मकान के फोटो हैं,
पंडितजी ये तो आपके मकान के फोटो हैं, पंडित जी बोले यही तो स्याद्वाद है। मकान तो एक है परन्तु चारों ओर से देखने पर चारों भिन्न-भिन्न लगते हैं। इसी तरह किसी भी वस्तु को उसमें जितने गुण धर्म तथा पर्यायें हैं उतनी दृष्टियों से उसको बताना ही स्याद्वाद है।
स्याद्वाद के बिना एकान्तवाद से किसी वस्तु का सम्पूर्ण व यथार्थ बोध नहीं हो सकता।
उपरोक्त विषय वस्तु आचार्य विद्यासगर गुरु ऐप से, मानव कल्याण हेतु ली गई है
जो लोग अलग अलग धर्मो को जैन धर्म के #अनेकान्तवाद से जोड़ते हैं, वह उसी तरह है जैसे आप किसी दुकानदार को पत्थर दे कर सोना समझने को कहते हैं (पदार्थ की दृष्टि से तो दोनों एक ही है)
सत्य एक ही होता है, परिस्थितियों के हिसाब से कथन बदलता है सत्य नहीं
Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh.

Keep Current with VK_Jain....जैन

Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

Twitter may remove this content at anytime, convert it as a PDF, save and print for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video

1) Follow Thread Reader App on Twitter so you can easily mention us!

2) Go to a Twitter thread (series of Tweets by the same owner) and mention us with a keyword "unroll" @threadreaderapp unroll

You can practice here first or read more on our help page!

Follow Us on Twitter!

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3.00/month or $30.00/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!