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अनेक + अन्त = अनेकान्त। अनेक का अर्थ है एक से अधिक, अन्त का अर्थ है गुण या धर्म। वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक गुणों या धर्मों के विद्यमान रहने को अनेकान्त कहते हैं।
अनेकान्त के दो भेद हैं -
सम्यक् अनेकान्त - वस्तु के अनेक गुण धर्मो को सापेक्ष रूप से स्वीकार करना।
मिथ्या अनेकान्त - निरपेक्ष रूप से अनेक गुण धर्मों की कल्पना करना।
अनेकान्त धर्म का कथन करने वाली भाषा पद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। स्यात् का अर्थ है कथचित् किसी अपेक्षा से एवं वाद का अर्थ है कथन करना।
4. स्याद्वाद के कितने भङ्ग हैं ?
स्याद्वाद के सात भङ्ग हैं, जिसे सप्तभङ्गी के नाम से भी जाना जाता है।
“प्रश्न वशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि प्रतिषेध विकल्पना सप्तभङ्गी'। अर्थ– प्रश्न के अनुसार एक वस्तु में प्रमाण से अविरुद्ध विधि निषेध धर्मों की कल्पना सप्त भङ्गी है। (रावा, 1/6/5)
सप्त भङ्गों के समूह को सप्तभङ्गी कहते हैं।
सप्त भङ्ग के नाम इस प्रकार हैं-1. स्यात् अस्ति एव, 2. स्यात् नास्ति एव, 3. स्यात् अस्ति—नास्ति, 4. स्यात् अवक्तव्य एव, 5. स्यात् अस्ति अवक्तव्य, 6. स्यात् नास्ति अवक्तव्य, 7. स्यात् अस्ति—नास्ति अवक्तव्य।
स्यात् नास्ति एव - किसी अपेक्षा से नहीं है। जैसे-सीताजी रामचन्द्रजी के अतिरिक्त अन्य पुरुष की अपेक्षा से धर्मपत्नी नहीं है।
स्यात् अवक्तव्य एव - किसी अपेक्षा से अवक्तव्य है। (नहीं कहा जा सकता है)
अनेकान्त हमारे नित्य व्यवहार की वस्तु है, इसे स्वीकार किए बिना हमारा लोक व्यवहार एक क्षण भी नहीं चल सकता। लोक व्यवहार में देखा जाता है। जैसे-एक ही व्यक्ति अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र कहलाता है,
जिज्ञासा सात प्रकार से ज्यादा नहीं हो सकती एवं उनका समाधान भी सात प्रकार से किया जाता है, अत: प्रत्येक वस्तु में भङ्ग7 ही होते हैं।
सप्तभङ्गी के मूल में तीन भङ्ग हैं- स्यात् अस्ति एव, स्यात् नास्ति एव एवं स्यात् अवक्तव्य एव इन तीन भङ्गों से चार संयुक्त भङ्ग बनकर सप्त भङ्ग हो जाते हैं।
नहीं। छल में तो दूसरों को धोखा दिया जाता है किन्तु अनेकान्त में अनेक धर्म हैं वत्ता किस धर्म को कहना चाह रहा वह अनेकान्त है। जैसे-‘नव कम्बलो देवदत्त: यहाँ नव शब्द के दो अर्थ होते हैं, 9 व नया। इसके पास 9 कम्बल हैं, श्रोता ने अर्थ किया इसका नया कम्बल है
पंडितजी ने अपने मकान के चारों ओर से लिए हुए 4 फोटो उठाए। चारों दिशाओं के लिए थे। फोटो दिखाकर पंडितजी ने कहा किसके मकान के फोटो हैं,
सत्य एक ही होता है, परिस्थितियों के हिसाब से कथन बदलता है सत्य नहीं