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Jan 20, 2021 46 tweets 9 min read
ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है!
डा. स्नेहरानी जैन( सागर - म. प्र. )
विश्व के विद्वानों, इतिहासकारों एवं पुरातात्विकों के मतानुसार इस धरती पर ईसा से लगभग ५०००—३००० वर्ष पूर्व के काल में सभ्यता अत्यन्त उन्नति पर थी। मिस्र देश के पिरामिड और ममी, स्पिक्स, चीन की ममी, ग्रीक के अवशेष, बेबीलोन, भारत के वेद, मोहनजोदड़ों—हड़प्पा के अवशेष, तक्षशिला, नालन्दा आदि कुछ ऐसे ही प्रतीक है जो अपनी कला, संस्कृति सभ्यता और सामाजिक चेतना के चरम बिन्दु से लगते हैं।
भूविशेषज्ञों के मतानुसार अनेकों बार लम्बे काल में हमारी धरती पर प्रमुख बदलाव ऐसे आये हैं
Jan 20, 2021 5 tweets 2 min read
आदमी की औकात -मुनि तरुण सागर

फिर घमंड कैसा
घी का एक लोटा,
लकड़ियों का ढेर,
कुछ मिनटों में राख
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात !!

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट,
तो कहीं ये फुसफुसाहट..
अरे जल्दी ले चलो कौन रखेगा सारी रात..
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात!!

मरने के बाद नीचे देखा तो
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे.....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती
रोए जा रहे थे।
नहीं रहा........चला गया.....
दो चार दिन करेंगे बात.....
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!*
Aug 15, 2020 24 tweets 6 min read
जो जन्म लेता लेता है उसका मरण निश्चित है और यह जीवन की एक अनिवार्य घटना है। मरते समय अपने भावों को सम्हालते हुए, कषाय को भी देह के साथ त्यागना ही सल्लेखना का उद्देश्य है। सल्लेखना के साथ मरण करने वाला शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त करता है।
#जय_जिनेन्द्र #Jainism #जिनवाणी एक मुनि सल्लेखना के समय सेव... सल्लेखना क्या है ?

१. अच्छे प्रकार से काय और कषाय का लेखन करना अर्थात् कृश करना सल्लेखना है।

२. बाहरी शरीर को और भीतरी कषायों के उत्तरोत्तर पुष्ट करने वाले कारणों को घटाते हुए भले प्रकार से लेखन करना अर्थात् कृश करना सल्लेखना है। (स.सि., 7/22/705)
Aug 2, 2020 10 tweets 3 min read
#जय_जिनेन्द्र #जिनवाणी #Jainism
पूज्य पुरुषों की वंदना-स्तुति हमें पूज्य बनने की प्रेरणा देती है। इतना ही नहीं उनके मार्ग पर चलकर हम उन जैसा भी बन सकते हैं। हमारे आराध्य पूज्य नवदेवता हैं-
अरिहन्त जी
सिद्ध जी
आचार्य जी
उपाध्याय जी
साधु जी
जिन धर्म
जिन अागम
जिन चेत्य
जिन चैत्यालय धर्म स्थान में जिनका पद महान होता है, जो गुणों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।

जीव जिस पद में स्थित होकर आत्म - साधना करते हुए अन्तत: मोक्ष-सुख को प्राप्त करते हैं उस पद को परम पद कहा जाता है।

परमेष्ठी ५ हैं  - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु परमेष्ठी।
Jun 28, 2020 23 tweets 5 min read
मुझे लगता है कि आज के समय में जैन धर्म के अनेकान्तवाद की लोग गलत व्याख्या करके बहुत सारी मिथ्या चीजों को अनेकान्तवाद कह कर सही ठहरा रहे है, शायद किसी ने अनेकान्तवाद की गलत व्याख्या कर यह नई परंपरा शुरू कर दी। #अनेकान्तवाद को इस thread के माध्यम से सरल शब्दों में समझें
#jainism 1. अनेकान्त किसे कहते हैं ?

अनेक + अन्त = अनेकान्त। अनेक का अर्थ है एक से अधिक, अन्त का अर्थ है गुण या धर्म। वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक गुणों या धर्मों के विद्यमान रहने को अनेकान्त कहते हैं।