गुरुर ब्रह्मा : गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं.
गुरुर विष्णु : गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं.
गुरुर देवो महेश्वरा : गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं.
गुरुः साक्षात : सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष
परब्रह्म : सर्वोच्च ब्रह्म
तस्मै : उस एकमात्र को
गुरुवे नमः : उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ
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स्वयं को सूक्ष्म कर लेने की क्षमता को ही अणिमा कहा जाता है।
इससे सिद्धि को प्राप्त कर लेने से इंसान छोटा शरीर धारण कर सकता है।
साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने को सक्षम होता है।
दूसरी सिद्धि ‘महिमा’
इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद मनुष्य अपने आपको असीमित विशाल बननेकी क्षमता रखता है।
वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता है। साथ ही वह प्रकृति का विस्तार भी कर सकता है।
तीसरी सिद्धि ‘गरिमा’
तीसरी सिद्धि है गरिमा। इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का आकार तो सिमित रहता है लेकिन शरीर का भार इतना बढ़ जाता है की कोई भी उसे हिला तक नही सकता। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी के पूछ को भीम जैसा बलशाली हिला तक नही पाया था।
अक्षय तृतीया की 25 बातों से जानिए दिन का खास महत्व
1.नया वाहन लेना या गृह प्रवेश करना, आभूषण खरीदना इत्यादि जैसे कार्यों के लिए तो लोग इस तिथि का विशेष उपयोग करते हैं। मान्यता है कि यह दिन सभी का जीवन में अच्छे भाग्य और सफलता को लाता है। इसलिए लोग जमीन 👇👇
जायदाद संबंधी कार्य, शेयर मार्केट में निवेश रीयल एस्टेट के सौदे या कोई नया बिजनेस शुरू करने जैसे काम भी लोग इसी दिन करने की चाह रखते हैं...
2.अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद का आलिंगन करके कहा, "प्रह्लाद, तुम्हारी वजह से इतने साल बाद मुझे विष्णु के साथ लड़ने का मौका मिल गया है।" यों कहते गदा उठाकर नरसिंहावतार के साथ लड़ने को तैयार हो गया। नृसिंह ने प्रलय गर्जन करते हुए उछल कर हिरण्य👇
कश्यप को पकड़ लिया और उस को सभा भवन के द्वार तक ले गये। इसके बाद अन्दर व बाहर से अतीत द्वार के चतूबरे पर, रात व दिन से परे संध्या के समय, आकाश व पृथ्वी से भिन्न अपनी जाँघों पर रखकर, अस्त्र-शस्त्र से परे अपने नाखूनों से उन्होंने ब्रह्मा से प्राप्त सभी वरदानों से भिन्न 👇
पापी आत्माओं का दुखदाई जन्म
भगवान् विष्णु बताते हैं , किस तरह , स्त्री ,पुर्ष के मिलन से ,मनुष का जनम होता है।
पर्साब क 3 दिन के अंदर , पाप आत्मा का शरीर बनना शरू हो जाता है।
एक रात में मास का टुकड़ा , 5 रात में गोल , दसवें दिन वृक्ष के फल जैसा
एक महीने में - सिर
दुसरे महीने में - हाथ और दुसरे हिस्से
तीसरे महीने में - बाल, नाख़ून, हड्डी ,लिंग
चोथे महीने - तल पदार्थ
पांच महीने - भूख , प्यास छ: महीने - बच्चा दानी के बाई ओर चला जाता है
जिस्म के बाकी हिस्सों का बनना , माता के खान पान पर निर्भर है।
अपनी पीठ और शरीर के बीच में सिर दबा होने से ,यह अपने हाथ , पैर , हिला नहीं सकता।
इस समय, आलोकिक शक्ति से , पिछले जन्मों में किये हुए कर्म याद आते हैं ।
ऋग्वेद :वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ । यह पद्यात्मक है । यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है।
ऋग्वेद में मण्डल 10 हैं,1028 सूक्त हैं और 11 हज़ार मन्त्र हैं । इसमें 5 शाखायें हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन ।
ऋग्वेद के दशम मण्डल में औषधि सूक्त हैं। इसके प्रणेता अर्थशास्त्र ऋषि है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग निर्दिष्ट की गई है जो कि 107 स्थानों पर पायी जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है।
ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने का कथानक भी उद्धृत है और औषधियों से रोगों का नाश करना भी समाविष्ट है । इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा एवं हवन द्वारा चिकित्सा का समावेश है
भगवान विष्णु ने जय और विजय से कहा -"महा मुनियों का शाप झूठा साबित नहीं हो सकता। तुम दोनों मेरे प्रति मैत्री भाव रखते हुए सात जन्मों में तर जाना चाहते हो या मेरे साथ द्वेष करते हुए शत्रु बनकर तीन जन्मों तक मेरे हाथों मृत्यु को पाकर 👇
यहाँ पर आना चाहते हो?"
इस पर जय और विजय ने तीन ही जन्मों के बाद विष्णु के सान्निध्य को पाने का वरदान माँग लिया। जय-विजय की कामना की प्रशंसा करते हुए सनकादि मुनियों ने विष्णु से कहा, "भगवान, हमने यह रहस्य अभी जान लिया कि आप की दृष्टि में राग-द्वेष दोनों बराबर हैं और जो लोग आप से द्वेष करते हैं वे आपके👇