एक सरपंच अपने गाँव में राहत कोष के पैसे से लाइसेंसी बन्दूक लेकर आया। पूरे गाँव में मुनादी हुई कि सरपंच साहब ऑटोमेटिक बन्दूक लेकर आए हैं। कुछ मुनादी करने वालों ने बन्दूक की तारीफ़ करने में इतनी छूट ले ली कि चार दिन बाद चौपालों की चर्चाओं में बन्दूक, तोप बन चुकी थी।
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इस बीच लोग भूल गए कि गाँव में अकाल पड़ा है। नहर का काम एक साल से अटका है। गाँव का अस्पताल बंद हैं। भुखमरी और बीमारियों ने सर उठा रखा है। कुछ दिनों पहले पड़ोसी गाँव के दबंगों ने ज़मीन के विवाद में गाँव के चार जवानों को मार डाला था और सरपंच ने उनका नाम तक नहीं लिया था।
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पूरे गाँव में अभी बन्दूक की चर्चा उफ़ान पर थी। सरपंच और उसके चमचों का कहना था कि गाँव में बन्दूक आते ही, आसपास के गाँव में उसकी शान बढ़ेगी। भूखे सोते हुए बच्चों को उनकी माँ जादुई बन्दूक की कहानी सुनाती कि कैसे ये बन्दूक एक दिन भूख को भी मार गिराएगी।
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कुछ गाँववाले इस निर्णय से नाराज़ थे। उनका कहना था कि अस्पताल बंद है, नहर नहीं बन रही है, तो बन्दूक खरीदने से क्या फ़ायदा होगा? फिर बन्दूक की कीमत भी बहुत ज़्यादा है और सरपंच उसका बिल भी नहीं दिखा रहा है। लेकिन गाँववालों ने इन लोगों को चुप करा दिया।
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गाँववालों को तो ये लग रहा था कि कम से कम अब पड़ोस के गाँववालों की दबंगई तो कम हो जाएगी। कुछ ही दिनों में दशहरा आने वाला था। दशहरे के दिन आसपास के बीच-पच्चीस गाँव देवी के मंदिर जाते थे और शस्त्र पूजा करते थे। गाँववालों को लगा कि इस बार तो पूजा में हमारी ही धाक होगी।
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दशहरा आया और गाँववाले सरपंच के साथ मंदिर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। सरपंच के चमचों ने कहा कि आज उनकी तबियत ठीक नहीं है। गाँववालों ने कहा कि आज तो मंदिर जाकर अपना शक्ति प्रदर्शन करना बहुत ज़रूरी है। बहुत ज़ोर देने पर सरपंच किसी तरह मंदिर जाने के लिए तैयार हुआ।
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कुछ लोगों को छोड़कर लगभग सारा गाँव ढोल-नगाड़े के साथ मंदिर पहुँचा और वहाँ पहुँचते ही उनके होश उड़ गए। ऑटोमेटिक बन्दूक केवल उनके पास नहीं थी, दूसरों के भी पास थी और वो भी एक नहीं। किसी के पास दो, तो किसी के पास पाँच। दबंगों के गाँव के पास तो वैसी ही 10-15 बंदूकें थी।
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फिर एक गाँववाले ने हिम्मत कर के, दूसरे गाँववाले को कोने में ले जाकर बन्दूक की कीमत पूछी। उसकी असली कीमत जानकर उसके गुस्से का ठिकाना नहीं था। बन्दूक की कीमत बढ़ा-चढ़ाकर सरपंच ने उन्हें लूट लिया था। जब तक गाँववाले कुछ समझते सरपंच गाड़ी लेकर अपने घर जा चुका था।
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रात को गाँववालों ने सरपंच का घर घेर लिया और उसे बाहर आने को कहा। उसके चमचे उसका बचाव करते रहे लेकिन गाँववाले नहीं माने। फिर कुछ देर बाद सरपंच बाहर आया, अपनी बन्दूक के साथ। उसने हवा में कुछ फ़ायर किए और मुस्कुरा दिया। गाँववाले अब जाकर समझे कि गाँव में बन्दूक किसलिए आयी थी।
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Choosing the overpriced F-35 ($80M, Mach 1.6, 2000+ km, no tech transfer) over the superior SU-57 ($35M, Mach 2, 3500+ km, full tech transfer) just to shield a corporate ally isn’t just bad policy, it’s not just corruption, it’s anti-national.
No tech transfer = No sovereignty. Yes, F-35 has better stealth, but without tech transfer, India would rely on the U.S. for every update, spare part, and upgrade. A fleet you don’t fully control is a liability, not an asset. #StrategicAutonomy
If sovereignty, self-reliance, and long-term security are being traded for dependency, you don’t need to be an expert to call it out.
बाघ अदालत में आया
बहुत ही ज़्यादा घबराया
गुर्राहट तो क्या करता
वो बेचारा मिमियाया
भरी अदालत पूरी थी
लॉयर, जज और ज्यूरी थी
चला मुकदमा बाघ पे
जिसकी सरकारी मंज़ूरी थी
बाघ ने देखे चारों ओर
लोग खचाखच भरे हुए
खून भरा था आँखों में
पर भीतर से मरे हुए
बाघ कटघरे में, बाहर
हत्यारों का जत्था था
सबके हाथों में हथियार
बाघ ही एक निहत्था था
उसका चेहरा पीला था
लाल सभी का माथा था
गूँज रहीं थी साँसे बस
कोर्ट में झक सन्नाटा था
कार्यवाही फिर शुरू हुई
ऑर्डर की आवाज़ से
वकील ने टेबल ठोकी
फुल फ़िल्मी अंदाज़ से
उसने बोला गुस्से में
केस मेरा सुनिए मिलॉर्ड
चार पैर का चौपाया ये
समझ रहा है ख़ुद को गॉड
सरकारी जंगल में रहकर
फ्री का राशन खाता है
एक तो टैक्स नहीं भरता
फिर मर्ज़ी से गुर्राता है
जब चाहे ये जंगल में
करने को सैर निकलता है
इसका मर्ज़ी से जीना
देश की एक विफ़लता है
विराट कोहली को मैं सिर्फ़ इस कारण पसंद नहीं करता, कि वो एक बेहतरीन क्रिकेटर है। मैं उसे पसंद करता हूँ कि वो अकेला सितारा क्रिकेटर है, जिसकी रीढ़ अब भी बाकी है। जिस तरह वो बिना डरे शामी के साथ खड़ा हुआ, जिसके ख़िलाफ़ सत्ता और मीडिया की ताकतें ज़हर उगल रही थी। #ViratKohli𓃵
वो किसान आंदोलन के समय, किसानों के साथ खड़े हो कर, एक बेहतर हल निकलने की उम्मीद जतायी। हाथरस की घटना में भी उसने क्रूरता को क्रूरता कहा और न्याय की माँग करी।
अपने देश के लोगों के लिये अपनी शोहरत को दाँव पर लगाना, हर किसी के बस की बात नहीं है। #ViratKohli𓃵
वो सिर्फ़ क्रिकेट के मैदान पर ही नहीं, इंसानियत के मैदान पर भी चैंपियन है। जो देश के लिये, सिर्फ़ प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध ही नहीं, अपने देशवासी पर हुई नाइंसाफ़ी के विरुद्ध, सत्ता से भी लड़ जाता है। यही वो सच्चा देशप्रेम है, जो उसकी हिम्मत का रसायन है। #ViratKohli𓃵
बारहवीं शताब्दी में एक संस्कृत कवि हुए, जयदेव। हिन्दू धर्म की वैष्णव भक्ति परंपरा के इतने बड़े कवि कि उड़ीसा के अखण्डलेश्वर मंदिर में उनकी मूर्ति भी है।
क्या आप जानते हैं कि फ़िलहाल के एक बायकॉट से इनका क्या संबंध है? मैं आपको बताता हूँ।
फ़िलहाल में राधा-कृष्ण के एक चित्र पर बवाल मचा हुआ है। जिसमें वे रातिक्रिया में लीन हैं।
कुपढ़ों की जानकारी के लिए बता दूँ कि जयदेव की रचना 'गीत-गोविंद' में राधा और कृष्ण की कामक्रीड़ा की इस से भी अधिक व्याख्या है और इस रचना को जगन्नाथ पुरी मंदिर में सदियों से गाया जाता है।
ये बारहवीं शताब्दी की वो भक्ति कविता है, जिसे उस युग के कृष्ण भक्तों ने इतना सराहा कि ये संगीतबद्ध हुई, इस पर नाटक बने और चित्र भी बने।
क्यूँकि वो कृष्णभक्त कला का अर्थ और उसकी आवश्यकता समझते थे। वो स्त्री और पुरूष के प्रेम में कामुकता के सौंदर्यबोध को स्वीकार कर सकते थे।
एक बार सम्राट अशोक बचपन में गिल्ली-डंडा खेल रहे थे। उनकी गिल्ली उड़कर अकबर के दरबार में जा गिरी। जब अशोक गिल्ली लेने गए तो अकबर ने मना कर दिया। अशोक ने चाणक्य से कहा। तो उन्होंने ने राजा शशांक को आदेश दिया कि वो दिल्ली से गिल्ली लाएँ।
शशांक को आता देख अकबर के पसीने छूट गए।
अकबर ने तुगलक को गिल्ली देते हुए कहा कि इसकी रक्षा करो। तुगलक ने वो गिल्ली कहीं छुपा दी। इस बात पर शशांक ने पूरे मुगल साम्राज्य का सफ़ाया कर दिया लेकिन उन्हें कहीं भी गिल्ली नहीं मिली।
जब अशोक बड़े हुए तो उन्हें तेनालीराम ने बताया कि तुगलक ने वो गिल्ली मोहम्मद गोरी को दे दी थी।
अशोक ने सेनापति मान सिंह से सलाह माँगी, तो उसने कहा कि उनके गुप्तचर इब्ने सफ़ी ने बताया है कि मोहम्मद गोरी ने वो गिल्ली चंगेज़ खान को सौंप दी थी। जिसने उसे कलिंग नाम की जगह पर छुपा दिया है।
फिर अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई कर के वहाँ हिन्दू ध्वज फहराया और इस तरह मुगल साम्राज्य हारा।
देश में इतनी बेरोज़गारी आ चुकी है कि हर इंसान अपनी नौकरी जाने के डर से अमानवीय परिस्थितियों में भी काम करने को तैयार है।
किसी को अगर कोई ग़लत काम करने को भी कहा जाएगा, तो भी वो विरोध करने से पहले दस बार सोचेगा कि क्या मुझे कहीं और काम मिलेगा?
ये यूँ ही नहीं है। सब सोचा समझा है।
किसी देश में इतनी भुखमरी और बेरोज़गारी पैदा कर दो कि इंसान पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। उस पर भी ऐसा देश जिसकी जनसंख्या ही 135 करोड़ से ऊपर है।
अब हर बेरोज़गार या तो इनके लिए आग या फिर ईंधन है। दोनों समाज में घृणा की आग फैलाएँगे और इनकी सत्ता फ़ैक्ट्री चलती रहेगी।
सरकारी कंपनियों को ख़त्म किया जा राह है, जिस से सरकारी नौकरियाँ ख़त्म हो जाएँगी। फिर रोज़गार और सुविधाएँ सरकारी ज़िम्मेदारी नहीं रह जाएंगी।
यूनियन तो कहीं है ही नहीं। तो जिस के पास पैसा है, वो जब चाहे जिसे नौकरी से निकाल देगा और उसके सामने सौ आदमी लाइन में खड़े होंगे।