तन से मन से धन से
तन मन धन जीवनसे
हम करें राष्ट आराधना
अन्तर से मुख से कृती से
निश्र्चल हो निर्मल मति से
श्रध्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट अभिवादन…
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट का अर्चन
अपना ईतिहास उलटकर
अपना भवितव्य समझकर
हम करें राष्ट का चिंतन…
जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से
मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन