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गुगा नवमी के शुभ अवसर पर सब प्रियजनों को हार्दिक बधाई। जय राजा मंडलीक♥️
राजस्थान में एक जगह है-ददरेवा। यहां राजा जेवर शासन करते थे। उनकी दो रानियां थी-काछल और बाछल जोकि सगी बहनें थीं। विवाह के कई सालों के बाद भी उनकी कोई औलाद नहीं थी। तब कई वर्ष बीत जाने के बाद इन्हें एक अघोरी साधु ने भगवान गोरक्षनाथ की तपस्या करने को कहा।
जिसके बाद रानी बाछल ने गुरु गोरक्षनाथ को अपना गुरु मान लिया और 12 वर्षों तक तपस्या की। गुरु गोरक्षनाथ तपस्या से अत्यन्त प्रसन्न हुए और वो उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए प्रसाद देने प्रकट हुए। इस बात का रानी बाछल की छोटी बहन रानी काछ्ल को पता लगने पर वह रानी बाछल जैसे वस्त्र पहन कर
रानी बाछल से पहले ही गोरखनाथ से जौ के दो दानें प्रसाद रूप में ले आती है जिससे वो गर्भवती हो जाती है, बाद में जिससे दो बेटे हुए – अरजन-सरजन।
गुरुदेव को जब ये पता चली तो उन्होंने कहा कि उनका आशीर्वाद खाली न जा सकता और वो नाग लोक गए वहां जाकर उन्होंने पद्म नाग से उनके प्राण मांगे
और उनको निचोड़ा जिससे गुग्गल उत्पन्न हुआ। उन्होंने वो गूग्गल रानी बाशल को दे दिया, जिसे उसने बाकी बांझों के साथ मिलकर ग्रहण किया, जिससे वो गर्भवती हो गईं और तदुपरांत भादो माह की नवमी को गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
वहीं बाकी स्त्रियों जिन्होने प्रसाद खाया था उनके भी समय अनुसार बच्चे हुए, पंडितयान से नाहर सिंह पांडे, चमारिन से बज्जू कोतवाल चमार, भंगिन से रत्ना जी भंगी और जिस पत्थर पर गूग्गल तोड़ा गया उसे शाही घोड़ी ने चाट लिया उस घोड़ी ने नीले घोड़े को जन्म दिया।
डुग्गर(दुर्गर) देश में गोगा जी को राजा मंडलीक कहते हैं। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। बचपन में एक बार गुग्गा जी जब खेल रहे थे तो कुछ द्वेषी सर्पों ने उन्हें मारने की कोशिश की और उन्हें विष चढ़ गया तब उनकी माता रानी बाछल जी ने गोबर का मंडल लेपा उस पर गोगा जी को लेटाया और
अपने गुरू भगवान शिव गोरक्षनाथ जी का ध्यान करके जाप करने लगीं, जिससे गोगा जी सकुशल होगये तब गोगाजी का एक नाम मंडलीक पड़ गया , यहाँ डुग्गर देश में इन्हें राजा मंडलीक ही कहा जाता है।
अपने गुरू भगवान शिव गोरक्षनाथ जी का ध्यान करके जाप करने लगीं, जिससे गोगा जी सकुशल होगये तब गोगाजी का एक नाम मंडलीक पड़ गया , यहाँ डुग्गर देश में इन्हें राजा मंडलीक ही कहा जाता है।
राजा मंडलीक(पद्म अवतार) बाबा कालीवीर(शेष अवतार) के बचपन के मित्र थे और वो दोनों एक दूसरे के राज्य आते जाते रहते थे। राजा मंडलीक डुग्गर अधिष्ठात्री माता मल्ल देवी के विशेष रूप से दर्शन और पूजा करने आते थे। जब बाबा कालीवीर जी को राजा मंडलीक ने अपना वज़ीर बनाया तो राजा का सम्मान
डोगरा देश में बड़ गया। दूसरी तरफ बाबा कालीवीर ने पंडित नाहर सिंह पांडे को अपना भाई मान लिया। यहां कहीं भी जाते ये तीनों साथ ही जाते। राजा मंडलीक को माता मल्ल देवी ने कालीवीर की तरह अपना पुत्र मान लिया जिससे जहां के लोगों ने भी उनको अपना लिया। यही कारण है राजस्थान से भी ज़्यादा जो
उनका जन्मस्थान था, डोगरा देश में राजा मंडलीक के बारे में लोग ज़्यादा उनका सही जीवन परिचय जानते हैं।
राजा मंडलीक की हर जीवन की कड़ी में बाबा कालीवीर ने उनका साथ दिया चाहे वो उनका विवाह था या सुल्तान से ब्राह्मणी की गाय छुड़वाना या अनंगपाल से युद्ध या कोई और पल।
राजा मंडलीक के पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उनको राज्य के लिए संघर्ष करना पड़ा। राजा मंडलीक की सगी मौसी और सौतेली मां के जुड़वां बेटे अरजन और सरजन गद्दी पर अपना हक जताने की चेष्टा करते हैं तथा राज पाने के लिए राजा अनंगपाल की मदद लेते हैं। ददरेवा से 8 किमी उत्तर-पूर्व मे
वर्तमान खुड्डी नामक गाँव के पास एक जोहड़ भूमि में अरजन-सरजन के साथ भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में राजा मंडलीक दोनों भाइयों के सिर धड़ से अलग करके अपनी माँ बाछल को पेश करते है। ये देख कर बाछल ना केवल विलाप करती है बल्कि उनको आईन्दा से अपना चेहरा ना दिखाने का प्रलाप करती है।
इस पर वो अपनी माँ से रूष्ट होकर धरती में समा जाते हैं और नागलोक वापस चले जाते हैं क्योंकी उनको पद्म नाग स्वरूप में बापिस जाना था। पद्म नाग की रानी को गुरू गोरखनाथ का वचन था कि उनको उनकी पति के थोड़े समय के लिऐ प्राण चाहिऐ थे।
राजा मंडलीक जिस स्थान पर धरती में समाए उसे गोगामेड़ी के नाम से जाना जाता है। गोगामेडी में राजा मंडलीक का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। हिन्दू - मुसलमान दोनों के लिए ये आस्था का प्रतीक है।
इस मंदिर का निर्माण बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने कराया था। सन् 1362 में फिरोजशाह तुगलक हिसार होते हुए सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है।
तुगलक की सेना में हा-हाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई शक्ति का वास है, पता चलने पर उसने वहां फिर मन्नत रखी कि अगर वो जीत जाता है तो वो वहां राजा के स्थान का उच्चतम निर्माण करवाएगा। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते गोगामेडी में मस्जिदनुमा
मंदिर का निर्माण करवाया और पक्की मजार बन गई ।तत्पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार बीकानेर के महाराज काल में 1887 व 1943 में करवाया गया। राजा मंडलीक के असली पुजारी , पंडित वीर नाहरसिंह जी के वंशज हैं, पर वो इतने करूणामयी हैं की किसी से भेदभाव नहीं करते उनके लिऐ सब भक्त ऐक समान हैं।
राजा मंडलीक का डोगरा देश में एक एहम स्थान हैं, इसलिए यहां भादो माह की नवमी के दिन राजा मंडलीक के संग बाबा कालीवीर, बाबा नाहर सिंह पांडे तथा अन्य कुलदेवों के थान पर यात्र और भंडारा होता है। भक्तजन कुलदेवों की कारक और ढोल नगाड़ों से उत्सव मनाते हैं और उनके आशीर्वाद पाते हैं
कल्याण हो☄️

जय राजे दी।
जय बाबा कालीवीर दी♥️

#D565 #DuggarKuldev
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