भगवान बुद्ध के वचन हैं- विनयानाम्बुद्धसासनस्स आयु- विनय ही बुद्ध शासन की आयु है अर्थात जब तक विनय रहेगा तब तक बुद्ध शासन रहेगा।
विनय का सरल-सा अर्थ है अनुशासन यानी कोड आफ कंडक्ट।
विनय पिटक को बौद्धों का संविधान कहा जा 1)
सकता है। भारत से बुद्ध धम्म विदा क्यों हुआ? क्योंकि विनय विदा हो गया अथवा बौद्ध विरोधियों द्वारा विनय को विकृत या कि अपभ्रंशित कर दिया गया।
भगवान ने भिक्खुओं-भिक्खुनियों के लिए कासाय रंग का चीवर निर्धारित किया और और गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद परिधान निर्धारित किये। 2)
सकल त्रिपिटक में बौद्ध उपासक-उपासिकाओं के लिए बार-बार श्वेतवस्त्रधारी संघ का सम्बोधन पढ़ने को मिलता है।
वास्तव में एक-सी वेशभूषा का मन को शान्त करने में मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए, किसी विद्यालय में प्रार्थना के समय सारे छात्र-छात्राएँ एक-सी वेशभूषा, यानी
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यूनिफॉर्म, में खड़े हों लेकिन उनमें से कोई एक छात्र या छात्रा अन्यथा वेषभूषा में हो तो बार-बार निगाह अपने आप वहीं जाती है जैसे कि वह विसंगति मन में व्यवधान पैदा करती है। यदि ऐसी विसंगत वेशभूषा में दो छात्र या छात्राएँ हों तो निगाह दो तरफ बिखरती है। यदि ऐसे तीन छात्र या
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छात्राएँ असंगत वेशभूषा में हों तो जैसे निगाह तीन टुकड़ों में बिखर जाती है। वेशभूषा की एकरूपता, यूनिफॉर्मिटी, मन को बिखरने नहीं देती, मन को एकाग्र करने में सहायक होती है। इसीलिए सैनिकों की भी एक-सी वेशभूषा होती है। भगवान बुद्ध को संसार का सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक कहा जाता है।
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उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद वस्त्र निर्धारित करने के पीछे भी एक गहरा मनोविज्ञान है। जिस दिन व्यक्ति सफेद वस्त्र पहनता है उस दिन वह अपने वस्त्रों के प्रति कुछ ज्यादा ही सजग रहता है- कहीं दाग़ न लग जाए! ध्यान-साधना के द्वारा यही सजगता जब अन्तर्मुखी हो जाती है तब
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व्यक्ति अपने चित्त के प्रति सजग हो जाता है कि किसी अकुशल विचार से मेरा मन मलिन न हो जाए, मेरे मन में दाग न लग जाए, चित्त मैला न हो जाए। इस लिए भगवान बुद्ध ने गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद परिधान धारण करने का विनय बनाया। लेकिन जब इस देश में बुद्ध धम्म को विकृत
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करने का अभियान चला तो सफेद वस्त्र विधवा का परिधान निर्धारित कर दिया गया। इसी को बोधिसत्व बाबा साहेब ने क्रांति-प्रतिक्रांति कहा है। उत्सव व शान्ति का रंग शोक का रंग प्रचारित कर दिया गया।
किसी समय बौद्ध समाजों में शादी का जामा-जोड़ा सफेद हुआ करता था जो कि बहुत-से समाजों में
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आज भी प्रचलन में है कि शादी का जोड़ा-जामा सफेद होता है। शादी के समस्त संस्कार सफेद जोड़े-जामे में सम्पन्न होते हैं। हेला, बंसफोड़, धानुक, धानुक, धनकार, धनुवंशी, बिनहे, कठेरिया, बसोर, बहेलिया, रजक, लालबेग, काछी, कुशवाहा, शाक्य, दोहरे, अहिरवार आदि जाति-बिरादरियों में शादी के
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समय बारात के पहले वर-वधु के सफेद जोड़े-जामे का आदान-प्रदान होता है। इन समाजों के किसी समय बौद्ध होने का यह बहुत बड़ा प्रमाण है। शादी के समय ये रंग बिरंगे कपड़ों का चलन अभी दो-तीन सौ वर्षों में शुरू हुआ है, गुलामी के दौर में।
ऐतिहासिक तथ्य यह है कि बोधिसत्व बाबा
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साहेब ने जब अपने लाखों अनुयायियों के साथ बुद्ध धम्म अंगीकार किया तब भी सब दीक्षार्थियों ने सफेद परिधान धारण किये थे, नागपुर एवं चन्द्रपुर में, सन् 1956 में, स्वयं बोधिसत्व बाबा साहेब भी सफेद परिधानों में थे।
बौद्ध देशों में यह विनय आज भी जीवित है। गृहस्थ उपासक-उपासिकाएं
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धम्म के आयोजनों में सफेद वस्त्रों में सम्मिलित होते हैं।
भगवान बुद्ध का यह विनय इतना लोकप्रिय हुआ कि इसाई समाज में भी शादी के समय वधु सफेद गाउन धारण करती है। ईद की नमाज़ के दिन मुस्लिम भाई अधिकांशतः सफेद पोशाक में रहते हैं। आधुनिक काल में प्रजापति ब्रह्माकुमारी
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ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अनुयायियों का परिधान भी सफेद है। हमारे सिक्ख भाई गुरुद्वारों में प्रायः सफेद परिधानों में जाते हैं।
सफेद रंग के साथ सबसे बड़ा विज्ञान यह है कि यह रंग नकारात्मक ऊर्जाओं को, निगेटिव एनर्जीस्, को तीव्रता से वापस ढकेल देता है और सकारात्मक ऊर्जाओं को
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सोख लेता है। नकारात्मक ऊर्जाएं यानी दृश्य-अदृश्य सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाएं और सकारात्मक ऊर्जाएं, पाॅजिटिव एनर्जीस्, यानी दृश्य-अदृश्य सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जाएं। आप स्वयं सफेद वस्त्र पहने वाले दिन अपनी मनोदशा पर गौर कीजिए। आप पाएंगे कि आप अकारण ख़ुश और
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सकारात्मक हैं।
उपोसथ के दिन उपासक-उपासिकाओं को भगवान के दिये विनय में अर्थात सफेद परिधानों में रहना चाहिए। यह भी उपोसथ व्रत का एक अंग है तथा सफेद वस्त्रों से जुड़े अंधविश्वास को तोड़ने का एक साहसी
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तरीका भी है। जिन परिधानों में बुद्ध पूजा की जाए वे परिधान हर अवस्था में शुभ होते हैं। 16)
डॉ . अल्बर्ट एलिस .
अमेरिकेतील नामांकित मानसोपचारतज्ञ . यांना मानसशास्त्रज्ञ सुद्धा म्हणता येईल . विवेकनिष्ठ मानसोपचार पद्धती (rational emotive behaviour thearapy ) हा त्यांचा मनाच्या जगातील सर्वात महत्वाचा शोध . अनेकांना मानसिक स्थैर्य मिळवून देणाऱ्या या पद्धतीचा शोध 1)
खरंतर त्यांनी स्वतःला स्थिरता मिळवून देण्यासाठी लावला होता . या शोधाची सुरुवात त्यांनी लहानपणीच केली होती . भावनेच्या आहारी न जाता , तर्कसंगत बुद्धी वापरून केलेला विचार मनाला स्थिर करतो हा त्यांचा अनुभव त्यांनी जगाला पटवून दिला . त्यासाठी अनेक उदाहरणे आणि दाखले दिले .
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आणि आयुष्याच्या उत्तरार्धात त्यांच्या कार्याची दखल घेणे सर्व जगाला भाग पडले . त्यांनी मांडलेले काही सिद्धांत सोप्या भाषेत पुढीलप्रमाणे आहेत .
१) माणसाच्या आयुष्यात घडणाऱ्या घटनांवर त्याच्या प्रतिक्रिया आणि कृती अवलंबून नसतात , तर त्या घटनांकडे तो कोणत्या दृष्टीकोनातून बघतो
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नुकतीच नाणेघाटला जाऊन आले होते.त्यासंदर्भात #मर्यादित वाचन केलं होतं.त्यातून हे कळालं की, हा नाणेघाट म्हणजे घाटांचा राजा.हा इसवीसनपूर्व काळात बांधला गेलाय.हे वाचूनच रोमांच उभे राहिले. काय ते कसब? अभियांत्रिकीमधला चमत्कारच.
सातवाहन सम्राज्ञी गौतमीपुत्र 1)
सातकर्णीची पत्नी नागणिका हिचा नाणेघाटातल्या लेणीतला तो प्रख्यात शिलालेख. पहिल्यांदा गेले तेव्हा वेड्यासारखी धावत गेले होते त्या भित्तीकडे. त्या पाषाणातल्या अक्षराईत हरवून गेले होते.मला न समजणाऱ्या ब्राम्ही भाषेतली ती अक्षरं पण विलक्षण प्रेमानं,कदाचित इतिहासाच्या फारसं न 2)
जपता आलेल्या वेडामूळे माझे हात त्या अक्षरांवरनं फिरत होते.नागणिका इथेच असेल का? माझ्या आसपास?माझी ही ओढ बघत असेल का?तिला छान वाटत असेल का आपला शिलालेख असा चिरंजीवी झालेला पाहून? तिचा चुडाभरला अमानवी हात माझ्यासोबतच तीही त्या अक्षरांवरनं फिरवत असेल का? धुक्यासारख्या तरल
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इथल्याच (पनवेल स्टॅंडजवळ) एका छोटेखानी हाॅटेलवाल्याने बाबासाहेबांना पाणी नाकारले त्यावेळी अस्वस्थ झालेले, गरीब मजूर असलेले सोनबा येलवे बाबासाहेबांसाठी पाणी आणायला गेले.
पाणी आणले, तोपर्यंत बाबासाहेब पुढील प्रवासाला निघूनही गेले होते. 1)
बाबासाहेब परत याच मार्गाने येतील तेव्हा त्यांना पाणी मिळायला हवे आणि ते मी देईन या इच्छाशक्तीने ते दरदिवशी पाणी घेऊन येत. परंतु बाबासाहेब परत त्या मार्गाने आले नाहीत.
...आणि वाट पाहून अखेर, इथेच सोनबा येलवेंचा मृत्यू झाला.
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त्यांच्या स्मृतिप्रीत्यर्थ पनवेल महानगरपालिकेने ही पाणपोई बांधली आहे. येणार्या-जाणार्यांना पाणी मिळावे या उदात्त हेतूने.
उशीरा का होईना, बाबासाहेबांच्या प्रेमाखातर त्याग करणारी व्यक्तिमत्त्वं उजेडात येत आहेत.
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मनुस्मृती दहन केल्यानंतर तत्कालीन काही ब्राह्मण्यग्रस्त वृत्तपत्रांनी टीकात्मक लेखन केले. त्यावर बाबासाहेबांनी बहिष्कृत भारत पत्रातून त्यांचा समाचार घेतला. वाचा !
- आनंद गायकवाड
आमच्या मित्रांचा दुसरा असा एक आक्षेप आहे की मनुस्मृती ही जुन्या काळी अंमलांत असलेल्या 1)
नियमांची एक जंत्री आहे. त्या जंत्रीतील नियम आज कोणास लागू नाहीत. मग असले जुने बाड जाळण्यात काय अर्थ आहे ? मनुस्मृती हे एक जुने बाड आहे असे आमच्या मित्राप्रमाणे आम्हासही म्हणता आले असते तर आम्हास मोठाच आनंद झाला असता. परंतु दुर्दैवाने आम्हांस तसे म्हणता येत नाही. आणि आमची
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खात्री आहे की, भावी स्वराज्याचा चंद्रोदय केव्हा होतो हे पाहण्याकरिता, आमच्या मित्रांचे डोळे आकाशाकडे लागले नसते तर आपल्या पायाखाली काय जळते आहे हे त्यांना निरखून पाहताच आले असते. मनुस्मृती हे एक जुने बाड आहे, ते राहिले तरी काही हरकत नाही असा युक्तिवाद करण्याऱ्या गृहस्थांना
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जमालगढी सध्याच्या पाकिस्तानातील खबैर पक्ख्तुन्ख्वामधील मरदानच्या कटलांग मरदान मिर्गापासून १३ किमी अंतरावर हे शहर आहे. जमालगढी येथे प्राचीन स्तूप व विहारांचे अवशेष सापडले आहेत.
जमालगढी येथील स्तूप व विहार १/५ शतकातील भरभराटीचे बौद्ध ठिकाण होते. 1)
जमालगढीचे स्थानीय नाव "जमालगढी कंदारत" किंवा "काफिरो कोटे" असे आहे. जमालगढीच्या भग्नावशेषांचा प्रथम शोध ब्रिटीश पुरात्ववेत्ता व गाढे अभ्यासक अलेक्झांडर कॅनिंगहॅम यांनी इसवी सन १८४८ मध्ये लावला.
कर्नल ल्युम्स्डेन यांनी जमालगढी येथे उत्खनन केले होते पण तेव्हा तेथे विशेष 2)
काही सापडले नाही. नंतर इसवी सन १८७१ मध्ये लेफ्टनंट क्राॅमटन यांनी पुन्हा येथे उत्खनन केले व अनेक बौद्धशिल्पे सापडली आहेत.
चित्र क्रमांक एक जमालगढी, मरदान, पाकिस्तान बौद्ध नगरीचे भग्नावशेष.
चित्र क्रमांक दोन १/३ शतकातील राणी महामायेचे स्वप्न शिल्प जमालगढी, मरदान,
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आम के पेड़ के नीचे ब्राह्मण तुलसीदास रामचरित्रमानस लिख रहे थे. अचानक पेड़ से आम तुलसीदास के सर पर गिरा. तुलसीदास बहुत खुश हुआ, उसने आम को ईश्वर का दिया हुआ उपहार समझकर खा लिया !
मुग़ल राज में गाय कट रही थी, मुग़ल समोसे में गाय का मांस भर भर कर खा रहे थे. 1)
लेकिन तुलसीदास को कोई आपत्ति नही थी, वह मग्न होकर आनंदित होकर, लगा लिखने "ढोल गंवार पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी" !
किसान का बेटा इसाक न्यूटन सेब के पेड़ के नीचे विज्ञान की पढ़ाई कर रहा था. अचानक से एक सेब न्यूटन के सर पर गिर गया. न्यूटन ने सेब उठाया उसे ध्यान से
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देखने लगे मानो कभी सेब देखा ही नही. लेकिन न्यूटन सेब नही देख रहे थे वह सोच रहे आखिर सेब नीचे क्यों गिरा ?
सेब ऊपर क्यों नही गया... नीचे ही क्यों आया ?. ऊपर चांद है वह क्यों नही गिरता. धरती में जरूर कोई फ़ोर्स है. ताक़त है जो चीजों को अपनी ओर आकर्षित करती है !
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