Thread: Act of GOD
भारत एक संस्कार प्रधान देश रहा है। खुद की तारीफ तो दूर की बात है, अगर कोई दूसरा भी हमारी तारीफ करे तो हम उसे सामने वाले का बड़प्पन कह के टाल जाते हैं। बच्चा किसी एग्जाम में टॉप करता है तो अपनी सफलता का श्रेय माता पिता गुरुजनों को देता है।
लेकिन जब से भारत नेता प्रधान देश बना है परिस्थिति ही पलट गयी है। नेतागिरी का पहला पाठ होता है खुद की जितनी तारीफ कर सको करो और गलतियों का ठीकरा दुसरे के सर फोड़ दो। सभी नेता और उनके चाटुकार यही करते आ रहे हैं। नेहरूजी के ही टाइम से।
उनके पास गलतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए अंग्रेज थे। और तारीफ करने वालों को तो उन्होंने हिस्ट्री की किताबें लिखने के काम पे लगा रखा था। ये सरकार इस कला में कुछ ज्यादा ही माहिर है। इतनी ज्यादा कि पिछली सरकारों से कुछ ज्यादा ही आगे निकल गयी है।
बाकी सरकारें पिछली सरकारों को दोष देती थी। इनलोगों ने तो किसी को नहीं छोड़ा। केवल बीच में एक राजीव गाँधी आये थे जिन्होंने नौकरशाही के सर ठीकरा फोड़ा था। इस सरकार ने शुरुआत से शुरू किया। पहले नेहरू को पकड़ा, फिर इंदिरा को, फिर राजीव से होते हुए मनमोहन पे आये।
पाकिस्तान को भी नहीं बख्शा। लेकिन गलतियां इतनी ज्यादा हो गयी की ठीकरा फोड़ने के लिए सर ही कम पड़ने लगे। पहले तो राजीव गाँधी वाला नुस्खा अपनाया। मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस के नाम पे नौकरशाही को लपेटा।
पर ब्यूरोक्रेट्स को ज्यादा तंग नहीं कर सकते क्यूंकि उनसे तो रोज ही काम पड़ता है। और वैसे भी ये लोग बाद में किताब लिख के सारा भांडा फोड़ देते हैं। RBI वालों पे try किया था तो उन्होंने किताबें लिख के छिछलेदार कर डाली। फिर नंबर आया बैंकरों का।
नोटबंदी की असफलता का कारण - बैंकर, किसानो की ख़राब हालत का कारण - बैंकर, असम के मजदूरों की गरीबी का कारण - बैंकर। कृष्णमूर्ति जी ने तो सीधे ही कह दिया कि पूरी की पूरी ख़राब अर्थव्यवस्था के लिए बैंक ही जिम्मेदार हैं। आर्थिक सलाहकार तो वे केवल घुइंया छीलने के लिए बने थे।
और जहां बात क्रेडिट लेने की आयी वहां तो खुद प्रधानमंत्री जी ने घर घर जाके लोगों के जनधन खाते खोले थे और निर्मला जी ने खुद लोगों के १२ और ३३० रूपये वाले फॉर्म भरे थे।
"गलतियां इतनी की हर गलती पे दम निकले, इतनी सारी गलतियां कि ठीकरा फोड़ने को सर भी कम निकले"।
फाइनली अब ये भी प्रभु की शरण में आ गए हैं। सब भगवान की गलती है।
थ्रेड: #बेगानी_शादी
नौकरीपेशा आदमी के लिए जिंदगी की हर चीज मुसीबत की तरह ही लगती है। फलाने की शादी है। ज्यादा करीब हुआ तो छुट्टी लेनी पड़ेगी, नहीं तो ऑफिस से जल्दी निकलकर शादी में जाना पड़ेगा। अगर फैमिली रिलेशन है तो वाइफ को भी साथ ले जाना पड़ेगा।
नहीं तो कोशिश तो अकेले ही अटेंडेंस लगाने की रहती है। आठ बजे ऑफिस से छूटो, फिर शादी में जाओ। लिफाफा भी तो देना है। घर पहुँचते पहुँचते 11 बज जाते हैं। त्यौहारों का तो और भी बुरा हाल है। एक दिन की छुट्टी में क्या त्यौहार मनाये आदमी।
दिवाली पे अक्सर एक दिन की छुट्टी आती है। कई जगह दो दिन की और कई जगह तो कोई छुट्टी ही नहीं। एक दिन की छुट्टी में क्या दिवाली मनाये आदमी?
थ्रेड: #हंस_चला_बगुले_की_चाल
भारत एक मानसून आधारित देश हैं जहाँ साल में एक तिहाई समय मानसून का होता है। मानसून में जबरदस्त बरसात होती है। साल भर के हिस्से की बरसात चार महीनों में ही हो जाती है। बाकी समय लगभग सूखा ही रहता है।
यहाँ के मानसून को समझना विदेशियों के लिए हमेशा से एक टेढ़ी खीर ही रहा। विशेषकर अंग्रेज तो मानसून से इतने परेशान थे कि भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर ही माने। लेकिन भारतीयों के लिए मानसून जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था। हमारी जीवनशैली मानसून के हिसाब से ढली हुई थी।
मानसून के "चौमासे" में न तीर्थ यात्रा होती थी और ना ही शुभ कार्य जैसे विवाह इत्यादि। इन चार महीनों में हो देवताओं से सोने की परंपरा शुरू हुई थी वो आज भी जारी है। राम ने भी लंका पर चढ़ाई चार महीने के लिए रोकी थी और मानसून के दौरान माल्यवान पर्वत पर इंतज़ार किया था।
थ्रेड: #अंधी_पीसे_कुत्ता_खाय
भूखी जनता राजा के पास पहुंची: महाराज!!! विदेशी सब लूट के ले गए। खाने को कुछ नहीं है। कुछ कीजिये।
राजा (मंत्रियों से): सबके भोजन का इंतज़ाम करो। और सबको अन्न उगाने के लिए पर्याप्त भूमि, बीज खाद दो ताकि भविष्य में कोई भूखा न रहे।
कुछ समय बाद राज्य के सभी धनी व्यापारी राजा के पास पहुंचे: महाराज!!! हम तो बर्बाद हो गए।
राजा: क्या हुआ?
व्यापारी: महाराज!!! लोग खुद ही अन्न उगा रहे हैं और खा रहे हैं। साथ ही बुरे समय के लिए अन्न बचा भी रहे हैं। लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। हमारी किसी को जरूरत ही नहीं।
फिर हमारा क्या होगा?
राजा: तो मैं क्या करूँ? जनता को अन्न उगाने से तो नहीं रोक सकता।
व्यापारी: लेकिन अन्न बचाने से तो रोक सकते हैं। ताकि हमारी भी दुकान चल सके। याद रखिये की आपका सिंहासन रथ वगैरह सब हमने ही स्पांसर किया हुआ है।
तो हुआ यूं कि पिछले महीने हमारी मोबाइल फ़ोन की एलिजिबिलिटी रिन्यू हुई। और हमारा फ़ोन भी काफी पुराना हो चुका था। छः साल से एक ही फ़ोन को चला रहे थे। हमारे फ़ोन को लोग ऐसे नजरों से देखते थे
जैसे कि हड़प्पा की खुदाई से निकला हुआ कोई नमूना देख लिया हो। लेकिन हम भी उस पुराने फ़ोन को घूंघट के ऑउटडेटेड रिवाज़ की तरह चलाये जा रहे थे। लेकिन समस्या तब हुई जब मोबाइल बैंकिंग के एप्प ने एंड्राइड 8 को ब्रिटिशराज घोषित करके आज़ादी की मांग कर दी।
अब तो हमें नया फ़ोन चाहिए ही था। अब चूंकि हम मोबाइल की दुनिया में चल रही क्रांति से नावाक़िफ़ थे इसलिए हमने यूट्यूब का रुख किया। वहां हमको अलग ही लेवल की भसड़ मिली। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता। #12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।