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जीडीपी में गिरावट के मायने!

(थ्रेड लम्बा है ज़रूर पढ़े)

इस वितीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़े सामने आए है जिसमे भारी गिरावट दर्ज हुई है।इस समय भारत मे लॉक डाउन था और दुनियाँ के ज्यादातर देशों की जीडीपी इस दौरान गिरी है।
@Bankers_United
भारत की जीडीपी सबसे ज्यादा गिरी है इसका मतलब लॉक डाउन झेलने के लिए देश सक्षम बिल्कुल भी नहीं था।इस बड़ी गिरावट से साफ हो गया कि देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही चौपट हो गई थी मगर मीडिया के सहयोग से लिपाई-पुताई करके काम चलाया जा रहा था।
2014 के बाद हर दूसरे दिन कोई न कोई योजना लांच हो रही थी और मीडिया की पाक्षिक वाहवाही के बाद हवा में उड़ती गई।फिर नाम बदलो योजना आई और इतिहास के मुर्दों में माथापच्ची की जाने लगी।जब महसूस हुआ कि कुछ लोगों में निराशा है और वो आक्रोशित हो रहे है तो उनको पोस्ट डेटेड चेक थमाए जाने लगे
यानी 2020,2022,2024 तक आय दुगुनी करने,नौकरियां देने आदि के झांसे वाली सीमा बताई गई!

नोटबन्दी व जीएसटी से टकराई रेल पटरी से उतर गई थी मगर खाली खेतों में उड़ते धूल-धूसर के बीच दिखाई नहीं दे रही थी।स्वतंत्र निकायों का एक-एक करके गला दबा दिया गया।
न्यायपालिका सड़क पर आई तो उनको भी लपक लिया।मीडिया के माध्यम से लोगों को धार्मिक उन्माद में उलझा दिया गया और गैर जरूरी मुद्दों पर प्राइम टाइम द्वारा जनता की आंखों में धूल झोंकते रहे।

ट्रैन के आगे की तरफ व पीछे की तरफ गरीब लोगों के बैठने के लिए व्यवस्था होती है।
ट्रैन आगे से ठुके या पीछे से सबसे पहले मौत गरीबों की ही होती है।फिर नंबर मध्यम वर्ग अर्थात स्लीपर क्लास का आता है।आगे से बड़ा झटका लगता है तो उसमें गरीबों के बाद मध्यम वर्ग का नंबर आता है।नोटबन्दी में आर्थिक ट्रैन पीछे से ठुकी थी इसलिए सिर्फ गरीब ही मारे गए थे।
मगर जीएसटी की टक्कर आगे की तरफ से थी इसलिए मध्यम वर्ग भी मारा गया मगर यह स्लीपर क्लास होती है इसलिए पड़ौस वाला मरा या नहीं इसका पता ही नहीं चला।अब ट्रैन कोरोना के कारण दोनों तरफ से ठुक चुकी है।थर्ड क्लास वातानुकूलित कोच भी चपेट में आ चुके है।
कुल मिलाकर ट्रैन दोनों तरफ से ठुकी जा रही थी और प्रधानमंत्री कह रहे थे कि ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि हमारे हार्ड वर्क के आगे हार्वर्ड वाले कुछ नहीं है।फर्स्ट क्लास वाले आसपास में घायल पड़े लोगों की घड़ी,पर्स,बालियां यहां तक कि कपड़े तक लूट रहे थे।
मीडिया के लम्पटों को अर्थशास्त्रियों के पीछे लगा दिया था इसलिए वो चुप हो गए।सच्चाई बताने वालों के पीछे आईटी सेल के लम्पटों को लगा दिया।दुर्घनाग्रस्त ट्रैन में किसान-मजदूर-मध्यम वर्ग कराह रहे थे मगर मीडिया, आईटी सेल,बाबा,ढोंगी सब मैदान में खड़े थे और अहसास दिलवाया जा रहा था,
ट्रैन नहीं ठुकी है और आपको कुछ नहीं होगा हम राहत टीम के रूप में आपके लिए ही खड़े है।लोगों प्रतीत होने लगा कि शायद दुःस्वप्न मात्र है और अच्छे दिनों के इंतजार में लहूलुहान भी पड़े रहे!

सत्ता में बैठे लोगों की हरकतें,इनकी बातें सुनकर तो ऐसा लगता है,
कि इन्होंने अपनी आंखों में खुद ही मिर्ची डलवा ली है इसलिए खोलने का प्रयास ही नहीं कर रहे!पिछले चार साल में अम्बानी की संपदा चार गुणा बढ़ी है और दुनियाँ का चौथा अमीर आदमी बन गया।दुर्घटनाग्रस्त आर्थिक रेल में बैठे ये फर्स्ट क्लास वाले गरीब व स्लीपर क्लास को जमकर लूट रहे थे।
जीडीपी में गिरावट दिखाई जा रही है असल मे वो कई गिरकर समुद्र में नहीं गई बल्कि गरीबों की चूड़ियां, बालियां, पर्स आदि इन अम्बानियों ने लूट ली।
हकीकत के धरातल पर देखा जाएं तो जीडीपी का पूंजी के वितरण से कोई मतलब नहीं है।किसानों-मजदूरों की जीडीपी 70%तक गिरी है और मध्यम वर्ग की 50%तक।
मगर अम्बानियों-अडानियों की जो बढ़ी है उनके साथ मिलाकर यह एवरेज -23.9 आया है।शास्त्रों में व साहब ने "आपदा को अवसर में बदलना"इसे ही कहा था।

साहब अब यह 18 घंटे हार्डवर्क वाला शगूफा बंद करिये

साभार:- प्रेमाराम सियाग
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