अच्छे से याद है , बारिश बहुत कम हुई थी उस साल में , दिन 22 जुलाई 2012.
जिला रायगढ़ के पास 50 किमी दूर सारंगढ़ तहसील ।
नई नई जोइनिंग थी ,जोश लबालब भरा था ।
फिर क्या बस पकड़ी और निकल लिए ।
अपना मन भी साहब बना हुआ था, भाई सरकारी नौकरी ग्रामीण बैंक में , ऑफिसर वाली , कहाँ मिलती है इतनी आसानी से ?
पर पता नहीं था जोश ठंडा होने वाला है , जैसे ही यात्रा समाप्त हुई , बस स्टैंड पे उतरे अगल बगल का माहौल देखा ,कीचड़ वाली रोड और एक
धूल भरी हवा का तेज़ चमाट पड़ा मानो जैसे तेज़ नींद से उठा दिया हो ।
हिम्मत करके हमने भी पता पूंछा, मन ही मन सोचा अरे कोई नहीं शहर का क्या? शाखा मस्त होनी चाहिए ।
दिल को मानते हुए चल दी पैदल पास ही पूंछताछ करने के बाद गंतव्य स्थान पहुँचे ।
शाखा में एंट्री, मानो जैसे खुद को
धूल से सैनेटाइज़ कर लिया हो और भौंचक्की आँखे जैसे सेटलमेंट में #5DaysBanking मान लिए हों।
मन ही मन खुद को कोस रहा था RRB की क्यों?पर इस घटना ने मेरा दृष्टिकोण ही बदल दिया , एक सुबह किसानों की फसल का चेक भुगतान होना था , और क्लेयरिंग में चैक मेरे लिए नया अनुभव था 300किसानों
के भीड़ , शाखा की उमस और धूल को और सराबोर कर रही थी ।
तभी एक किसान काका गेट से बहुत दूर दिखा , आँखों में आँसू से , सामाजिक दायित्व हम पर भारी हुआ और हमने जा कर प्रश्न किया काका क्या हुआ?
उत्तर आया बीमार हुं साहब,इलाज करवाना है। 50000rs का चैक है , पहले ही 5000rs दिए तब जाके
चैक मिला और तो और ससुरा ये ऑटो वाला अलग लूट लिया 50rs के 200 लिया और फूट फूट के रोने लगा। #StoPrivatization
हमने उसे सांत्वना दी कि काका आपका काम तुरंत कर देंगे , स्कैनिंग जैसे महान काम को त्याग हमने तुरंत क्लेयरिंग में रुचि दिखाई चैक लिया और तुरंत क्लेयरिंग में लगवा दिया,
भुगतान हो गया।
उधर काकी का भी खाता हमारी ब्रांच में ही था, senior citizen ऊपर से पैर में चोट के कारण चलना मुश्किल था , और घर था गोमरदा के जंगलों में पास एक गाँव ।
" सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है "
ऐसा मन में भाव लेके निकल पड़े सेवा देने , पानी का मौसम था अचानक
ताबड़तोड़ बारिस चालू हो गई जैसे तैसे घर पहुंचा ।
काकी ने पानी में पूरा भीगा हुआ देख पहले अपने घर बैठाया और एक कड़क अदरक की चाय दी , मानो जैसे अपने घर बैठे माँ के हाथ की चाय पीने मिली हो।
मैंने withdrawal निकाला और उनके sign लेके उन्हें वही भुगतान किया , उनके चेहरे की चमक और खुशी
लाखों रुपयों से भी ज्यादा थी ।
Door step बैंकिंग का शानदार उदाहरण , इस घटना के बाद मेरे मन को जो शान्ति और सुकून मिला उसे शब्दों में बताना मुश्किल ही होगा । #SocialBanking
मेरा अनुभव यह कहता है , एक होता है सामाजिक दायित्व और एक होता है सामाजिक दैत्य ।
ये हमारा दायित्व है कि हम जरूरत मंदों की मदद करें।
कोई भी #PSBs हो उन्हें सामाजिक दायित्व का निर्वाहन करना बखूबी आता है ।
फिर भी वर्तमान में बैंकर्स की हालत गंभीर है ,वो
कोरोना वाररिर्स हैं पर उनकी सुरक्षा हासिये पर है, निरंतर इस कोरोना काल में मूलभूत सुविधएँ बैंकर्स द्वारा अपने जान को हथेली पर रख के दी जा रही है पर उन्हें कोरोना वाररिर्स का दर्जा ना मिलना मुझे ठेस पहुंचाता है। #Coronawarriers#BankersProtectionAct
आज के वर्तमान समय मे बैंकिंग कार्यशैली में दबाब और तनाव ने घर सा बना लिया है जिसके चलते कर्मचारी भिन्न2 बीमारियों का शिकार हो रहे है, और कई इकॉनमी वाररिर्स इस घोर टॉर्चर के कारण वीरगति को प्राप्त हुए @DiaryBanker
काम समस्या नहीं है,अपितु काम कराने का तरीका निंदनीय है। उच्च प्रबंधन कर्मचारियों की सेहत तथा सुरक्षा को ताक पे रख कर अपने टार्गेट पूरा कराने में ज्यादा रुचि रखता है, उसे किसी इंसान की जान की परवाह नहीं रहती,उदाहरण कोरोनाकाल मे सैकडों बैंकर्स की मृत्यु होना ।
*❀ दूसरों को सही-गलत साबित करने में ❀*
*✦जल्दबाजी न करें✦*
*एक प्रोफेसर, अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जो कि इस प्रकार है –*
*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने, शिप खाली करने का आदेश दिया,
जहाज पर एक युवा दम्पति था, जब लाइफबोट पर चढ़ने का नम्बर युवा दम्पति का आया, तो देखा गया नाव पर केवल एक☝️ व्यक्ति के लिए ही जगह है, इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया।*
*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा।*
*अब प्रोफेसर ने रुककर अपने सभी स्टूडेंट्स से पूछा:- तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा?*
*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये की, स्त्री ने कहा होगा, मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*
बड़ी बेचैनी से रात कटी।
बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला।
आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ।
ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।
ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े,
पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है।
दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था,मगर दुकान के सामान की बिक्री अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज
डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है।
जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है,
हमारे बैंकर दोस्त @SinghForSewa03 जी की डायरी के कुछ पन्ने आपको प्रस्तुत कर रहे।
ये प्रसंग एक ग्रामीण क्षेत्र की शाखा के रोकड़िया और प्रधान के बीच की वार्ता का है।
प्रधान जी: कैशियर साहब नमस्कार
कैशियर: नमस्कार प्रधान जी.. बताएं
प्र. जी: सर मेरे गांव से एक माता जी नगद भुगतान के लिए आईं थी अभी, आपने मना कर दिया नगद देने से (माताजी तमतमाए हुए पीछे बैठी थी)
कै.: प्रधान जी ये 2017 से नहीं खाता में कोई लेन देन नहीं की थीं तो खाता निष्क्रिय हो गया है। KYC करना होगा, मैंने इनको बता दिया है। आज ये कोई दस्तावेज
नहीं लाई है तो संभव ना हो पाएगा।
प्र. जी: राशन कार्ड तो है।
कै.: राशन कार्ड तो मान्य दस्तावेज़ नहीं है।
प्र. जी: इतना दूर गांव है कैशियर साहब खाली परेशान कर रहें हैं थोड़ा" मानवीय तौर" पर भी हो सकता है। आप भुगतान कर दीजिए मैं कल KYC भिजवा दूंगा। (गांव से शाखा सात km दूर है
पिछले कुछ दिनों से बैंकरों पे होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से परेशान हो कर सोचते सोचते मै नोटaबंदी के समय में पहुंच गया। उस समय भी बैंकरों को 52 दिनों तक आर्थिक मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के दौर से गुजरना पड़ा था। और उस त्याग के बदले इनाम स्वरूप इस योजना की विफलता का
श्रेय हम बैंकरों को ही दिया गया।
हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस योजना का पक्षधर था और ये मानता था कि इसके सही कार्यान्वयन से काले धन के ऊपर करारा आघात किया जा सकता है। इस योजना के विफल होने से तमतमाई सरकार, अर्थशास्त्री और सारे एजेंसी ने आनन फानन में जैसे एक आसान शिकार समझ कर
बैंकरों के विरूद्ध जमकर कार्रवाई करी। कई बैंकरों पे केस दर्ज़ हुआ सज़ा भी हुई। परन्तु किसी ने भी इस विफलता के असली कारणों को जानने का प्रयास नहीं किया।
मैं कोई अर्थशास्त्री या जांच एजेंसी वाला तो नहीं हूं लेकिन प्रैक्टिकली जो दिखा और जो मुझे समझ आया आज उसे बताने की कोशिश कर रहा।
नमस्कार दोस्तों
दोस्तों आज मैं कुछ दिन पहले घटी एक ऐसी घटना का ज़िक्र करना चाहता हूं जिसने मेरी अंतरात्मा को झकझोर के रख दिया और मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया के हम किस दिशा में चल रहे हैं। शनिवार रविवार की छुट्टी थी तो पापा बोले के चलो गांव घूम आते है जो मेरे घर से क़रीब
नब्बे km ही है। पुरखों की अर्जित किए हुए खेत हैं थोड़े जिसपे इस वक़्त धान रोपाई की हुई है। वैसे तो मेरा मन बिल्कुल भी नहीं था जाने का लेकिन पापा तो पापा ठहरे हो गए शुरू के तुमको अपने ज़मीन का खेत का पता होना चाहिए कहां है कितना है और bla bla तो भई इतना सुनने के बाद शनिवार को हम
पहुंचे गांव। यहीं पर मुझे वो शख्स मिला जिसने एक सवाल से मेरी बोलती बंद कर दी मैं बिल्कुल निरुत्तर हो गया। आज भी उसके उस सवाल का जवाब ना ढूंढ पाया तो ये सोच कर आप सब से शेयर करना चाहता हूं के शायद कुछ बोझ हल्का हो जाए। हालांकि हमारे खेत खलियन अच्छे खासे है सालों पहले हमारे