1/ 23: अधीर होकर काम करने से न तो काम बनता है और न ही इच्छानुसार परिणाम प्राप्त होते हैं। जनता है। गुस्सा होती है। गुस्सा होकर चाहती है कि फलाँ पार्टी ने धोखा किया तो BJP सीधा उसके घर पर रेड डलवा दे, उसे जेल में ठूँस दे और उसे रातोंरात नेस्तनाबूत कर दे। संयोग से,...
2/ ...लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता है। और कभी-कभार हो भी जाता है तो चलता है लेकिन बराबर होने लगे तो यही जनता फिर गाली देने लगती है, जो ऐसा करने बोल रही थी। इसके लिए 2 ऐसे लोग हमने बिठा रखे हैं, जो समझता है कि कैसे करना है।
3/ साथ चुनाव लड़ के शिवसेना ने धोखा दिया। फिर विरोधियों कॉन्ग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बना कर सबसे ज्यादा सीटों वाली पार्टी को विपक्ष में बैठने को मजबूर कर दिया। फड़नवीस ने तड़के सुबह शपथ ली, उसमें बेइज्जती हुई सो अलग। दशकों से PM बनने के सपने देख रहे एक से बढ़ कर एक घाघ...
4/ ...नेता लालू, नीतीश, मुलायम, नायडू और मायावती जैसों को अप्रासंगिक कर कुर्सी पर जो बैठा हुआ है और जो उसका सहयोगी है, उसने इस धोखे को क्या हल्के में लिया होगा? सोचिए।
5/ पालघर में दो साधुओं और एक ड्राइवर की मॉब लॉन्चिंग हुई। ये ऐसी घटना थी, जिसे आसानी से दबाया जा सकता था। दबाने वाले सफल भी हो गए थे लेकिन अचानक से वीडियो सामने आता है, लोगों का विरोध होता है और महाराष्ट्र पुलिस की पोल खुलती है। कई गिरफ्तार होते हैं, जिनमें अधिकतर...
6/ ...छूट जाते हैं। लेकिन, नक्सल-आदिवासी नेक्सस की एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश होता है। मीडिया में ये बड़ा मुद्दा बनता है और न्याय की माँग होती है। कई हिंदूवादी संगठन लगे हुए हैं। हाल ही में 'विवेक विचार मंच' की जाँच रिपोर्ट आई है।
7/ इसके बाद सुशांत सिंह राजपूत की मौत होती है। क्षणिक आउटरेज के बाद सब शांत होता दिखता है लेकिन अचानक से उनके पिता नीतीश से मिलते हैं और FIR दर्ज होती है, उन्हें न्याय का आश्वासन मिलता है। फिर CBI, NCB और ID जाँच शुरू करती है। ये सब इतना आसान था क्या? जहाँ जनभावनाओं...
8/ ...का कोई सम्मान ही नहीं है, वहाँ इस मामले को दबाने में क्या ही मुसीबत थी। लेकिन, वो मोदी-शाह और उनकी पार्टी ही थी, जिसने लोगों की भावनाओं को समझ कर पालघर कर सुशांत को ज़िंदा रखा, क्योंकि जितनी चर्चा होगी उतनी ही शासन-सरकार की पोल खुलेगी और न्याय की उम्मीद जगेगी।
9/ रणनीति क्या है? मोदी-शाह वाली BJP की रणनीति है कि जनता के बीच मुद्दों को ले जाकर किसी की लगातार पोल खोलते रहो और उसके असली चेहरे को इतना बेनकाब कर दो कि कल को न तो उसकी कोई इज्जत बचे और न प्रासंगिकता। यही उद्धव के साथ किया जा रहा है। अपनी ही पार्टी में नवजोत सिंह...
10/ ...सिद्धू, उदित राज, शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ थी हुआ। अब सुब्रमण्यन स्वामी के साथ होगा। लेकिन, अपनी पार्टी के लोगों के साथ नरमी से होता है, विपक्षियों के साथ Brutally किया जा रहा है।
11/ मान लीजिए भाजपा पालघर आउर सुशांत के बाद अधीरता से काम ले ले। तुरन्त केंद्रीय एजेंसियाँ जाँच बिठाए, कुछ न कुछ निकल ही आएगा और उद्धव को जेल में ठूँस दे। कल को मुम्बई जलने लगे, मराठे सड़क पर उतर आएँ और सारे विपक्षी दल आग में घी डालने का काम करें। तब यही लोग कहेंगे कि...
12/ ...अरे देखो BJP ने सब बेकार कर दिया, हैंडल नहीं कर पाए। फिर चुनाव में उद्धव की पत्नी-बेटा घूमने लगे और सहानुभूति लहर में और मजबूत हो जाए। इसीलिए, समय लगता है। धीमे-धीमे मौत होती है तो लोग भी मरने देते हैं।
13/ और क्या ऐसे तिकड़म फेल नहीं हुए हैं? खुद गुजरात मे मोदी के साथ ऐसा हुआ, वो और मजबूत हुए। बंगाल में ममता ने ऐसे ही सहानुभूति बटोरी। बिहार में लालू सालों ऐसे ही डर दिखा कर जीतता रहा। 2004 में व्यक्तिगत हमलों के बाद सोनिया और मजबूत हुईं। हिंदी न जानने वाली राजनीति...
14/ ...में नई-नई आई महिला ने वाजपेयी जैसे 5 दशक पुराने नेता को सत्ता से बेदखल कर दिया। जेल जाने के बाद जयललिता सत्ता में लौट आईं। ऐसे में दिखना नहीं चाहिए कि सीधी कार्रवाई हो रही है, वरना पब्लिक कब पाला बदल ले- ये कहा नहीं जा सकता। इसके लिए सहानुभूति कार्ड इस्तेमाल...
15/ ...किया जाता है।
16/ इसीलिए, लोकतंत्र हो या राजतंत्र- तख्तापलट जब जनता की मर्जी से और जनता के आंदोलन के बाद हुए हैं, तभी तानाशाहों को हटाया जा सका है। इसीलिए, किसी को भी अप्रासंगिक बनाने के बाद उसका कुछ भी किया जा सकता है। आज भीमा-कोरेगाँव मामले में 15 ऐसे अर्बन-नक्सल जेल में बंद...
17/ ...हैं, जिनके एक इशारे पर पूरा लिबरल जमात हंगामे पर उतारू हो जाता था लेकिन आज वो जेल में सड़ रहे हैं, बुढ़ापे में कोरोना हो रहा है लेकिन कोई पूछने वाला नहीं है। अब तो उनकी खबरें भी नहीं आती। ऐसे काम करती है आज की भाजपा।
18/ और राजनीतिक दल है तो उसे चुनावी लाभ तो चाहिए क्योंकि इसके बिना सब सूना है, एक NGO से ज्यादा उसकी कोई औकात रह नहीं जाएगी। जो सरकार 70 साल पहले हुए ब्लंडर को ठीक कर के जम्मू कश्मीर को मुक्त कर सकती है, 400 साल बाद राम मंदिर को वापस ला सकती है और पाकिस्तान-चीन को...
19/ ...नेस्तनाबूत कर सकती है, वो उद्धव ठाकरे को छोड़ देगी, ये आपने कैसे सोच लिया? निर्मम बनने का एक समय होता है, लेकिन वो समय आता नहीं बल्कि उसे लाना पड़ता है। फिर उस निर्ममता को जनसमर्थन मिला होता है या कोई ध्यान ही नहीं देता
20/ अरे, शाहीन बाग को ही देखिए न। दिल्ली ने वोट नहीं दिया तो भाजपा को भी लगा कि इन्हें यही शाहीन बाग चाहिए। देश भर में दंगे हुए, दंगाइयों को कपड़ों से पहचाना जाने लगा और इस पर लिखी पुस्तकों को पब्लिश होने से रोका गया। कोरोना आया, कुछेक पुलिसवाले आए और शाहीन बाग का...
21/ ...तंबू उखाड़ फेंका। कितना आसान लगा न? इसे आसान बनाया गया। तभी आज ताहिर हुसैन और शरजील इमाम अप्रासंगिक हो चुके हैं, उन्हें मिल रहे समर्थन की कोई वैल्यू नहीं और एक के बाद एक गिरफ्तारियाँ हुईं। तो स्ट्रेटेजी है- लगातार Expose करो, फिर वार करो।
22/ और इन्होंने तो ब्लंडरों की सीरीज खड़ी कर दी है। पालघर और सुशांत तो बस चर्चा में हैं। दो गलतियों को ढकने के लिए सौ गलतियाँ की हैं, हजार और करेंगे ये। पूर्व नौसेना अधिकारी की आँख फोड़ दी। सरकार के खिलाफ लिखने वाले लोगों को प्रताड़ित किया। पत्रकारों को जेल भेज दिया।...
23/ ...विवेक अग्निहोत्री के घर में घुस गए। कंगना रनौत का दफ्तर तोड़ डाला। एक चैनल का प्रसारण रोकने की कोशिश कर रहे। कोर्ट में डाँट सुन रहे। जनता के पास एक-एक मुद्दे को मजबूती से लेकर जाना ही राजनीति है और मोदी-शाह इसके सिद्धहस्त।
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पत्रकार: The Wire का उमर राशिद (The Hindu और Outlook में भी काम कर चुका है)
पीड़िता का आरोप: 'प्रगतिशील पत्रकारिता' की आड़ में महिलाओं को फँसाकर यौन हिंसा करना उसका धंधा है
पीड़िता ने खुलासा किया है कि ये उसका पैटर्न है, जिसके तहत वो कई महिलाओं को अपना शिकार बना चुका है। पीड़िता ने लिखा, "ये लिखते हुए मैं काँप रही हूँ और रो रही हूँ। वो एक सीरियल यौन शोषक और बलात्कारी है। वो ख़ुद को जानवरों से प्यार करने वाला बताता है।"
अपनी मरी हुई माँ का सहारा लेकर भी वो महिलाओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब पीड़िता की इससे पहली बार बात हुई तो 'प्रगतिशील राजनीति' पर जमकर चर्चा हुई। इस गिरोह की नज़र में 'प्रगतिशील राजनीति' क्या है, समझ जाइए - मोदी को गाली देना, रोहिंग्या घुसपैठियों की पैरवी और राम मंदिर का विरोध। साथ ही 'साहित्य में रोमांस' पर भी चर्चा हुई।
पीड़िता को ऐसा लगा कि उमर राशिद उसे 'दिल्ली के प्रगतिशील सर्कल' में आगे बढ़ने में मदद करेगा।
"वो अपने खेल की शुरुआत महिलाओं को लोधी गार्डन में टहलने के लिए बुलाकर करता है।"
"वो प्रेस क्लब की बैठकों में मुझे बतौर 'ट्रॉफी फ्रेंड' ले जाता था। मैं शहर में नई थी, उससे बहुत छोटी थी - मुझे लगाए वो मुझे आगे बढ़ाएगा।"
"मुझे बार-बार शारीरिक रूप से धक्का दिया गया, मारा गया, थप्पड़ मारा गया, गला दबाकर लगभग मार ही डाला गया, और ऐसे तरीकों से शोषण किया गया जिन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। शारीरिक और यौन - दोनों ही स्तर पर। मुझे बार-बार असुरक्षित और जबरन सेक्स के लिए मजबूर किया गया।"
"उम्र राशिद ने मेरे साथ बार-बार रेप किया — एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि उस पूरे समय में जब मैं उसके साथ थी।"
"मुझे आज भी याद है कि मैं बार-बार सेक्स से इनकार करती थी, उसे साफ़-साफ़ 'ना' कहती थी, उससे भीख माँगती थी कि वह न करे, क्योंकि मैं हमेशा उसकी गुस्से की प्रतिक्रिया से डरी हुई थी। मैं बार-बार सोचती और इस चिंता में जीती रही कि कहीं वह फिर से मुझे पीट न दे, और वह बार-बार ऐसा करता भी था।"
"कई बार उसने मुझे जबरदस्ती सेक्स के लिए मजबूर किया, और उस दौरान मैं बीमार और पूरी तरह से अनिच्छुक होती थी। हर बार ओमर मुझे माफ़ी माँगने के लिए मजबूर करता था, जबकि वह सामने बैठकर हँसता और खाना खाता, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। और इसी बीच वह अपने फ़ोन पर दूसरी लड़कियों से चैट करता रहता था। हर बार वह जानबूझकर कंडोम का इस्तेमाल नहीं करता था ताकि मुझ पर अपना दबदबा दिखा सके। इसके चलते मुझे कई बार अनचाही प्रेगनेंसी का डर सताता रहा, और मुझे चोरी-छिपे गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाना पड़ता था क्योंकि वह मुझे इलाज के लिए जाने नहीं देता था।"
"प्रेगनेंसी के डर से अलग, वह लगातार दूसरी महिलाओं के साथ सोता था (जबकि वह कहता था कि हम रिलेशनशिप में नहीं हैं), और मुझे हमेशा एसटीडी (STD) का डर बना रहता था। मेरे शरीर में रैशेज, यीस्ट इन्फेक्शन और हार्मोनल असंतुलन हो गए थे क्योंकि मैं नियमित रूप से i-pill लेती रहती थी। मुझे अपने स्वास्थ्य के लिए चुपचाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता था, क्योंकि उमर राशिद मुझे यही यकीन दिलाता रहता था कि मेरी सारी प्रेगनेंसी और एसटीडी की चिंताएँ सिर्फ़ एक भ्रम हैं।"
"सबसे बुरा और क्रूर वाकया तब होता था जब वह मुझे बुरी तरह पीटता था और उसी वक्त वह अपना फोन निकालकर मेरे अस्त-व्यस्त कपड़े और बाल रिकॉर्ड करता था, ताकि वह मुझे 'पागल औरत' साबित कर सके। इस पूरे समय वह मेरी जासूसी करता रहता था - मैं कहाँ जाती हूँ, किससे बात करती हूँ, मेरे सोशल मीडिया को सेंसर करता, मेरी ज़िंदगी और खाने-पीने तक पर कंट्रोल रखता था, और हर वक्त मुझे बताता रहता था कि मैं कितनी 'भयानक' दिखती हूँ।"
वह मेरी ज़िंदगी के हर पहलू को नियंत्रित करता था मुझे नीचा दिखाने के लिए। उसे मेरी डाइट से, मैं क्या खाती हूँ और क्या नहीं - हर चीज़ से दिक्कत थी। वह मुझे जबरदस्ती बीफ खाने के लिए मजबूर करता था - जैसे किसी 'सेक्युलरिज़्म' की अजीब सी परीक्षा हो। हर बार जब मुझे बीफ खाने के लिए मजबूर किया जाता था, मैं उल्टी कर देती थी और उसे इस पर मज़ा आता था। उसे इस बात में भी मज़ा आता था कि मैं उसके पैरों पर गिरकर उससे माफ़ी माँगूँ, ताकि वह मुझे यह धमकी न दे कि वह मेरी माँ के साथ सेक्स की कल्पना करेगा।"
वह मुझे बार-बार यह कल्पना करने के लिए मजबूर करता था कि मैं अपने पुरुष दोस्तों और सहकर्मियों (खासकर उम्रदराज़ लोगों) के साथ सेक्स कर रही हूँ। यह और भी भयावह था, क्योंकि वे पुरुष मेरे दादा की उम्र के थे। उसने मेरी सबसे कीमती चीज़ें तोड़ीं, जिनमें से कुछ मेरे पिता और क़रीबी दोस्तों द्वारा दिए गए उपहार थे, यह जानते हुए कि मैं बेहद सीमित साधनों में, मुश्किल से जी रही थी।"
स्वामी रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ अवॉर्ड क्यों? जो ये सवाल कर रहे हैं उनमें से अधिकतर हिन्दू विरोधी हैं, उन्हें जूतों मर भरकर जवाब मारना ज़रूरी है।
वो 22 भाषाओं के विद्वान हैं। भोजपुरी और अवधी जैसी आमजनों की स्थानीय भाषाओं के अलावा संस्कृत में भी लिख चुके हैं। उन्होंने 240 से अधिक पुस्तकें और 50+ रिसर्च पेपर लिखे हैं। अब जिनका पढ़ने-लिखने से कोई वास्ता ही नहीं है, वो भला क्या जानें ये सब होता क्या है!
विशेषकर गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं के अध्ययन एवं मीमांसा के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं है, कोई तोड़ नहीं है। रामचरितमानस और हनुमान चालीसा को समझना है तो रामभद्राचार्य को पढ़िए।
9000 पृष्ठ, 50000 श्लोक और 9 खंड... पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण 'अष्टाध्यायी' पर उन्होंने जो महाभाष्य लिखा है वैसा आजतक नहीं लिखा गया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका अनावरण किया। 'अष्टाध्यायी' साधारण पुस्तक नहीं है, पतंजलि ने इसे 'सर्ववेद-परिषद्-शास्त्र' कहकर संबोधित किया है।
ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और 11 उपनिषदों पर आधारित 'श्रीराघवकृपाभाष्यम्' भी उनकी एक अप्रतिम रचना है। जो लोग आज #Rambhadracharya जी पर निशाना साध रहे हैं उनमें से अधिकतर आज से 27 वर्ष पूर्व या तो पैदा भी नहीं हुए होंगे या डायपर में खेल रहे होंगे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस पुस्तक को लॉन्च कर रहे थे। ब्रह्मसूत्र, उपनिषद और गीता को मिलाकर 'प्रस्थानत्रयी' कहते हैं, 500 वर्षों से इनपर कोई संस्कृत भाष्य नहीं लिखा गया था, ये कार्य @JagadguruJi ने किया।
रामकथा के माध्यम से कई दशकों से वो समाज को ऐतिहासिक व आध्यात्मिक ज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं, ये योगदान भी कम है क्या? और हाँ, ये सब उन्होंने प्रज्ञाचक्षु होने के बावजूद किया है। नेत्र चले गए, लेकिन दृष्टि उन्होंने श्रम व साधना से अर्जित की। 1991 में उन्होंने PhD की और 1998 में DLitt - उनको गाली देने वाले अधिकतर अबतक टैक्स के पैसों से ही पल रहे हैं। और हाँ, पोस्ट डॉक्टरेट की डिग्री उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति KR नारायणन के हाथों मिली थी, जो दलित थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीराम जन्मभूमि मामले के अंतिम जजमेंट में उनकी गवाही और उनके द्वारा दिए गए साक्ष्यों का जिक्र हुआ। दिव्यांग छात्र-छात्राओं के लिए उन्होंने एक पूरी की पूरी यूनिवर्सिटी खोल की। अध्यात्म व समाज की सेवा के लिए 'तुलसी पीठ' की स्थापना की। भारत क्या, पूरी दुनिया में दिव्यांगों के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं था। 'विकलांग सेवा संघ' के जरिए उन्होंने दिव्यांग पुरुषों-महिलाओं के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम शुरू करवाए।
मेरा मुख्य उद्देश्य स्वामी रामभद्राचार्य जी का गुणगान करना नहीं, केवल और केवल ये बताना है कि कैसे उन्हें 'ज्ञानपीठ अवॉर्ड' मिलना इस अवॉर्ड का सम्मान बढ़ाता है।
ये लीजिए उनके द्वारा रचित लघुकाव्यों, गीतकाव्यों, महाकाव्यों और रीतिकाव्यों की सूची:
स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा रचित संस्कृत लघुकाव्य एवं खंडकाव्य:
न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) ने सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जो चीख-चीख कर बता रही हैं कि भारत का हमला कितना सटीक था, कितना अचूक था और कितना भीतर था!
NYT चूँकि अपने लेखों के लिए पैसे माँगता है, इसीलिए मैं एक-एक कर उन 'Before And After' वाली सैटेलाइट तस्वीरों को इस थ्रेड में डालता हूँ और साथ ही समझाता हूँ कि कैसे 'ऑपरेशन सिंदूर' सफल रहा।
ये दिखाता है कि हम जब जहाँ चाहें पाकिस्तान में उसी क्षण वार कर सकते हैं। आइए...
भोलारी एयरबेस:
ये सारी की सारी HD सैटेलाइट तस्वीरें हैं। ये पाकिस्तान की सबसे बड़ी पोर्ट सिटी कराची से 100 मील की दूरी पर स्थित है। यहाँ भारत ने एक एयरक्राफ्ट हैंगर को उड़ा दिया। ये वो इमारत थी जहाँ एयरक्राफ्ट को रखा और मेंटेन किया जाता है। अंदर रखे एयरक्राफ्ट्स का क्या हुआ होगा, समझ जाइए।
भारत ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है!
आइए, अब चलते हैं नूर खान एयरबेस की तरफ:
ये पाकिस्तान के सबसे संवेदनशील इलाक़ों में से एक है। पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय और वहाँ के प्रधानमंत्री का दफ्तर से ये कुछ ही दूरी पर स्थित है। साथ ही यहाँ से कुछ ही दूरी पर पाकिस्तान का परमाणु जखीरा है, उसकी देखभाल करने वाली यूनिट है।
यहाँ की एक महत्वपूर्ण इमारत को भी भारत ने एकदम सटीक निशाना बनाकर तबाह कर दिया।
उत्तर प्रदेश भारत के स्टार्टअप हब के रूप में उभर रहा है - ये सिर्फ़ कही-सुनी बात नहीं है, बल्कि अब आँकड़े भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं। Inc42 की एक रिपोर्ट आई है, जिसके बारे में आपको ज़रूर जानना चाहिए।
लंबी-चौड़ी रिपोर्ट है अंग्रेजी में, मैं थोड़ा सरल में बताने का प्रयास करता हूँ। सार ये कि यूपी अब संस्कृति और तकनीक के संगम का स्थल भी बन चुका है।
- भारत का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक्स-मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग हब, भारत के 55% मोबाइल फोन और 50% मोबाइल के कल-पुर्जे यहीं बनते हैं
- 14 हजार से भी अधिक स्टार्टअप हैं राज्य में, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है
- लखनऊ में देश की पहली AI सिटी विकसित की जा रही है
- सैमसंग की सबसे बड़ी स्मार्टफोन फैक्ट्री नोएडा में स्थापित हुई
- Foxconn-HCL, Vivo, Oppo, Lava और Dixon जैसी कंपनियाँ यहाँ सेमीकंडक्टर-डिस्प्ले पर काम कर रही हैं
- ग्रेटर नोएडा, लखनऊ-कानपुर और बुंदेलखंड - इन 3 इलाक़ों में 3 'ग्रीनफील्ड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स (GEMCs)' विकसित किए जा रहे हैं
नोएडा भारत की Startup राजधानी बन गई है, यहाँ 3500 से अधिक स्टार्टअप हैं। कुछ दिनों बाद बेंगलुरु और गुरुग्राम भी इसके सामने पानी माँगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। चूँकि ये एक कृषि-प्रधान राज्य है, एग्रीटेक वाले स्टार्टअप्स ख़ूब हो रहे हैं। खेती से लेकर सप्लाई चेन तक इससे दुरुस्त हो रहा है।
क्या आपको पता है मुख्यमंत्री @myogiadityanath की सरकार ने ऐसे 4600 फालतू प्रावधानों को कचरे के डब्बे में डाला, जिनसे नई कंपनियाँ बनाने में दिक्कतें आती थीं?
577 प्रावधानों को अपराधीकरण के दायरे से हटाया गया। 'निवेश मित्र' जैसी योजनाएँ लाई गईं। हजार करोड़ रुपए के फंड के साथ शुरुआती दौर में कई स्टार्टअप्स को पोषित किया गया।
लखनऊ में जो AI City बन रही है वो 70 एकड़ की होगी, जहाँ तकनीक देशी समस्याओं का समाधान करेगी। वीडियो सर्विलांस, विद्यालयों के प्रबंधन और लाभार्थियों के खतों में पैसे ट्रांसफर करने में AI बहुत उपयोगी साबित हो रहा है।
सोचिए, देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट जब जेवर में बनकर तैयार हो जाएगा तो यूपी कितनी तेज़ गति से दुनिया से जुड़ेगा। इलेक्ट्रिक-सोलर ऊर्जा में यूपी शीर्ष पर पहुँचता जा रहा है।
कौन था गाज़ी सालार मसूद, जिसके सम्मान में बहराइच व संभल सहित यूपी के कई जिलों में मुसलमान 'नेजा मेला' लगाते हैं?
यहाँ मैं एक जगह गाज़ी सालार मसूद के बारे में सारी जानकारी देने की कोशिश करता हूँ। आपको याद होगा जुलाई 2021 में असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर ने बहराइच में उसकी कब्र पर जाकर फूल चढ़ाया था।
चूँकि हम भारतीयों के मन में ये बिठा दिया गया है कि अगर इतिहास में किसी को 'सूफी संत' कहा गया है तो उसका दर्जा वही होगा जो हमारे ऋषि-मुनियों का है, इसीलिए इस प्रपंच का जवाब तथ्यों से देना बहुत आवश्यक है।
महाराजा सुहेलदेव ने सन् 1034 के एक युद्ध में उसे मार गिराया था। वो भारत में कई बार आक्रमण करने वाले महमूद गजनवी का भांजा था।
इस्लामी आक्रांता फिरोजशाह तुगलक ने उसकी मजार बनवाई थी।
गाजी सैयद सालार मसूद का भी भारत में आना इसी तरह की साजिश का हिस्सा था। इस्लामी आक्रांताओं का गुणगान करने वाले वामपंथियों की मानें तो हिन्दू उसे प्यार से ‘बाले मियाँ’ और ‘हठीला’ कहते थे, बाल श्रीकृष्ण से उसकी तुलना करते थे।
उसने ज़ुहरा बीबी नाम की एक लड़की से शादी की थी। दावा किया जाता है कि उसने उस लड़की का अंधापन ठीक कर दिया था।
इतिहासकार एना सुवोरोवा ने तो गाजी मियाँ की तुलना श्रीकृष्ण और श्रीराम तक से कर दी है और कहा है कि हिन्दू उसे इसी रूप में देखते थे।
गाजी सैयद सालार मसूद बचपन से ही एक योद्धा के रूप में प्रशिक्षण ले रहा था और इस्लाम के प्रति कट्टरता का भाव उसके मन में भरता ही जा रहा था। मीरत-ए-मसूदी में उसका इतिहास मिलता है। इसमें बताया गया है कि महमूद गजनवी को सोमनाथ का मंदिर ध्वस्त करने की सलाह गाजी ने ही दी थी।
"जब मैं मदरसा बंद करने की बात करता हूँ, तो ये हिंदू नहीं मुस्लिमों के लिए करता हूँ। इसी तरह UCC भी उनके लिए ही है। भारतीय मुस्लिमों के सबसे बड़े हितैषी मदरसा बंद करने और UCC की बात करने वाले हैं। ओवैसी जैसे लोग इनके दुश्मन हैं।"
"हमें हिंदी भाषा सीखनी चाहिए। भारत के अलग-अलग हिस्सों में काम करना है तो हिंदी सीखने में समस्या क्या है? हमें अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करनी चाहिए, सीखना चाहिए, लेकिन हिंदी भी जरूरी है।"