आहम्पि॒तॄन्सु॑वि॒दत्राँ॑ अवित्सि॒ नपा॑तं च वि॒क्रम॑णं च॒ विष्णोः॑।
ब॑र्हि॒षदो॒ ये स्व॒धया॑ सु॒तस्य॒ भज॑न्त पि॒त्वस्त इ॒हाग॑मिष्ठाः॥
(#ऋग्वेद १०.१५.०३) #पितृपक्ष
उत्तम ज्ञान से युक्त पितरों को तथा अपान पात् और विष्णु के विक्रमण को, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासन पर बैठने के अधिकारी पितर प्रसन्नापूर्वक आकर अपनी इच्छा के अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें।
ऋषि: - शङ्खो यामायनः
देवता - पितरः
छन्द: - विराट्त्रिष्टुप्
बर्हि॑षदः पितर ऊ॒त्य॒र्वागि॒मा वो॑ ह॒व्या च॑कृमा जु॒षध्व॑म्।
त आ ग॒ताव॑सा॒ शंत॑मे॒नाथा॑ नः॒ शं योर॑र॒पो द॑धात॥
(#ऋग्वेद १०.१५.०४) #पितृपक्ष
कुशासन पर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके हमारी ओर आइये। यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेम से स्वीकार कीजिये। अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसाद के साथ आयें और हमें क्लेशरहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें।
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लक्षद्वीप:
1970 के उत्तरार्ध की बात है। लक्षद्वीप के कवरत्ती से हिंसा की खबर आई। केरल राजभवन में सुरक्षा बलों की एक कम्पनी तैनात थी जिसके कम्पनी कमांडर गढ़वाल के रावत साहब थे। रात को 10 बजे कम्पनी को मूव करने का आदेश आया। जो जिस हालत में था लाठी और राइफल लेकर तैयार हुआ।
राजभवन से बसों में सवार होकर रात के 12 बजे मूवमेंट शुरू हुआ। 4 बजे सभी कोचीन बन्दरगाह पर पहुंचे। भारतीय नौसेना का जहाज कृष्णा खड़ा था। वहां पर पूरे कम्पनी का फ्रेश पर्टिकुलर्स तैयार किया गया। राशन की लोडिंग हुई और 2 बजे जहाज चल पड़ा। अगले दिन कम्पनी कवरत्ती पहुंची।
वहां छोटे-छोटे बोट के मदद से सामानों को किनारे लगाया गया। कम्पनी कमांडर ने पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट किया। बिहार के बड़हिया के रहने वाले थे वो। उन्होंने मामले की जानकारी दी। और कहा कि तुरंत दंगा नियंत्रण का काम शुरू हो। जो भी दिख जाए उसको 4-6 लाठी लगाना है। आवश्यकता पड़ने पर फायर।
बिहार रेजीमेंट के जवानों की शौर्यगाथा, कर्नल बी. संतोष बाबू के शहीद होने के बाद तोड़ी 18 चीनी सैनिकों की गर्दन:
पिछले दिनों गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने एक सोची-समझी साजिश के तहत भारतीय जवानों पर हमला किया।
हालांकि चीन की पीएलए ऑर्मी की तरफ से अचानक हुए इस हमले में पहले भारत को बड़ा नुकसान हुआ, लेकिन उसके बाद जिस तरह से बिहार रेजीमेंट के जवानों ने मोर्चा संभाला, उसके बाद चीनी सैनिक भाग खड़े हुए।
उस रात बिहार रेजीमेंट के जवानों ने बहादुरी की कहानी,
पूरी दुनिया में सैन्य अभियानों के लिए मिसाल बन गयी है। उस रात चीनी सैनिकों की तादाद भारतीय सेना की तुलना में पांच गुणा ज्यादा थी, लेकिन फिर भी हमारे बहादुर जवानों ने चीनी सेना को ऐसा मारा कि अब वह शांति से बातचीत को सुलझाने की बात कर रहा है।
1983 में तत्कालीन बिहार सरकार को हिलाने वाले बहुचर्चित श्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड और उसके बाद हुए हलचल पर सुजीत जी ने दैनिक भास्कर ने एक शृंखला लिखी थी। यशस्वी आचार्य श्री किशोर कुणाल उस समय पटना एसएसपी थे। सीबीआई की भूमिका पर सवाल खड़े हुए थे। पूरी शृंखला सूत्रवत है:
भाग 1
बीते 5 जून को 1985-88 के बीच दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे वेद प्रकाश मारवाह का 87 वर्ष की आयु में गोवा में निधन हो गया है। वेद मारवाह हमेशा देश के बेहतरीन पुलिस अधिकारियों में गिने जाएंगे। उनके जीवन के कुछ प्रसंगों की रेहान भाई चर्चा करते हैं।
अप्रैल 1985 में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर का पद संभालने के कुछ महीनों के अंदर ही उन्होंने गृह सचिव सी.जी. सोमैया से मिलने का समय माँगा।
सोमैया से मिलने पर उन्होंने शिकायत की कि वो गृह मंत्री बूटा सिंह से परेशान हैं।
क्योंकि वो अपने कुछ लोगों को दिल्ली के महत्वपूर्ण थानों में पोस्टिंग के लिए ज़ोर डालते रहते हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें पुलिस महकमे में ईमानदार नहीं माना जाता। सोमैया भी अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे।
यह हमारी प्राचीन परम्परा है, वैसे तो हमारी हर बात प्राचीन परम्परा है, कि लोग बाहर जाते हैं और ज़रा–ज़रा–सी बात पर शादी कर बैठते हैं। अर्जुन के साथ चित्रांगदा आदि को लेकर यही हुआ था। यही भारतवर्ष के प्रवर्त्तक भरत के पिता दुष्यन्त के साथ हुआ था, #रागदरबारी
यही ट्रिनिडाड और टोबैगो, बरमा और बैंकाक जानेवालों के साथ होता था, यही अमरीका और यूरोप जानेवालों के साथ हो रहा है और यही पण्डित राधेलाल के साथ हुआ। अर्थात् अपने मुहल्ले में रहते हुए जो बिरादरी के एक इंच भी बाहर जाकर शादी करने की कल्पना–मात्र से बेहोश हो जाते हैं…
…वे भी अपने क्षेत्र से बाहर निकलते ही शादी के मामले में शेर हो जाते हैं। अपने मुहल्ले में देवदास पार्वती से शादी नहीं कर सका और एक समूची पीढ़ी को कई वर्षों तक रोने का मसाला दे गया था। उसे विलायत भेज दिया जाता तो वह निश्चय ही बिना हिचक किसी गोरी औरत से शादी कर लेता।
अकाल के बाद मनुष्यता की दूसरी सबसे बड़ी दुश्मन थी महामारी और संक्रामक बीमारियाँ। सौदागरों, सरकारी कर्मचारियों और तीर्थयात्रियों के अन्तहीन ताँते से जुड़े हलचल भरे नगर एक साथ मानव सभ्यता की आधारशिला और रोगाणुओं का घर हुआ करते थे।
नतीजतन, प्राचीन एथेंस या मध्ययुगीन फ़्लोरेंस में लोग इस अहसास के साथ अपना जीवन जिया करते थे कि वे बीमार पड़कर अगले हफ़्ते मर सकते हैं, या अचानक कोई महामारी फैलकर एक झटके में उनके पूरे परिवार को ख़त्म कर सकती है।
इस तरह के सबसे प्रसिद्ध प्रकोप को काली मौत (ब्लैक डैथ) के नाम से जाना जाता था। मध्य युग के लोग काली मौत (ब्लैक डैथ) को मनुष्य के नियन्त्रण और समझ से परे एक भयावह दानवीय शक्ति के रूप में देखते थे। इसकी शुरुआत पूर्वी या मध्य एशिया में किसी जगह पर 1330 के दशक में हुई थी,