बम्बई में जितने स्टार नहीं बनते हैं, उससे ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स प्रयागराज, बैंकर पटना और इंजीनियर कोटा में बनते हैं। लेकिन ऐसा क्या खास है फिल्मी सितारों में कि उनकी आलोचना नहीं कर सकता कोई। आप जैसे ही उनसे कोई सवाल करेंगे तो वह बम्बई की बेइज्जती माना जायेगा। बम्बई रूठ जाएगी।
ब्यूरोक्रेट्स से सवाल पूछने या उनकी आलोचना करने पर प्रयागराज ने कभी बुरा नहीं माना। ऐसे ही बैंकर्स और इंजीनियरों की आलोचना होने पर कभी पटना या कोटा ने भी बुरा नहीं माना।
ये बम्बई के पेट में फिर क्यों दर्द होने लगता है? इस दर्द की वजह क्या है?
दरअसल ये बॉम्बे स्पिरिट और मराठा प्राइड के नाम पर फिल्मी दुनिया के काले कारनामों को दबाने की कोशिश की जाती है।
आप नेताओं को दिन भर पानी पी पीकर बुरा भला कह सकते हैं, गाली दे सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं लेकिन अभिनेताओं से नहीं पूछ सकते क्योंकि थाली में छेद हो जाएगा।
ऐसा क्या है फिल्मी सितारों में कि वो इतने बड़े स्टार बन जाते हैं और आलोचना के बंधन से मुक्ति पा लेते हैं? जबकि प्रधानमंत्री तक आलोचना से परे नहीं हैं।कला की अनेकों विधाओं में से फिल्में भी केवल एक विधा ही है। तो इन कलाकारों को विशेषाधिकार क्यों?
माहौल बनाने वालों ने राजनीति को भ्रस्टाचार का पर्यायवाची बना दिया। वही माहौल बनाने वाले अभिनय की दुनिया को नशे का अड्डा बताने पर नाराज़ हो जाते हैं? पिछले दस बीस सालों में कई फ़िल्मी कलाकार ड्रग्स के साथ पकड़े गए या उनपर ड्रग रखने का आरोप लगा।
फरदीन खान, डीजे अक़ील, विजय राज, गौरी खान, ममता कुलकर्णी और न जाने कितने ड्रग्स के साथ पकड़े गए। संजय दत्त, रणबीर कपूर और प्रतीक बब्बर जैसों ने तो खुद भी माना कि उन्हें नशे की आदत थी। राज कपूर और फ़िरोज़ खान की महफ़िलें आज तक मशहूर हैं। और बात सिर्फ नशे तक नहीं है।
1993 में संजय दत्त और 2008 मुम्बई धमाकों में राहुल भट्ट की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। और सलमान खान के अपराधों के बारे में सब जानते हैं। सैफ अली खान, शक्ति कपूर, आदित्य पंचोली, सूरज पंचोली जैसों पर मारपीट और कास्टिंग काउच जैसे आरोप लग चुके हैं।
संगीतकार नदीम पर गुलशन कुमार की हत्या का आरोप लगा। तौरानी भाइयों पर भी आरोप लग चुके हैं।
इसके अलावा भी बहुतों पर घरेलू हिंसा, बैंक फ्रॉड, अंडरवर्ल्ड से रिश्तों जैसे तमाम आरोप लगते रहे हैं। लेकिन आप इनमें से किसी पर उंगली नहीं उठा सकते।
दरअसल, आजकल यूपीएससी में जिस तरह ज़कात फाउंडेशन की भूमिका को लेकर आशंका जाहिर की जा रही है, उसी तरह से बॉलीवुड की इन समस्याओं की जड़ में जाएं तो पता चलेगा कि सभी समस्याओं के मूल में बॉलीवुड का जकातीकरण है।
फ़र्क़ केवल फंडिंग सोर्स का है ~ बॉलीवुड में ज़कात की जगह दाऊद और अंडरवर्ल्ड के दूसरे कई गुर्गों का पैसा लगता रहा है। जब फंडिंग का सोर्स ही गलत होगा तो उसके परिणाम भी गलत ही होंगे। बॉलीवुड के अपराधीकरण और ज़कातीकरण की जड़ में यही फंडिंग है।
माता रानी के भक्त गुलशन कुमार की सरेआम गोली मारकर हत्या हो जाती है। राजीव राय और राकेश रौशन पर जानलेवा हमले होते हैं। दिव्या भारती को मजबूरन आत्महत्या (?) करनी पड़ती है। प्रिटी जिंटा को अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिलती रहीं। किसी खान को कभी अंडरवर्ल्ड से धमकी या गोली नहीं मिली। क्यों?
क्या कारण है कि अंडरवर्ल्ड गैंग और उसके गुर्गों से अलग चलने वाले कलाकारों का कैरियर समाप्त हो जाता है - सनी देओल, सोनू निगम, अभिजीत, प्रिटी जिंटा, नील नितिन मुकेश जैसे कितने ही होनहार और सफल कलाकारों को किनारे कर दिया गया। क्यों बॉलीवुड में पाकिस्तानी कलाकारों की बाढ़ सी आ गयी?
सुशांत की हत्या भी इसी ट्रेंड की एक कड़ी है। कंगना और रवि किशन पर जो हमले हो रहे हैं, वह भी इसी की कड़ियाँ हैं।
अच्छी बात ये है कि अब पब्लिक सब जानती है और पब्लिक सेंटिमेंट धीरे धीरे बदल रहा है। सुशांत के मामले में न्याय के लिए जैसे अपार जनसमर्थन मिला वो एक सकारात्मक शुरुआत है।
और यही कारण है गैंग की बौखलाहट का। उन्हें पता चल चुका है कि उनकी पोल धीरे धीरे ही सही, खुल चुकी है। अब वो ज़माना गया जब कोई भी सड़ी सी मूवी बनाकर ये गैंग करोडों कमा लेता था। आज ये करना मुश्किल होता जा रहा है। इसीलिए ये इतने हैरान परेशान होकर दूसरों को गालियां दे रहे हैं।
खुद को बचाने के लिए बॉम्बे स्पिरिट और मराठा प्राइड की बातें करने लगे हैं क्योंकि बचाव के लिए इनके पास कोई और तर्क है ही नहीं।
अभी आगे और तमाशा होगा, आप बस देखते जाइये। भरपूर मनोरंजन भी होगा। हां, बस आप टिके रहिएगा अपनी जिद पे - इनकी एक भी फ़िल्म हिट नहीं होने देना है।
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हर साल दीपावली के त्यौहार में हिंदुओं को सरकार और न्यायालय से भीख माँगने पर मजबूर कर दिया जाता है- पटाखे जलाने के लिए। बच्चे एक एक फुलझड़ी के लिए तरस जाते हैं। लेकिन सरकार का न्यायालय का हृदय नहीं पिघलता। #crackerban
ये सब किया जाता है, प्रदूषण रोकने के नाम पर। पूरे साल प्रशासन कुम्भकर्ण की नींद सोया रहता है, दीपावली आते ही अचानक प्रशासन की नींद खुलती है और आनन फ़ानन में दीपावली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर सब अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। #crackerban
लेकिन ऐसे बेतुकेपन का कोई वैज्ञानिक आधार है? उससे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन का उद्देश्य वास्तव में प्रदूषण को रोकना है? साल भर में केवल एक दिन मनाए जाने वाला उत्सव पूरे साल के प्रदूषण का कारण कैसे हो सकता है? यदि नहीं तो हर साल इसी त्यौहार को निशाना क्यूँ बनाया जाता है?
उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार कम हुए हैं या बढे हैं, नहीं कह सकता, आंकड़ों का हिसाब रखने वाले बताएँगे। लेकिन महिलाओं पर अत्याचार प्रदेश के लिए कोई नयी बात नहीं है। प्रदेश ही क्यों, पुरे देश के लिए कोई नयी बात नहीं है। और महिलाएं ही क्यों, दलितों पर अत्याचार भी देश के किसी
भी हिस्से में होना कोई नयी बात नहीं है।
फिर क्या वजह है की अचानक से कोई मामला उत्तर प्रदेश में तूल पकड़ लेता है। शेमस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर आग लग जाती है और माहौल बनाने वाले लोग एजेंडा चलने लगते हैं कि प्रदेश में क़ानून का राज नहीं है और प्रदेश में कोई सुरक्षित नहीं है-
दलित हो या महिला - दोनों हो तो और भी ज्यादा।
दरअसल २०१७ में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी महाराज ने अपराध और अपराधियों के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। अपराध पर नकेल कसने के लिए महाराज जी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। माफिया गिरोहों के खिलाफ पुलिस ने अभूतपूर्व कार्यवाही की है।
अपने यहाँ जातिगत भेदभाव एक बड़ी समस्या रही है, इससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। हिन्दू धर्म की सबसे ज्यादा आलोचना यदि किसी बात को लेकर होती है तो वो यही है। यद्यपि, पिछले कई दशकों में हमने इसको कम करने के लिए भरपूर प्रयास किये हैं और ऐसा नहीं है की हमे सफलता नहीं मिली है।
हाँ, सफलता जैसी मिलनी चाहिए, वैसी नहीं मिली परन्तु हम यह जरूर कह सकते हैं कि समाज के एक बड़े तबके में अब इस भेदभाव के लिए स्थान नहीं है।
दलितों आदिवासिओं को अभी भी इस दंश का सामना करना पड़ता है, इसी का फ़ायदा उठाकर धर्मान्तरण करने वाले अपने व्यापार का प्रसार करने में सफल हुए हैं।
इसलिए विशेषकर दलितों और आदिवासिओं को समाज में उनका गौरवशाली स्थान पुनर्स्थापित करने के लिए हमे और प्रयास करने होंगे।
यहाँ दो बातों पर ध्यान देना विशेष आवश्यक है, जो इस बीमारी का समूल नाश करने में सहायक होंगी –
बचपन में पढ़ा करते थे कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, आज है या नहीं पता नहीं। हमेशा यही सुनने को मिलता था कि किसानों की तरक्की के बग़ैर इस देश का भला नहीं हो सकता। किसानों की आर्थिक उन्नति भारत की उन्नति के लिए अत्यावश्यक है। किसान का बेटा होकर यह सब सुनना अच्छा लगता था।
लेकिन पिछले साठ सत्तर सालों में किसानों की दशा दिशा सुधारने को लेकर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। हरित क्रांति के नाम पर रासायनिक खाद झोंककर कुछ राज्यों के किसानों ने उत्पादन बढ़ा लिया, इसके अलावा किसान और किसानी की उन्नति के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ।
साल दर साल एमएसपी बढ़ाकर कर्तव्य की इतिश्री करने वाले नेता, गांव और किसान के नाम पर सबसे ज्यादा वोट मांगते रहे। वही नेता यदि किसानों के लिए भूले भटके कोई सरकार एक आध अच्छा कदम उठाती है तो उसका दम भर विरोध करते हैं। आखिर यह विरोधाभास क्यों?
6-Dec-92 was a day of national pride, not national shame. I have no regret, no repentance, no sorrow, no grief ~ Shri Kalyan Singh, the man who made it possible for us to see our dream of Ram Mandir turns into reality.
This footage is testimony to one of the bravest displays of Hindu pride &bhakti. Some of the greatest Rambhakts doing Lanka Dahan act on a Dhancha which stood as a nail in the heart of an entire civilisation.