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Sep 18, 2020 7 tweets 2 min read Read on X
एक संवेदनाहीन "लोकतांत्रिक" समाज

कुछ दिनों पूर्व एक सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की मृत्यु हुई... उसके विपरीत विचारधारा रखने वालों ने उसका पुरजोर जश्न मनाया...
ऐसे ही जश्न का प्रदर्शन प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी की मृत्यु के बाद किया गया था..
गृह मंत्री अमित शाह एम्स में भर्ती हुए तो गिद्ध विचारधारा वाले ऐसे ही लोगो ने उनकी मृत्यु की कामना के memes बनाने शुरू कर दिए...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो मारने तक कि बाते लोगो को करते हुए देखा जा सकता है..

मुझे समझ नही आता कि क्या हम इतने संवेदनाहींन होते जा रहे है?
हम सब लोग आतंकवादियो से नफरत करने का पाखण्ड करते है, लेकिन क्या हमारी और आतंकवादियो की विचारधारा एक जैसी नही है?
वो भी तो अपने से अलग विचार रखने वालों की मौत पर खुशियां मनाते है, और मौत के घाट उतार देते है..!!
फिर क्या फर्क हुआ उनमे और हम में?
मृत्यु पर प्रसन्नता पैशाचिक है... रावण तक की अंत्येष्टि भगवान ने स्वयं,विधानपूर्वक “बिधिवत देस काल जियँ जानी” कहकर कराई थी...
मानस में रावण की मृत्यु का प्रसंग आता है तब तुलसी जी लिखते है -
“कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका,
करहु क्रिया परिहरी सब सोका।”
कँहा से कँहा पहुंचते जा रहे है हम?
हम कैसे समाज का निर्माण कर रहे है?
वैचारिक मतभेद रखने वाले कि मृत्यु की कामना हम कर रहे है, उसकी मृत्यु पर प्रसन्नता जाहिर कर रहे है...
सुषमा स्वराज की मृत्यु पर एक वर्ग ने जो खुशियां जाहिर की थी आज भी स्मृति पटल में वो कंही न कंही चुभ रही है..!
कभी हमने सोचा है कि हम इतना उग्र क्यो होते जा रहे है?
हमारी नन्ही पीढ़ी को हम कैसी मानसिकता देकर जाने वाले है?
इस विषय पर विचार करने की बहुत गहन आवश्यकता है...
पुराने जमाने मे कहा जाता था कि शत्रुता व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाती है..
हम इतनी सरल लेकिन महत्वपूर्ण बात को क्यो नही समझ पाते?
विरोध करिए, लेकिन विचारधारा का विरोध करिए.... "मानवता" का नही..!
ऐसे ही चला तो हर व्यक्ति एक आतंकवादी ही कहलायेगा, चाहे वो स्वीकार करे या नही..!!

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Nov 26, 2021
#BlackBill

पिछले कुछ समय से लगातार व्यस्तता के चलते पर्याप्त समय नही निकाल पा रहा हूँ... पेशेवर जीवन के साथ साथ व्यक्तिगत जीवन मे भी लगातर चल रही उठापटक की वजह से संतुलित होकर कुछ सोच पाना और कुछ कर पाना बहुत मुश्किल लगने लगा है...

लेकिन चूंकि अब सवाल अस्तित्व का है...
तो अब चुप बैठना कायरता होगी... हालांकि मानसिक उठापटक के इस दौर में भी में भी मैं चुप तो नही बैठा....
जंहा भी मौका मिला, जैसा भी मौका मिला बैंकर्स को संगठित करने का, उनका स्वर समवेत बनाने का प्रयास किया...
मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मेरे आस पास बैठ कर काम करने वाले लोग इस दिवास्वप्न में है कि निजीकरण हमे तो चिमटी से भी नही छू सकता, तो हम क्यों परेशान हो...?
और मुझे उनके ये विचार सुन कर आश्चर्य होता है, की हम इतने स्वार्थी क्यों हो गए?
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Aug 20, 2021
भारत के बुद्धिजीवी और तालिबान

आजकल हमारे देश का एक धड़ा बहुत खुश है, इतना ज्यादा कि खुशी छुपाए नही छुप रही, उनकी खुशी एकदम फुदक फुदक कर बाहर जंहा देखो ज्ञान के रूप में गिर रही है...
उनकी इस खुशी का कारण है "अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा"
"देखो तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है"
"देखो बिना खून बहाए पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया"
"देखो तालिबान ने दुनिया की सारी शक्तियों के कब्रगाह बना दिये"
"तालिबान तो इस सरकार से कई गुना अच्छा है"
अरे अक्ल के दुश्मनों, या तो तुम इतने मूर्ख हो कि तालिबान के बारे में कुछ जानते नही और या फिर तुम इतने दुष्ट हो कि तुम्हे आतंकवाद प्रिय लग रहा है...
आपको तालिबान सिर्फ इसलिए अच्छा लगता है कि इसकी विचारधारा इस सरकार की विचारधारा की विरोधी विचारधारा है तो आप महामूर्ख हो...
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Apr 27, 2021
"श्मशान वैराग्य"

हर मनुष्य के साथ ऐसा होता है कि जब वो शवयात्रा को देखता है तो कुछ क्षणों के लिए संसार से अरुचि या विरक्ति हो जाती है... जीवन की वास्तविकता का हमे अंदाजा उन कुछ क्षणों के लिए लग जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है... लेकिन कुछ ही समय मे हम सब भूलकर सामान्य हो जाते है..
रोज अपने आस पास, सोशल मीडिया पर और समाचारों में इतने लोगो को मरते हुए देख कर मेरे साथ वो श्मशान वैराग्य वाली स्थिति स्थायी जैसी हो गई है... जीवन अब असार सा लगने लगा है... क्या फायदा किसी के साथ लगाव रखने का जब वो आपको किसी भी क्षण छोड़कर जा सकता है...?
"मैं क्या कर रहा हूँ"
"क्यों कर रहा हूँ"
जैसे सवाल बार बार मन मे आते है... जीवन मे कितनी ही सफलता अर्जित करे, मृत्यु एक वास्तविकता है, एक अटल सत्य है...
इसके सामने मेने बहुत गुरुर से भरे लोगो को भी गिड़गिड़ाते हुए देखा है...
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Jan 17, 2021
"सर्दी में चाय निर्माण - एक संघर्ष कथा"

भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहटों के बीच भारत ने चीन के कई app प्रतिबंधित कर दिए... लेकिन चीन से आया हुआ एक ऐसा उत्पाद है जो भारत मे कोई भी प्रतिबंधित नही कर सकता वो है
"चाय"
चाय के शौकीन लोगो के लिए चाय शब्द ही ताजगी से भरने के लिए पर्याप्त है... मसलन ब्रांच में काम करते समय चाय वाले को कप में अपने लिए चाय भरते हुए देखने के वो क्षण इतना आनंद देते है जितना अपनी दुल्हन का पहली बार घूंघट उठाने वाले क्षण भी नही देते होंगे 🤐
चाय वाले को अपने लिए चाय भरते हुए देखना चाय प्रेमियों के लिए दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य होता है...
लेकिन सर्दियों में सुबह अपने लिए खुद चाय बनाना उसी अनुपात में पीड़ादायी भी होता है.. मैं आपको समझाता हूँ कैसे...
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Oct 27, 2020
#justice4Nikita

90% लोग ये खबर पढ़ चुके और पढ़ कर स्क्रोल कर दिया क्योंकि निकिता की जाति उनकी outrage करने की श्रेणी को सूट नही करती...
इसलिए वो चुप रहेंगे...

निकिता को गोली मारने वाले तौफीक का नाम किसी भी समाचार में पढ़ने को नही मिलेगा..

खबर होगी - युवक ने युवती को गोली मारी
एक्त्वम का नारा लगाकर सामाजिक सौहार्द फैलाने का ढोंग करने वाले तनिष्क के समर्थक अब रजाई ओढ़ के सो जाएंगे...

नवरात्रि में देवी पूजा करने वालो की तुलना बलात्कारियों से करने वाली वकील राजावत मेडम का मुंह फेविकॉल के मजबूत जोड़ से चिपक जाएगा...
निकिता का सरनेम कुछ और होता तो आज अभी यही बुद्धिजीवी चूड़ियां तोड़ तोड़ कर रो रहे होते...

प्लेकार्ड लेकर खड़े होने वाली महिलावादी सेलिब्रिटी भी अभी कंही न कंही छुपी हुई नजर आएगी....
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Oct 25, 2020
Bankers' movement और हम

किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
एक टीम बनने के बाद उस टीम को "बनाये रखना" बहुत ज्यादा चुनोतिपूर्ण होता है
आप जिसके खिलाफ संघर्ष कर रहे है उसके विरुद्ध कार्ययोजना बनाने के साथ साथ ही आपकी अपनी टीम में समन्वय बिठाने की भी जिम्मेदारी होती है...
टीम भी कई तरीके से बनाई जा सकती है...
एक तो जैसेकि झुंड... उसमे किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत विचार नही होता... सब सदैव एकमत रहते है
एक होती है भीड़... जिसमे कोई भी जो मर्जी कर रहा है, अनुशासन हीनता और हुड़दंग भीड़ की निशानी है....

लेकिन आंदोलन को सफलता न तो झुंड के साथ मिल सकती है और न ही भीड़ के साथ...
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