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Sep 20, 2020 34 tweets 8 min read Read on X
#Winter_is_coming: #Great_game_is_about_to_start
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सिल्क रुट का मानचित्र - भूमार्ग लाल रंग में हैं और समुद्री मार्ग नीले रंग में....

ये एक ऐसा खेल है जो विश्व की महाशक्तियों के बीच हमेशा से चलता आया है और चलता रहेगा। Image
ये खेल पौराणिक युग में भी चला था जिसे हम देवासुर संग्राम के नाम से जानते हैं और वजह थी वही जो आज है- संसाधनों पर कब्जा।
लेकिन भली प्रकार ज्ञात ऐतिहासिक युग में इस खेल की शुरूआत हुई थी #प्रथम शताब्दी ईसवी में।
खिलाड़ी थे- भारत के कुषाण, चीन के हान, ईरान के पार्थियन और यूरोप के रोमन्स।
ट्रॉफी: अफगानिस्तान का रेशम मार्ग या सिल्क रुट
परिणाम:- कनिष्क ने चीन को बुरी तरह पराजित कर ताशकंद व समरकंद तक अधिकार जमाया। दुनियाँ की इकोनॉमी पर भारत का एकाधिकार।
#दूसरे ग्रेट गेम की शुरूआत हुई चौथी शताब्दी ई में
खिलाड़ी थे- भारत के गुप्त सम्राट और ईरान के सासानिद सम्राट
ट्रॉफी:- रेशम मार्ग
परिणाम:-मध्यएशिया पर भारत का सैन्य व सांस्कृतिक प्रभाव तथा सिल्क रुट पर कब्जा। दुनियाँ की इकोनॉमी पर 35 से 40%अधिकार।
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#तीसरे ग्रेट गेम की शुरूआत हुई पंद्रहवीं शताब्दी में
खिलाड़ी थे-ब्रिटेन,स्पेन,हॉलैंड,पुर्तगाल,फ्रांस
ट्रॉफी: हिंद महासागर और भारत
परिणाम: ब्रिटेन का भारत के माध्यम से दुनियाँ के सारे व्यापार पर नियंत्रण और अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया ब्रिटिश उपनिवेश।
#चौथे ग्रेट गेम की शुरूआत हुई औद्योगिक क्रांति के परिणामों में एडम स्मिथ के मुक्त व्यापार की विचारधारा के मिश्रण ने। इसके परिणाम में अधिकाधिक उत्पादन और उसे खपाने के लिये निरंतर क्रयशक्ति उपलब्ध कराने की कोशिश ने जिस उपभोक्तावाद को जन्म दिया
उसने प्रकृति व मानव सभ्यता के बीच के संतुलन को तोड़ दिया।
सारे राष्ट्र अब एक ही अंधी दौड़ में थे- "अधिकाधिक उत्पादन औऱ उसे खपाने के लिये देश विदेश की जनता की क्रयशक्ति में निरंतर वृद्धि" जिसके कारण अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण हुआ व
विश्व 'मंदी' के रूप में एक नये आर्थिक कारक से परिचित हुआ जो राजनैतिक व सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन का 'डरावना शब्द' बन गया।
#खिलाड़ी: ग्लोबलाइजेशन व तकनीक के कारण इस खेल में खिलाड़ी अब तक बदलते रहे हैं
लेकिन वर्तमान ग्रेट गेम के पूर्वार्द्ध दौर के खिलाड़ी थे - अमेरिका और सोवियत संघ
मैदान था अफगानिस्तान
परिणाम था सोवियतसंघ का पतन जिसके बाद कुछ समय तक अमेरिका ने विजेता का आनंद भी उठाया लेकिन उत्तरार्द्ध में इस खेल को एक नये खिलाड़ी ने फिर से शुरू कर दिया।
इस चौथे ग्रेट गेम केउत्तरार्द्ध की शुरूआत हुई थी आधुनिक युग में विदेशनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमेरिकी डिप्लोमेट हेनरी किसिंजर की एक भयंकर भूल से। जी हाँ, जो व्यक्ति जीवन में कभी गलती नहीं करता वो प्रायः अंत में एक भीषण गलती अवश्य करता है
और यही गलती की थी किसिंजर ने।
सोवियत संघ को मिटाने की धुन में किसिंजर ने 1972 में बीजिंग की गुप्त यात्रा की और चीन को सोवियत पाले से अलग कर दिया। साम्यवादी जगत दो हिस्सों में बंट गया।
किसिंजर की हार्दिक इच्छा पूरी हुई।
पूर्वी यूरोप ही नहीं बल्कि सोवियत संघ से भी साम्यवाद खत्म हो गया।
लेकिन किसिंजर और अमेरिकी थिंक टैंक चीनी चरित्र को पढ़ने में चूक गये। वे भूल गये कि चीनी दुनियाँ की सबसे मौकापरस्त जाति है और 'हान राष्ट्रवाद' के लिये कम्युनिज्म के सिद्धांत
उसकी 'हान राष्ट्रीयता' के आर्थिक विकास का उपकरण भर थे।
अमेरिकियों ने चीन के संदर्भ में नेपोलियन व स्वामी विवेकानंद की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और लगभग मृतप्रायः कम्यूनिस्ट दैत्य को जल्दी समाप्त करने चक्कर में दुनियाँ के सबसे खतरनाक पिशाच के मुँह में
'तकनीक व पूंजी' का अमृत टपका दिया और यहीं से चीन एक खिलाड़ी के रूप में उभरना शुरू हुआ जिससे अमेरिका का जीता हुआ मैच फिर से शुरू हो गया।
चीनियों ने सोवियतसंघ से परमाणु बम और मिसाइल टैक्नोलॉजी हथिया ली और
पूंजी प्राप्त करना शुरू किया अमेरिका व पश्चिम के पूंजीवादी राष्ट्र समूहों से।
इधर अमेरिका पहले 'सोवियत संघ' फिर, 'मध्यपूर्व' और फिर 'इस्लामिक आतंकवाद' में उलझा रहा और उधर अपने 'कोकून' में चीनी पिशाच विकसित होता रहा।
तंग श्याओ फंग ने चीन को समृद्ध बनाने की नींव रखी लेकिन जैसा कि उपभोक्तावाद की नियति है चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी भी एक कारपोरेट समूह बनकर विश्व के पश्चिमी व यहूदी कारपोरेटर्स समूह के बीच विश्व पर नियंत्रण के लिये खूनी दौड़ में शामिल हो गयी।
चीन और कुछ नहीं बल्कि कम्यूनिस्ट पार्टी के बिलेनियर, ट्रिलेनियर पूंजीपतियों का एक ऐसा गिरोह है जिसके पास फैक्ट्रियों के लिये अपार भूमि, 150 करोड़ निरीह बंधुआ मजदूर, विश्व की सबसे बड़ी सेना और भयानक तकनीक है।
कभी अगर किसिंजर की डायरी खुली तो वर्तमान चीन के लिए ये शब्द जरूर लिखे मिलेंगे,
"ओह गॉड, ये मैंने क्या कर डाला।"
लेकिन फिर भी ईश्वर ने मानो किसिंजर की सुन ली हो, एक और पहलवान ने इस खेल में घुसना शुरू किया।
9/11 से पहले भारत ग्रेट गेम में नहीं था लेकिन स्व. नरसिम्हाराव के सुधारों, स्व.अटलजी के परमाणु विस्फोट व कारगिल के सैन्य प्रदर्शन, ताजिकिस्तान में एयर बेस व नॉर्दर्न एलायंस के माध्यम से अफगानिस्तान में उसके अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप और
उनके द्वारा चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' के जवाब में 'नेकलेस ऑफ डायमंड्स' की स्थापना ने अमेरिकी थिंक टैंक का ध्यान अपनी ओर खींचा और उन्होंने इस खेल में भारत द्वारा घुसेड़ी टांग को स्वीकार कर लिया।
दुर्भाग्य से नौ वर्षों के मनमोहन के ने भारत को अंदर से खोखला कर दिया लेकिन हिंदुओं के इस राष्ट्र के सौभाग्य से उन्हें नरेंद्र दामोदरदास मोदी के रूप में एक अद्भुत राजनेता मिला जिसने एक वर्ष में ही सारे वैश्विक समीकरण उलट पुलटकर रख दिये।
2019 में वृद्ध हेनरी किसिंजर ने मोदीजी से मुलाकात की। किसिंजर जो कि मनोवैज्ञानिक और व्यक्तियों को पढ़ने में माहिर रहे, अपनी भूल का परिमार्जन किया।
भारत अब अपनी एक टांग के साथ नहीं बल्कि हाथ, पैर और सिर के साथ समूचे रूप में एक प्रतियोगी स्वीकार किया जा चुका था और
यही अमेरिका को चाहिए था क्योंकि एशिया में चीन को चुनौती देने की सामर्थ्य वर्तमान में और किसी की नहीं।
तकनीक पश्चिम की, बाहुबल भारत की सेनाओं का।
ग्रेट गेम के खिलाड़ी दुबारा निश्चित किये गये।
#वर्तमान_खिलाड़ी:- अमेरिका, रूस, चीन और भारत
खेल का मैदान:- पीओके, बलूचिस्तान और हिंद महासागर
ट्रॉफी:- मध्य एशिया व हिंद महासागर पर नियंत्रण
समीकरण- वर्तमान में प्रमुख खिलाड़ियों के समीकरण बहुत उलझे हुये हैं।
ईरान यों तो कोई विशेष शक्ति नहीं लेकिन उसकी भोगौलिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है और चूंकि पीओके से ही 'सीपैक' के माध्यम से व्यापार व सैन्य सप्लाई सुरक्षित हो सकती है अतः पीओके में शामिल गिलगित व बाल्टिस्तान के रूप में सीपैक की पूंछ और
बलूचिस्तान के रूप में इसका मुँह इस ग्रेट गेम के मैदान बन गए हैं।
यही कारण है कि अमेरिका ने सऊदी गट के अरब देशों से इजरायल से राजनयिक संबंध स्थापित करवाये हैं,
क्या चीन के पास कोई रहस्यमय हथियार आ गया है?
क्या यह कोई जैविक हथियार है जैसा कि शी जिन पिंग ने धमकी देते
हुए कहा था कि यह तो कोरोना की सिर्फ पहली लहर है।
WHO से चीन की साठगांठ के स्पष्ट हो जाने से यह तो अब पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना का निर्माण व प्रसार पूरे उद्देश्यपूर्वक वुहान की लैबोरेटरी से हुआ है ताकि विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को पूरी तरह चीनी कारपोरेट
अपने कब्जे में ले सके लेकिन भारत के संदर्भ में वह आकलन में चूक कर बैठा और यहाँ वह स्वयं ही मोदी के बिछाए जाल में फंस गया।
लद्दाख प्रकरण में चीन को सेर का सवासेर जवाब देकर एक ओर तो उसके सैनिकों की कॉम्बेट पॉवर की कलई पूरे विश्व के सामने खोल दी
वहीं दूसरी ओर भारतीय अर्थव्यवस्था के शरीर पर चिपकी चीनी कंपनी रूपी जोंकों को इस प्रकरण के बहाने से नोंच फैंका।
अब शी जिन पिंग एक ऐसे पहलवान के रूप में दिख रहे हैं जिसकी गर्दन मोदी की जांघों में फंसी है। जैसे ही वह कुछ फड़फड़ाते हैं मोदी जकड़ को और तंग कर देते हैं।
भविष्य की संभावना:- भारत की मिलिट्री डिप्लॉयमेंट जिस जगह है वहाँ से पीओके पर आसानी से अभियान किया जा सकता है बशर्ते चीन पीछे हट जाये। लेकिन अगर चीन एक सीमित युद्ध छेड़ता है तो पाकिस्तान इसका फायदा उठाना चाहेगा और ऐसी स्थिति में अमेरिका को सक्रिय हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।
युद्धों में चीन के इतिहास को देखें तो मुझे यहां चीन की ओर से तीन सम्भावनाएं या आशंकाएं दिखती हैं।
1- चीनी मौसम और हवाओं का युद्ध रणनीति में विशेष ध्यान रखते हैं अतः वे अक्टूबर-नवंबर में युद्ध शुरू कर सकते हैं क्योंकि लद्दाख में तूफानी साइबेरियाई हवायें भारत की ओर होंगी।
2-चीन द्वारा रासायनिक हथियारों का प्रयोग। जैव हथियार वायरस हो सकते हैं बैक्टेरिया नहीं क्योंकि इतनी ठंड में जीवाणु मर जाते हैं।
3- इस बीच अगर विश्व के राष्ट्र चीन का आर्थिक बहिष्कार भी अगर कर दें तो खाद्यान्न की समस्या और ठप्प पड़े कारखाने ही चीन में अराजकता उत्पन्न कर
सकने में सक्षम है जिसका असर हम देख भी रहे हैं क्योंकि शी ने हिटलर के आखिरी दिनों की तरह 'प्लेट में खाद्यान्न छोड़ने' के विरुद्ध नियम बनाया है।
संभावित_परिणाम:- बहरहाल अगर यह युद्ध तृतीय विश्वयुद्ध की ओर नहीं बढ़ा तो इतना तय है कि परिणाम में चीन की सीमा में परवर्तन हो न हो एशिया का नक्शा दुबारा खींचा जाएगा और उसमें भारत के पश्चिम में एक देश का नाम मिट चुका होगा।
नाम बताने की जरूरत है क्या?

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साभार

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