सोशल मीडया पर ये शब्द बहुत बार सुनने को मिल रहा है और लोग इसको तरह तरह के तथ्यों के साथ पेश कर रहे है... मीडिया चूंकि व्हाट्सएप चैट पढ़ने में व्यस्त है तो सच्चाई कई रूपों में सामने आ रही है...
मुझे जितना कुछ समझ आया है वो में बताने का प्रयास कर रहा हूँ
दरअसल केंद्र सरकार द्वारा कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 ये तीन विधेयक पारित किए गए है..
केंद्र सरकार के अनुसार ये विधेयक किसानों को अपनी फसल कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) या यूं कहें कृषि मंडी से बाहर बेचने की सुगमता के लिए है... लेकिन इन विधेयकों से किसानों को ये आशंका है कि इससे बड़े व्यापारी उन पर हावी हो जाएंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म कर दिया जाएगा
हालांकि सरकार ने साफ करने का प्रयास किया कि MSP को खत्म नही किया जाएगा लेकिन इन विधेयकों में MSP का उल्लेख न होने से किसान आशंकित है...
किसानो की दूसरी आशंका ये है कि इससे मंडी या APMC को खत्म कर दिया जाएगा...
गौरतलब है कि बिहार में APMC को 2006 में खत्म कर दिया गया था
जिससे किसानों को भारी क्षति हुई थी... पंजाब व हरियाणा में किसानों के लिए APMC के आढ़तिये विश्वनीय है इसलिए उनको ये बात आशंकित कर रही है...
एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु ये है कि कोई विवाद होने पर इन विधेयकों के अनुसार शिकायत SDM के पास ही कि जा सकती है दीवानी अदालतों में नही...
किसान इस बात को लेकर आशंकित है कि उनका कोर्ट जाने का विकल्प समाप्त कर देने से उनकी शिकायतों को पक्षपात पूर्ण तरीके से निस्तारित किया जाएगा...
इन 3-4 आशंकाओं के अलावा ये तीनो विधेयक मुझे तो दोष रहित और उपयोगी ही जान पड़ते है...
सरकार को चाहिए कि किसानों की इन आशंकाओं को मिटाने सम्बन्धी प्रावधान करे जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न ना हो और देश के अन्नदाताओं को आंदोलित होने की जरूरत ना पड़े...
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पिछले कुछ समय से लगातार व्यस्तता के चलते पर्याप्त समय नही निकाल पा रहा हूँ... पेशेवर जीवन के साथ साथ व्यक्तिगत जीवन मे भी लगातर चल रही उठापटक की वजह से संतुलित होकर कुछ सोच पाना और कुछ कर पाना बहुत मुश्किल लगने लगा है...
लेकिन चूंकि अब सवाल अस्तित्व का है...
तो अब चुप बैठना कायरता होगी... हालांकि मानसिक उठापटक के इस दौर में भी में भी मैं चुप तो नही बैठा....
जंहा भी मौका मिला, जैसा भी मौका मिला बैंकर्स को संगठित करने का, उनका स्वर समवेत बनाने का प्रयास किया...
मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मेरे आस पास बैठ कर काम करने वाले लोग इस दिवास्वप्न में है कि निजीकरण हमे तो चिमटी से भी नही छू सकता, तो हम क्यों परेशान हो...?
और मुझे उनके ये विचार सुन कर आश्चर्य होता है, की हम इतने स्वार्थी क्यों हो गए?
आजकल हमारे देश का एक धड़ा बहुत खुश है, इतना ज्यादा कि खुशी छुपाए नही छुप रही, उनकी खुशी एकदम फुदक फुदक कर बाहर जंहा देखो ज्ञान के रूप में गिर रही है...
उनकी इस खुशी का कारण है "अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा"
"देखो तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है"
"देखो बिना खून बहाए पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया"
"देखो तालिबान ने दुनिया की सारी शक्तियों के कब्रगाह बना दिये"
"तालिबान तो इस सरकार से कई गुना अच्छा है"
अरे अक्ल के दुश्मनों, या तो तुम इतने मूर्ख हो कि तालिबान के बारे में कुछ जानते नही और या फिर तुम इतने दुष्ट हो कि तुम्हे आतंकवाद प्रिय लग रहा है...
आपको तालिबान सिर्फ इसलिए अच्छा लगता है कि इसकी विचारधारा इस सरकार की विचारधारा की विरोधी विचारधारा है तो आप महामूर्ख हो...
हर मनुष्य के साथ ऐसा होता है कि जब वो शवयात्रा को देखता है तो कुछ क्षणों के लिए संसार से अरुचि या विरक्ति हो जाती है... जीवन की वास्तविकता का हमे अंदाजा उन कुछ क्षणों के लिए लग जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है... लेकिन कुछ ही समय मे हम सब भूलकर सामान्य हो जाते है..
रोज अपने आस पास, सोशल मीडिया पर और समाचारों में इतने लोगो को मरते हुए देख कर मेरे साथ वो श्मशान वैराग्य वाली स्थिति स्थायी जैसी हो गई है... जीवन अब असार सा लगने लगा है... क्या फायदा किसी के साथ लगाव रखने का जब वो आपको किसी भी क्षण छोड़कर जा सकता है...?
"मैं क्या कर रहा हूँ"
"क्यों कर रहा हूँ"
जैसे सवाल बार बार मन मे आते है... जीवन मे कितनी ही सफलता अर्जित करे, मृत्यु एक वास्तविकता है, एक अटल सत्य है...
इसके सामने मेने बहुत गुरुर से भरे लोगो को भी गिड़गिड़ाते हुए देखा है...
भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहटों के बीच भारत ने चीन के कई app प्रतिबंधित कर दिए... लेकिन चीन से आया हुआ एक ऐसा उत्पाद है जो भारत मे कोई भी प्रतिबंधित नही कर सकता वो है
"चाय"
चाय के शौकीन लोगो के लिए चाय शब्द ही ताजगी से भरने के लिए पर्याप्त है... मसलन ब्रांच में काम करते समय चाय वाले को कप में अपने लिए चाय भरते हुए देखने के वो क्षण इतना आनंद देते है जितना अपनी दुल्हन का पहली बार घूंघट उठाने वाले क्षण भी नही देते होंगे 🤐
चाय वाले को अपने लिए चाय भरते हुए देखना चाय प्रेमियों के लिए दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य होता है...
लेकिन सर्दियों में सुबह अपने लिए खुद चाय बनाना उसी अनुपात में पीड़ादायी भी होता है.. मैं आपको समझाता हूँ कैसे...
किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
एक टीम बनने के बाद उस टीम को "बनाये रखना" बहुत ज्यादा चुनोतिपूर्ण होता है
आप जिसके खिलाफ संघर्ष कर रहे है उसके विरुद्ध कार्ययोजना बनाने के साथ साथ ही आपकी अपनी टीम में समन्वय बिठाने की भी जिम्मेदारी होती है...
टीम भी कई तरीके से बनाई जा सकती है...
एक तो जैसेकि झुंड... उसमे किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत विचार नही होता... सब सदैव एकमत रहते है
एक होती है भीड़... जिसमे कोई भी जो मर्जी कर रहा है, अनुशासन हीनता और हुड़दंग भीड़ की निशानी है....
लेकिन आंदोलन को सफलता न तो झुंड के साथ मिल सकती है और न ही भीड़ के साथ...