आप को क्या लगता है सलीबी जंगे ख़त्म हो गई, अगर हां तो ये आपकी गलत फ़हमी है सलीबी जंगे कभी ख़त्म नही हुई थीं।
बल्की सलीबियो ने अपनी जंग का तरीक़ा बदल लिया है ,जब सलीबियों को लगा की वो आपकी मुत्तहिद ताकत यानी की निज़ामे ख़िलाफ़त को नही हिला सकते। 1/n #ErtugrulGhazi
तो उन्होने एक मायाजाल रचा जिसे नाम दिया डेमोक्रेसी और तमाम दुनियां को उसके रंगीन सपने दिखाए मज़दूर और गरीब को एहसास दिलाया के तुम गुलाम हो। तुम्हे इस मोनार्की निज़ाम को उखाड़ना होगा औरतों को एहसास दिलाया की तुम क़ैद में हो तुम्हे आज़ादी के लिये बग़वत करना होगा, और तुम अधनंगी
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होकर ही आजा़दी को पा सकती हो।
नीम सेक्युलर और लिबरल मुसलमानों को बताया की धर्म अफीम की पुड़िया है ये तुम्हे पीछे धकेल रहा है इसकी ज़ंजीरो को तोड़ना होगा।
दुनिया इसे आधुनिकता का आग़ाज़ समझ रही थी लेकिन ये असल मे कमज़ोर होती नसरानियत और सलीबी जंगो का बदला हुआ रूप था।
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जब वो सलीबी इस प्रोपागेंडे मे कामयाब हो गये तो दर दर की ठोकरें खाते फिर रहे बज़ाहिर अपने यहूदी भाईयो को अरबो की छाती पर लाकर बैठा दिया और तब भी मुसलमान नही समझ पाया की ये सलीबी जंगे ही है और आज भी मुसलमान नही समझ रहा है बस आपस मे लड़कर खुद मिट रहा है।
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पुराने दौर की सलीबी जंगो मे ईसाई और मुसलमानो के बीच ज़ोर आज़माईश होती थी लेकिन अब ख़ेमे बदल गये है। इस नये ज़माने की सलीबी जंगो मे फ़रीकेन तो दो ही हैं पहला वो जो दशको से मार खा रहा है ईराक़ अफ़गानिस्तान सीरिया फिलिस्तीन इसकी मिसाल हैं और दुसरा गुट वो है जो मार रहा है और
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हैरत की बात तो ये की इस गुट ने खुद को मज़लूम साबित कर रखा है और सारी दुनिया अंधो की तरह इनकी ताईद कर रही है।
ये इस गुट मे पहला तबका ईसाई दुसरा यहूदी और तीसरा नया तबका राफ़जी है आप पिछले दशको का रिकार्ड उठा कर देख लीजिये जहां जहां मुसलमानो का नरसंहार हुआ है वहां ईसाई यहूदी और
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राफ़िजी का ही रौल रहा है और अगर आपको यकीन नही है की ये सलीबी जंगे नही है तो एक बार आप पता कर लीजिये की जब अमेरीकी और रूसी फ़ौजें जंग पर निकलती है तो चर्च के पादरी के सामने हाज़िरी क्यों दी जाती है।
कल आर्मेनिया के एक ऑफिशियल अकाऊंट से सलीबी निशान लहराए गए जो कि इस और इशारा
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कर रहा है अर्मेनिया और अज़रबेजान की बीच लड़ाई असल में सलीबी जंगो का ही हिस्सा है, न्यूज़ीलैंड के क्राइस्ट चर्च में हुए सलीबी हमले में इस्तेमाल हुई गन पर लिखा हुआ था Viena1683 ये सलीबियों और तुर्क फौजों के बीच एक अहम जंग थी और हैरान कुन बात ये है की सलीबी आज तक इस बात को
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नहीं भूले जिसकी बानगी न्यूज़ीलैंड में आंतकी हमले के रूप में देखने को मिली थी और एक दो साल पहले इंग्लैंड में भी सलीबी दौर को याद कर मनाएं गए जश्न में देखने को मिली थीं। 9/9 #ErtugrulGhazi #CopyPaste
महान शासक ओरंगजेब द्वारा किया गया एक ऐसा इन्साफ , जिसे देश की जनता से छुपाया गया l
औरंगज़ेब काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद (धनेडा की मस्जिद) यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से 1/n
(चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो) मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक मिटाया नहीं जा सकेगा…।औरंगजेब आलमगीर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था,
उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, और उसके बाप से कहा के
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तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे 7 दिन में भेज देना…. पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही, उनके पास कोई रास्ता नहीं था और पंडित से बेटी ने कहा के 1 महीने का वक़्त ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा…।
पंडित ने सेनापति से जाकर कहा कि, “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं के
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अबु क़ासिम अल ज़हरावी को फादर ऑफ़ सर्जरी कहा जाता है
वो 936ईस्वी में कार्डोवा के पास शहर ज़हरा(स्पेन ) में पैदा हुए और 1013ईस्वी में वफात पाई
ज़हरावी उमवी खलीफा अल हकम सानी के दरबारी तबीब थे
ज़हरावी से पहले सिर्फ के सर्जन सुश्रुत हुए हैं 1/n
लेकिन ज़हरावी का असर मेडिकल साइंस पर ज़्यादा है.
ज़हरावी की मशहूर ए ज़माना किताब (التصریف لمن عجز عن التالیف ) अत तसरीफ लिमन अजिज़ अन तालीफ़ है जिसकी 30 जिल्दें हैं. इसकी हर जिल्द का टॉपिक मेडिकलऔर फार्मास्यूटिकल्स की अलग ब्रांच से ताल्लुक़ रखती है जिसमें मरज़ के लक्षण और
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दवाई का ज़िक्र है. इसमें तक़रीबन 300 से ज़्यादा बीमारीयों का ज़िक्र और उनका इलाज मौजूद है. इसलिए ज़हरावी को फार्मासिस्ट सर्जन भी कहा जाता.
ज़हरावी ने अपनी किताब अल तसरीफ़ की सब एहम जिल्द 30 है जिसमें पहली बार सर्जरी के बारे में बताया गया. आंख, कान, नाक, गला समेत 200 से
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मुल्ला अहमद जीवन हिन्दुस्तान के महान मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर के उस्ताद थे, औरंगजेब अपने उस्ताद का बहुत एहतराम करते थे, और उस्ताद भी अपने शागिर्द पर फख्र करते थे, 1/n
जब औरंगजेब हिन्दुस्तान के बादशाह tjबने तो उन्होंने अपने गुलाम के ज़रिए पैगाम भेजा कि वो किसी दिन देहली तशरीफ लायें और खिदमत का मौका दें, इत्तेफाक से वो रमज़ान का महीना था और मदरसे के तालिब इल्मों की छुट्टियाँ थी, चुनान्चे उन्होंने देहली का रूख किया,
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उस्ताद और शागिर्द की मुलाकात अस्र की नमाज़ के बाद देहली की जामा मस्जिद में हुई, उस्ताद को अपने साथ लेकर औरंगज़ेब शाही किले की तरफ चल पड़े, रमजान का सारा महीना औरंगजेब और उस्ताद ने इकट्ठा गुज़ारा, ईद की नमाज़ इकट्ठा अदा करने के बाद मुल्ला जीवन ने वापसी का इरादा ज़ाहिर किया,
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