Those who follow and then unfollow after getting follow back
Don't follow me,
If you are not committed don't waste your and my time,
Oct 2, 2020 • 16 tweets • 5 min read
महान शासक ओरंगजेब द्वारा किया गया एक ऐसा इन्साफ , जिसे देश की जनता से छुपाया गया l
औरंगज़ेब काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद (धनेडा की मस्जिद) यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से 1/n
(चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो) मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक मिटाया नहीं जा सकेगा…।औरंगजेब आलमगीर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था,
उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, और उसके बाप से कहा के
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Oct 2, 2020 • 10 tweets • 4 min read
आप को क्या लगता है सलीबी जंगे ख़त्म हो गई, अगर हां तो ये आपकी गलत फ़हमी है सलीबी जंगे कभी ख़त्म नही हुई थीं।
बल्की सलीबियो ने अपनी जंग का तरीक़ा बदल लिया है ,जब सलीबियों को लगा की वो आपकी मुत्तहिद ताकत यानी की निज़ामे ख़िलाफ़त को नही हिला सकते। 1/n #ErtugrulGhazi
तो उन्होने एक मायाजाल रचा जिसे नाम दिया डेमोक्रेसी और तमाम दुनियां को उसके रंगीन सपने दिखाए मज़दूर और गरीब को एहसास दिलाया के तुम गुलाम हो। तुम्हे इस मोनार्की निज़ाम को उखाड़ना होगा औरतों को एहसास दिलाया की तुम क़ैद में हो तुम्हे आज़ादी के लिये बग़वत करना होगा, और तुम अधनंगी
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Oct 2, 2020 • 6 tweets • 2 min read
फादर ऑफ सर्जरी
अबुल क़ासिम अल ज़हरावी
अबु क़ासिम अल ज़हरावी को फादर ऑफ़ सर्जरी कहा जाता है
वो 936ईस्वी में कार्डोवा के पास शहर ज़हरा(स्पेन ) में पैदा हुए और 1013ईस्वी में वफात पाई
ज़हरावी उमवी खलीफा अल हकम सानी के दरबारी तबीब थे
ज़हरावी से पहले सिर्फ के सर्जन सुश्रुत हुए हैं 1/n
लेकिन ज़हरावी का असर मेडिकल साइंस पर ज़्यादा है.
ज़हरावी की मशहूर ए ज़माना किताब (التصریف لمن عجز عن التالیف ) अत तसरीफ लिमन अजिज़ अन तालीफ़ है जिसकी 30 जिल्दें हैं. इसकी हर जिल्द का टॉपिक मेडिकलऔर फार्मास्यूटिकल्स की अलग ब्रांच से ताल्लुक़ रखती है जिसमें मरज़ के लक्षण और
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मुल्ला अहमद जीवन हिन्दुस्तान के महान मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर के उस्ताद थे, औरंगजेब अपने उस्ताद का बहुत एहतराम करते थे, और उस्ताद भी अपने शागिर्द पर फख्र करते थे, 1/n
जब औरंगजेब हिन्दुस्तान के बादशाह tjबने तो उन्होंने अपने गुलाम के ज़रिए पैगाम भेजा कि वो किसी दिन देहली तशरीफ लायें और खिदमत का मौका दें, इत्तेफाक से वो रमज़ान का महीना था और मदरसे के तालिब इल्मों की छुट्टियाँ थी, चुनान्चे उन्होंने देहली का रूख किया,
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