भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए 2 और हत्याएं की गईं थीं...!
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1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेसी वर्चस्व के सफाए के बाद प्रचण्ड बहुमत से बनी जनता पार्टी की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की सन्देहास्पद मृत्यु की जांच के लिये रामनारायण कमेटी का गठन किया था।
इस कमेटी ने शास्त्री जी की मृत्यु से सम्बन्धित 2 प्रत्यक्षदर्शी गवाहों को गवाही देने के लिए बुलाया था।
पहले गवाह थे, उस समय ताशकंद में शास्त्री जी के साथ रहे उनके निजी चिकित्सक आरएन चुघ! जिन्हें बहुत देर बाद शास्त्री जी के कमरे में बुलाया गया था और जिनके सामने शास्त्री जी ने 'राम' नाम जपते हुए अपने प्राण त्यागे थे।
दूसरे गवाह थे, उनके निजी बावर्ची रामनाथ, जो उस पूरे दौरे के दौरान शास्त्री जी के लिये भोजन बनाते थे लेकिन शास्त्री जी की मृत्यु वाले दिन रूस में भारत के राजदूत टीएन कौल ने उनके बजाय अपने खास बावर्ची जान मोहम्मद से शास्त्री जी का भोजन बनवाया था।
यहां यह उल्लेख बहुत जरूरी है कि ये टीएन कौल कश्मीरी पंडित था और नेहरू परिवार से उसकी खानदानी निकटता इतनी प्रगाढ़ थी कि 1959 में लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रचण्ड विरोध के बावजूद.... नेहरू ने जब इंदिरा गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनवाया था
तब इंदिरा गांधी का सलाहकार इसी टीएन कौल को ही बनाया था।
यह है उस सनसनीखेज रहस्यमय पहेली की संक्षिप्त पृष्ठभूमि जो आज तक नहीं सुलझी है-
पहेली यह है कि जनता सरकार द्वारा गठित कमेटी ने जब गवाही के लिए डॉक्टर आरएन चुघ को बुलाया, तो वे कमेटी के सामने गवाही देने के लिए
अपनी कार से जब दिल्ली आ रहे थे तो रास्ते में एक ट्रक ने उनकी कार को इतनी बुरी तरह रौंद दिया कि कार में सवार डॉक्टर चुघ उनकी पत्नी पुत्री समेत सभी की मौत हो गयी थी।
दूसरे गवाह रामनाथ जब दिल्ली आए और जांच कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे तो एक तेज रफ्तार कार ने उनको सड़क पर बुरी तरह रौंद दिया था।
संयोग से रामनाथ की तत्काल मौत नहीं हुई थी लेकिन उनकी दोनों टांगे बेकार हो गईं थीं तथा सिर पर लगी गम्भीर चोटों के कारण
उनकी स्मृति पूरी तरह खत्म हो गयी थी। उस दुर्घटना के कारण लगी गम्भीर चोटों के कारण कुछ समय पश्चात उनकी भी मौत हो गयी थी।
उल्लेखनीय है कि स्व. शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने उस समय बताया था कि कमेटी के सामने गवाही देने जाने से पहले उस दिन रामनाथ उनसे मिलने आए थे
और यह कहकर गए थे कि "बहुत दिन का बोझ था अम्मा आज सब बता देंगे"।
शास्त्री जी की मृत्यु की जांच कर रही कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे दोनों प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की ऐसी मौत क्या केवल संयोग हो सकती है...❓❓
अतः उपरोक्त घटनाक्रम आज 42 साल बाद भी एक पहेली की तरह यह सवाल पूछ रहा है कि क्या शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थीं.❓
पता नहीं यह पहेली कब सुलझेगी, सुलझेगी भी या नहीं.❓
लेकिन हर वर्ष स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर यह पहेली आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक झकझोरती रहेगी।
मात्र डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल में "जय जवान जय किसान" के अपने अमर नारे के साथ देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि वाले
स्व. शास्त्री जी कितनी दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति थे।
यह इसी से समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों, दबावों, तनावों को ताक पर रखकर देशहित में उनके द्वारा लिए गये एक साहसिक निर्णय ने ही 1965 के भारत-पाक युद्ध का रुख पूरी तरह से भारत के पक्ष में कर दिया था।
ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति वाले जननायक के लिए देश में दशकों तक एक सुनियोजित अफवाह फैलाई गई कि ताशकंद में समझौता करने का दबाव नहीं सह सकने के कारण शास्त्री जी को हार्टअटैक पड़ गया था जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी....❗️❗️❗️
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पहली बार मैंने देखा कि कोई शंकराचार्य अपने चांदी के सिंहासन को छोड़कर महीनों तक आदिवासी क्षेत्र में पैदल भ्रमण कर रहा है धर्म ईसाई मिशनरियों के कुचक्र को तोड़ रहा है आदिवासी बंधुओं को उनके मूल धर्म में वापस ला रहा है
गुजरात के आदिवासी जिले डांग में जिस पर ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संगठनों की बुरी नजर थी जहां लालच देकर बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन का काम हो रहा था वहां अब बड़े पैमाने पर ईसाइयों को मूल धर्म में वापस लाया जा रहा है हिंदू संस्कृति का प्रचार किया जा रहा है
इस इलाके में द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महीनों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं
शंकराचार्य भोजन के लिए ऐसे ही चलते चलते किसी भी आदिवासी के घर में जाकर खाना मांग कर खा लेते हैं वहां शबरी पीठ को और बड़ा बनाया जा रहा है और
आज जो भारत में रेलवे है.., उसको भारत में कौन लाया ?
आपका उत्तर ब्रिटिश होगा ।
कैसा रहेगा अगर मैं कहूं कि ब्रिटिश सिर्फ विक्रेता थे, यह वास्तव में एक भारतीय का स्वप्न था ।
भारतीय गौरव को छिपाने के लिए हमारे देश की पूर्व सरकारों के समय इतिहास से बड़ी एवं गम्भीर छेड़छाड़ की गई।
रेलवे अंग्रेजों के कारण नहीं बल्कि नाना के कारण भारत आयी । भारत में रेलवे आरम्भ करने का श्रेय हर कोई अंग्रेजों को देता है लेकिन श्रीनाना जगन्नाथ शंकर सेठ मुर्कुटे के योगदान और मेहनत के बारे में कदाचित कम ही लोग जानते हैं ।
१५ सितंबर १८३० को दुनिया की पहली इंटरसिटी ट्रेन इंग्लैंड में लिवरपूल और मैनचेस्टर के बीच चली । यह समाचार हर जगह फैल गया । बम्बई ( आज की मुंबई ) में एक व्यक्ति को यह बेहद अनुचित लगा । उन्होंने सोचा कि उनके गांव में भी रेलवे चलनी चाहिए । अमेरिका में अभी रेल चल रही थी और
संथाल विद्रोह आप जानते होंगे पर आपने कभी पहाड़िया विद्रोह सुना है?
सबसे शुरुआती संघर्षों में एक जो 1772 से 1782 तक चला था
अंग्रेजो ने बंगाल विजय के बाद अपना बड़े स्तर पर विस्तार किया था जिसके कारण बिहार और झारखंड का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजो के अधीन आ गया
झारखंड के उत्तर पूर्वी इलाके पाकुड़, राजमहल में पहाड़िया बड़ी मात्रा में रहते थे, जो बाद में संथाल परगना बन गया, वहां अंग्रेजो ने मनसबदार नियुक्त किए
वैसे तो शुरू में पहाड़ियों से मनसबदारो का व्यवहार अच्छा था किंतु जल्द ही खटास पड़ गई पहाड़ियों के मुखिया की उन्होंने हत्या करवा दी
जिसके बाद पहाड़िया विद्रोह शुरू हो गया जिसकी शुरुआत रमना आहड़ी ने किया, ये कई चरणों में चला
उस समय ये इलाका वन संपदा से परिपूर्ण था, पग पग पर वृक्ष थे, जिससे रूबरू होने के कारण उन वनवासियों ने अंग्रेजो की नींव हिला दी
गणितज्ञ "लीलावती" का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है, उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थीं 🙏
शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ
महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती हैं! आज गणितज्ञों को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है!
आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती जी के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था :-
दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था।
वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’
महुआ मोइत्रा ओवरस्मार्ट बन रही थी। कहा कि मैं तो यूपी के मुख्यमंत्री को योगी आदित्यनाथ नहीं बोलूँगी, अजय बिष्ट बोलूँगी, क्योंकि यही उनका असली नाम है और मैं लोगों को उनके असली नाम से बुलाना पसंद करती हूँ।
लोगों ने कहा, अच्छा! तुम लोगों को उनके असली नाम से बुलाना पसंद करती हो? तो ठीक है, हम भी अब तुम्हें तुम्हारे असली नाम से बुलायेंगे और उन्होंने उसे बुलाना शुरू कर दिया 'महुआ लार्स ब्रोरसन'! अब महुआ को समझ आया कि उसने क्या किया है। पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
! सोशल मीडिया पर Mahua Lars Brorson ट्रेंड करने लगा। योगी आदित्यनाथ को अजय बिष्ट बुलाने वाली महिला इसे झेल नहीं पाई। खीझ में उसने हर उस व्यक्ति को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया जो उसे महुआ लार्स ब्रोरसन नाम से बुला रहा था।
एक बार कभी सोचना कि वह असद कितना बड़ा दरिंदा था
उमेश पाल तो गवाह थे लेकिन उनके साथ जो दो निर्दोष गनर मारे गए उनका क्या कसूर था ??
मारे गए एक सिपाही राघवेंद्र सिंह की कहानी आपको रुला देगी, राघवेंद्र सिंह के दादा भी पुलिस में थे और एनकाउंटर के दौरान शहीद हुए थे,
राघवेंद्र सिंह के पिताजी भी पुलिस में थे और उन्नाव में चुनावी ड्यूटी के दौरान बूथ कैप्चर करने वाले गुंडों से मुकाबला करते शहीद हुए थे 😨👿😡राघवेंद्र पढ़ने में बहुत होशियार थे लेकिन पिता के शहीद होने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधे पर आई
उन्हें अपनी दो बहनों की शादी करनी थी फिर उन्होंने मृतक आश्रित कोटे से पुलिस में नौकरी किया, अपनी एक बहन की शादी की एक बहन की शादी अभी होनी थी और खुद राघवेंद्र की शादी इस घटना के 15 दिन के बाद होनी थी राघवेंद्र सिंह की छुट्टी मंजूर कर ली गई थी