40 साल पहले इंदिरा गांधी उत्तरप्रदेश के एक गांव गईं थी। अनाथ हो चुके बच्चों को गले लगाया, प्रचार कर दिया कि अनाथ बच्चों को गोद लेगीं❗️
चुनाव जीतने के बाद कभी पलट कर नही आई देखने...🙏🤓😍
जो तथाकथित पत्रकार और समर्थक दादी की नाक को पूर्णतया दादी बनाने में लगे हैं उनके लिए।
भीख मांग कर गुजारा कर रही है पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 इंदिरा गांधी की गोद ली बेटी....इन 40 वर्षो में राजनीति के कई रंग चढ़ते-उतरते रहे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा गोद ली गई सोनकेशा व जयप्रकाश के जिंदगी से गरीबी, लाचारी व बेवसी का रंग कभी नहीं उतरा।
वह अनाथ के अनाथ ही रह गए। स्व. इंदिरा गांधी की बेटी सोनकेशा आज भी एक जर्जर खपरैल से बने घर में दयनीय व बेवसी की जिंदगी काट रही है। आज भी उसका परिवार दिहाड़ी मजदूर की जीवन यापन कर रहा है। करीब 40 वर्ष पूर्व 1980 में उप्र में जनता पार्टी का शासन था और मुख्यमंत्री थे बनारसी दास।
कुशीनगर जनपद देवरिया जिले का हिस्सा था। कप्तानगंज थाने के नारायणपुर गांव में अपने पोते जयप्रकाश (8) व पौत्री सोनकेशा (6) के साथ रह रही बुजुर्ग महिला बसकाली को बस ने कुचल दिया और उसकी मौत हो गई थी। नतीजतन दोनों बच्चे अनाथ हो गए।
कारण यह कि इनके पिता की मौत हो चुकी थी और मां इन्हें छोड़कर चली गई थी। बसकाली की मौत के बाद गांव के लोग मुआवजे की मांग को लेकर हाटा-कप्तानगंज मार्ग को जाम कर दिया। लाठीचार्ज के बाद गांव में पीएसी तैनात कर दी गई।
दूसरे दिन महिलाओं से रेप व ग्रामीणों से बर्बरता का आरोप पीएसी व पुलिस के जवानों पर लगने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया। नारायणपुर कांड के नाम मशहूर हुआ यह मामला पूरे देश में इतना बड़ा मुद्दा बन गया कि मुख्यमंत्री बनारसी दास की सरकार बर्खास्त हो गई।
नारायणपुर कांड के बाद 7 जुलाई 1980 को गांव आई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अनाथ हो चुके जयप्रकाश व सोनकेशा को गोद लेने की घोषणा करते हुए कहा था कि अब दोनों बच्चे उनके साथ दिल्ली में रहेंगे और इनकी पढ़ाई व भरण-पोषण का सारा खर्च वह स्वयं उठाएंगी।
इस घोषणा के बाद खूब तालियां बजी थीं, लोगों को लगने लगा थी कि दोनों अनाथ बच्चों का जीवन संवर जाएगा। लेकिन, हुआ इसके विपरीत। गांव से लौटने के बाद इंदिरा गांधी दिल्ली जाकर राजनीति में व्यस्त हो गई। स्थानीय कांग्रेसी नेता फोटो खिंचवाने के बाद इन बच्चों को भूल गए।
फिर गांव नहीं लौटीं इंदिरा गांधी : नतीजन दोनों बच्चे अनाथ के अनाथ ही रह गए। भीख मांगते बड़ी हुई पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी : जयप्रकाश और सोनकेशा की उनके बुआ-फूफा ने के यहां परवरिश होने लगी। एक दिन जयप्रकाश की मौत पोखर में डूबने से हो गई और सोनकेशा अकेली रह गई।
बहरहाल भीख मांगते-मांगते सोनकेशा बड़ी हुई तो फूफा ने उसका विवाह कर दिया। बाद में उसके चार बच्चे भी हो गए, लेकिन इंदिरा गांधी द्वारा उसे गोद लेने की बात उसे सालती रही।
करीब 46 वर्ष की हो चुकी इंदिरा गांधी की गोद ली हुई यह बेटी नारायणपुर गांव में ही जर्जर खपरैल के मकान में दयनीय हालत में रह रही है। पति मजदूरी कर लाता है तो रोटी मिल जाती है, वरना फांकाकशी के सहारे रात बीत जाती है।
बात करते रुंआसी हो जाती है सोनकेशा : उस घटना को याद करके सोनकेशा का गला रुंध जाता है। वह ऐसे बात करती है जैसे कल की घटना हो।
गांव वालों का भी कहना है कि तत्कालीन घटना के बाद आई स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने गांव के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं चलाने का वादा किया था, लेकिन जब वह अपनी गोद ली हुई बेटी को ही भूल गई तो उनसे और क्या उम्मीद की जाए।
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पहली बार मैंने देखा कि कोई शंकराचार्य अपने चांदी के सिंहासन को छोड़कर महीनों तक आदिवासी क्षेत्र में पैदल भ्रमण कर रहा है धर्म ईसाई मिशनरियों के कुचक्र को तोड़ रहा है आदिवासी बंधुओं को उनके मूल धर्म में वापस ला रहा है
गुजरात के आदिवासी जिले डांग में जिस पर ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संगठनों की बुरी नजर थी जहां लालच देकर बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन का काम हो रहा था वहां अब बड़े पैमाने पर ईसाइयों को मूल धर्म में वापस लाया जा रहा है हिंदू संस्कृति का प्रचार किया जा रहा है
इस इलाके में द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महीनों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं
शंकराचार्य भोजन के लिए ऐसे ही चलते चलते किसी भी आदिवासी के घर में जाकर खाना मांग कर खा लेते हैं वहां शबरी पीठ को और बड़ा बनाया जा रहा है और
आज जो भारत में रेलवे है.., उसको भारत में कौन लाया ?
आपका उत्तर ब्रिटिश होगा ।
कैसा रहेगा अगर मैं कहूं कि ब्रिटिश सिर्फ विक्रेता थे, यह वास्तव में एक भारतीय का स्वप्न था ।
भारतीय गौरव को छिपाने के लिए हमारे देश की पूर्व सरकारों के समय इतिहास से बड़ी एवं गम्भीर छेड़छाड़ की गई।
रेलवे अंग्रेजों के कारण नहीं बल्कि नाना के कारण भारत आयी । भारत में रेलवे आरम्भ करने का श्रेय हर कोई अंग्रेजों को देता है लेकिन श्रीनाना जगन्नाथ शंकर सेठ मुर्कुटे के योगदान और मेहनत के बारे में कदाचित कम ही लोग जानते हैं ।
१५ सितंबर १८३० को दुनिया की पहली इंटरसिटी ट्रेन इंग्लैंड में लिवरपूल और मैनचेस्टर के बीच चली । यह समाचार हर जगह फैल गया । बम्बई ( आज की मुंबई ) में एक व्यक्ति को यह बेहद अनुचित लगा । उन्होंने सोचा कि उनके गांव में भी रेलवे चलनी चाहिए । अमेरिका में अभी रेल चल रही थी और
संथाल विद्रोह आप जानते होंगे पर आपने कभी पहाड़िया विद्रोह सुना है?
सबसे शुरुआती संघर्षों में एक जो 1772 से 1782 तक चला था
अंग्रेजो ने बंगाल विजय के बाद अपना बड़े स्तर पर विस्तार किया था जिसके कारण बिहार और झारखंड का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजो के अधीन आ गया
झारखंड के उत्तर पूर्वी इलाके पाकुड़, राजमहल में पहाड़िया बड़ी मात्रा में रहते थे, जो बाद में संथाल परगना बन गया, वहां अंग्रेजो ने मनसबदार नियुक्त किए
वैसे तो शुरू में पहाड़ियों से मनसबदारो का व्यवहार अच्छा था किंतु जल्द ही खटास पड़ गई पहाड़ियों के मुखिया की उन्होंने हत्या करवा दी
जिसके बाद पहाड़िया विद्रोह शुरू हो गया जिसकी शुरुआत रमना आहड़ी ने किया, ये कई चरणों में चला
उस समय ये इलाका वन संपदा से परिपूर्ण था, पग पग पर वृक्ष थे, जिससे रूबरू होने के कारण उन वनवासियों ने अंग्रेजो की नींव हिला दी
गणितज्ञ "लीलावती" का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है, उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थीं 🙏
शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ
महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती हैं! आज गणितज्ञों को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है!
आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती जी के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था :-
दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था।
वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’
महुआ मोइत्रा ओवरस्मार्ट बन रही थी। कहा कि मैं तो यूपी के मुख्यमंत्री को योगी आदित्यनाथ नहीं बोलूँगी, अजय बिष्ट बोलूँगी, क्योंकि यही उनका असली नाम है और मैं लोगों को उनके असली नाम से बुलाना पसंद करती हूँ।
लोगों ने कहा, अच्छा! तुम लोगों को उनके असली नाम से बुलाना पसंद करती हो? तो ठीक है, हम भी अब तुम्हें तुम्हारे असली नाम से बुलायेंगे और उन्होंने उसे बुलाना शुरू कर दिया 'महुआ लार्स ब्रोरसन'! अब महुआ को समझ आया कि उसने क्या किया है। पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
! सोशल मीडिया पर Mahua Lars Brorson ट्रेंड करने लगा। योगी आदित्यनाथ को अजय बिष्ट बुलाने वाली महिला इसे झेल नहीं पाई। खीझ में उसने हर उस व्यक्ति को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया जो उसे महुआ लार्स ब्रोरसन नाम से बुला रहा था।
एक बार कभी सोचना कि वह असद कितना बड़ा दरिंदा था
उमेश पाल तो गवाह थे लेकिन उनके साथ जो दो निर्दोष गनर मारे गए उनका क्या कसूर था ??
मारे गए एक सिपाही राघवेंद्र सिंह की कहानी आपको रुला देगी, राघवेंद्र सिंह के दादा भी पुलिस में थे और एनकाउंटर के दौरान शहीद हुए थे,
राघवेंद्र सिंह के पिताजी भी पुलिस में थे और उन्नाव में चुनावी ड्यूटी के दौरान बूथ कैप्चर करने वाले गुंडों से मुकाबला करते शहीद हुए थे 😨👿😡राघवेंद्र पढ़ने में बहुत होशियार थे लेकिन पिता के शहीद होने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधे पर आई
उन्हें अपनी दो बहनों की शादी करनी थी फिर उन्होंने मृतक आश्रित कोटे से पुलिस में नौकरी किया, अपनी एक बहन की शादी की एक बहन की शादी अभी होनी थी और खुद राघवेंद्र की शादी इस घटना के 15 दिन के बाद होनी थी राघवेंद्र सिंह की छुट्टी मंजूर कर ली गई थी