@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac अगर चाहो तो पेट और तोंद पर गद्य में कुछ पंक्तियाँ लिख सकता हूँ
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac पेट, पेट होता है और तोंद, तोंद! एक पुल्लिंग है, दूसरा स्त्रीलिंग। तोंद स्त्रीलिंग होने के बावजूद ‘बेचारी’ नहीं कहलाती। यह स्त्री-सशक्तीकारण का प्राकृतिक विधान है।
तोंद मनुष्यों में ही पायी जाती है। पशुओं में इसका थोड़ा-बहुत परिचय मिलता है, विशेषतः अमीरों के घर पालतू गाय-भैसों
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac नीली छतरी वाले के सभी रिप्रेजेंटेटिव धर्मगुरू पेट और तोंद के बने रहने में कोई समस्या नहीं देखते। वे दोनों को ईश्वर के ही पक्ष में देखते हैं, क्योंकि, दोनों ही ईश्वर के बनाये हुए हैं और दोनों ही उसकी पूजा-इबादत करते हैं- पेट तोंद बनना चाहता है। तोंद सुरक्षा का कवच चाहती है।
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac ईश्वर दोनों का है। वह दोनों की मनोकामनाएं पूरी करता है। किसकी मजाल कि वह पेट और तोंद के अस्तित्व में बाधक बने!
पेट शरीर के साथ चिपटा रहता है, जबकि तोंद बाहर की ओर निकली रहती है। पेट यदि लगातार भरा रहे, तो वह तोंद का आकार लेने लगता है।...भरा पेट अक्सर आराम करता है या बैठे रहने का
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac काम करता है। कभी-कभी वह बैठे-बैठे कुछ काम कर लेता है, पर शारीरिक श्रम कदापि नहीं करता। चलता-फिरता नहीं, दौड़ता-भागता नहीं।..... धीरे-धीरे वह तोंद का मालिक बन जाता है।
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac तोंद समृद्धि की निशानी है। खानदानी खाते-पीते आदमी की पहचान है। एक आदमी बिस्कुट खाकर भी अपनी तोंद पर हाथ फेरकर अपने समृद्ध होने का परिचय दे सकता है। ‘लाफिंग बुद्धा’ तोंद दिखाते हुए हंसने की मुद्रा में रहता है। मानने वाले इसे शुभ मानते हैं। पेट इसे और भी शुभ मानता है, क्योंकि वह
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तोंद पर हाथ फेरने का जो मजा है, वह पेट नहीं उठा सकता। इसलिए पेट तोंद से ईर्ष्या करता है।..
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac तोंदों के विश्लेषण करने पर आप पायेंगे कि तोंद का होना समाज में उतना ही आवश्यक है जितना पृथ्वी पर पहाड़। पेट न हो, तो लोगों की ज़ुबानें सेठ कहने को तरस जाएं! सिनेमा वाले किसका मजाक उड़ायें? तोंद हिला-हिलाकर नाचने वाले कितना मनोरंजन करते हैं? यह किसी से छिपा है क्या?
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कुछ तोंदें अपने मालिकों पर ऐसी फबती हैं जैसे देवी-देवताओं के सिर पर मुकुट! मुकुट हटा नहीं कि देवी-देवता पहचान को तरसे! तोन्दियलों की पहचान उनकी तोंद से ही होती है। चित्रकार अमीर और ग़रीब को दर्शाने
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कुछ लोग तोंद को ऐसे चिपकाये-चिपकाये घूमते रहते हैं जैसे बन्दरिया मरे हुए बच्चे को चिपकाये रहती है।... कुछ तोंद पेट में ऐसे
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ख़ूबसूरत अमीर आदमी तोंद को पेट में चिपटाये रखने के लिए कमरे में ही पसीना बहाता रहता है। तीन-चार घंटे तक उसे महंगी मशीनों के साथ नियमित व्यायाम करना पड़ता हैं।
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac इनका काम अन्य तोंदधारकों का मनोरंजन करना होता है। पर मनोरंजन का मतलब यह नहीं कि वे मुफ़्त में नाचते-कूदते या रन बनाते हैं। वे पेटवालों की अच्छी ख़ासी कमाई छीनकर अपना जलवा दिखाते हैं। पैसों के लिए ये किसी सीमा तक जा सकते हैं।......आदमी से जानवर बनने में इन्हें देर नहीं लगती।
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पेट और तोंद की मिश्रित रुई के ढेर को जब व्यवस्था की तकली से काता जाता है, तो ‘हम’ और ‘वे’ नामक दो प्रकार के मोटे और महीन धागे निकलते हैं। देश की सवा अरब आबादी में से एक सौ पैंतीस करोड़ ‘हम’ हैं, तो एक करोड़ ‘वे’।
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac पेट किसी तरह भर लिया जाता है, पर तोंद की तो सेवा करनी पड़ती है। छोटे किसान, मजदूर, रिक्शेवाले, ठेलेवाले, चपरासी, भिखारी, भिश्ती, सफाईवाले, ठेलेवाले, खोमचेवाले, नाई, धोबी, राजमिस्त्री, सिक्यूरिटी गार्ड, घरों और होटलों में जूठे बर्तन धोने वाले, कितने ही लोग किसी तरह अपना पेट भरकर
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac भरने का जोखिम तोंद नहीं उठा सकती! सभी जानते हैं कि भरे पेट को आलस आता है। वह नींद का शिकार हो सकता है। चैन से सो सकता है।....तोंद को यह कतई गवारा नहीं कि पेट को नींद आये! चैन आये!
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac पेट के सामने अनगिनत दुश्वारियां मुंह बाये खड़ी रहती हैं। यों तो उसकी ज़िन्दगी कोई ज़िन्दगी नहीं, फिर भी ज़िन्दगी को पालने के लिए वह अपनी जान लड़ा देता है कि वह बेरोज़गार न रहे, कोई रोज़गार मिल जाए या नौकरी मिल जाए, लेकिन तोंद उसे रोज़गार देने के बजाए बेरोज़गारी भत्ता देता है।
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac रोज़गार पाने के लिए पेट क्रान्तिकारी होना चाहता है, लेकिन हो नहीं पाता। उसके घरवाले ही अड़ंगा डालते हैं।....जिस प्रकार ग़ुलामी का अपना मज़ा हैं, उसी प्रकार कायरता का अपना ही आनन्द है।
पेट तोंद को थोड़ी-सी हूल देता है, ताकि नौकरी मिले। रोज़गार के साधन जुटें।
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac जान रहती है। हालांकि पेट उस समय भी काम करने को तत्पर रहता है जब उसकी हालत काम करने लायक़ नहीं रहती। यह हालत भूख-प्यास के लगातार बने रहने, अथवा लम्बी बीमारी, अथवा बुढ़ापे के कारण एक दिन आती ही है। जब भी किसी कारण से पेट तोंद के काम आना बन्द कर देता है, तो उसे भूखा और बीमार रहना
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac पड़ता है। धीरे-धीरे वह इस असार संसार से विदा ले लेता है। पालतू पशुओं की भी यही दशा होती है। पेट आदमी का हो या पशु का-दोनों का एक ही हाल है।
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac कुछ पेट अजीब किस्म के होते हैं जो तोंद की बिल्कुल नहीं मानते। ये ‘नक्सली’ कहलाते हैं। तोंद नक्सली से हमेशा बचकर रहता है, भले ही उसे उनको हर महीने चन्दा देना पड़े। चन्दा वसूलने वाले पेटधारक देशद्रोही कहलाते हैं, लेकिन तोंद वाली सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। वह उनसे वार्ता
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac करती और करवाती है। वार्ता यूं भी विफल होने के लिए आयोजित होती है, पर वार्ता का होना अपने आप में लोकतंत्र की निशानी है। चाहे पेट हो या तोंद, दोनों का लोकतंत्र में गहरा विश्वास है।
पेट को कभी अपच नहीं होता, क्योंकि वह अधिकतर ख़ाली रहता हैं। अपच हमेशा तोंद को होता है क्योंकि
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac उसे बार-बार खाने, अधिक खाने या तर माल खाने की आदत होती है। अधिक खाना पचाने के लिए वह अनेक प्रकार के चूर्ण भी खाती रहती है, पर उससे कोई लाभ नहीं होता। वह किसी-न-किसी बीमारी का शिकार हो जाती है। वह वैद्य की शरण में जाती है। वैद्य तोंद से कहता है कि फलाहार करें, फलां आहार न
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac करें, पर वह नहीं मानती। तोंद को खुश करने के लिए उसका मालिक नये-नये स्वाद ढूंढ़ता रहता है। छप्पन प्रकार के व्यंजन चखने के बाद वह यह तय करता है कि कौन से व्यंजन से तोंद की सेवा की जाए- वह किससे खुश होगी!
तोंद को अक्सर यह कहते सुना जा सकता है कि वह अपना खाती है, किसी का छीनकर
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@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac तोंद को विवश होकर मीडिया को साधना पड़ता है ताकि उसे पेट के आगे शर्मिन्दा न होना पड़े।
पेट के सामने कुछ परेशानियां हैं, तो कई आसानियां भी हैं। वह शारीरिक रूप से फिट रहता है। स्लिम और स्मार्ट रहता है। कुछ भी खाये-पिये, सब हज़म हो जाता है। कब्ज़ भी नहीं सताता। उसे हाजत के लिए
@Ayaaniqbal17 @BramhRakshas @budhwardee @LucknowMsk @Amritpu48045181 @Parvesh65632017 @SadiqMo12884882 @anvi_rks @Fighter80468328 @moizac ‘कमोड’ की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। उसे हेल्थ-क्लब जाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। दिन भर थककर चूर हो जाने से उसे बेहोशी की सीमा तक नींद आती है। तनाव जैसी बीमारी उसके आस-पास नहीं फटकती। ‘ब्लड प्रेशर’ से भी उसका परिचय ही नहीं हो पाता। ‘हार्ट अटैक’ का तो वह मरते दम तक अहसास ही नही
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उधर तोंद के सामने परेशानियां-ही-परेशानियां हैं। वह हेल्थ-क्लब ज्वाइन करने के बावजूद ‘स्लिम’ नहीं हो पाता। मोटापा, ब्लडप्रेशर और तनाव, शुगर उसे ताज़िन्दगी घेरे रहते हैं। महर्षि वात्स्यायन के अनुसार, स्त्रियों
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तोंद से लाभ कम, हानि अधिक है। लाभ तो बस दो ही हैं- एक, यदि बैठकर चाय पीनी हो, तो तोंद पर चाय का प्याला रखा जा सकता है। दो, उस पर हाथ फेर कर पेट को चिढ़ाया जा सकता है। हानि की लिस्ट लम्बी है- तोंद को
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तोंद को जब योजना बनानी होती है, तो सबसे पहले वह पेट के लिए ही योजना बनाता है। अपने लिए तो उसे सोचने का वक्त ही नहीं मिलता। कितनी ही पंचवर्षीय योजनाएं उसने बनायीं, वर्ल्ड बैंक से कितना ही क़र्ज़
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ऐसे आँसू विरल होते हैं। पेट को इनका आचमन करना चाहिए।

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