#साईं_बाबा_की_सच्चाई

कृपया ध्यान दें :–

{प्रस्तुत लेख का मंन्तव्य साँई के प्रति आलोचना का नही बल्कि उनके प्रति स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने का है। लेख मेँ दिये गये प्रमाणोँ की पुष्टि व सत्यापन “साँई सत्चरित्र” से करेँ, जो लगभग प्रत्येक साईँ मन्दिरोँ
मेँ उपलब्ध है। यहाँ पौराणिक तर्कोँ के द्वारा भी सत्य का विश्लेषण किया गया है।}

हमने बहुत मेहनत कर साँई सत्चरित्र के पुरे 1 से 51 अध्याय पढ़ तथा समझ कर इस लेख को लिखा है, विनती है  कृपया पूरा लेख  जरुर पढ़े ! धन्यवाद !
आजकल आर्यावर्त  मेँ तथाकथित भगवानोँ का एक दौर चल पड़ा है। यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्याति- सफलता के पीछे भागने वालोँ से भरा हुआ है।
“यह विश्वगुरू आर्यावर्त का पतन ही है कि आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और कब्रोँ पर सिर पटकना ज्यादा पसन्द करते हैँ।”
आजकल सर्वत्र साँई बाबा की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुस्लिम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मन्दिरोँ मेँ साँई की मूर्ति सनातन काल के देवी देवताओँ के साथ सजी है। मुस्लिम
तान्त्रिकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बाबा को बना रखा है व उनकी सक्रियता सर्वत्र देखी जा सकती है।

कोई इसे  विष्णुजी  का ,कोई शिवजी  का तथा कोई दत्तात्रेयजी  का अवतार बताता है ।
परन्तु साँई बाबा कौन थे? उनका आचरण व व्यवहार कैसा था? इन सबके लिए हमेँ निर्भर होना पड़ता है “साँई सत्चरित्र” पर!

जी हाँ ,दोस्तोँ! कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीँ जो रामायण व महाभारत का नाम न जानता हो? ये दोनोँ महाग्रन्थ क्रमशः श्रीराम और कृष्ण के उज्ज्वल चरित्र को उत्कर्षित करते हैँ,
उसी प्रकार साईँ के जीवनचरित्र की एकमात्र प्रामाणिक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चरित्र”॥

इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के जिस पवित्र चरित्र का अनुदर्शन होता है,
क्या आप उसे जानते हैँ?

चाहे चीलम/तम्बाकू/बीडी  पीने की बात हो, चाहे स्त्रियोँ को अपशब्द कहने की?, चाहे बातबात पर क्रोध
करने की , चाहे माँसाहार की बात हो, या चाहे धर्मद्रोही, देशद्रोही व इस्लामी कट्टरपन की….

इन सबकी दौड़ मेँ शायद ही कोई साँई से आगे निकल पाये। यकीन नहीँ होता न?
तो आइये चलकर देखते हैँ…साईं के 95% से अधिक भक्तों ने “साँईँ सत्चरित्र” नही पढ़ी है, वे केवल देख देखी में इस बाबे के
पीछे हो लिए!
कोई बात नही हम आपको दिखाते है सत्य क्या है। 

निम्न  प्रति साँईँ सत्चरित्र अध्याय 1 की है ! इसे ध्यान से पढ़े :—
जब इतना अधिक सम्मान दिया गया है तो इसकी जाँच भी करनी आवश्यक  है !

इसी किताब में बताया गया है की बाबा के माता  पिता,जन्म स्थान किसी को ज्ञात नही । इस सम्बन्ध में बहुत छान बिन की गई । बाबा से व अन्य लोगो से पूछ ताछ की गई पर कोई सूत्र हाथ नही लगा ।  यथार्थ में हम लोग इस इस विषय में
सर्वथा अनभिज्ञ है । 16 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम दिखाई पड़े  (साँईँ सत्चरित्र अध्याय 4) ।
कोई भी निश्चयपूर्वक यह नही जनता की वे किस कुल में जन्मे और उनके उनके माता पिता कोन  थे !  (साँईँ सत्चरित्र अध्याय 38 )
जिस व्यक्ति के बारे में आप सर्वथा अनभिज्ञ है और वे किस कुल में जन्मे और
उनके उनके माता पिता कोन  थे – कुछ पता नही !
फिर उसका गौत्र कैसे लिख दिया आपने ??

पहले ही पन्ने पर झूठ  !!!……………. झूठ नं 1 

इससे स्पष्ट है की मस्जिद में रहने वाले एक अनाथ साईं को जबरदस्ती प्रमोट किया गया । न की केवल सनातनी देवी देवताओं के साथ इसका नाम लिखा गया अपितु श्री
गणेश, वेद माता सरस्वती तथा ब्रह्मा विष्णु महेश के तुल्य बना  दिया गया ।

जबरदस्ती महर्षि भारद्वाज के कुल में पैदा किया गया ।
अब बस आप देखते जाईये !!!
अब जरा सोचे जिसके माता पिता, कुल, प्रारंभिक शिक्षा आदि सभी पर प्रश्न चिन्ह लगा हो जो सर्वथा अनाथ हो, 16 वर्ष की आयु में इधर उधर धूमते पाया गया हो ! उसे भगवान कह देना कहाँ तक सही है ?? जबकी इसका जीवन पूर्णतया कर्मशून्य था ! इसी लेख में आप आगे देखेंगे !
एक और महाझूठ:— 
बाबा 16 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम दिखाई पड़े  (साँईँ सत्चरित्र अध्याय 4) ।
निम्न प्रति साँईँ सत्चरित्र अध्याय 4 की है !
उपरोक्त में यह भी लिखा है “वह  16 वर्ष की आयु में ब्रह्मज्ञानी था व किसी लोकिक पदार्थ की इच्छा न थी, और भी बहुत बड़ाई की गई है ! “- इसे भी आगे हल करेंगे

जब पहलेपहल बाबा  शिर्डी में आए थे तो उस समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी ! वे शिर्डी में 3 वर्ष तक रहने के पश्चात कुछ समय
के लिए अंतर्धान हो गये ।
कुछ समय उपरांत वे ओरंगाबाद (निजाम  स्टेट ) में प्रकट हुए और चाँद पाटिल के बारात साथ पुनः शिर्डी पधारे । उस समय उनकी आयु 20 की थी । (अध्याय  10 )

16 वर्ष आयु में दिखे, 3 वर्ष शिर्डी में रहे
16 +3 =19 वर्ष ।
19 वर्ष की आयु में फिर कहीं निकल गये ।
और जब
बारात के साथ आए तो आयु 20 वर्ष थी ।  मतलब पुरे 1 वर्ष (365-366 दिन) गायब रहे ।

“19 वर्ष की आयु में गायब रहे” -ये बात याद रखना भाइयों ! 

बारात के साथ किस प्रकार आये इसका वर्णन निम्न प्रकार से है :–
निम्न प्रति साँईँ सत्चरित्र अध्याय 5  की है ध्यान  से पढ़े :–
उपरोक्त वर्णन में 19 वर्ष के युवक को फ़क़ीर, मानव, व्यक्ति कहा गया है ! ……………………झूठ नं 2 
उपरोक्त से यह भी स्पष्ट है की बाबा 19 वर्ष की आयु में चिलम पिना  सिख गया और सारी  नाटक बाजी करना भी ॥ पहले खुद पि फिर चाँद पाटिल को भी पिलाई !

वे अपनी युवावस्था में चिलम के
अतिरिक्त कुछ संग्रह(इकठ्ठा)  न किया करते थे {अध्याय 48}
मस्जिद में पड़े बीड़ियाँ/तम्बाकू का सेवन किया करते थे – ऐसा तो कई जगह आया है इस पुस्तक में !

“वह  16 वर्ष की आयु में ब्रह्मज्ञानी था व किसी लोकिक पदार्थ की इच्छा न थी”……………………………… झूठ नं 3 

और 3 वर्ष  पश्चात
19 वर्ष आयु में) वह ज्ञानी बालक एकदम बिगड़ गया जैसा की आप  उपर  अध्याय 5 की प्रति में देख सकते है ! चिलम जलाने और जमीन से अंगारा निकलने आदि का जो वर्णन इसमें लिखा है इससे स्पष्ट है की बाबा इन 3 वर्षों में जम  कर नशा करना सिख गया ! और सड़कछाप जादूगरी करना भी !
परन्तु इन 3 वर्षों में ऐसा क्या हुआ जो बाबे की ये हालत हुई ? इन 3 वर्षों का वर्णन इस किताब में ही नही है !
वो 16 वर्ष में तेजस्वी आदि आदि था और 19 वर्ष की आयु में बीड़ियाँ फूंकना कैसे सिख गया ?

ये सारी बात निर्भर करती है उसके —–> 3 वर्षों पर (16 वर्ष से 19 वर्ष)
शिर्डी पहुँचने पर क्या हुआ आगे देखे {निम्न प्रति भी  साँईँ सत्चरित्र अध्याय 5 की ही है } :—
ये क्या बाबा पुनः युवक बन गये !!…………………….झूठ नं 5  

एक और बात :-
म्हालसापति और वहा उपस्थित लोग एक 19-20 वर्ष के बालक का अभिनन्दन* कर रहे है ?
इसका मतलब वो बाबा से प्रभावित है, तो फिर बाबा के 16 वर्ष से 19 वर्ष का वर्णन कहाँ है ??
इस किताब में तो नही है !!
बाबा ने उन 3
वर्षों में ऐसा क्या किया की सब प्रभावित हो गये ??

जो खुल्लम खुला बिडीया फूंकता है बड़ों के सामने । चाँद पाटिल निश्चित रूप से 30-35 वर्ष का तो रहा ही होगा!
एक 19-20 वर्षीय बालक उसे बीडी देता है ! ले पि !

*यहाँ अभिनन्दन किया गया है , परन्तु अभिनन्दन का कारन नही बताया गया!
इसी
प्रकार धीरे धीरे आगे भगवान बनाया गया है !

बस आगे देखते जाइये आप !!!!

निम्न प्रति भी  साँईँ सत्चरित्र अध्याय 5 की ही है  :—
ये क्या बाबा पुनः बड़े (पुरुष) हो गये…………………………….झूठ नं 6

ध्यान दे :-
उपरोक्त प्रति में लिखा है श्री साईंबाबा बगीचे के लिए पानी ढो रहे है और लोग अचम्भा कर रहे है !
(अभी बाबे की आयु २ ० वर्ष ही है! ऊपर प्रति में लिखा है जब प्रथम बार उन्होंने श्री साईं बाबा को देखा
यदि एक २ ० वर्षीय युवक बगीचे के लिए पानी ढो रहा है तो लोग इसमें अचम्भा क्यू कर रहे है ??
कोनसी बड़ी बात है ?
ये भूमि (शिर्डी) महान  कैसे हुई? अभी तो हम स्पष्ट रूप से देखते आये  है बाबा ने कोई कमाल नही दिखाया !

आगे – फिर आगे पुनः छोटे हो गये !
फिर पहलवान बन गये !
20 वर्ष का युवक
पहलवान की तरह रहता था  ! अर्थात सड़क पर चलते फिरते किसी को भी ललकार  लेना , बाहें चड़ा लेना आदि!
इसी पहलवानी के तहत वे एक बार पिटे भी गये :-
शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र )

इसी अध्याय  में आगे
लिखा है (ध्यान दें)
वामन तात्या नाम के एक भक्त इन्हें नित्य प्रति दो मिट्टी  के घड़े दिया करते थे ! इन घड़ों द्वारा बाबा स्वयं ही पोधों में पानी डाला करते !
वे स्वयं कुए से पानी खींचते और संध्या  समय घड़ों को नीम वृक्ष के निचे रख देते । जैसे ही रखते तो घड़े फुट जाते, क्यू की घड़े
कच्चे थे !  और दुसरे दिन तात्या फिर उन्हें 2 घड़े दे देते !
यह क्रम 3 वर्षों तक चला ! (अध्याय ५)

अब बाबा की आयु हो गई है 23  वर्ष !
समझे :–
1. सबसे पहले तो तात्या किसका भक्त था ? साईं का या किसी और का !
यदि साईं का था तो क्यू ? अभी तो साईं ने कुछ करतब नही दिखाया !  तात्या क्या
देख कर भक्त बना !
2 रोज के रोज घड़े टूट रहे है न ही बाबा में और न ही तात्या में अक्ल थी की, क्यू न घड़ा ठीक प्रकार से संभाल कर रखा जाये !
रोज के दो घड़े के हिसाब से तात्या ने 3 वर्षों में कितने घड़े खरीदे ?—-> 2190 घड़े !

और फिर क्या बिना तपाये बनाये हुए मिटटी के कच्चे घड़ों में
जल ठहर सकता है ?

इस प्रकार की उलजलूल बातों का क्या अभिप्राय है ? या इसका कोई और अर्थ भी  है जो हम समझने की अपेक्षा इस पागल को पूज रहे है ?
या ये कोई कूट भाषा (Coded language) है !

इसके आगे के अध्यायों में  सारा वर्णन 1910 से 1918 (बाबा की आयु 72 से 80) के बिच का है  उत्तरोंतर
बाबा के चमत्कारों के गप्पे और केवल रुपया पैसा की बाते है,  और  लोगो ने बाबा को किस प्रकार पूजा, यह लिखा गया है !

बाबा के जीवन काल की 24 वर्ष आयु से 71 वर्ष आयु तक की घटनाये गायब है !

B. एक और झूठ :
 एक फ़क़ीर देखा जिसके सर पर एक टोपी, तन पर कफनी और पास में एक सटका  था
अध्याय 5  }
वे सिर पर एक साफा , कमर में एक धोती और तन ढकने के लिए एक अंगरखा धारण करते थे ! प्रारंभ से ही उनकी वेशभूषा इसी प्रकार की थी ! {अध्याय 7 }

C. 3 वर्ष बाबा ने क्या क्या किया ?

एक बार पुनः —-
16 वर्ष आयु में दिखे, 3 वर्ष शिर्डी में रहे

16 +3 =19 वर्ष ।
19 वर्ष की आयु
में फिर कहीं निकल गये ।
और जब बारात के साथ आए तो आयु 20 वर्ष थी ।
ठीक है !! इतना हम समझ चुके है !

परन्तु 16 वर्ष में प्रथम बार दिखने के पश्चात तो 3 वर्ष वे शिर्डी में ही रहे !
इन 3 (1095 दिनों) वर्षों का वर्णन इस किताब में है ही नही ! बाबा की  आयु के 16 से 19 वर्ष तक का वर्णन
कहाँ है ??

ये तिन वर्ष और एक वर्ष गायब रहा :- हुए ४ वर्ष ? कहाँ तथा बाबा ४ वर्ष!?
……………………………झूठ नं 6 

D. बेनामी बाबा :— 
अब तक किसी को बाबे का नाम नही पता ! पहले युवक कहा गया फिर सीधे “साईं” कह दिया गया !

साईं शब्द का अर्थ :–
“साईं बाबा नाम की उत्पत्ति साईं शब्द से
हुई है, जो मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा”
यहाँ देखे :—
bharatdiscovery.org/india/शिरडी_साईं_बाबा
फ़ारसी एक भाषा है जो ईरान, ताज़िकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है।

अर्थात साईं नाम(संज्ञा/noun) नही है
जिस प्रकार मंदिर में पूजा आदि करने वाले व्यक्ति को “पुजारी” कहा जाता है परन्तु पुजारी उसका नाम नही है !
यहाँ साईं भी नाम नही अपितु विशेषण (Adjective) है !
उसी प्रकार ‘बाबा’ शब्द  भी कोई नाम नही !!

और फिर म्हालसापति ने उन्हें सीधे “साईं” कह कर ही क्यू बुलाया ??
साईं ही क्यू??
सभी साईं बाबा ही कहते है तो फिर इसका नाम क्या है ??

चाँद मियां !!!

हम इसे फ़िलहाल साईं ही कहेंगे !

ये बालक 100 % व्यसनी/नशा करने वाला था क्यू की लावारिश था इसलिए शिक्षा आदि न पा सका !
इसी कारन ये ओछे स्वभाव वाला तथा चिड-चिडा भी था !
बात बात पर क्रोधित होना तथा स्त्रिओं को
गलिया  देना इसके ओछे स्वभाव व चिडचिडेपण का प्रमाण है ! आगे देखने को मिलेगा !

सब कुछ झूठ ही झूठ है इस किताब  में ! ये किताब कम से कम 4-5 जनों ने मिलकर सोचा समझ कर लिखी है ! फिर भी हड़बड़ी में कई गलतिया रह ही गई ! या यूँ कह लो की
सत्य नही छुप सकता !!!!!!!!
झूठ पर सदेव सत्य की और
बुराई पर सदेव  अच्छाई की विजय होती है ! जय श्री राम 

E.एक और बड़ा झूठ व आस्था के नाम पर धोखा:—–

लेखक  “हेमाडपंत” ने लिखा है की 1910 में मैं बाबा से मिलने मस्जिद गया ! (अध्याय १ )
मेने बाबा की पवित्र जीवन गाथा का लेखन प्रारंभ कर दिया (अध्याय २  )
और बाबा से उनके जीवन पर किताब
लिखने की अनुमति मांगी !
और मैंने महाकव्य “साईं सच्चरित्र” की रचना भी की ! अर्थात साईं सच्चरित्र की रचना सन 1910 में की !
(अध्याय २ )
…………………………..झूठ नं 7 

साईं सच्चरित्र की रचना हुई कम से कम उनकी मृत्यु के  15-20  वर्ष बाद  अर्थात सन 1933  से 1938   के आसपास !
कैसे पता ?? 
यहाँ देखें : 

साईं की मृत्यु के पश्चात का वर्णन :
#साईं_बाबा_भाग_2
अब कुछ भक्तों को श्री साईं बाबा के वचन याद आने लगे !
किसी ने कहा की महाराज (साईं बाबा) ने अपने भक्तों से कहा था की वे –
“भविष्य में वे आठ वर्ष के बालक के रूप में पुनः प्रकट होंगे” (अध्याय 43)

ऐसा प्रतीत होता है की इस प्रकार का प्रेम सम्बन्ध विकसित
करके महाराज (श्री साईं बाबा ) दोरे पर चले गये और भक्तों को दृढ विश्वास है की वे शीघ्र ही पुनः वापिस आ जायेगे ! (अध्याय 43)

और बाबा पुनः आये भी !! पता है वो कोन थे ? ये थे —>
सत्य साईं बाबा !

ध्यान से समझे :-
साईं बाबा की मृत्यु हुई सन 1918 में !
उसके ठीक 8 वर्षों पश्चात
बाबा पुनः आ गये सत्य साईं बन कर !

सत्य साईं बाबा (जन्म: 23 नवंबर 1926 ; मृत्यु: 24 अप्रैल 2011),

सत्य साईं बाबा का बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था। बाबा को प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु शिरडी के साईं बाबा का अवतार माना जाता है।
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में पुट्टपर्थी गांव में
एक सामान्य परिवार में 23 नवंबर 1926 को जन्मे सत्यनारायण राजू ने 20 अक्तूबर 1940 को 14 साल की उम्र में खुद को शिरडी वाले साईं बाबा का अवतार कहा। जब भी वह शिरडी साईं बाबा की बात करते थे तो उन्हें ‘अपना पूर्व शरीर’ कहते थे।

इससे स्पष्ट है की “सत्य साईं बाबा” उन्ही लोगो में से किसी
के घर जन्मा जिन्होंने इसके जन्म से 8 वर्ष पूर्व साईं को भगवन बनाया ! चूँकि सत्य साईं बाबेके जन्म की बात साईं सच्चरित्र में आ चुकी है इसलिए ये किताब बाबे(शिर्डी वाले) की मृत्यु के 15-20 वर्ष पश्चात लिखी गई ! इस समय सत्य साईं बाबा की आयु रही होगी 7 से 12 वर्ष !

इसे निश्चत
रूप से अच्छे से समझाया गया की तुझे यही कहना है की तू साईं बाबा का अवतार है ! ये इन्होने कहा 14 वर्ष की आयु में अर्थात साईं की मृत्यु के 20 वर्ष पश्चात !
इसने शिर्डी वाले बाबे के बारे में 8 -10 बाते लोगो को बता दी होंगी की मैंने पिछले (साईं जन्म में) ये ये किया, जैसा की इसे
12-13 वर्ष की आयु में रटा दीया होगा !

चूँकि शिर्डी साईं की पुनः प्रकट होने की बात सत्य निकली “इससे शिर्डी साईं की धाक जम गई ! ”
और इसकी भी जम गई !

इसी तथ्य के कारन शिर्डी साईं को प्रसिद्धी मिलनी शुरू हुई ! इससे पूर्व शिर्डी साईं को गली का कुता भी नही जनता था आगे सिद्ध किया
गया है !

ये है सारा खेल !

सत्यनारायण राजू ने शिरडी के साईं बाबा के पुनर्जन्म की धारणा के साथ ही सत्य साईं बाबा के रूप में पूरी दुनिया में ख्याति अर्जित की। सत्य साईं बाबा अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध रहे और वे हवा में से अनेक चीजें प्रकट कर देते थे और इसके चलते उनके
आलोचक उनके खिलाफ प्रचार करते रहे।वैसे ये भी एक नंबर का नाटक खोर था !
यहाँ देखें:–
hi.wikipedia.org/wiki/सत्य_साईं_बाबा
मेने सुना है की सत्य साईं (राजू) के पुनर्जन्म का किस्सा इसकी(राजू की ) पुस्तक में है ! (यधपि मेने इसकी पुस्तक नही पड़ी है )

“पुट्टापर्थी के सत्य साईं इस
दुनिया को एक साल पहले अलविदा कह गये थे. उनके चमत्कारों और दावों पर सवाल उठे तो भक्तों को उनमें भगवान दिखते थे. उसी सत्य साईं ने सालों पहले ये भविष्यवाणी की थी कि अपने देहांत के एक साल बाद वो फिर अवतार लेंगे. इसीलिए उनकी पहली बरसी पर ये सवाल उठ रहा है कि कहां है सत्य साईं का
अवतार”

जरा सोचिये, ये लोग इतने पापी है की इनकी मुक्ति ही नही हो पा रही, बार बार जन्म ले रहे है !
इसी प्रकार ये लोग पुनर्जन्म लेते रहेंगे,

अभी के भारतीय, महान ऋषियों की संताने होकर भी मुर्ख है! इनके पीछे हो जाते है.ये किताब कितनी सही कितनी गलत ?
दोस्तों उपर हम देख चुके है की ये किताब निश्चित रूप से सत्य साईं (राजू) के जन्म के पश्चात लिखी गई !
तभी लोगो ने सोचा की राजू को ही
बाबा का पुनर्जन्म सिद्ध करना है तभी राजू के जन्म की बात साईं सच्चरित्र में आयी है !

क्यू की साईं की प्रसिद्धी मात्र इसी एक तथ्य पर निर्भर करती थी की :-

“भविष्य में वे 8 वर्ष के बालक के रूप में पुनः प्रकट होंगे” (अध्याय 43)

राजू जन्मा सन 1926 में अर्थात बाबा की मृत्यु के 8
वर्ष पश्चात !

इस हिसाब से “साईं सच्चरित्र” लिखने की कम से कम तारिक बनती है सन 1926 (राजू का जन्म)..

“इससे पहले किताब का लिखा जाना संभव ही नही” —- मेरा दावा है !!
क्यू की राजू के जन्म की बात उस किताब में दो जगह आ चुकी है !

F(a).गणितीय विवेचन :— {एक और बड़ा खुलासा}
1. “साईं सच्चरित्र” लिखे जाने का कम से कम वर्ष सन 1926 !
2. बाबा 16 वर्ष में दिखे, 3 वर्ष रहे फिर 1 वर्ष गायब इस प्रकार 20 वर्ष की आयु में बाबा का शिर्डी पुनः आगमन व मृत्यु होने तक वही निवास !

साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 (80 वर्ष) तक था (अध्याय 10)
अर्थात बाबा 20 वर्ष के
थे सन 1858 में !

इस किताब में जितनी भी बाबा की लीलाएं व चमत्कार लिखे गये है वे सभी 20 वर्ष के आयु के पश्चात के ही है , क्यू की 20 वर्ष की आयु में ही वे शिर्डी में मृत्यु होने तक रहे !

3. स्पष्ट है जो लीला बाबा ने सन 1858 से करनी प्रारंभ की वो लिखी गई इस किताब में सन 1926 मे
अर्थात (1926-1858) 68 वर्षों पश्चात !

अब जरा दिमाग, बुद्धि व अपने विवेक का प्रयोग करिये और सोचिये 68 वर्ष पुराणी घटनाओं को इस किताब में लिखा गया वो कितनी सही होंगी ?????

अब यदि ये माने की किताब लिखने वालों ने जो भी लिखा है वो सब आँखों देखा हाल है तो किताब लिखने
वालों की सन
1858 में आयु क्या होगी ???
ध्यान से समझे :–
1. जैसा की किताब लिखने वाले बहुत ही चतुर किस्म के लोग थे तभी उन्होंने इस किताब को उलझा कर रख दिया, बाबा के सन्दर्भ में जहाँ जहाँ उनकी आयु व लीला करने का सन लिखने की नोबत आयी वहां वहां उन्होंने बाते एक ही स्थान पर न लिख कर टुकड़ों में
लिखी जैसे : बाबे के सर्वप्रथम देखे जाने की आयु लिखी 16 वर्ष पर सन नही लिखा —–> अध्याय 4 में
जीवन काल 1838 से 1918 लिखा —–>अध्याय 10 में
इस बिच बाबे के 3 वर्ष, आयु 16 से 19 को पूरा गायब ही कर दिया ! और बचपन पूरा अँधेरे में है
युवक –>व्यक्ति/फ़क़ीर–>युवक —>व्यक्ति/पुरुष
इस चतुराई से साफ है की वे(किताब लिखने वाले) 40 से 60 वर्ष के रहे होंगे सन 1926 में जब किताब लिखनी प्रारंभ की !
1. हम 40 वर्ष माने तो 1858 में वे(किताब लिखने वाले) पैदा भी नही हुए ! 1926-40=1886>1858
२. किताब लिखने वालों की आयु सन 1926 में 50 वर्ष माने तो भी वे 1858 में पैदानही
हुए !
३. 60 वर्ष माने तो भी पैदा नही हुए —-> 1926-60 = 1866 > 1858
4. 68 वर्ष माने तो किताब लिखने वाले जस्ट पैदा ही हुए थे जब बाबा 20 वर्ष के थे —> 1926-68=1858 (1858=1858)

ये तो संभव ही नही की किताब लिखने वाले सन 1858 में जन्मे और जन्म लेते ही बाबे की लीलाए देखि समझी और
1926 में किताब में लिख दी हो !

तो अब क्या करे ???
किताब लिखने वालों की आयु 68 वर्ष होने भी संभव नही, आयु बढ़ानी पड़ेगी !

माना किताब लिखने वाले बाबे की लीलाओं के समय (सन 1858 से आगे तक) थे 20 वर्ष के,
अर्थात बाबे की और किताब लिखने वालों की आयु सन 1858 में 20वर्ष (एक बराबर) थी
क्यू की कम से कम 20 वर्ष आयु लेनी ही पड़ेगी तभी उन्होंने 1858 में लीलाए देखि होंगी व समझी होंगी !
1. 1858 में 20 वर्ष के तो सन 1926 में हुए —-> 88 वर्ष के (कम से कम )
बाबा खुद ही 80 वर्ष में मर गये तो 88 वर्ष का व्यक्ति क्या जीवित होगा ??
यदि होगा तोभी 88 वर्ष की आयु में ये
किताब लिखा जाना संभव ही नही, 88 वर्ष का व्यक्ति चार पाई पकड़ लेता है !

फिर में कह चूका हु की ये किताब लिखने का काम करने वाले चतुर जवान लोग थे !
लगभग 40 से 60 वर्ष के बिच के !
और इन आयु का व्यक्ति 1858 में पैदा भी नही हुआ !!…………………..झूठ नं 8

ये किताब पूरी एक महाधोखा है
ये राजू के जन्म के पश्चात लिखी गई और कोरे झूठ ही झूठ है इसमें !

एक और झूठ :
फ़क़ीर से साधू बनाने का प्रयास :–
निम्न तस्वीर में बिच वाला साईं नही है ! बिच वाले व्यक्ति की तस्वीर ,
दाये-बाये (असली साईं) की जगह लेने का प्रयास कर रही है ! यदि ध्यान नही दिया गया तो असली साईं की तस्वीर बिच वाली तस्वीर से बदल दी जाएगी । क्योकि बिच वाले की सूरत भोली है
झूठ नं 9 “Recently there appeared on some websites what was claimed to be a recently discovered photo of Shirdi Sai Baba.It is clearly a photo of that much revered Indian ‘saint’.”
बिच वाले बाबे के माथे पर बंधा कपडा भी नकली है ! गौर से देखें :- photo shop से एडिट किया हुआ है !
मेने नही किया है इस साईट पर उपलब्ध है :–

robertpriddy.wordpress.com/2008/07/04/und…
एक और महाझूठ !!
साँईँ के चमत्कारिता के पाखंड और झूठ का पता चलता है, उसके “साँईँ चालिसा” से।
दोस्तोँ आईये पहले चालिसा का अर्थ जानलेते है:-
“हिन्दी पद्य की ऐसी विधा जिसमेँ चौपाईयोँ की संख्या मात्र 40 हो, चालिसा कहलाती है।”

सर्वप्रथम देखें की चोपाई क्या / कितनी बड़ी होती है
हनुमान चालीसा की प्रथम चोपाई :—

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥…1
ठीक है !!
अब साँईँ चालिसा की एक चोपाई देखें :–

पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं।
कैसे शिर्डी साईं आए, सारा हाल सुनाऊँ मैं।।
यदि पहली पंक्ति को (कोमे के पहले व बाद वाले भाग को) एक चोपाई माने तो चोपाईयों की संख्या हुई :– 204
और यदि दोनों पंक्तियों को एक चोपाई माने तो चोपाईयों की संख्या हुई :– 102

हनुमान चालीसा में पुरे 40 है आप यहाँ देख सकते है —>
vedicbharat.com/p/blog-page_6.…साँईँ चालिसा में कुल 102
या 204 है …………………………………..झूठ नं 10
यहाँ देखें –>
bharatdiscovery.org/india/साईं_चालीसा

indif.com/nri/chalisas/s…
तनिक विचारेँ क्या इतने चौपाईयोँ के होने पर भी उसे चालिसा कहा जा सकता है??
नहीँ न?…..
बिल्कुल सही समझा आप लोगोँ ने….
जब इन व्याकरणिक व आनुशासनिक नियमोँ से
इतना से इतना खिलवाड़ है, तो साईँ केझूठे पाखंडवादी चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है!

कितने शर्म की बात है कि आधुनिक विज्ञान के गुणोत्तर प्रगतिशिलता के बावजूद लोग साईँ जैसे महापाखंडियोँ के वशिभूत हो जा रहे हैँ॥
क्या इस भूमि की सनातनी संताने इतनी बुद्धिहीन हो गयी है कि जिसकी भी
काल्पनिक महिमा के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल देती है ?
इसमे हमारा नहीं आपका ही फायदा है …. श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क होता है,
श्रद्धालु बनो ….
भगवान को चुनो …
बाबा फ़क़ीर अथवा धनि

1. बाबा की चरण पादुका स्थापित करने के लिए बम्बई के एक भक्त ने 25 रुपयों का मनीआर्डर भेजा । स्थापना में कुल 100 रूपये व्यय हुए जिसमे 75 रुपये चंदे द्वारा एकत्र हुए ! प्रथम पाच वर्षों तक कोठारे के निमित 2 रूपये मासिक भेजते रहे । स्टेशन से छडे ढोने और
छप्पर बनाने का खर्च 7 रूपये 8 आने सगुण मेरु नायक ने दिए ! {अध्याय 5}
25 +75 =100
2 रु मासिक, 5 वर्षों तक = 120 रूपये
100 +120 =220 रूपये कुल
ये घटनाये 19वीं सदी की है उस समय लोगो की आय 2-3 रूपये प्रति माह हुआ करती थी ! तो 220 रूपये कितनी बड़ी रकम हुई ??
उस समय के लोग 2-3
रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते थे !
और आज के 10,000 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते है !
तो उस समय और आज के समय में रुपयों का अनुपात (Ratio) क्या हुआ ?
10000/3=3333.33
तो उस समय के 220 रूपये आज के कितने के बराबर हुए ?
220*3333.33=
733332.6 रूपये (7 लाख 33 हजार रूपये)

यदि हम यह अनुपात 3333.33 की अपेक्षा कम से कम 1000 भी माने तो :-
उस समय के 220 रूपये अर्थात आज के कम से कम 2,20000 (2 लाख 20 हजार रूपये) {अनुपात=1000 }
इतने रूपये एकत्र हो गये ?
मस्त गप्पे है इस किताब में तो !
स्थापना में कुल 100 रूपये व्यय हुए =1,00,000 (1 लाख रूपये)
2. बाबा का दान विलक्षण था ! दक्षिणा के रूप में जो धन एकत्र होता था उसमें से वे किसी को 20, किसी को 15 व किसी को 50 रूपये प्रतिदिन वितरित कर देते थे ! {अध्याय 7 }
3. बाबा हाजी के पास गये और अपने पास से 55 रूपये निकाल कर हाजी को दे दिए ! {अध्याय 11 }
4. बाबा ने प्रो.सी.के.
नारके से 15 रूपये दक्षिणा मांगी, एक अन्य घटना में उन्होंने श्रीमती आर. ए. तर्खड से 6 रूपये दक्षिणा मांगी {अध्याय 14 }
5 . उन्होंने जब महासमाधि ली तो 10 वर्ष तक हजारों रूपये दक्षिणा मिलने पर भी उनके पास स्वल्प राशी ही शेष थी । {अध्याय 14 }
यहाँ हजारों रूपये को कम से कम
1000 रूपये भी माने तो आप सोच सकते है कितनी बड़ी राशी थी ये ?
उस समय के 1000 अर्थात आज के 10 लाख रूपये कम से कम ! {अनुपात =1000 }
6 . बाबा ने आज्ञा दी की शामा के यहाँ जाओ और कुछ समय वर्तालाब कर 15 रूपये दक्षिणा ले आओ ! {अध्याय 18 }
7 बाबा के पास जो दक्षिणा एकत्र होती थी,
उनमे से वे 50 रूपये प्रतिदिन बड़े बाबा को दे दिया करते थे !
{अध्याय 23 }
8 . प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रूपये इक्कठे हो जाया करते थे, इन रुपयों में से वे किसी को 1, किसी को 2 से 5, किसी को 6, इसी प्रकार 10 से 20 और 50 रूपये तक वो अपने भक्तों को दे दिया करते थे !
अध्याय 29 }
9 . निम्न प्रति अध्याय 32 की है :
बाबा की कमाई = 2 (50+100 +150 ) = 600 रूपये
वाह
10 . बाबा ने काका से 15 रूपये दक्षिणा मांगी और कहा में यदि किसी से 1 रु. लेता हु तो 10 गुना लौटाया करता हु ! (अध्याय 35 )
11 . इन शब्दों को सुन कर श्री ठक्कर ने भी बाबा को 15 रूपये भेंट किये (अध्याय 35 )
12 . गोवा से दो व्यक्ति
आए और बाबा ने एक से 15रूपये दक्षिणा मांगी !(अध्याय 36 )
13 . पति पत्नी दोनों ने बाबा को प्रणाम किया और पति ने बाबा को 500 रूपये भेंट किये जो बाबा के घोड़े श्याम कर्ण के लिए छत बनाने के काम आये ! (अध्याय ३ ६ )
बाबा के पास घोडा भी था ? 😀
ये कोन लोग थे जो बाबा को इतनी
दक्षिणा दिए जा रहे थे !
दोस्तों आप स्वयं ही निर्णय ले ये क्या चक्कर है ?? में तो हेरान हु !
J. बाबे की जिद

14 अक्तूबर, 1918 को बाबा ने उन लोगो को भोजन कर लौटने को कहा ! लक्ष्मी बाई सिंदे को बाबा ने 9 रूपये देकर कहा “मुझे अब मस्जिद में अच्छा नही लगता ” इसलिए मुझे
अब बूंटी के पत्थर वाडे में ले चलो, जहाँ में सुख पूर्वक रहूँगा” इन्ही शब्दों के साथ बाबा ने अंतिम श्वास छोड़ दी ! {अध्याय 43 }
1886 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में
वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}
जब बाबा सन 1886 में मरने की हालत में थे तब तथा सन 1918 में भी, बाबे की केवल एक ही इच्छा थी मुझे तो बस मंदिर में ही दफ़न करना
1918-1886 = 32 वर्षों से अर्थात 48 वर्ष की आयु से बाबा के दिमाग में ये चाय बन रही थी !
K. जीवन में अधिकतर बीमार व मृत्य बीमारी से !!
बाबा की स्थति चिंता जनक हो गई और ऐसा दिखने लगा की वे अब देह त्याग देंगे ! {अध्याय ३९}
1886 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक
पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए)
पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}
1. बाबे को 1886 अर्थात 48 वर्ष की आयु में दमे की शिकायत हुई !
19 वर्ष की आयु से लगातार चिलम पि रहा था ऊपर सिध्ध किया जा चूका है !
2. दमे से बाबे की हालत मरने जैसी हो गई ! बाबे ने जिस स्थान की और समाधी बनाने को इंगित किया वो स्थान था एक मंदिर (अध्याय 4 में लिखा है ), और मरणासन्न स्थिति में अभी जहाँ वो पड़ा है वो स्थान है : मस्जिद।अर्थात
मस्जिद में पड़े पड़े इशारा किया मुझे वहा (मंदिर में) गाड़ना !
बाबा रहा सारी उम्र मस्जिद में और उसकी जिद थी की मुझे गाड़ना एक मंदिर में !
इससे एक और बात साफ है शिर्डी के उस गाँव या उन गलियों में एक मंदिर और एक मस्जिद थे
बाबा रहा मस्जिद में ही(स्वेइच्छा से ) :- वो
मुस्लिम ही था इससे साफ दिखता है !
28 सितम्बर 1918 को बाबा को साधारण-सा ज्वर आया । ज्वर 2 3 दिन रहा । बाबा ने भोजन करना त्याग दिया । इसे साथ ही उनका शरीर दिन प्रति दिन क्षीण व दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात अर्थात 14 अक्तूबर 1918 को को 2 बजकर 30 मिनिट पर उन्होंने अपना शरीर
त्याग किया !{अध्याय 42 }
अब सोचिये ये आदमी 17 दिनों तक बीमार रहा और पहले भी दमे से ग्रसित रहा और तडपता रहा !
बाबा समाधिस्त हो गये ” – यह ह्रदय विदारक दुख्संवाद सुन सब मस्जिद की और दोड़े {अध्याय 43}
स्पष्ट है बाबे ने मस्जिद में दम तोडा !
लोगो में बाबा के शरीर को लेकर मतभेद हो गया की क्या किया जाये और यह ३ ६ घंटों तक चलता रहा {अध्याय ४ ३ }
इस किताब में बार बार समाधी/महासमाधी/समाधिस्त
शब्द आया है किन्तु बाबा की मृत्यु दमे व बुखार से हुई ! बाद में दफन किया गया अतः उस स्थान को समाधी नही कब्र कहा जायेगा !!
और क्रब्रों को पूजने वोलों के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में क्या कहा है आगे देखने को मिलेगा !
समाधी स्वइच्छा देहत्याग को कहते है !

3 दिनों पुरानी
लाश को बाद में मंदिर में दफन किया गया !
बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा रहा है , और फ़िलहाल वह समाधी मंदिर नाम से विख्यात है {अध्याय 4}
“बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा रहा है” — स्पष्ट है इसे दफन ही किया गया !

जहाँ उसे दफ़न किया गया वो मंदिर था किस का ?
भगवान श्री कृष्ण का !
बुधवार संध्या को बाबा का पवित्र शरीर बड़ी धूमधाम से लाया गया और विधिपूर्वक उस स्थान पर समाधी बना दी गई ! सच तो ये है की बाबा ‘मुरलीधर’ बन गये और समाधी मंदिर एक पवित्र देव स्थान ! {अध्याय ४३ }
श्री कृष्ण के मंदिर में इस सड़ी लाश को गाडा गया !! और
पूज दिया गया !
कई साईं भक्तों का ये भी कहना है की बाबा ने कभी भी स्वयं को भगवान नही कहा, तो आईये उनके मतिभ्रम का भी समाधान करते है :-
निम्न प्रति साईं सत्चरित्र अध्याय 3 की है :
इस पुस्तक में और भी पचासों जगह बाबा ने स्वयं को ईश्वर कहा है !
हम केवल यह एक ही उदहारण दे रहे है !

ये हाल है दोस्तों :– करोडो भारतियों की आस्था के साथ बलात्कार किया गया है एक बार नही बारम्बार !!!

जिन्हें ईश्वर ने जरा सी भी बुद्धि दी है वो तो उपरोक्त वर्णन से ही समझ चुकेहोगी
शिर्डी वाले का भांडा फूटते ही —-> सत्य साईं का अपने आप ही फुट गया क्यू की सत्य साईं उसी का अवतार था !
—दोस्तों साईं और सत्य साईं की पोल पूरी खुल ही चुकी है परन्तु हमारे करोडो भाई-बहिनों-माताओं आदि के ह्रदय में इनका जहर घोला गया वो उतरना अति अति आवश्यक है !
इसलिए आगे बढ़ते है
और अभी भी मात्र लोगोको सत्य दिखने के लिए इसे(शिर्डी वाले को) चमत्कारी ही मान कर चलते है !

—————————————————————–

साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 (80 वर्ष) तक था (अध्याय 10 ) , उनके जीवन काल के मध्य हुई घटनाये जो मन में शंकाएं पैदा करती हैं की क्या वो सच में भगवान थे
क्या वो सच में लोगो का दुःख दूर कर सकते है
क्या साँईं ईश्वर या कोई अवतारी पुरूष है
भारतभूमि पर जब-जब धर्म की हानि हुई है और अधर्म मेँ वृध्दि हुई है तब तब परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तब तक धरती नहीँ छोड़ते जबतक सम्पूर्ण पृथ्वी अधर्महीन नहीँ हो जाती लेकिन साईँ क
जीवनकाल मेँ पूरा भारत गुलामी की बेड़ियोँ मे जकड़ा हुआ था, मात्र अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुक्ति न दिला सका तो साईँ अवतार कैसे?
न ही स्वयं अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के विरुद्ध आवाज़ उठाई और न ही अपने भक्तों को प्रेरित किया । इसके अतिरिक्त हजारों तरह की समस्या भी थी :- गौ हत्या,
भ्रस्ताचार, भूखमरी तथा समाज में फैली अन्य कुरुतियाँ ! इसके विरुद्ध भी एक शब्द नही बोला !! जबकि अपनी पूरी आयु (80 वर्ष) जिया !!2. साईं सच्चरित्र में बताया गया है की बाबा की जन्म तिथि सन 1838 के आसपास थी । हम 1838 ही मान कर चलते है । इसी किताब में बताया गया है की बाबा
वर्ष की आयु में सर्वप्रथम दिखाई पड़े (अध्याय 4)
अर्थात 1854 में सर्वप्रथम दिखाई पड़े ,
तभी लेखक ने 1838 में जन्म कहा है । झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने 1857 की क्रांति में महत्व पूर्ण योगदान दिया तथा लड़ते लड़ते विरांगना हुई । 1857 में बाबा की आयु 19 वर्ष के आस पास रही होगी
एक अवतार के धरती पर मोजूद होते हुए स्त्रियों को युद्ध क्षेत्र में जाना पड़े ???

कृपया अपने घरों मैं साईं की सच्चाई उजागर करे पाखंड को होने से रोके

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