जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।
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उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।
२
सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।
विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -
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"ईश्वर एक है!" इसके लिए उन्होंने एक ऊंगली उठाई।
कहते हैं कि कालिदास को समझ में आया कि यह लड़की मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। प्रत्युत्तर में हिंसक होते हुए कालिदास ने दो ऊंगली उठाई। - मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। सभा में हड़कंप मच गया।
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विद्वानों ने व्याख्या की- ईश्वर आत्मा और परमात्मा का द्वैत है। फिर आउटरेज शुरू हो गया। ट्वीट-रिट्वीट हुए। विद्योत्तमा सहित सभी वामी-कामी, विद्वत समाज ने इस व्याख्या को स्वीकार किया। सभा डीरेल हो गई और विषय से इतर कूदने-फांदने में मान्यता प्राप्त विद्वानों को कौन हरा सकता है।
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नतीजा यह हुआ कि Abs, समुद्री स्नान, आलू ही आलू, मेड इन मदुरै, उत्तर-दक्षिण, तीन कानून, आसमानी किताब, हम दो हमारे दो आदि की चहुंओर अनुगूंज होने लगी। एक ने तो कहा कि राजा को पदच्युत कर कालिदास का अभिषेक होना चाहिए। अविलम्ब। ईवीएम पर भरोसा कौन करता है। लोकतंत्र नष्ट नहीं करना है।
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विद्वानों, पंडितों, क्रोनी-गठजोड़, हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, कौवा-तीतर, काली पहाड़ी सबने कालिदास के लिए बहुत माहौल बनाया।
मसल है कि वीरता की नकल नहीं हो सकती। इतिहास को दुहराया नहीं जा सकता। लेकिन देश-दुनिया में प्रयास जारी है। दूसरे कालिदास का कभी भी उदय हो सकता है!
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