१ - #धर्म का आचरण करे , किंतु कटुता न आने दे
२ - #आस्तिक रहते हुए दूसरों के साथ प्रेमका बर्ताव न छोड़े
३ - क्रूरताका आश्रय लिये बिना ही #अर्थ - संग्रह करे
४ - #मर्यादा का अतिक्रमण न करते हुए ही विषयोंको भोगे
सुखकी प्राप्ति करानेवाले छत्तीस गुणोंका वर्णन-
५ - दीनता न लाते हुए ही प्रिय #भाषण करे
६- #शूरवीर बने , किंतु बढ़ - बढ़कर बातें न बनावे
७- #दान दे , परंतु अपात्रको नहीं
८ - #साहसी हो , किंतु निष्ठुर न हो
९- #दुष्टों के साथ मेल न करे
१० - बन्धुओं के साथ लड़ाई - #झगड़ा न ठाने ।
११ - जो राजभक्त न हो , ऐसे #गुप्तचर से काम न ले
१२ - किसीको #कष्ट पहुँचाये बिना ही अपना कार्य करे
१३ - दुष्टोंसे अपना #अभीष्ट कार्य न कहे
१४ - अपने गुणोंका स्वयं ही वर्णन न करे
१५ - श्रेष्ठ पुरुषोंसे उनका #धन न छीने
१६ - नीच पुरुषोंका #आश्रय न ले
१७ - अपराधकी अच्छी तरह जाँच पड़ताल किये बिना ही किसीको #दण्ड न दे
१८ - गुप्त #मन्त्रणा को प्रकट न करे
१ ९ - लोभियों को धन न दे
२० - जिन्होंने कभी अपकार किया हो , उनपर #विश्वास न करे
२१ - ईर्ष्यारहित होकर अपनी #स्त्री की रक्षा करे
२२ - राजा #शुद्ध रहे ; किंतु किसीसे #घृणा न करे
२३ - स्त्रियोंका अधिक सेवन न करे
२४ - शुद्ध और स्वादिष्ट #भोजन करे , परंतु अहितकर भोजन न करे
२५ - #उद्दण्डता छोड़कर विनीतभावसे माननीय पुरुषोंका आदर - सत्कार करे
२६ - निष्कपटभावसे गुरुजनोंकी #सेवा करे
२७ - दम्भहीन होकर #देवताओं की पूजा करे
२८ - #अनिन्दित उपायसे #धन - सम्पत्ति पानेकी इच्छा करे
२९ - हठ छोड़कर प्रीतिका पालन करे
३० - कार्य - कुशल हो , किंतु अवसरके ज्ञानसे शून्य न हो
३१ - केवल #पिण्ड छुड़ानेके लिये किसीको #सान्त्वना या भरोसा न दे
३२ - किसापर #कृपा करते समय #आक्षेप न करे
३३ - बिना जाने किसीपर #प्रहार न करे
३४ - शत्रुओंको मारकर #शोक न करे
३५ - अकस्मात् किसीपर #क्रोध न करे तथा
३६ - #कोमल हो , परंतु अपकार करनेवालोंके लिये नहीं
तमीश्र्वराणां परमं महेश्र्वरं तं देवतानां परमं च दैवतम् |
पतिं पतीनां परमं परस्ताद् विदाम देवं भुवेनशमीड्यम् ||
न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तत्समश्र्चाभ्यधिकश्र्च दृश्यते |
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ||
परमेश्र्वर समस्त नियन्ताओं के नियन्ता हैं और विभिन्न लोक पालकों में सबसे महान हैं | सभी उनके अधीन हैं | सारे जीवों को परमेश्र्वर से ही विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है, जीव स्वयं श्रेष्ठ नहीं है | वे सभी देवताओं द्वारा पूज्य हैं और समस्त संचालकों के भी संचालक हैं |
अतः वे समस्त भौतिक नेताओं तथा नियन्ताओं से बढ़कर हैं और सबों द्वारा आराध्य हैं | उनसे बढ़कर कोई नहीं है और वे ही समस्त कारणों के कारण हैं |