यदि भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करना एक चुनौती थी, तो इसे हस्तलिखित करना और इसे चित्रित करना दूसरी बात थी। 26 जनवरी 1950 को भारत ने जो संविधान अपनाया वह हस्तशिल्प का संस्करण था। लेखन प्रेम बिहारी रायज़ादा का था जबकि चित्र आचार्य नंदलाल बोस के
नेतृत्व वाले शांतिनिकेतन के कलाकारों के थे। दस्तकारी संविधान काले चमड़े में सचित्र पृष्ठों और सजावटी सीमाओं के साथ बंधा हुआ था। संविधान के सभी बाईस अध्याय लघु शैली में एक दृष्टांत से शुरू होते हैं। बोस के चित्रों में हड़प्पा सभ्यता के दृश्य, अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्र,
रामायण के चित्र, बुद्ध के चित्रण और कई अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दृश्य शामिल हैं। बोस के चित्र भारतीय इतिहास में सन्निहित बहुवचन आख्यानों को दृष्टिगत रूप से चित्रित करते हैं और राष्ट्र की साझा संस्कृति की धारणा का उदाहरण देते हैं। संविधान में कलात्मक अभिव्यक्ति यहीं नहीं रुकी।
संविधान में ऐसे कई पृष्ठ हैं जिनकी सीमाएँ बड़े पैमाने पर डिज़ाइन की गई हैं और सोने से उकेरी गई हैं। राममनोहर सिन्हा ने किया। अजंता और बाग जैसे भित्ति चित्रों से प्रेरणा इन सीमाओं में स्पष्ट है। प्रस्तावना के डिजाइन के पीछे सिन्हा भी थे। राष्ट्रीय प्रतीक, अशोक की शेर राजधानी
दीनानाथ भार्गव द्वारा स्केच किया गया था। संविधान में सुलेख प्रेम बिहारी रायज़ादा द्वारा किया गया था। उन्होंने सारा काम मुफ्त में किया
और छह महीने की अवधि में हिंदी और अंग्रेजी दोनों में पाठ लिखा। संविधान कई कलाकारों, चित्रकारों और समानों के सहयोग का एक उत्पाद था। चित्रकार पहले पन्नों पर पेंट करते थे और फिर उसे सुलेखक को सौंपते थे और अंत में रोशनी के लिए फ्रैमर को सौंप देते थे। कई कलाकारों द्वारा किए गए
प्रयास और श्रम के सावधानीपूर्वक विभाजन ने संविधान को केवल एक कानूनी पाठ के रूप में नहीं बल्कि कला के काम के रूप में देखने की याद दिला दी। संविधान वर्तमान में भारत की संसद के पुस्तकालय में हीलियम से भरे मामले में रखा गया है। संविधान में सन्निहित चित्र इस बात की याद दिलाते हैं कि
भारत विविध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आख्यानों का उद्गम स्थल है। भीमराव अम्बेडकर कमेटी के अध्यक्ष थे वो सिर्फ अपनी कुर्सी पर बैठे रहे है उनका सविधान मैं कोई योगदान नही है
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प्रश्न : - हमें मानव देह ईश्वर ने क्यों दी । जो सुख और दुःख के गोते खाती है ?
मानव देह ईश्वर का दिया हुआ एक विशेष उपहार है जो आत्मा की प्रगति और मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह देह न केवल सुख और दुःख का अनुभव करने के लिए है बल्कि इसके
माध्यम से हम जीवन के गहरे अर्थ ईश्वर के प्रति भक्ति और आत्मज्ञान को समझ सकते हैं। मानव शरीर हमें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के अनुभवों से गुजरने का अवसर प्रदान करता है जिससे हम अपने कर्मों और जीवन के उद्देश्य को समझ सकें।
1. जीवन के अनुभवों से सीखने का साधन
मानव शरीर को एक ऐसा साधन माना गया है, जिसके माध्यम से हम जीवन में सुख और दुःख का अनुभव करते हैं। इन अनुभवों से हमें सीखने का अवसर मिलता है। सुख से हमें जीवन की खुशियाँ और ईश्वर की कृपा का अहसास होता है, जबकि
प्रश्न = हम तारे देखते हैं तो असल में सैकड़ों वर्ष पूर्व का समय देख रहे होते हैं, तो नक्षत्र गणना के आधार पर भविष्य कैसे बताया जाता है ?
ध्यान से पढ़िए । दृग तुल्य अर्थात जो देखो केवल उसी पर विश्वास करो, ये हमारे वैदिक ज्योतिष का मूल मंत्र है!
21 दिसंबर 2020 के दिन सायद आपने अख़बारों में पढ़ा होगा, टीवी में देखा होगा की 400 वर्ष बाद एक दुर्लभ खगोलीय घटना होने जा रही है! गुरु और शनि एक दूसरे के सबसे निकट आने जा रहे है! इन गुरु-शनि की युति के चित्र भी टीवी अखबारों में आपने देखे होंगे
या आपमे से कुछ ने तो टेलिस्कोप के द्वारा सजीव देखा होगा।
अब क्योकि ज्यादातर लोग ज्योतिष के बारे में अनभिज्ञ है, तो आपकी सुविधार्थ 21 दिसंबर के दिन का ज्योतिषीय गणित आकाशीय नक्शा (कुण्डली) देखिए
56 साल की उम्र में देहांत : अरबपति स्टीव जॉब्स के मृत्यु से पहले आखिरी शब्दः..
▫️मैं व्यापार जगत में सफलता के शिखर पर पहुंच गया हूं.दूसरों की नज़र में मेरा जीवन एक उपलब्धि है. हालाँकि, काम के अलावा, मुझे कोई खुशी नहीं थी. धन बस एक सच्चाई है, जिसका मैं आदी हो गया था.
▫️इस क्षण में अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए और अपने पूरे जीवन को याद करते हुए, मुझे एहसास होता है कि जिस पहचान और धन पर मुझे इतना गर्व था वह मृत्यु के सामने फीकी और महत्वहीन हो गई है.
आप अपनी कार चलाने या पैसे कमाने के लिए किसी को काम पर रख सकते हैं.लेकिन आप किसी को बीमारी सहने और मरने के लिए नहीं रख सकते.
▫️खोई हुई भौतिक वस्तुएं मिल सकती हैं, लेकिन एक चीज़ है जो खो जाने पर कभी नहीं मिलती- "ज़िंदगी."
सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली।
सोने का हिरन बाद में मारीच निकला।
भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला।
लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की
मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः
किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
प्रभु श्री राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का