दुनिया में सनातन धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं 🚩
जय सनातन धर्म 🚩🙏
कुतुब मीनार से भी ऊंचा मन्दिर 🚩
राजस्थान के हनुमानगढ जिले में स्थित संगरिया के वार्ड 4 में स्थापित माता भद्रकाली एवं महाकाली माता का मंदिर अपने आप में अनूठा और सबसे ऊंचा है। खास बात यह है कि इसकी ऊंचाई 275
फीट है। दावा किया जा रहा है कि देश में मां के सभी मंदिरों से इसकी ऊंचाई सबसे ज्यादा है।
इसी तरह का काली मां का एक मंदिर बिहार के अररिया जिले में है, जिसकी ऊंचाई 152 फीट है। 21 मंजिला इस मंदिर की इमारत के आखिर में गुंबद है। करीब 24 साल से इस मंदिर का निर्माण चल रहा है।
बड़ी बात ये है कि इसके निर्माण के लिए अभी तक किसी से कोई सहयोग नही मांगा गया, भक्तों ने अपनी इच्छा अनुसार निर्माण सामग्री का योगदान दिया है।
मंदिर निर्माण कर्ता संस्थापक एवं संचालनकर्ता श्री परमपूज्य तपस्वी राज श्री श्री 1008 बाबा सेवादास महाराज के शिष्य श्री श्री 108 मौनी
बाबा शीतलदास महाराज उदासीन निर्वाण श्री पंचायती अखाड़ा बताते हैं कि मंदिर में माता भद्रकाली और माता महाकाली की प्रतिमाएं हैं।
इसके अलावा श्री काल भैरव सिद्पीठ का प्राचीन मंदिर, श्री श्री 1008 बाबा सेवादास महाराज उदासीन निर्वाण श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा ब्रह्मालीन का भव्य गुरु
गुरु मंदिर (समाधि) भी स्थापित है।
मंदिर में कृष्ण-राधा, शिव पार्वती, हनुमान जी के साथ प्रत्येक देवी-देवता और सभी ऋषि मुनियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
ऐसे हुई शुरूआत...1995 में हुई शुरुआत, अब तक चल रहा सुधार का काम: माता भद्रकाली महाकाली माता के मंदिर के निर्माण कार्य की
की शुरुआत 24 जनवरी 1995 में हुई। दिनांक 22 मार्च 2012 को श्री महाकाली माता की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। इसमें श्री काल भैरवनाथ भगवान के मंदिर की नींव 7 अप्रैल 1992 को रखी गई। उसके बाद करीब 9 वर्ष तक निर्माण कार्य चला। 9 नवंबर 2000 में प्राण-प्रतिष्ठा हुई।
मौनी बाबा
शीतलदास महाराज ने बताया कि मन में हमेशा इच्छा थी कि संगरिया में श्री भद्रकाली-महाकाली माता का भव्य मंदिर बने। इसी पर काम शुरू किया तो सब साथ जुड़ते गए। 24 साल से मंदिर में काम जारी है। किसी से भी कोई राशि नहीं ली गई। सब काम लोगों ने इच्छानुसार कराए हैं।
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45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और
छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है।
उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर।
वीर सावरकर।
उन्हें आत्महत्या
के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो।
बिना किसी सेटेलाइट या बिना किसी दूरबीन के महर्षि पराशर ने आज से 2200 वर्ष पूर्व इन सप्तर्षि तारा मंडल पर सटीक जानकारी अपने ग्रंथ में दी थी महर्षि पराशर ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि थे । ।
उन्हों ने ही सप्तर्षि तारा मंडल की सभी जानकारी दी है , आज तक नासा या दुनिया की कोई स्पेस
एजंसी वहां तक नही पहुच पाई , पराशर मुनि ने अपने पुस्तक में लिखा है कि सप्तर्षि में कश्यप नामसे एक तारा है जिसमे में हमारा सूर्य उत्पन्न हुआ है इसलिए आज भी हिन्दू लोग सूर्य को कश्यपनंदन मानते है , हालांकि आज तक दुनिया की किसी भी वैज्ञानिक संस्था ने इस पर अभी खोज भी शरू नही की यदि
भविष्य में सूर्य के बारे में ऐसी बात सामने आती है तो हम भारतीय सनातनियो को आश्चर्य नही होगा लेकिन आज भी भारत के कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में एक सवंत चलती है जिसे लौकिक सवंत कहते है , जो सप्तर्षि तारा मंडल के आधार पर चलती है , लौकिक सवंत यानी सप्तर्षि तारा मंडल एक नक्षत्र में
अलबर्ट आइन्स्टीन - हम भारत के बहुत ऋणी हैं, जिसने हमें गिनती सिखाई, जिसके बिना कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज संभव नहीं हो पाती।
रोमां रोलां (फ्रांस) - मानव ने आदिकाल से जो सपने देखने शुरू किये, उनके साकार होने का इस धरती पर.. कोई
स्थान है, तो वो है भारत।
हू शिह - सीमा पर एक भी सैनिक न भेजते हुए भारत ने बीस सदियों तक सांस्कृतिक धरातल पर चीन को जीता और उसे प्रभावित भी किया।
मैक्स मुलर - यदि मुझसे कोई पूछे की किस आकाश के तले मानव मन अपने अनमोल उपहारों समेत पूर्णतया विकसित हुआ है, जहां जीवन.. की जटिल
समस्याओं का गहन विश्लेषण हुआ और समाधान भी प्रस्तुत किया गया, जो उसके भी प्रसंशा का पात्र हुआ जिन्होंने प्लेटो और कांट का अध्ययन किया, तो मैं भारत का नाम लूँगा।
मार्क ट्वेन- मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान और सृजनशील सामग्री है, उसका भंडार अकेले भारत में है। आर्थर शोपेन्हावर
जानें क्या है माँ तारा और बामा खेपा का रिश्ता, क्यों प्रसिद्ध है तारापीठ?
पश्चिम बंगाल के एक गांव में वामा चरण नाम के बालक का जन्म हुआ. बालक के जन्म के कुछ समय बाद उसके पिता का देहांत हो गया. माता भी गरीब थी . इसलिए बच्चों के पालन पोषण की समस्या आई . उन्हें मामा के पास भेज
भेज दिया गया . मामा तारापीठ के पास के गांव में रहते थे . जैसा कि आमतौर पर अनाथ बच्चों के साथ होता है . दोनों बच्चों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार नहीं हुआ .
धीरे-धीरे वामाचरण की रुचि साधु संगति की तरफ होने लगी. गांव के मशान में आने वाले बाबाओं की संगत में रहते हुए बामाचरण में
भी देवी के प्रति रुझान बढ़ने
लगा. अब वह तारा माई को बड़ी मां कहते और अपनी मां को छोटी मां .
बामा चरण कभी श्मशान में जलती चिता के पास जाकर बैठ जाता, तो कभी यूं ही हवा में बातें करता रहता. ऐसे ही वह युवावस्था तक पहुंच गया. उसकी हरकतों की वजह से उसका नाम बामाचरण से वामा खेपा