ब्रिटेन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के विद्वान बैरिस्टर खालिद उमेर द्वारा फेसबुक पर लिखी गई एक पोस्ट का हिन्दी-अनुवाद 🙏
नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर यह आरोप लगाया जाता है, कि वह भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं! अगर ऐसा है भी, तो मैं पूछता हूँ कि
इसमें विरोध ही क्या है? भारत के हिन्दू राष्ट्र होने के पक्ष में मैं यह तर्क प्रस्तुत करता हूँ:
विश्व भर में फैले हिन्दुओं की पितृभूमि और पुण्यभूमि होने, उनमें से ९५% की शरणस्थली होने, और कम से कम ५,००० वर्ष पुरानी सनातन हिन्दू सभ्यता का केन्द्र होने के कारण,
भारतवर्ष को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है!
भारत को अपनी पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में लज्जित होने की कोई आवश्यकता नहीं है!
हिन्दू धर्म, जनसंख्या की दृष्टि से, ईसाई और इस्लाम धर्मों के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है!
पर इसका भौगोलिक विस्तार अन्य धर्मों की तुलना में सीमित रहा है!
विश्व की ९७% हिन्दू जनसंख्या केवल तीन हिन्दू-बहुल देशों - भारत, मॉरिशस और नेपाल - में ही रहती है, और इस प्रकार अन्य प्रसारवादी धर्मों की अपेक्षा, हिन्दू धर्म
भारत और उससे भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े क्षेत्रों में केन्द्रीभूत है!
विश्व के ९५% हिन्दू भारत में रहते हैं, जबकि इस्लाम की जन्मभूमि सऊदी अरब में विश्व के केवल १.६% मुसलमान रहते हैं!
विश्व के वाममार्गी और तथाकथित उदारवादी चिन्तकों को विश्व के
विशाल मुस्लिम बहुमत वाले ५३ देशों, जिनमें से २७ का शासकीय धर्म ही इस्लाम है, १०० से अधिक विशाल ईसाई-बहुमत वाले देशों के बीच ब्रिटेन, ग्रीस, आइसलैण्ड, नॉर्वे, हंगरी, डेनमार्क सरीखे ईसाई धर्म को अपना शासकीय धर्म घोषित कर चुके देशों, बौद्ध मत को शासकीय धर्म मानने
वाले ६ देशों और यहूदी देश इज़राइल से कोई समस्या नहीं है, पर भारत के एक हिन्दू राष्ट्र होने की कल्पना मात्र से विक्षिप्त हो जाने वाले बुद्धिजीवी इस बात के लिए कोई तर्क नहीं दे सकते कि भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं होना चाहिए!
भारत के हिन्दू राष्ट्र हो जाने से उसका पंथनिरपेक्ष चरित्र खतरे में आ जाएगा यह मानने का कोई कारण नहीं है!पारसी, जैन, सिख, इस्लाम और सभी धर्मों के मानने वाले भारत में फले-फूले हैं, यही इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है, कि हिन्दू अन्य मतों के प्रति असहिष्णु नहीं हैं!
भारत में अन्य धर्मों के पूजा-स्थलों में हिन्दू भी पूजा करते देखे जा सकते हैं!
हिन्दू धर्म में धर्मान्तरण के लिए कोई स्थान है ही नहीं!
अनेक मुस्लिम और ईसाई देश हैं, जो समय-समय पर अन्य देशों - जैसे म्याँमार, फिलिस्तीन, यमन आदि में इन धर्मों के मानने वालों के
धार्मिक उत्पीड़न पर मानवाधिकार-हनन का शोर मचाते रहते हैं, पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दुओं और सिखों पर हुए अमानवीय अत्याचारों पर मुँह खोलना उन्होंने कभी ज़रूरी नहीं समझा! क्या आज कोई याद भी करता है कि १९७१ में पाकिस्तान की सेना ने बांग्लादेश के निरीह
हिन्दुओं का किस पैमाने पर नरसंहार किया?
वन्धमा (गन्दरबल) सहित काश्मीर के नरसंहार, पाकिस्तान से हिन्दुओं के सर्वांगी उन्मूलन और आरब (उदाहरण के लिए मस्कत) में ऐतिहासिक हिन्दू मन्दिरों और हिन्दू धर्म को विनष्ट किये जाने की आज कोई बातें भी करना चाहता है?
भारतीय शासन-तन्त्र की धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाली नीतियाँ सीधे-सीधे धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धान्तों के विरुद्ध, और विशाल हिन्दू बहुमत के प्रति भेदभावकारी रही हैं!
क्या आपने भारत में दी जाने वाली हज-सब्सिडी का नाम सुना है? सन २००० से १५ लाख भारतीय मुसलमान
इसका लाभ उठा चुके हैं!
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करके भारत सरकार को निर्देश देना पड़ा, कि वह अगले दस वर्षों में इस सब्सिडी को क्रमशः समाप्त करे!
विश्व का कोई धर्मनिरपेक्ष देश किसी विशेष मत के अनुयायियों के धार्मिक पर्यटन के लिए इस प्रकार की छूट देता है?
२००८ में यह छूट प्रति मुस्लिम तीर्थयात्री १,००० अमरीकी डॉलर थी!
जब भारत अपने देश के मुसलमानों की उनके मजहबी कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता कर रहा था, तब सऊदी अरब, जहाँ हिन्दू-प्रतीक मूर्तिपूजा के नाम पर अवैधानिक, निन्दनीय एवम् दण्डनीय हैं,
भारत सहित पूरे विश्व में वहाबी अतिवाद का निर्यात कर रहा था!
हिन्दुओं को सऊदी अरब में अपना मन्दिर बनाने की अनुमती नहीं है, पर हिन्दू करदाताओं के पैसों से भारत सरकार मजहबी तीर्थयात्राओं के द्वारा सऊदी अरब के अर्थतन्त्र को मजबूती प्रदान करने में लगी थी!
किसी भी (वास्तविक) सेक्युलर राष्ट्र में सभी नागरिकों के लिए एक सामान अधिनीयम होते हैं; पर भारत में विभिन्न मतावलम्बियों के लिए पृथक वैयक्तिक अधिनीयम हैं (जो भारतीय संविधान से टकराते रहते हैं)!
सरकार मन्दिरों को रखती है, पर मस्जिदें और चर्च पूर्ण स्वायत्त हैं!
हज-यात्रा करमुक्त है, पर अमरनाथ या कुम्भ की यात्रा नहीं! एक सेक्युलर राष्ट्र को किसी मजहबी पर्यटन पर छूट नहीं देनी चाहिए - इस पर तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश नहीं है!
हिंदुओं ने सदैव अल्पमत का आदर किया है, और उन्हें सुरक्षा प्रदान की है;उनका सहिष्णुता का इतिहास ध्यान देने लायक है!
पारसी जब प्रत्येक जगह उत्पीड़ित हो रहे थे, तब भारत ने उन्हें शरण दी; पिछले हज़ार वर्षों में देश की जनसंख्या में नगण्य हिस्सेदारी के बावजूद वह स्वयं भी विकसित हुए हैं, और देश के विकास में भी सहभागी हुए हैं!
विश्व भर में प्रताड़ित होने वाले यहूदियों को २,००० वर्ष पहले,
और सीरियाई ईसाईयों को १,८०० वर्ष पहले, भारत में ही शरण मिली!
जैन,बौद्ध और सिख धर्म तो हिन्दू धर्म की ही प्रशाखाएं हैं,और इनके अनुयायी बिना किसी समस्या के हिन्दुओं के साथ शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में रहते आये हैं! हिन्दुओं को अपने इस अतिसहिष्णु इतिहास पर गर्व करना चाहिए, न कि शर्म
भारत आज अगर एक सेक्युलर राज्य है, तो १९७६ के संविधान-संशोधन, या उसके अधिनीयम बनाने वाले कारण नहीं, बल्कि उसके विशाल हिन्दू बहुमत के कारण, जो स्वाभाव से ही सेक्युलर है!
हिन्दू धर्म की प्रकृति ही, न कि कोई काग़ज़ का टुकड़ा जो १,००० वर्षें के अतिसहिष्णु व्यवहार के बाद अस्तित्व में
अस्तित्त्व में आया, देश में पन्थनिर्पेक्षता की गारण्टी है!
भारत को अपने आपको हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए! और जैन, बौद्ध और सिख धर्मों के अनुयायियों की सुरक्षा करनी चाहिए, क्यों कि विश्व का कोई देश ऐसा नहीं कर रहा है!
भारत का हिन्दू राष्ट्र होना उसकी विशाल हिन्दू
जनसंख्या के छल-बल से मतान्तरण, और अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण को रोकने के मार्ग प्रशस्त करेगा!
भारत एक प्रगतिशील और विकासोन्मुख राष्ट्र तभी तक रहेगा, जब तक वह सेक्युलर है, और वह सेक्युलर तभी तक रह सकता है जब तक देश के जनसांख्यकीय स्वरुप में हिन्दुओं का वर्चस्व बना रहता है!
पन्थनिरपेक्षता और हिन्दू धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; सिक्का किसी ओर गिरे, जीत भारत की ही होगी!
अगर भारत एक हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाता है, तो इससे अच्छी बात कोई हो ही नहीं सकती!
देश में एक ही आचार संहिता होगी, जो सब पर बाध्यकारी होगी!
देश में अधिनीयमों का शासन होगा, जो
किसी भी देश के विकास के लिए एक आवश्यक तत्त्व होता है! अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान आदि इसके उदहारण हैं!
छल-बल से मतान्तरण, जो विभिन्न मतों के बीच टकराव का मूल कारण रहा है, पर पूर्ण रोक लगेगी जिससे हर व्यक्ति नास्तिकता सहित अपने मत का पालन करने के लिए पूर्णतः स्वतन्त्र होगा!
बहुत से लोगों के लिए यह एक आश्चर्यजनक समाचार होगा, कि निरीश्वरवाद (ईश्वर के अस्तित्व को नकारना) भी हिन्दू-दर्शन का एक अंग है!
क्या विश्व में इस तरह का कोई दूसरा धर्म है जो अपने धर्म को न मानने वालों का भी इस तरह सम्मान करता हो?
मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा लगभग ८०० वर्षों तक चले
विध्वंसकारी युग से बहुत पहले से धार्मिक अतिसहिष्णु ता,पन्थनिरपेक्षता इस भूभाग के निवासियों का मूल स्वभाव ही रहा है!
इन इस्लामी आक्रमणों में, जो लगभग १००० ईसवी सन से १७३९ तक,अनवरत जारी रहे, कम से कम १० करोड़ हिन्दू मरे गये,जो इतिहास में किसी भूभाग में घटित सबसे बड़ा हत्याकाण्ड है!
पर हिन्दुओं ने इन आक्रान्ताओं के वंशजों से उनका बदला लेने का कभी प्रयास नहीं किया!
वर्तमान समय में दिख रहे हिन्दू बहुमत और इस्लामी अल्पमत के बीच टकराव के लिए सरकारों की छद्म धर्मनिरपेक्ष नीतियाँ जिम्मेदार हैं, हिन्दू-धर्म नहीं!
हिन्दू भारत में अ-हिन्दुओं की धार्मिक स्वतन्त्रता पर
कोई बन्धन नहीं होगा!
हिन्दुओं को अपने राष्ट्र के इतिहास पर गर्व होना चाहिए! उन्हें अपने मतभेद ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर हल करने चाहिए! वास्तविकता से भागने के प्रयास, इस देश के लिए, जो लम्बे समय तक धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति का ध्वजवाहक रहा है, अन्ततः विनाशकारी ही सिद्ध होगा!
भारत मुस्लिम राष्ट्रों को प्रसन्न करने के लिए अपने बहुमूल्य सिद्धान्तों का बलिदान करने की मूर्खता करता रहा है; सेक्युलरवाद के नाम पर तुष्टीकरण की नीतियों का भी अनुसरण लम्बे समय से करता रहा है!
हिन्दुओं को अब अपने अन्दर की शान्ति को बाहर प्रकट करने के लिए, एक होकर, देश पर अपना दावा प्रस्तुत करना चाहिए!
हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्वभाव से ही, और संविधान में उल्लिखित किसी भूमिका या अनुच्छेद के कारण न बना हुआ,
सेक्युलर भारत शेष विश्व के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा!
और ऐसा करने का समय है: अभी; तुरन्त!
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बहुत बड़ा थ्रेड है, ध्यान से समझ कर पढ़िए और सरकार से प्रार्थना करे कि मजबूती से विचार करे 🙏
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