UNTOLD HISTORY OF CHENGIZ KHAN!
प्रश्न है कि इस्लामी और ईसाई इतिहासकारों ने #चंगेज_खान को बदनाम क्यों किया?
यह जानकर बहुत से लोगों का दिमाग चकरा गया होगा क्योंकि हमारे देश में ज्यादातर लोग चंगेज खान को मुसलमान ही समझते हैं।जबकि स्तय यह नही है जी हाँ चंगेज़ खान मुस्लमान नही था
आमतौर पे लोग ये मानते है कि चंगेज़ खान है इसका मतलब वो पक्का मुसलमान ही है लेकिन ऐसा है नहीं
चंगेज खान मुसलमान नहीं था वो हिंदू धर्म की तरह ही एक प्रकृति पूजक धर्म का अनुयायी था जिसे #तेंगरिज्म कहा जाता है
तेंगरिज्म में आकाश के देवता तेंगरी को ही पूजनीय माना जाता है
इस्लाम मूर्तिपूजा का विरोध करता है जबकि तेंगरिज्म में मूर्तिपूजा होती है इसलिए इस्लाम और तेंगरिज्म के बीच एक ऐतिहासिक दुश्मनी और घृणा रही है
फिर लोगों के मन में ये सवाल भी उठेगा कि आज सारे खान मुसलमान क्यों होते हैं ये इतिहास में सामूहिक धर्मपरिवर्तन की एक अलग कहानी है
दरअसल सच्चाई ये है कि चंगेज खान इतिहास का वो किरदार है जिसके बारे में इतिहासकारों ने सबसे ज्यादा झूठ बोला है । इस्लामी और ईसाई इतिहासकारों ने चंगेज खान को अत्यंत क्रूर, बर्बर और आतातायी साबित करने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। जबकि हकीकत में चंगेज खान ऐसा नहीं था...
चंगेज खान इससे उलट.... एकदम उसूलों और आदर्शों वाला इंसान था... ये बात आपको बहुत अजीब और उलझन वाली लगेगी लेकिन आपको इस सवाल का भी जवाब मिल जाएगा कि आखिर चंगेज खान ने उस वक्त दुनिया के सबसे धनी देश भारत पर हमला क्यों नहीं किया ?
इस्लामिक इतिहासकारों की ही तरह ईसाई यूरोपीय इतिहासकार भी चंगेज खान से बहुत नफरत करते थे। क्योंकि वो कभी ये बर्दाश्त नहीं कर सके कि यूरोपियन नस्ल के अलावा कोई एशिया की नस्ल का इंसान विश्व विजेता बन गया। आपने इस बात पर गौर किया होगा कि यूरोपियन नस्ल के योद्धा जैसे
#सिकंदर#नेपोलियन और #जूलियस_सीजर की प्रशंसा में यूरोपियन इतिहासकारों ने चार चांद लगा दिए
इन योद्धाओं को इतिहासकारों ने विश्वविजेता की पदवी से नवाजा
लेकिन चंगेज खान ने इन योद्धाओं से भी बड़ा साम्राज्य खड़ा किया फिर भी इतिहासकारों ने चंगेज खान को कभी विश्वविजेता की संज्ञा नहीं दी
इसी तरह इस्लाम के विद्वान चंगेज खान से बहुत ज्यादा नफरत करते हैं। क्योंकि अगर चंगेज खान नहीं होता तो आज मुसलमानों की संख्या तीन गुनी होती। चंगेज खान और उसके वंशजों ने बहुत बड़े पैमाने पर मुसलमानों का सफाया कर दिया था और इसकी वजह थी इस्लामिक क्रूरता और अनाचार। इस इस्लामिक अनाचर और
क्रूरता का बदला चंगेज खान ने बहुत बेरहमी से लिया था। मुसलमान इतिहासकार इसलिए भी चंगेज खान से नफरत करते हैं क्योंकि उन्हें ये बात अच्छी नहीं लगती है कि एक काफिर सेनापति ने दुनिया का सबसे विशाल साम्राज्य खड़ा किया था।
चंगेज खान ने अपने पूरे जीवनकाल में कभी भी किसी पर बिना वजह हमला नहीं किया । उसने युद्ध को यथासंभव टालने की कोशिश की थी चीन के नक्शे के ठीक ऊपर एक देश मौजूद है जिसे मंगोलिया कहा जाता है। #मंगोलिया में बहुत सारी जनजातियां और कबीले थे जो सदैव आपस में लड़ते रहते थे
इस आपस की लड़ाई का लाभ हमेशा चीन के राजाओं ने उठाया चीन के राजा बहुत चालाकी से इन जनजातियों को आपस में लड़वाते थे और इनसे टैक्स प्राप्त करते थे
जिस मंगोल योद्धा ने भी मंगोलिया की सभी जनजातियों को इकट्ठा करके एक राष्ट्र बनाने की कोशिश की उस योद्धा को चीन के राजाओं ने मरवा दिया
अंबागाई... चंगेज खान के चाचा थे... चंगेज खान के जन्म के कुछ साल पहले ही अंबागाई ने मंगोलिया की सभी जनजातियों को इकट्ठा करने की कोशिश की थी लेकिन चीन के राजा ने अंबागाई को कैद कर लिया और उनको चीन लाकर कत्ल करवा दिया।
इन घटनाओं से पता चलता है कि मंगोलिया की ... #चीन के राजाओं से एक ऐतिहासिक और जन्मजात दुश्मनी थी। 1206 में चंगेज खान ने सभी मंगोल जनजातियों को इकट्ठा कर लिया और मंगोलिया को एक राष्ट्र में बदल दिया। इसके बाद चंगेज खान की उपाधि हासिल की...
दरअसल पहले चंगेज खान का नाम #तिमुजिन था
1215 तक चंगेज खान ने पूरे चीन पर कब्जा कर लिया और बीजिंग को नष्ट कर दिया। इस तरह चंगेज खान ने अपनी चाचा की मौत का बदला लिया। लेकिन 1218 में चंगेज खान को मजबूरी में #कारा_खिताई एम्पायर पर हमला करना पड़ा। कारा खिताई एम्पायर आज के
दक्षिणी रूस के आस पास फैला हुआ साम्राज्य था। दरअसल कारा खिताई एम्पायर के राजा ने मंगोल के एक शहर पर हमला किया और उस शहर के शासक का कत्ल कर दिया
संयोग से उस शहर के शासक का विवाह.... चंगेज खान की एक रिश्तेदार के साथ होने वाला था। इस घटना ने चंगेज खान को क्रोधित कर दिया और इसीलिए
इसीलिए उसने पूरे कारा खिताई साम्राज्य का सफाया कर दिया।
1218 में कारा खिताई एम्पायर को नष्ट करने के बाद चंगेज खान के साम्राज्य की सीमा #ख्वाराज्म के साम्राज्य से जाकर भिड़ गई ख्वारज्म उस वक्त एक बहुत बड़ी रियासत थी जिसकी सीमाएं #भारत की सिंधु नदी से टकराती थी।
ख्वारज्म की रियासत में आज का पूरा अफगानिस्तान था। यहां का बादशाह अलालुद्दीन मोहम्मद शाह द्वितीय था जो #तुर्की_ममलूक नस्ल का मुसलमान था और वो ईरान से राज चला रहा था। ये वो समय था जब तुर्की नस्ल के मुसलमान एशिया के कई बड़े देशों को गुलाम बनाकर उन पर राज कर रहे थे।
#ईरान तब तुर्की नस्ल के अलाउद्दीन का गुलाम था
यानी तुर्की का ही एक उपनिवेश था
अलालुद्दीन के ख्वाराज्म के साम्राज्य में ईरान के अलावा तजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान,किर्गिस्तान, और आज के पाकिस्तान के आसपास के कुछ हिस्से भी शामिल थे यानी ये अपने आप में एक साम्राज्य था
1218 में चंगेज खान ने व्यापार करने के उद्देश्य से ख्वाराज्म में 500 लोगों का एक व्यापारिक और राजनीतिक दल भेजा। लेकिन अलालुद्दीन ने अपने विनाश को निमंत्रण दिया और उन सभी 500 लोगों को बेरहमी से अपने उतरार राज्य में कत्ल करवा दिया। इसके बाद भी चंगेज खान ने अपना धैर्य नहीं खोया और
दोबारा तीन राजदूत अलाउद्दीन के दरबार में भेजे। इनमें से एक दूत का सिर अलाउद्दीन ने कटवा दिया और बाकी दो राजदूतों को बहुत जलील करके भेज दिया।
• इसके बाद चंगेज खान के पास अलाउद्दीन के खिलाफ युद्ध के अलावा कोई विकल्प ही नहीं कर गया।
चंगेज खान जैसी आर्मी उस वक्त किसी के पास थी ही नहीं। अलाउद्दीन परास्त हो गया और उसने भागकर #कैस्पियन_सागर के पास एक द्वीप पर शरण ली जहां 1220 में उसकी मौत हो गई। इसके बाद अलाउद्दीन का बेटा जलालुद्दीन ख्वाराज्य का वारिस बना। बाद में मंगोल सेनाओं ने जलालुद्दीन का भी खात्मा कर दिया।
साल 1221 में चंगेज खान का पड़ाव #सिंधु^नदी के तट पर था और वो भारत पर हमला कर सकता था क्योंकि उसने ख्वारज्म के बादशाह जलालुद्दीन की सेना के आखिरी आदमी का भी कत्ल करवा दिया था।
ख्वाराज्म का साम्राज्य खत्म करते हुए चंगेज खान ने #समरकंद, #बुखारा, निशापुर, उतरार और गोरगान जैसे तमाम
इस्लामिक सभ्यता के सेंटर्स को नष्ट कर दिया था। यही वजह है कि मुल्ला मौलवी और आलिम उलेमा चंगेज खान से आज भी बहुत ज्यादा नफरत करते हैं।
• इन पूरी ऐतिहासिक घटनाओं से ये समझ में आता है कि चंगेज खान ने सदैव युद्ध को टालने की ही कोशिश की थी।
उसने भारत पर इसलिए हमला नहीं किया क्योंकि भारत पर हमला करने की कोई वजह उसके पास नहीं थी और वो पहले से तुर्की के क्रूर मुसलमानों की अत्याचार झेल रहे हिंदुओं को और ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था
किसी के भी बारे में कोई धारणा बनाने से पहले अच्छी तरह से उसके बारे में जानकारी होना जरूरी है। ये लेख अभिजीत चावड़ा के रिसर्च पर आधारित है।
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🚩एक ऐसा मंदिर जो विशाल समुंद्र के लहरों पर तैरता हुआ किसी नाव की भांति प्रतीत होता है।
जी हां!
आज हम आपको इंडोनेशिया एक ऐसे प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी गिनती विश्व के अत्यधिक खूबसूरत मंदिरों में होती है। जिसे आप नीचे चित्रों में देख ही रहे होंगे!
यह मंदिर है :- “तनाह लोट” जिसका अर्थ होता है “समुंद्री भूमि” ।
◾यह मंदिर समुंद्र में एक बड़ी अपतटीय चट्टान पर विराजमान है। तनाह लोट को 15 वीं शताब्दी के डांग हयांग निरर्था नामक पुजारी के द्वारा बनवाया गया था। यह बाली में समुद्र के देवता वरुण की पूजा करने का एक पवित्र स्थान है।
मंदिर के मुख्य देवता वरुण देव या भटारा सेगरा हैं, जो समुद्र देवता हैं। यह मंदिर बाली द्वीप के हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। तनाह लोट मंदिर सदियों से बालिनी पौराणिक कथाओं का हिस्सा रहा है। मंदिर सात समुद्री मंदिरों में से एक है जो बालिनी तट पर स्थित है।
जिसे तुर्की मुगल आक्रमण ने सब नष्ट कर के जला दिया बहुत हिन्दू मंदिर लूटे गये नही तो मेगस्थनीज अलवरुनी,इउ-एन-सांग के ग्रन्थो से अति समृद्ध भारत के वर्णन है
वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया
इसलिए उस काल से ही #गुरुकुल और आश्रमों के रूप में शिक्षा केंद्र खोले जाने लगे थे। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया। भारत की शिक्षा पद्धति भी और ज्यादा पल्लवित होती गई। गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफर उन्नति करते हुए विश्वविद्यालयों में तब्दील होता गया
पूरे भारत में प्राचीन काल में 13 बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई। 8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था। #गणित, #ज्योतिष, #भूगोल, #चिकित्सा_विज्ञान(#आयुर्वेद ), #रसायन, #व्याकरण और
#मंदिर_की_पैड़ी
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जबभी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?
आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर,व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं
परंतु
यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई
वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए
आप इस शलोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं।
यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्
इस श्लोक का अर्थ है-
🔱 अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
भारत में ट्रेन लाने का श्रेय किसको प्राप्त है, अंग्रेज ???
बिलकुल नहीं, नाना जगन्नाथ शंकर सेठ वो पहले व्यक्ति है जिन्होंने इसके लिए पहल शुरू की थी
नाना स्वर्णकार परिवार में जन्मे थे और व्यवसाई घराना होने के कारण वे धन संपदा से काफी संपन्न भी थे 1/7 👇
इंग्लैंड में जब ट्रेन पहली बार चली तो ये पूरी दुनिया की हेडलाइन बनजाती है,ये खबर जब नाना तक पहुंची तो उन्हे लगा ये ट्रेन उनके गांव,शहर में भी चलनी चाहिए
अब नानाजी कोई आम व्यक्ति तो थे नहीं उनका व्यवसाय बहुत बड़ा था,उनका प्रभाव इससे समझ सकते है कि कई अंग्रेज अफसर उनके सानिध्य में
रहते थे
उन्होंने कई विश्वविद्यालय खोले थे जिसमे कई महान क्रांतिकारियों ने बाद में इसमें शिक्षा को ग्रहण किया, उन्होंने लड़कियों के लिए मुंबई में पहला स्कूल खोला। नानाजी अपने स्कूलों में अंग्रेजी के साथ संस्कृत पढ़ाने की भी व्यवस्था की थी
● चाँदी के 84 हजार सिक्के गलाकर बनाए गए थे दो कलश इस विश्व विख्यात कलश का निर्माण आमेर जयपुर के कुशवाहा ( कछवाहा ) राजवंश के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सन 1894 ई० में करवाया था !
● राजस्थान एक ऐसा राज्य है जो आज भी अंदर पुरानी परंम्परारों सभ्यताओं और संस्कृति को सहेजे हुए है राजस्थान में हर साल देश दूनिया के कोने कोने से लाखों शैलानी आते हैं ! और यहाँ का लुत्फ उठाते हैं ! राजस्थान आने वाले पर्यटक जयपुर आने के बाद सीटी पैलेस का रूख अवश्य करते हैं !
● सीटी पैलेस गये बीना जैपूर की यात्रा पूरी नहीं होती ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ मौजूद है दूनिया का सबसे बड़ा चाँदी का कलश इस वृहद गंगाजली को देखने के लिए यहां दूर दूर से शैलानी आते हैं इस कलश की उचाई 5.फीट 3 इंच है और गोलाई 14.फीट 10 इंच !
भारतीय रेलवे में टॉयलेट्स २०वी सदी के प्रारम्भ में शुरू हुए , लेकिन अंग्रेजो ने डिब्बे के फ्लोर में ५" छेद कर बनाया था , इससे दिक्कत यह थी की पटरी से लगे ,स्टेशन ,नदिया ,खेत यह सब भी गंदे होते थे , और सबसे बड़ी दिक्कत गैंगमैन को आती थी जो पटरिया फिटिंग करते थे ,
आझादी के 70 साल बाद भी सं 2014 तक किसी भी सरकर ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया , आज रेलवे में टॉयलेट्स लगने के 100 साल बाद 2014 के बाद पहली बार भारतीय रेल में बायो टॉयलेट्स जो सीया - चीन बॉर्डर पर हमारी सेनाए वापर लेती है क्योंकि बर्फ की वजह से मानव विस्टा जमींन में घुलता नहीं ,
5 साल के अंतराल बाद आज करीब-करीब 80% रेलवे के डिब्बे बायो टॉयलेट्स से सज्ज है और स्टेशन , पटरी नदी खेत गंदे होने से बच रहे है
अब बताना जरुरी नहीं की 2014 बाद किसकी सरकार ने यह सब महेनत कर देश में फ़ैल रही गंदगी रोकने में सफल रहे है ,