#आधुनिक_राजस्थान_निर्माण_में_राजे_रजवाड़ों_के_अद्वितीय_योगदान_को_साज़िश_के_तहत_दरकिनार_करना

द्वितीय-विश्वयुद्ध में जोधपुर एयरबेस से 1000 जंगी जहाजों ने उड़ान भरी थी.... इस एयरपोर्ट का निर्माण मारवाड़(जोधपुर) के तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह जी राठौड़ ने करवाया था....1 Image
राजस्थान की सबसे बड़ी हॉस्पिटल सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर हैं.... इस अस्पताल का निर्माण महाराजा साहेब सवाई मानसिंह जी कच्छवाह (द्वितीय) ने करवाया था.... दिल्ली एम्स के बाद यह उत्तर-भारत की दूसरी/तीसरी सबसे बड़ी अस्पताल हैं.... सरकारी अस्पताल हैं.... मुफ्त अस्पताल हैं.... 2
राजस्थान के पूर्व व वर्तमान राज्यपालों/मुख्यमंत्रियों/मंत्रियों/सांसदों/विधायकों से ले के प्रदेश की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का इलाज इसी अस्पताल में होता हैं.... शानदार इलाज होता हैं.... आधुनिक उपकरणों मशीनों से इलाज होता हैं.... 3
भारत व एशिया के टॉप-मोस्ट बड़े सर्जन फिजिशियन यहां बैठते हैं....

विश्व की सबसे ज्यादा ओपीडी वाला हॉस्पिटल है सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर .... 4
राजस्थान का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर है.... कैंपस व ब्लॉक कई एकड़ में फैले हैं.... पूर्व में इसका नाम राजपूताना यूनिवर्सिटी था.... यह भी महाराजा सवाई मानसिंह जी द्वितीय द्वारा निर्मित हैं.... इसे प्रदेश की मिनी विधानसभा भी कहा जाता हैं.... 5
राजस्थान विधानसभा का अपना भवन नहीं था अभी दो ढाई दशक पहले बना हैं.... पूर्व में राजस्थान विधानसभा जयपुर के अल्बर्ट हॉल में चलती थी.... यह जयपुर महाराजा साहेब की मलकियत हैं.... 6
हमारे मारवाड़(जोधपुर) स्टेट की रेल-लाइन और रेल्वेस्टेशन आज़ादी के बाद नहीं बने हैं.... हमारे पूर्व महाराजा साहेब उम्मेदसिंह जी पूरे मारवाड़ राज्य में रेलवे का जाल बिछा के गए हैं.... 7
पूरे बीकानेर राज्य व बीकानेर से दिल्ली सराय-रोहिल्ला तक की रेलवे-लाइन महाराजा साहेब गंगासिंह जी ने बनवाई/बिछवाई थी....

राजस्थान में एयरबेस/एयरपोर्ट/रेलवे-स्टेशन आज़ादी से पूर्व बने है सभी रियासतों में बने हैं.... वहां के शासकों द्वारा निर्मित हैं.... 8
राजस्थान के 80 से 90% संस्थान/बड़े-बड़े हॉस्पिटल/विश्वविद्यालय/महाविधालय/विद्यालय/धर्मशालाएं/सराय/तालाब/कुवै/बावड़ियां/नहरें/अनेक व असंख्य धरोहरें राजे रजवाड़ों व समाज के भामाशाहों द्वारा निर्मित हैं.... वर्तमान में इनका संचालन राजस्थान सरकार द्वारा किया जाता हैं.... 9
प्रान्त-निर्माण अथवा राष्ट्र-निर्माण में प्रत्येक राजे-रजवाड़ों का अपने-अपने सामर्थ्यनुसार योगदान हैं.... किसी का कम योगदान किसी का ज्यादा योगदान.... हम अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित यश कीर्ति संसाधन साधन उपक्रमों के निर्माण के योगदान को नकार सकते.... 10
यह महज मैंने मेरे राज्य का उदाहरण दिया है कि इतने विशाल राज्य एवं यहां के संसाधनों का निर्माण कैसे कब किसके द्वारा हुआ।

राष्ट्र का निर्माण भी ऐसे ही हुआ होगा!

मीडिया रॉफेल, अमिताभ को कोरोना संक्रमण दिखायेगा... सास बहू ननद लौंग लहसुन दिखायेगा.. थरथर कांपा जिनपिंग दिखायेगा.. 11
परन्तु वास्तव में जरूरी खबरें देश को कौन बताएगा??

लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के दायित्व क्या है??

विध्वंस का अधिकार उसे ही है जिसने अपने जीवनकाल में कुछ सृजन किया हो!!
सक्षिप्त चित्र में महाराजा साहब हरिसिंह जी कश्मीर, उम्मेदसिंह जी जोधपुर एवं महाराजा गंगासिंह जी बीकानेर है...12
उपरोक्त लेखन हमारी बड़ी बहन @duniya12345 जी की हैं🙏

अद्भूत लेखनी👌🙏

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with जेवेन्द्रसिंह शेखावत

जेवेन्द्रसिंह शेखावत Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @jv_rajput

28 Dec
"वीर झुंझारसिंह शेखावत, गुढ़ा-गौड़जी का"

खंडेला के प्रथम शेखावत राजा रायसल दरबारी के 12 पुत्रों को जागीर में अलग-२ ठिकाने मिलें जिनसे आगे जाकर शेखावतों की विभिन्न शाखाएं चली। इन्हीं के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली....१
Continue to read👇 Image
इन्हीं के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत' कहलाते हैं। भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुरवाटी(शेखावाटी) के स्वामी बनें। टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास में विख्यात है। टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझारसिंह थे, झुंझारसिंह सबसे वीर, परम-प्रतापी, निडर व कुशल योद्धा थे....२
तत्कालीन समय "केड़" नामक गांव पर नवाब का शासन था.... नवाब की बढ़ती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थें इसलिए केड़ गांव पर चाहकर भी अधिकार नहीं कर पा रहे थे।
कहते हैं कि टोडरमलजी जब मृत्यु शय्या पर थें तब उनको मन-ही-मन एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी...३
Read 7 tweets
3 Dec
ठाकुर लक्ष्मणसिंह जी सोढ़ा:-

छाछरो हवेली के राणा तथा पाकिस्तान के पूर्व रेलमंत्री जिनका दिल सदैव हिंदुस्तान राष्ट्र के लिए धड़कता था जिस कारण 1969 में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति को चलते उनपर पाकिस्तान सरकार द्वारा जासूसी का आरोप लगाया गया....1
Thread अवश्य पढ़ें:- 👇 Image
ऐसे माहौल के बीच सोढ़ा ठाकुर साहब छाछरो की हुकूमत छोड़ ऊंट पर सामान बांधकर हिंदुस्तान आ गये तब वहां की 'मांगणियार महिलाओं' ने विदाई गीत गाएं... "बोल्या चाल्या माफ़ करज्यो, म्हारा राणा रायचंद रे"

अब छाछरो ठाकुर साहब हिंदुस्तान आकर खेती-बाड़ी करने लगे। .....2
दूसरी तरफ़ 71 की जंग छिड़ चुकी थी और कमान जयपुर महाराजा ब्रिगेडियर भवानीसिंह जी के हाथों में थी। छाछरो के मुख्य मौर्चे पर "20राजपूत इन्फैंट्री" व "दरबार की ब्रिगेड" थी।

कहते हैं छाछरो पर अटैक करने से पहले जयपुर दरबार बिग्रेडियर साहब और सोढ़ा ठाकुर साहब की बात हों चुकी थी.....3
Read 8 tweets
10 Sep
#तुंगा_की_युद्ध(28जुलाई1787):-

मुगलों की ताकत मिलने के बाद महादजी सिंधिया ने राजपूताना की रियासतों में तोप व तलवार के बल पर अवैध वसूली और लूटपाट करनी चाही।
कहते हैं कि महादजी सिंधिया ने जयपुर महाराजा प्रतापसिंह जी से 60 लाख रुपए मांगे थे लेकिन जयपुर महाराजा ने....1 Image
60लाख रुपए देने से इंकार कर दिया तब यहादजी सिंधिया ने फ्रांसिसी डिबॉयन को कमांडर बनाकर जयपुर पर चढ़ाई कर दी। अतः परिणामस्वरूप तुंगा नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ।

तुंगा का युद्ध 28 जुलाई 1787 को जयपुर नरेश सवाई प्रतापसिंह कछवाह तथा मराठा सेनापति महादजी सिंधिया के बीच शुरू हुआ...2
इस युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से कछवाहों राजवंश की शेखावत, राजावत, धिरावत, खंगारोत, बलभद्रोत तथा नाथावत शाखाओं ने भाग लिया साथ ही जोधपुर (मारवाड़) के राठौड़ सैनिकों ने भी जयपुर राजघराने का सहयोग किया जबकि मराठों की सेना का नेतृत्व अपने समय के सबसे बड़े सेनानायक....3
Read 6 tweets
8 Sep
#मांडण_का_युद्ध
यह युद्ध 1822 वि.स. (6 जून 1775) में लड़ा गया था, जिसकी स्मृति प्रत्येक शेखावत घराने में आज भी ताजा बनी हुई है विशेष रूप से झुंझुनू और उदयपुरवाटी परगनों का प्रत्येक शेखावत परिवार इस बात का दावा करता है कि उसका कोई एक पुरखा माण्डण के युद्ध में अवश्य लड़ा था...1 Image
अधिकांश कुटुम्बों के योद्धाओं ने माण्डण के समरांगण में प्राणों की आहुतियाँ देकर अपने वंशजों को ऊँचा मस्तक रखने का गौरव प्रदान किया था। कहा जाता है- माण्डण के उस रक्तरंजित युद्ध में सैकड़ों ऐसे नवयुवा वीरों ने अपना रक्त बहाया था, जो उसी समय विवाह करके अपनी नव वधुओं के साथ....2
घरों को लौटे थे और जिनके मंगल सूचक कांकड़-डोरड़े (विवाह के समय हाथ की कलाई पर बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र) विधिवत खोले ही नहीं जा सके थे।

यह युद्ध उस वक्त लड़ा गया जिस युग के षड्यंत्रों से दूषित राजनीतिक वातावरण में पले उन शेखावत योद्धाओं ने किस प्रकार एक दिल-दिमाग होकर....3
Read 6 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(