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Oct 29, 2021 9 tweets 4 min read Read on X
As the name suggests, MINIATURE PAINTINGS are colorful handmade paintings very small in size. One of the outstanding features of these paintings is the intricate brushwork which contributes to their unique identity. ImageImage
The colors used in the paintings are derived from various natural sources like vegetables, indigo, precious stones, gold and silver. While artists all around the world convey their respective theme through their paintings, the most common theme used in the miniature.. Image
..paintings of India comprises of the Ragas or a pattern of musical notes, and religious and mythological stories. Miniature paintings are made on a very small scale especially for books or albums. These are executed on materials, such as paper and cloth. Image
The Palas of Bengal are considered the pioneers of miniature painting in India. The tradition of miniature paintings was further taken forward by the artists of various Rajasthani schools of painting, including the Kishangarh, Bundi Jaipur, Mewar and Marwar. Image
Natural stone colours are used in a paper-based “wasli” for the creation of these paintings. The miniature paintings have developed into several distinct schools of miniature like Mughal, Rajasthan, Deccan, Kangra, Malwa, Pahadi, etc. Image
Miniature paintings originated in India around 750 A.D when the Palas ruled over the eastern part of India. Since religious teachings of the Buddha, accompanied by his images, were written on palm leaves, these paintings became popular. Image
As these paintings were done on palm leaves, they had to be miniature in nature because of space constraint.Around 960CE,similar paintings were introduced in western parts of India by the rulers of the Chalukya Dynasty. Image
During this period,miniature paintings often portrayed religious themes.Rajasthan had their own distinct features and often depicted the royal lifestyle and mythological stories of Sri Krishna and Radha. Image
Most of these miniature paintings depicted the lifestyle of Kings and Queens and also narrated their tales of bravery. Some of these paintings were also created to showcase the contribution of various rulers towards their respective subjects and kingdoms. Image

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Dec 20
🌺।।भगवान विष्णु का प्रथम अवतार: मत्स्य अवतार की कथा।।🌺

श्रीमद्भागवत महापुराण में राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव से ईश्वर, जगत और आत्मा के विषय में अनेक प्रश्न किए हैं जिसका श्री शुकदेव ने अपनी दिव्य वाणी से उत्तर देकर उनकी मन की जिज्ञासा को शांत किया ।

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🌺।।परीक्षित का शुकदेव से मत्स्य अवतार की कथा सुनाने का आग्रह करना।।🌺

ईश्वर की कृपा से राजा परीक्षित के मन में प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा जागृत हुई । उन्होंने श्री शुकदेव जी से प्रश्न किया, "प्रभु मैं आपके श्री मुख से श्रीहरि की अनेक दिव्य कथाओं का श्रवण कर चुका हूं और अब मैं आपसे श्रीहरि के दिव्य मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा रखता हूं ।"
श्री शुकदेव बोले, "प्रभु के प्रथम मत्स्य अवतार की कथा अत्यंत दिव्य है जो वक्ता और श्रोता दोनों के मन को पवित्र कर देती है । अतः परीक्षित इस दिव्य कथा को एकाग्रचित्त होकर सुनो ।"

💮प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा श्रीमद्भागवत के आठवें स्कंध के 24वें अध्याय में वर्णित है ।💮
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Dec 19
🌺।।महर्षि दधीचि का इन्द्र को दिया गया अपनी हड्डियों का महादान,महाशक्तिशाली देवास्त्र वज्रास्त्र का निर्माण और वृत्रासुर का वध।।🌺

श्रीमद्भागवत और शिव महापुराण में महान ऋषि दधीचि की कथा आती है,जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए अपना शरीर इंद्रदेव को दान कर दिया था।

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महर्षि दधीचि ने समस्त देवताओं को दुर्धर असुर वृत्रासुर के भय से मुक्त किया था ।

इस कथा का श्रीमदभागवत के छठे स्कंध के तीसरे अध्याय में वर्णन आता है ।  

आइए जानते हैं ये अद्भुत कथा;
🌺।।गुरु बृहस्पति का इंद्र को त्यागना।।🌺

एक बार देव गुरु बृहस्पति, इंद्र से मिलने के लिए उनकी राज्यसभा में गए । उस समय इंद्र और अन्य देवगण गंधर्वों के गान और अप्सराओं के नृत्य में इतना डूबे हुए थे कि उन्होंने गुरु बृहस्पति की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । उस समय किसी भी देवता ने ना तो उन्हें प्रणाम किया और ना ही उन्हें उचित आसन दिया ।Image
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Dec 17
🌺।।श्रीमद्भागवत महापुराण से महाराजा अंबरीश की कथा, ऋषि दुर्वासा का उन्हें शाप और एकादशी व्रत का महत्व।।🌺

महाराजा अंबरीष जिनका नाम सुनते ही मन में पवित्रता का भाव जागृत हो जाता है। यह भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे।

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शुकदेव जी परीक्षित राजा को ये कथा कह रहे हैं;

महाराजा अंबरीष की सहनशीलता और तपस्या के प्रभाव से दुर्वासा जैसे महाक्रोधी ऋषि भी उनके समक्ष नतमस्तक हो गए थे।महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत के नवम स्कंध के चतुर्थ अध्याय में राजा अंबरीष की दिव्य कथा का वर्णन है ।
🌺।।राजा अंबरीष की वंशावली।।🌺

आर्यव्रत सदैव से ही महान राजाओं की भूमि रहा है। समय-समय पर अनेक राजाओं ने भगवान की भक्ति कर देवत्व को प्राप्त किया है। प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में नाभाग नाम के बहुत ही धर्मात्मा राजा हुए। वह हर समय अपनी प्रजा की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। वह राजा नभग के पुत्र थे और वैवस्वत मनु के पौत्र थे। वह हर समय धर्म के कार्य में लगे रहते थे।
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Dec 16
🌺।।भगवान विष्णु के दिव्यास्त्र सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति कथा और उससे जुड़ी कुछ जानकारी।।🌺

सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ चक्र है, जिसे प्रभु अपनी तर्जनी उंगली पर धारण करते हैं।

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🌺।।सुदर्शन चक्र के बारे में कुछ जानकारी।।🌺

1. ये अस्त्र मन की गति से चलने वाला और अपने लक्ष्य का पीछा करके, उसे समाप्त करके, वापस प्रभु के पास आ जाता है। 

2. इस चक्र मैं 108 मुड़े हुए किनारे हैं।
3. इस चक्र मैं 12 आरे लगे हैं, जो साल के 12 महीनों को प्रतिष्ठित करते हैं। यह आरे इसके मध्य और किनारों को जोड़ने का कार्य करते हैं। 

4. यह चक्र 6 नाभि वाला है, और 2 युगों से युक्त है।
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Dec 15
🌺।।महाभारत काल में शान्तनु तथा गंगा विवाह और वसुओं का रहस्य।।🌺

राजा शांतनु चंद्र वंश के परम प्रतापी नरेश थेे। वह चक्रवर्ती  सम्राट भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा, की 14वीं पीढ़ी मैं हुए थे।

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वह बहुत ही उत्तम कोटि के नरेश थे। प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। उनको एक ऋषि से वरदान मिला था कि वह जिस रोगी के सिर पर भी हाथ रख दे तो उसका रोग ठीक हो जाएगा इसलिए उनके यहां रोगियों का तांता लगा रहता था ।
पुराणों में राजा शांतनु को सागर का अवतार भी माना गया है। राजा शांतनु को शिकार खेलने का बहुत शौक था, एक बार वह गंगा के किनारे शिकार कर रहे थे और उनको बहुत प्यास लगी वह पानी पीने गंगा नदी के किनारे गए।
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Dec 13
🌺।।जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को ये समझाया कि जो मनुष्य पुण्य कर्म करने वाले लोगों का दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप करता है, वह उनके पुण्य का छठा अंश प्राप्त कर लेता है।।🌺

आइए जानें कार्तिक माह की ये महागाथा;

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श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा – ‘पूर्वकाल में अवन्तिपुरी(उज्जैन)में धनेश्वर नाम का एक व्यक्ती रहता था। वह रस, चमड़ा और कम्बल आदि का व्यापार करता था। वह वैश्यागामी और मद्यपान आदि बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। चूंकि वह रात-दिन पाप में रत रहता था इसलिए वह व्यापार करने नगर-नगर घूमता था।
एक दिन वह क्रय-विक्रय के कार्य से घूमता हुआ महिष्मतीपुरी में जा पहुँचा जो राजा महिष ने बसाई थी। वहाँ पापनाशिनी नर्मदा सदैव शोभा पाती है। उस नदी के किनारे कार्तिक का व्रत करने वाले बहुत से मनुष्य अनेक गाँवों से स्नान करने के लिए आये हुए थे। धनेश्वर ने उन सबको देखा और अपना सामान बेचता हुआ वह भी एक मास तक वहीं रहा।
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