#कण_कण_वतन
कुछ सोचते होंगे, मैं किस कण की महिमा करूं..

अपने घर की मिट्टी की, गांव की गलियों शहर या इलाके की
मिट्टी की।

दरअसल मिट्टी तो मेरे कुर्बान ए लहू की शान रही है,
फिर मैं कैसे अलग अलग हिस्सों में बांट दूं क़दर इस मिटटी की?
यूं ना सोच मैं एक छोटे से गांव के छोटे से घर से एक छोटा अदना सा बच्चा हूं..

नादान नहीं हूं, मैं किसी पहचान का मोहताज कैसे बनूं,
मैं तो इस तवील दरिया में रहने वाली 135 करोड़ मछलियों का इक हिस्सा हूं।
मैं कण हूं, मैं इक कण ही रहूंगा नश्लों नश्लों तक हिंद की मिट्टी की।
मेरे दरिया की पहचान 135 करोड़ मछलियां,
मेरी जाति कौम मज़हब सब
मेरा कण कण,
पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण ये फैला हुआ 'वतन' मेरा परिवार है,
ये सीमा ही मज़हब है मेरी मिट्टी की।

पुराने दिनों में बहुत शिकार हुए हैं हम,
जिन्हें बसाया हमने उनसे ही लाचार हुए हैं हम ?
ऐसा नहीं होता
हम टूटते नहीं हमें बिखेरा गया था,
फिर उन्हीं साजिश से हमें उजाड़ा गया था,
पर एक बात हमारी सबकी कमाल दिखा गई,
हमने झुकने नहीं दिया कभी शान अपनी मिट्टी की।

पील है, हरा है, लाल, नीला, भगवा धौले संतरी केसरी सब रंग जमे इस दरिया पर,
लडते हैं झगड़ते हैं फिर शाम को आपस में बिफरते हैं
यही इश्क़ यही पूजा यही फितरत यही आदत 'पहचान'है मेरी मिट्टी की।
गर कुछ कारणों के सबब कुछ फूल बे रंगत हुए हैं,
वक़्त के थपेडो को सहेंगे सब मिलकर यही खुशबू है गुलशन की इस मिटटी की।

मैं कण हूं मैं वतन हूं मैं जान हूं इस मिट्टी की,
मुझे गांव शहर जाति में मत बांटो कण हूं इस मिट्टी की
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9 Nov
#हमारा_दर्द
कुछ ने ज़फ़र को सुना होगा,
सुनकर दर्द भी सहा होगा।

तुम्हारे दर्द में ये भी याद रहा होगा,
1857 के जंग में वो अकेले
नहीं थे।
कुछ अरमान थे ईमान था वतन की कौम थी,
अपने फौजी भी साथ रहे साथ आबादी भी थी फिर वो हारे कैसे..?
एक बात याद रखना वो बादशाह ज़फ़र थे, मुसलमान थे।
जंग ए इंतेजाम होना तय था,
पर वो पहले ही छेड़ दिया।

कारण गाय सुअर की चर्बी से बने कारतूस से आस्था आहत बता दिया।

नतीजा ये हुआ कि झांसी की रानी शहीद हुई,
और हजारों वतन के दीवाने
चले गए..
ज़फ़र बंदी बनाकर रंगून क़ैद मे डाल दिया।

हजारों उजड़े सैंकड़ों बिछड़े दो दोस्त भी बिछड़ गए
दो दोस्त टूटे इस कदर राम प्रसाद 'बिस्मिल' इधर तो
'ज़फ़र' उधर..

बस इतना सा संपर्क रहा ख़त लिखा और प्यादे से छुप कर पहुंचवा दिया।

वतन के हालात 'बिस्मिल' लिखा करते थे..

उधर क़ैद खानें से उम्र दराज शेर जज़्बात लिखा करते थे

फिरंगी के जुल्मो का स्तर चरम पर था,इम्तिहां जफर का लिया
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