Manu is a term found with various meanings in Hinduism. In early texts, it refers to the archetypal man, or to the first man (progenitor of humanity). The Sanskrit term for 'human', means 'of Manu' or 'children of Manu'.
In later texts, Manu is the title or name of fourteen Kshatriya rulers of earth, or alternatively as the head of dynasties that begin with each cyclic kalpa when the universe is born anew.
The title of the text Manusmriti uses this term as a prefix, but refers to the first Manu – Svayambhuva, the spiritual son of Brahma.
In the earliest mention of Manu, in the Rigveda, Manu is only the ancestor of the "Five Peoples", or "Páñca Jánāḥ"
(the five tribes being the Anus, Druhyus, Yadus, Turvashas, and Purus). The Indo-Aryans considered all other peoples to be a-manuṣa. Later, in the Hindu cosmology, each kalpa consists of fourteen Manvantaras, and each Manvantara is headed by a different Manu.
The current universe is asserted to be ruled by the 7th Manu named Vaivasvata. Vaivasvat was the king of Dravida before the great flood. He was warned of flood by the Matsya avatar of Vishnu&built a boat that carried Vedas,Manu's family &the seven sages to safety,helped by Matsya
The tale is repeated with variations in other texts, including the Mahabharata and a few other Puranas. It is similar to other flood such as that of Gilgamesh and Noah.
Svayambhuva Manu
The first Manu was Svayambhuva Manu.He was the mind-born son of God Brahma and husband of Shatarupa.He had 3 daughters,namely Akruti, Devahuti & Prasuti.Devahuti was given in marriage to sage Kardama & she gave birth to 9 daughters & a single son named Kapila.
Prasuti gave birth to several daughters including Khyati, Anasuya amongst many, and Akruti gave birth to one son named Yajna and one daughter. Both Kapila and Yajna, who were sons of Devahuti and Akruti respectively, were incarnations of Vishnu.
Svayambhuva Manu, along with his wife, Satarupa, went into the forest to practice austerities on the bank of the River Sunanda. At some point of time, Rakshasas attacked them, but Yajna, accompanied by his sons, the demigods, swiftly killed them.
Then Yajna personally took the post of Indra,the King of heavenly planets. Svayambhuva Manu's abode is Brahmavarta,with the town of Barhismati as the capital. Barhismati was formed when Visnu in his Varaha Avatar shook his body,there fell large hair,which turned into the town.
The small hairs which fell turned into kusa and kasa grass.
In this Manvantara, the Saptarshis were Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya, and Vashishtha. In Svayambhuva-manvantara, Lord Vishnu's avatar was called Yajna.
Swarochisha Manu
The Saptarshis were Urjastambh,Agni,Prana, Danti,Rishabh,Nischar& Charvarivan. In Svarocisha-manvantara, Bhagwan Vishnu's avatar was called Vibhu.
The second Manu,whose name was Svarocisha,was the son of Agni&his sons were headed by Dyumat,Sushena &Rochishmat.
He invented clothing&made it for mankind. At his deathbed,Devala Rishi was born from Shiva's third eye to succeed Svarochisa Manu in making clothes for mankind. In the age of this Manu,Rochana became Indra,the ruler of heavenly planets &there were many demigods headed by Tushita.
There were also many saintly persons, such as Urjastambha. Among them was Vedasira, whose wife, Tushita, gave birth to Vibhu. Vibhu was the incarnation of Vishnu for this Manvantara. He remained a Brahmachari all his life and never married.
He instructed 88000 dridha-vratas or saintly persons, on sense-control and austerity.
Uttama Manu
The Saptarshis for this Manvantara were Kaukundihi, Kurundi,Dalaya,Sankha, Pravahita,Mita & Sammita. In Uttama-manvantara,Prabhu Vishnu's avatar was called Satyasena.
Uttama, the son of Priyavrata, was the third Manu.Among his sons were Pavana,Srinjaya and Yajnahotra.During the reign of this Manu,the sons of Vashista,headed by Pramada, became the seven saintly persons.The Satyas, Devasrutas & Bhadras became the demigods &Satyajit became Indra.
From the womb of Sunrita, the wife of Dharma, the Supreme God Narayana appeared as Satyasena and killed all the evil Rakshasas who created havoc in all the worlds, along with Satyajit, who was Indra at that time.
Tapasa/Tamasa Manu
Saptarshis list: Jyotirdhama, Prithu,Kavya,Chaitra,Agni, Vanaka and Pivara. In Tapasa-manvantara,Bhagwan Vishnu's avatar was called Hari.
Tapasa/Tamasa,the brother of third Manu,was the fourth Manu and he had ten sons, including Prithu,Khyati,Nara and Ketu.
During his reign,Satyakas, Haris,Viras&others were demigods.The 7 great saints were headed by Jyotirdhama& Trisikha became Indra.Harimedha begot a son named Hari,who was the incarnation of Vishnu for this Manvantar by his wife Harini.Hari was born to liberate devotee Gajendra.
Raivata Manu
Saptarshis list: Hirannyaroma, Vedasrí, Urddhabahu, Vedabahu, Sudhaman, Parjanya, and Mahámuni. In Raivata-manvantara, Vishnu's avatar was called Vaikuntha, not to be confused with Vishnu’s divine realm, of the same name.
Vaikuntha came as Raivata Manu, the twin brother of Tamasa. His sons were headed by Arjuna, Bali and Vindhya. Among the demigods were the Bhutarayas, and among the seven brahmanas who occupied the seven planets were Hiranyaroma, Vedasira and Urdhvabahu.
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🌺।।भगवान विष्णु का प्रथम अवतार: मत्स्य अवतार की कथा।।🌺
श्रीमद्भागवत महापुराण में राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव से ईश्वर, जगत और आत्मा के विषय में अनेक प्रश्न किए हैं जिसका श्री शुकदेव ने अपनी दिव्य वाणी से उत्तर देकर उनकी मन की जिज्ञासा को शांत किया ।
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🌺।।परीक्षित का शुकदेव से मत्स्य अवतार की कथा सुनाने का आग्रह करना।।🌺
ईश्वर की कृपा से राजा परीक्षित के मन में प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा जागृत हुई । उन्होंने श्री शुकदेव जी से प्रश्न किया, "प्रभु मैं आपके श्री मुख से श्रीहरि की अनेक दिव्य कथाओं का श्रवण कर चुका हूं और अब मैं आपसे श्रीहरि के दिव्य मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा रखता हूं ।"
श्री शुकदेव बोले, "प्रभु के प्रथम मत्स्य अवतार की कथा अत्यंत दिव्य है जो वक्ता और श्रोता दोनों के मन को पवित्र कर देती है । अतः परीक्षित इस दिव्य कथा को एकाग्रचित्त होकर सुनो ।"
💮प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा श्रीमद्भागवत के आठवें स्कंध के 24वें अध्याय में वर्णित है ।💮
🌺।।महर्षि दधीचि का इन्द्र को दिया गया अपनी हड्डियों का महादान,महाशक्तिशाली देवास्त्र वज्रास्त्र का निर्माण और वृत्रासुर का वध।।🌺
श्रीमद्भागवत और शिव महापुराण में महान ऋषि दधीचि की कथा आती है,जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए अपना शरीर इंद्रदेव को दान कर दिया था।
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महर्षि दधीचि ने समस्त देवताओं को दुर्धर असुर वृत्रासुर के भय से मुक्त किया था ।
इस कथा का श्रीमदभागवत के छठे स्कंध के तीसरे अध्याय में वर्णन आता है ।
आइए जानते हैं ये अद्भुत कथा;
🌺।।गुरु बृहस्पति का इंद्र को त्यागना।।🌺
एक बार देव गुरु बृहस्पति, इंद्र से मिलने के लिए उनकी राज्यसभा में गए । उस समय इंद्र और अन्य देवगण गंधर्वों के गान और अप्सराओं के नृत्य में इतना डूबे हुए थे कि उन्होंने गुरु बृहस्पति की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । उस समय किसी भी देवता ने ना तो उन्हें प्रणाम किया और ना ही उन्हें उचित आसन दिया ।
🌺।।श्रीमद्भागवत महापुराण से महाराजा अंबरीश की कथा, ऋषि दुर्वासा का उन्हें शाप और एकादशी व्रत का महत्व।।🌺
महाराजा अंबरीष जिनका नाम सुनते ही मन में पवित्रता का भाव जागृत हो जाता है। यह भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे।
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शुकदेव जी परीक्षित राजा को ये कथा कह रहे हैं;
महाराजा अंबरीष की सहनशीलता और तपस्या के प्रभाव से दुर्वासा जैसे महाक्रोधी ऋषि भी उनके समक्ष नतमस्तक हो गए थे।महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत के नवम स्कंध के चतुर्थ अध्याय में राजा अंबरीष की दिव्य कथा का वर्णन है ।
🌺।।राजा अंबरीष की वंशावली।।🌺
आर्यव्रत सदैव से ही महान राजाओं की भूमि रहा है। समय-समय पर अनेक राजाओं ने भगवान की भक्ति कर देवत्व को प्राप्त किया है। प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में नाभाग नाम के बहुत ही धर्मात्मा राजा हुए। वह हर समय अपनी प्रजा की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। वह राजा नभग के पुत्र थे और वैवस्वत मनु के पौत्र थे। वह हर समय धर्म के कार्य में लगे रहते थे।
🌺।।महाभारत काल में शान्तनु तथा गंगा विवाह और वसुओं का रहस्य।।🌺
राजा शांतनु चंद्र वंश के परम प्रतापी नरेश थेे। वह चक्रवर्ती सम्राट भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा, की 14वीं पीढ़ी मैं हुए थे।
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वह बहुत ही उत्तम कोटि के नरेश थे। प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। उनको एक ऋषि से वरदान मिला था कि वह जिस रोगी के सिर पर भी हाथ रख दे तो उसका रोग ठीक हो जाएगा इसलिए उनके यहां रोगियों का तांता लगा रहता था ।
पुराणों में राजा शांतनु को सागर का अवतार भी माना गया है। राजा शांतनु को शिकार खेलने का बहुत शौक था, एक बार वह गंगा के किनारे शिकार कर रहे थे और उनको बहुत प्यास लगी वह पानी पीने गंगा नदी के किनारे गए।
🌺।।जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को ये समझाया कि जो मनुष्य पुण्य कर्म करने वाले लोगों का दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप करता है, वह उनके पुण्य का छठा अंश प्राप्त कर लेता है।।🌺
आइए जानें कार्तिक माह की ये महागाथा;
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श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा – ‘पूर्वकाल में अवन्तिपुरी(उज्जैन)में धनेश्वर नाम का एक व्यक्ती रहता था। वह रस, चमड़ा और कम्बल आदि का व्यापार करता था। वह वैश्यागामी और मद्यपान आदि बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। चूंकि वह रात-दिन पाप में रत रहता था इसलिए वह व्यापार करने नगर-नगर घूमता था।
एक दिन वह क्रय-विक्रय के कार्य से घूमता हुआ महिष्मतीपुरी में जा पहुँचा जो राजा महिष ने बसाई थी। वहाँ पापनाशिनी नर्मदा सदैव शोभा पाती है। उस नदी के किनारे कार्तिक का व्रत करने वाले बहुत से मनुष्य अनेक गाँवों से स्नान करने के लिए आये हुए थे। धनेश्वर ने उन सबको देखा और अपना सामान बेचता हुआ वह भी एक मास तक वहीं रहा।