पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) भारत के चेन्नई के तिरुवल्लीकेनी में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित आठवीं शताब्दी का मंदिर है। पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) को अरुलमिगु पार्थसारथीस्वामी मंदिर भी कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण का एक वैष्णव मंदिर है।
'पार्थसारथी' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है,'अर्जुन का सारथी', महाभारत में अर्जुन के सारथी के रूप में कृष्ण की भूमिका का जिक्र है।यह मूल रूप से पल्लवों द्वारा छठी शताब्दी में राजा नरसिंहवर्मन प्रथम द्वारा बनाया गया था।
पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) भगवान विष्णु की पूजा किए जाने वाले 108 प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यहां भगवान विष्णु के चार अलग-अलग अवतार हैं- भगवान कृष्ण, भगवान राम, भगवान नरसिंह और भगवान वराह। यहां भगवान विष्णु के चारों अवतारों को एक ही जगह पूजा जा सकता है,
इससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।भगवान राम और भगवान नरसिम्हा के तीर्थस्थल के लिए अलग प्रवेश द्वार बना हुआ है। यह मंदिर इस मायने में अनूठा है। गोपुरम और मंडप दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला की विस्तृत नक्काशिओं से सजाया गया है।
दंतकथा
महाभारत के अनुसार, भगवान कृष्ण जो विष्णु के अवतार हैं, कौरवों और पांडवों के युद्ध के दौरान अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध मैदान में आए। युद्ध के दौरान कृष्ण ने कोई हथियार नहीं लिया था। अर्जुन और भीष्म के बीच लड़ाई के दौरान भीष्म के बाणों से कृष्ण घायल हो गए थे।
माना जाता है कि मंदिर में भगवान विष्णु के मूर्ति पर निशान इस किंवदंती का पालन करता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, सुमति नाम के एक चोल राजा विष्णु को सारथी के रूप में देखना चाहते थे और उन्होंने तिरुपति के श्रीनिवास मंदिर में प्रार्थना की। भगवान बालाजी ने महाभारत के
युद्ध में अर्जुन के सारथी का रूप बदलकर उनकी यह इच्छा पूरी की। पार्थसारथी उनके सामने युद्ध के घावों और मूछों के साथ प्रकट हुए।
इतिहास
मंदिर मूल रूप से आठवीं शताब्दी में पल्लव के राजा नरसिंहवर्मन द्वारा बनाया गया था। बाद में चोलों द्वारा और 15वीं शताब्दी में विजय नगर
राजाओं द्वारा इसका विस्तार किया गया था। मंदिर में तमिल में आठवीं शताब्दी के शिलालेख हैं,संभवत दंतीवर्मन के काल से जो विष्णु के भक्त थे। ऐतिहासिक साहित्य में भगवान कृष्ण के भक्तों जैसे थिरुमजिसाई अलवर, पेयलवर और थिरुमंगाईलवर के गीतों में भी इसका जिक्र है।मंदिर के आंतरिक संदर्भ
से ऐसा प्रतीत होता है कि 1564 ईस्वी के दौरान नए मंदिरों के निर्माण के दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
बाद के वर्षों में गांव और उद्यानों के दान ने मंदिर को समृद्ध किया। मंदिर में आठवीं शताब्दी के पल्लव राजा नंदीबर्मन के बारे में भी शिलालेख है।
मंदिर चोल काल के दौरान बड़े पैमाने पर बनाया गया था, और इसी अवधि के कई शिलालेख यहां पाए जाते हैं। सबसे भारी मंडपम विष्णु के विभिन्न रूपों विशेषकर अवतारों की मूर्तियों से भरा हुआ है। मंदिर में आठवीं शताब्दी के दंतीवर्मन पल्लव, चोल और विजयनगर के शिलालेख भी देखे जा सकते हैं।
यह मंदिर 'वृंदारण्यस्थलम' स्थान पर मौजूद है जहां सप्तऋषियों (भृगु, अत्रि, मारिची, मार्कंडेय, सुमति, सप्तरमा और जबाली) ने तप किया था। इस स्थान को 'पंचवीरस्थलम'(इंद्र, सोम, अग्नि, मीना और विष्णु) भी कहा जाता है जिसका अर्थ है पांच वीरों की भूमि। जिस स्थान पर यह मंदिर मौजूद है
उसे 'थिरुवल्लीकेनी' कहा जाता है।यह नाम भगवान रंगनाथ कि साथीदेवी 'वेदवल्ली' से आया है, जिनका जन्म इस मंदिर के सामने सरोवर में तैरते कमल पर हुआ था। यह शहर का सबसे पुराना मंदिर है, क्योंकि आज इस गांव में स्थित है उसका उल्लेख पल्लव राजा के शासनकाल तक का है।
वास्तु कला
पार्थसारथी मंदिर की विशेषता है कि इसका निर्माण किसी एक राजा के द्वारा नहीं हुआ था। समय के साथ-साथ कई राजाओं ने यहां निर्माण कार्य कराए और मंदिर का विस्तार होता गया।मंदिर में कई मंडप और महामंडप हैं, जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों पर उपयोग होते हैं।
मंदिर का गोपुरम दूर से ही देखा जा सकता है। इसके अलावा मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी भी की गई है।
पार्थसारथी मंदिर की विशेषता है कि इसके परिसर में विभिन्न भगवानों को समर्पित सात मंदिर हैं।पार्थ सारथी मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं एक द्वार भगवान पार्थसारथी,
देवी रुक्मणी और सत्यभामा के मंदिर को जाता है, दूसरा द्वार भगवान नरसिंह के मंदिर को जाता है, जहां वह योग मुद्रा में हैं। भगवान पार्थसारथी दुश्मनों से लड़ने और भगवान नरसिंह सामना करने की शक्ति देते हैं।
मंदिर में पंचधातु से बने श्री कृष्ण की एक मूर्ति है जो अर्जुन के सारथी के रूप
में रथ के साथ स्थापित है। इसमें श्रीकृष्ण को घायलावस्था में दिखाया गया है।श्री कृष्ण के चेहरे पर जख्म के निशान महाभारत युद्ध में भीष्म द्वारा छोड़े गए तीरों से हुए दर्शाया गया है। दक्षिण के वृंदावन के रूप में विख्यात मंदिर भारत के गिने-चुने विलक्षण कृष्ण मंदिरों में से एक है।
पार्थसारथी मंदिर अपने गोपुरम और वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में साल भर विभिन्न भगवानों के सम्मान में कई उत्सव आयोजित होते हैं, इसी कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इन त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है वैकुंठ एकादशी, क्योंकि इस दिन ना केवल चेन्नई बल्कि तमिलनाडु
और भारत के विभिन्न हिस्सों से भी भारी भीड़ मंदिर में आती है। यह त्यौहार विभिन्न अनुष्ठानों, गानों, नृत्य, पूजा और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मनाये जाते हैं।
मलेशियामध्ये कुठेतरी तुलनेने अपरिचित परंतु आश्चर्यकारक असे सुंदर शिवन ध्यान अभयारण्य आहे. मंदिरामध्ये एक भव्य शिवलिंग आहे आणि भक्तांना निसर्गाच्या सानिध्यात आध्यात्मिक आनंद अनुभवण्यासाठी शांत वातावरण प्रदान करते. हे मंदिर बाटू लेण्यांजवळ आहे, तेथे प्रवेश करणे सोपे नाही
आणि त्यासाठी जंगलातील रस्त्यांशी परिचित असलेल्या स्थानिकाची मदत घेणे आवश्यक आहे.
या मंदिरात जाणे खूप अवघड आहे आणि त्यामुळे एखाद्या परिचित मित्रासह मंदिराला भेट देण्याचा सल्ला दिला जातो ज्याने या आधी या ठिकाणी भेट दिली होती. शिवन ध्यान अभयारण्य एका सितारने स्थापित केले आहे असे
मानले जाते जे जंगलात आहे आणि फक्त जुन्या बेंटॉन्ग रस्त्याने प्रवेशयोग्य आहे, हे ठिकाण भक्तांना निसर्गाच्या अध्यात्मिक अनुभवाचे थेट एकीकरण देते. हे नदीच्या शेजारी स्थित दुर्मिळ मंदिरांपैकी एक आहे आणि इथे तुम्हाला जवळच्या नदीत स्नान करण्याची आणि प्रार्थना करण्याची संधी मिळते.