शुभ संध्या बंधुओ!
मार्गशीर्ष माह गीता जन्ममास होने से पवित्र है इसी शुक्लपक्ष एकादशी को गीता जयन्ती है अतःएक प्रणाम निवेदन करना आवश्यक है
"पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्!न त्वत्समोSस्त्यभ्यधिकः कुतोSन्यो
लोकत्रयेSप्यप्रतिम प्रभाव ।।
भावार्थ-हे श्रीकृष्ण!आप
ही इस चराचर संसारके पिताहै!पूज्यनीयहै! गुरुओके महान गुरुहैं!हेअनन्त प्रभावशाली भगवन्!इस त्रिलोकीमेआपकी समानता करसके ऐसाकोई नहीहै और बढ़कर होने कातो प्रश्नही नही है।
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्। पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियःप्रियायार्हसि देव सोढुम्।।
भावार्थ-अतःमै आपको साष्टांग प्रणाम करती हूं मै दण्ड की तरह श्रीचरणो मे प्रणत हूं प्रसन्न होइये!जैसे पिता पुत्र का!मित्र मित्रके और पति प्रियपत्नी के द्वारा हुये अपमान को सहन कर लेता है वैसे ही हे देव!आप मेरे द्वारा हुये अपमान कोभी सहने समर्थ हैं अतः क्षमा करें!
त्वमेव माता च पिता