समाधिमरण : यदि मनुष्यों को भी देवो की भांति यह पता चल जाए की अब आयु के 6 माह शेष है तो वे उस समय में राग द्वेष के भाव कम कर दे। समाधिमरण की बात तो सभी करते है पर अनुसरण कम ही व्यक्ति कर पाते है। ऐसा क्यूँ होता है की वैराग्य या क्षमा का भाव मृत्यु निकट जानकार ही आता है ?
अरे जगत में कोई जीव मुझे सुखी दुखी नहीं कर सकता, मैं अपने कर्मों और अपनी भूल से दुखी हूँ, ऐसा जानकार सारे जीवों से उनके प्रति किए गए क्रोध की क्षमा मांग लो, यह कोई नहीं जानता की कल की सुबह किसकी मृत्यु लेकर आएगी? तो किसी से राग द्वेष रख के क्या लाभ?
अरे वह जीव भी सिद्ध समान है और हम भी सिद्ध समान, क्या सिद्ध एक दूसरे से लड़ते है?
कर्मों का बंधन बढ़ाने से आजतक किसी का लाभ नहीं हुआ, अगर गलती अगले की लगे तो भी यह नियत जानना की दोष तुम्हारे कर्मों का था, कोई और तुम्हें सुखी दुखी कर ही नहीं सकता, ऐसा जानकार सबसे क्षमा मांगों
और यह प्रतिदिन करो, और इसलिए नहीं की नरक आदि का भय है, इसलिए की यह सत्य प्रमाण है की हम अपने पुण्य पाप से सुखी दुखी होते है, किसी अन्य जीव से नहीं। मरण अटल सत्य है, और देह छूट जाए उससे पहले सब जीवों के प्रति क्षमा का भाव यह परम आवश्यक है
अरिहंत भगवन के बिम्ब (प्रतिमा) के मंदिर जी में नित्य दर्शन करने से हमे उन जैसे बनने की प्रेरणा मिलती है, जो कि जीवन का हमारा मुख्य लक्ष्य है! जिनबिम्ब की छाप हमारे हृदय पर अंकित होती है!
देवदर्शन के लिए मंदिर जाना उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे किसी विद्यार्थी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय जाना आवश्यक है! घर में पूजा करने पर हमें इस प्रकार का यथायोग्य वातावरण उपलब्ध नहीं होता !
कर्मों की विचित्रता दर्शाती एक कथा : जगत शेठ
The Jagat Seths belongs to Jain family and the title of the eldest son of the family. The family sometimes referred to as the House of Jagat Seth, were a wealthy business, banking and money lender family from Murshidabad, Bengal
The history of Bengal, of India, actually, changed with the Battle of Plassey. And most of us probably know that the man who financed that battle was called Jagat Seth. The thing is, Jagat Seth was not a person, but a family title.
In fact, there never was a person called Jagat Seth. The ‘Jagat Seth’ who actually bankrolled Plassey was called Mahtab Rai. Jagat Seth was simply a title conferred by an emperor, and can be interpreted as ‘banker or merchant of the world’.
अक्सर जब आप जिन-मंदिर में दर्शन को जाते हो, तब आपको संसार-वृक्ष का एक मार्मिक चित्र दिखाई देता है.
आइये पहले हम इस चित्र के कथानक पर चर्चा कर लें.
एक बार एक व्यक्ति किसी घनघोर जंगल से गुजर रहा था.
अचानक एक जंगली हाथी उसकी और झपटा. बचाव का कोई दूसरा उपाए न देखकर वह भागने लगा.
फिर भी हाथी तेजी से उसके समीप आता जा रहा था. तभी एक बरगद के पेड़ की लटकती शाखाएं उसके हाथ में आ गयी.वह व्यक्ति तत्काल उन डालियों को पकड़ कर ऊपर चढ़ कर लटक जाता है.
कुछ देर बाद उसकी दृष्टि में नीचे की ओर जाती है, तो वह देखता है कि नीचे एक कुंआ है और उस कुएं में कई भयानक विशाल अजगर उसके नीचे गिरने पर उसे खाने के लिए टकटकी लगा कर उसे देख रहे हैं.
भय से व्याकुल हो उसने ऊपर की और देखा, तो पाया कि पेड़ की वो डालियाँ जिनसे वह लटका हुआ है;
प्राचीन समय की बात है उज्जयिनी नगरी में सेठ सुरेन्द्र दत्त रहा करते थे । उनकी पत्नी का नाम यशोभद्रा था । उनके पास इतनी सम्पत्ति थी कि राज भण्डार भी उनके समक्ष खाली नजर आता था परन्तु सेठ के कोई पुत्र नहीं था ।
इस कारण वह हमेशा ही चिंतित और परेशान रहा करते थे । एक समय उनके नगर में एक अवधिज्ञानी मुनि आये । सेठ की पत्नी ने उनसे पूंछा महाराज हमारे घर में क्या कोई पुत्र अथवा पुत्री का जन्म होगा अथवा नहीं और क्या हमारा वंश आगे चलेगा अथवा नहीं ।
मुनिराज ने अवधिज्ञान से जान कर सेठानी को बतलाया कि धैर्य रखो कुछ ही समय के उपरांत तुम्हारे यहां एक पुत्र जन्म लेगा परन्तु उस समय तुम्हारे ऊपर एक विपदा भी आयेगी । पुत्र का मुख देखते ही तुम्हारे पति मुनि दीक्षा ले लेगें ।