हृदय और लक्ष्य बड़े शरारती बच्चे थे, दोनों कक्षा 5 के विद्यार्थी थे और एक साथ ही स्कूल आया-जाया करते थे।
एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो गयी तब लक्ष्य ने हृदय से कहा, “ दोस्त, मेरे दिमाग में एक आईडिया है?”
"बताओ-बताओ…क्या आईडिया है?”, हृदय ने उत्सुक होते हुए पूछा।
लक्ष्य-“देखो, सामने तीन बकरियां चर रही हैं।”
हृदय- “तो! इनसे हमे क्या लेना-देना है?”
लक्ष्य-”हम आज सबसे अंत में स्कूल से निकलेंगे और जाने से पहले इन बकरियों को पकड़ कर स्कूल में छोड़ देंगे। जब स्कूल खुलेगा, सभी इन्हें खोजने में अपना समय बर्वाद करेगे,हमें पढाई नहीं करनी पड़ेगी…”
हृदय- “पर इतनी बड़ी बकरियां खोजना कोई कठिन काम थोड़े ही है, कुछ ही समय में ये मिल जायेंगी और फिर सबकुछ सामान्य हो जाएगा….”
लक्ष्य- “हाहाहा…यही तो बात है, वे बकरियां आसानी से नहीं ढूंढ पायेंगे, बस तुम देखते जाओ मैं क्या करता हूँ!”
इसके बाद दोनों छुट्टी के बाद भी पढाई के बहाने अपने क्लास में बैठे रहे, जब सभी लोग चले गए तो ये तीनो बकरियों को पकड़ कर क्लास के अन्दर ले आये।
दोनों दोस्तों ने बकरियों की पीठ पर काले रंग का गोला बना दिया। इसके बाद लक्ष्य बोला,“अब मैं इन बकरियों पे नंबर डाल देता हूँ।, और उसने सफेद
रंग से नंबर लिखने शुरू किए।
पहली बकरी पे नंबर 1
दूसरी पे नंबर 2
और तीसरी पे नंबर 4
“ये क्या? तुमने तीसरी बकरी पे नंबर 4 क्यों डाल दिया?”, हृदय ने आश्चर्य से पूछा।
लक्ष्य हंसते हुए बोला, “ दोस्त यही तो मेरा आईडिया है, अब कल देखना सभी तीसरी नंबर की बकरी ढूँढने में पूरा दिन निकाल
देंगे, और हम पढ़ाई नही करनी पड़ेगी।"
अगले दिन दोनों दोस्त समय से कुछ पहले ही स्कूल पहुँच गए।
थोड़ी ही देर में स्कूल के अन्दर बकरियों के होने का शोर मच गया।
कोई चिल्ला रहा था, “चार बकरियां हैं, पहले, दुसरे और चौथे नंबर की बकरियां तो आसानी से मिल गयीं…बस तीसरे नंबर वाली को ढूँढना
बाकी है।"
स्कूल का सारा स्टाफ तीसरे नंबर की बकरी ढूढने में लगा गया…एक-एक क्लास में टीचर गए अच्छे से तलाशी ली। कुछ खोजू स्कूल की छत पर भी बकरी ढूंढते देखे गए… कई सीनियर बच्चों को भी इस काम में लगा दिया गया।
तीसरी बकरी ढूँढने का बहुत प्रयास किया गया,पर बकरी तो तब मिलती जब होती…
बकरी तो थी ही नहीं!
आज सभी परेशान थे पर हृदय और लक्ष्य इतने खुश पहले कभी नहीं हुए थे। आज उन्होंने अपनी चालाकी से एक बकरी अदृश्य कर दी थी।
*_इस कहानी को पढ़कर चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आना स्वाभाविक है पर इस मुस्कान के साथ-साथ हमें इसमें छिपे सन्देश को भी ज़रूर समझना चाहिए।
तीसरी बकरी, दरअसल वो चीजें हैं जिन्हें खोजने के लिए हम बेचैन हैं पर वो हमें कभी मिलती ही नहीं….क्योंकि वे वास्तव में होती ही नहीं!
हम ऐसा जीवन चाहते हैं जो आदर्श हो, जिसमे कोई समस्या ही ना हो….
हम ऐसा जीवन साथी चाहते हैं, जो हमें पूरी तरह समझे, जिसके साथ कभी हमारी अनबन ना हो….
हम ऐसी व्यवसाय/नौकरी चाहते हैं, जिसमे हमेशा सबकुछ एकदम सुगम सुचारू चलता रहे।
क्या ज़रूरी है कि हर समय किसी वस्तु के लिए परेशान रहा जाए? ये भी तो हो सकता है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी है वही हमारे जीवन को परिपूर्ण करने के लिए पर्याप्त हो….
यह भी तो हो सकता है कि जिस तीसरी चीज की हम तलाश कर रहे हैं वो हकीकत में हो ही ना….और हम पहले से ही परिपूर्ण हों!
*"वर्तमान"को आनंद से जियो,*
*"भूतकाल" को भूल जाओ,*
*भविष्य को हरिइच्छा पे छोड़ दो।*
इसलिए *जो प्राप्त है- वही पर्याप्त है*।
जय श्री राधे
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ट्रेन के इंतजार में एक बुजुर्ग रेलवे स्टेशन पर बैठकर रामायण पढ़ रहे थे, तभी वहां ट्रेन के इंतजार में बैठे एक नव दंपत्ति जोड़े में से उस नवयुवक ने कहा...
बाबा आप इन सुनी सुनाई कहानी कथाओं को पढ़कर क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, इनसे आपको क्या सीखने को मिलेगा ?
अगर पढ़ना ही है तो इंडिया टुडे पढ़ो, अखबार पढ़ो और भी बहुत सारी चीजें हैं जो आपको दुनियादारी की बातें सिखाती हैं, व्यवहारिक ज्ञान देती है, उन्हें पढ़ो।
तभी अचानक ट्रेन आ गई, युवक अगले गेट से और बाबा पिछले गेट से ट्रेन में चढ़ गए।
ट्रेन चलने के थोड़ी देर बाद युवक के चीखने चिल्लाने की आवाज आई।
क्योंकि युवक खुद तो ट्रेन में चढ़ गया था, पर उसकी पत्नी नीचे रह गई, ट्रेन में नहीं चढ़ सकी।
तभी बाबा ने कहा- बेटा तुमने इंडिया टुडे, अखबार व अन्य सैकड़ों पुस्तकें पढ़ने के बजाय अगर रामायण पढ़ी होती