The temple is called Trishund Ganpati as it has the idol of Sri Ganesha with three trunks and six hands, seated on a peacock. This depiction of the deity is not found anywhere else in the country.
The temple has been constructed on a high platform and has a small courtyard around it which is often decorated with earthen diyas, lights and flowers on special occasions or festivals. The temple also has images and sculptures of Bhagwan Shiv on the outside.
Some even say that the original plan was to dedicate the temple to Bhagwan Shiv. At the entrance of the temple, you can also find sculptures of Goddess Lakshmi, the Goddess of prosperity flanked by two elephants.
Another intriguing part of the temple is the fact that it has three inscriptions on the wall of the sanctum of the temple. While two of them are in Devanagari script and Sanskrit language, one of them is interestingly in Persian script.
The first inscription talks about the foundation of Rameshwara and the story of the inspection of the temple in 1754. While on the second and inscriptions you can find verses from Bhagavad Gita and story about the construction of Gurudev Datta temple respectively.
That’s not all, the temple also has some inscriptions from the British era as well. In one of the sculptures, in the front of the temple, you can see a rhinoceros being tied tight with iron chains by the British soldiers.
The depiction revolves around the fact that after the battle of Plassey in 1757, the English captured Bengal and Assam and since rhinos symbolise Assam, the depiction narrates the story of the state.
The design and architecture of the temple is a mix of three architectural styles- Rajasthani, Malwa and South Indian styles and even after centuries, the beauty of the temple is intact.
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🌺।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग : पौराणिक कथा, केदारनाथ से जुड़ा पांडवों का इतिहास, क्यों इस ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ पड़ा और केदारनाथ मंदिर की स्थापत्य कला।।🌺
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हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग है।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद रूद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को केदारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग जिस क्षेत्र में स्थित है उसका ऐतिहासिक नाम केदार खंड है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है।
केदारनाथ मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। केदारनाथ मंदिर को मंदाकिनी, सरस्वती, क्षीरगंगा, स्वर्णद्वारी और महोदधि पांच नदियों का संगम माना जाता है।
🌺।।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा।।🌺
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने लोक कल्याण के लिए भरतखंड के बद्रिकाश्रम में तप किया था। वे पार्थिव शिवलिंग की नित्य पूजा किया करते थे। भगवान शिव नित्य ही उस अर्चालिंग में आते थे। कालांतर में भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। उन्होंने नर-नारायण से कहा – मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं आप अपना वांछित वर मांगें। नर-नारायण ने कहा – देवेश, यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप में यहीं प्रतिष्ठित हो जाएं, पूजा-अर्चना को प्राप्त करते रहें एवं भक्तों के दुखों को दूर करते रहें। उनके इस प्रकार कहने पर भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग रूप में केदार में प्रतिष्ठित हो गए। तदनंतर नर-नारायण ने उनकी अर्चना की। उसी समय से वे वहां केदारेश्वर नाम से विख्यात हो गए।
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से सातवाँ ज्योतिर्लिंग है। इसे विशेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।
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गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी और भोलेनाथ को काशी का महाराजा कहा जाता है। वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है।
🥀काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है🥀;
- दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं।
- दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) में विराजमान हैं।
मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में काशी में रहने वालों का पेट भरती हैं। वहीं, महादेव मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। महादेव को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
🌺।।भगवान विष्णु के दशम् अवतार : श्री कल्कि अवतार की कथा एवं भगवान कल्कि से जुड़ी कुछ अन्य रहस्य।।🌺
भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से
भगवान कल्कि 10वें और अंतिम अवतार हैं। 10 अवतारों में से 9 अवतारों का जन्म हो चुका है जबकि कल्कि का अवतार लेना अभी शेष है।
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कल्कि अवतार की कथा का वर्णन विभिन्न हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है उसमें प्रमुख हैं – श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण, भागवत पुराण, कल्कि पुराण और गीत गोविंद इत्यादि।
कल्कि का सामान्य अर्थ है – सफेद घोड़ा, काला युग, अनंत काल। ऐसी मान्यता है कि कलियुग में जब अधर्म अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाएगा तब भगवान विष्णु कल्कि का अवतार धारण करेंगे और धर्म युग की स्थापना करेंगे। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी चमचमाती तलवार के द्वारा दुष्टों का संहार करेंगे तब कलयुग की समाप्ति होगी और सतयुग का आरंभ होगा। विदित हो कि भगवान श्री कृष्ण के बैकुंठ जाने के बाद कलयुग की शुरुआत हुई थी।
🌺।।पुराणों में वर्णित कल्कि अवतार की कथा।।🌺
कल्कि पुराण में वर्णित कथा के अनुसार जब कलियुग में धर्म की हानि अपने चरम पर पहुंच गई तो देवता गण परेशान हो गए। दुखी होकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी उन सभी देवताओं को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें देवताओं के दुख की गाथा कही।
🌺The Sushruta Samhita describes over 120 surgical instruments. 5,13,300 surgical procedures & classifies human surgery in 8 categories.🌺
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Following is the only surviving premodern painting which depicts students of the Sushruta school of ancient India(6th centuryBCE)
These students were trained in Vedas at the age of 8,then were trained as surgeons for 6 yrs and taught the principles of Sushruta Samhita.
They are shown performing mock surgery on water melons and cucumbers. As such, they are earliest recorded surgeons of World. This was found in an old manuscript of Sushruta Samhita which dates back to 600 years.
This illustration is from Odisha Museum.
This master literature remained preserved for many centuries exclusively in the Sanskrit language which prevented the dissemination. of the knowledge to the west and other parts of the world.