..घोड़े की पीठ से उतर कर गधे की पीठ पर बैठना....(एक संस्मरण)....
बात उन दिनों की है जब गाँव गिरांव में प्राइवेट विद्यालयों ने अपना पैर पसारना शुरू ही किया था! ऐसा इसलिये कह रहा हूँ क्यों कि आजकल तो कुकुरमुत्ते की तरह हर तरफ फैले हुए हैं! हाँ तो उस जमाने में अपनी जान पहचान के एक
अध्यापक हुआ करते थे! परास्नातक की योग्यता प्राप्त करने के बाद खाली बैठने से अच्छा सोचे कि कुछ शिक्षण कार्य ही किया जाये!क्यों कि सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरी मिलना तो उस समय भी आसमान से तारे तोड़ लाने जैसी बात थी! इसलिये बिचारे एक स्थानीय CBSE पैटर्न पर चलने वाले सीनियर
सेकेंडरी विद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिये! योग्यता तो थी ही साथ ही पढ़ाने की शैली भी बहुत अच्छी थी इसलिये बड़े जल्दी छात्र प्रिय भी हो गये! और दो तीन महीने के बाद ही विद्यालय की प्रबंधन कमेटी ने उन्हें वहाँ का प्रधानाध्यापक भी बना दिया !क्यों कि जो योग्य और कर्मनिष्ठ होता है
उसे एक स्थान पर रोक कर रखना बड़ा कठिन होता है! इसलिये उसके पैरों में उच्च पद की बेड़ियाँ डाल दी जाती है! लेकिन अब केवल विद्यालय की तन्ख्वाह से तो काम चलता न था!क्यों कि प्राइवेट विद्यालय उस समय तन्ख्वाह ही कितनी देते थे? इसलिये प्रधानाध्यापक महोदय जी
विद्यालय की छुट्टी के बाद
कोचिंग भी पढ़ाने लगे!
अब कोचिंग में अन्य विद्यालयों और महाविद्यालय के भी छात्र आते थे! चूंकि वो इंग्लिश के अध्यापक थे इसलिये उनके लिये गाँव में भी अवसर अच्छा था! खैर! धीरे धीरे उनकी ख्याति स्थानीय महाविद्यालय तक बच्चों ने पहुँचा दी! जहाँ इंग्लिश का कोई अच्छा अध्यापक नहीं था!
तो एक दिन वहाँ के प्रबंधक महोदय ने एक कलर्क से बुलावा भेजा कि फलां अध्यापक महोदय को हमारे महा विद्यालय में पढ़ाने का आमंत्रण दिया जाए!
कलर्क ने अपना कार्य पूरा किया और प्रधानाध्यापक जी को अपने प्रबंधक महोदय का अनुरोध कह सुनाया! साथ ही यह भी बताया कि केवल तीन पीरियड्स ही आपको
लेने हैं! तन्ख्वाह यहाँ की अपेक्षा दोगुना मिल रही थी!
प्रधानाध्यापक महोदय की वह रात तो करवटों में ही बीत गई! उन्होंने खूब गुणा गणित लगाया!जैसे यहाँ सुबह आठ बजे से सायं तीन बजे तक और वहाँ केवल दो घंटे! और सब कुछ पैसे कमाने के लिए ही तो किया जा रहा है! तन्ख्वाह भी वहाँ यहाँ से
दोगुना मिल रही है! हां यह जरूर सुनने में आता है कि वहाँ का प्रबंधक अपने स्टाफ़ के साथ अभद्र व्यवहार करता है! परन्तु जब हम ठीक होंगे तो वह भी ठीक ही रहेगा उन्होंने मन को समझाया और क्या हुआ जो यहाँ से थोड़ा भावनात्मक लगाव है तो? वो तो वहाँ भी कुछ दिनों बाद हो ही जायेगा!
अंततः उन्होंने वहीं जाने का फैसला किया और अगले दिन ठीक दस बजे वो प्रबंधक महोदय की आफिस में थे!
न्युक्ति तो पहले से ही निश्चित थी ! अत: कल से ज्वाइन करने का कह कर वहाँ से जाने लगे! तभी वही कलर्क उन्हें मेन गेट तक छोड़ने आया!
वैसे बाकी तो सब ठीक है सर," बस आप घोड़े की पीठ से उतर कर गधे की पीठ पर बैठने जा रहे हैं!" उसने जाते जाते बस इतना ही तो कहा था! अब आप स्वामी प्रसाद मौर्य जी को ही ले लीजिए ! जिस नेता जी के सुपुत्र ने खुले मंच से इन को पत्तल उठाने वाला कहा था आज उसी के चरणों में जा गिरे!
जबकि बीजेपी ने इन्हें कैविनेट मंत्री बनाया ! खूब मान सम्मान दिया ! पर अगले को नहीं भाया! भाता भी कैसे आखिर लोग गलत थोड़े नहीं कहते हैं कि गंदगी में रहने वालों को स्वच्छता से वैर होता है!
खैर!
प्रधानाध्यापक महोदय के दिमाग में वह वाक्य उलझ गया! और अगले दिन वो अपनी पुरानी
और यह सच भी है। तात्पर्य यह है कि एक से एक नीच व्यक्ति भी जब तक भाजपा मे रहता है, भले ही ऊपरी मन से सही, दिखावे के लिए ही सही राष्ट्रभक्त और हिन्दुत्व वादी राहत है।
हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा
मे आते हैं, तो टीका लगाने लगते हैं, भगवा पहनने लगते हैं, हिन्दू वादी हो जाते हैं। यही स्वामी प्रसाद अब सपा मे गए हैं जल्द ही टोपी पहने रोजा की दावतें करते नजर आएंगे। बुक्कल नवाब सपा से भाजपा मे आते हैं तो हनुमान चालीसा पढ़ते नजर आते हैं। और भी ढेरों उदाहरण हैं। व्यक्ति वही है,
बस जिस विचारधारा वाले दल मे जाता है वैसी ही सोंच हो जाती है।
इसी लिए ध्यान रखिए उम्मीदवार मायने नहीं रखता।मायने रखता है दल की विचार धारा। यही स्वामी प्रसाद जब भाजपा मे थे तो इनको दिए वोट ने राम मंदिर बनवाया।यही जब सपा मे हैं तो इनको दिया वोट राम भक्तों पर गोलियां चलवाता है।
रात को घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी (मूसे रोकने का पिंजरा ) में रखकर हम लोग सो जाते थे।
रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है। पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे।
सुबह उठ कर जब
हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था।
हम हिन्दू चूँकि जीव-हत्या से परहेज करते, इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए।
मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था *बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था।
तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग-भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था।
इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता, पर अपने कॉन्सेप्ट क्लीयर होने चाहिए.
2017 में UP वासी होते हुवे केवल यह इच्छा थी कि थोड़ा लॉ ऑर्डर हो जाए, गुंडागर्दी कम हो जाए, शांति रहे. दंगे बंद हों, टोपी वालों का आतंक और अपीजमेंट समाप्त हो जाए, और चूँकि हिंदू वादी थे तो यह भी आकाँक्षा थी कि
राम मंदिर बन जाए.
2022 पाँच वर्ष बाद जब देखता हूँ तो लगता ही नहीं कि यह वही UP है. दंगे छोड़िए कोशिश करने वालों की भी रूह काँपती है. गुंडागर्दी कम छोड़िए करने वालों के घर बुल डोजर चल जाते हैं. राम मंदिर तो कब का फ़ाइनल हो गया, काशी का भव्य कारिडोर बन गया, विंध्य्वासिनी माता
समेत ढेरों मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है और अब मथुरा की बारी है. क़ायदे से 2017 की अपेक्षाएँ देखते हुवे इतना मात्र 10/10 वाला है.
पर बोनस में इधर योगी बाबा हैं.बिजली व्यवस्था इतनी चौकस हुई कि धीमे धीमे जेनरेटर उद्योग समापन की कगार पर है. प्रदेश में पहले जितने अच्छे बस अड्डे
पिछले छ महीने से टोंटी यूपी मे ताल ठोंक कर योगीजी को ललकार रहा था......आज चुनाव का शंखनाद होने बाद चुनाव आयोग की वर्चुअल रैली की बात कहते ही किंकिया कर कहने लगा की बीजेेपी का आई.टी. सेल बहुत मजबूत है,उससे निपटना आसान नही है...यानी की संग्राम प्रारम्भ होते ही
पलायन....भगोड़पन...अभी तक बाहुबली बनने का झांसा देने वाले टोंटी भाई के अंदर इतना पिलपिलापन...?
खैर मुझे तो समझ मे आ रहा कि क्यों आई.टी. सेल के बहाने चुनाव आयोग पर ठीकरा फोड़ रहे हो....साफ साफ क्यों नही कहते हो कि ओवैसी ने शांतिधूर्तों का अधिकाश वोट खिसका कर तुम्हे बौराने पर
मजबूर कर दिया...क्यों नही कहते हो कि पिछले दिनो पड़े छापों से तुम्हारी भरी तिजोरी आज खून के आँसू रो रही है...क्यों नही अपने उछल कूद करने वाले गुंडे समर्थकों से कह पा रहे हो कि तुम्हारे द्वारा दिखाया जा रहा सत्ता वापसी का दावा खोखला था.....???
25 जनवरी 2000 का दिन। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सादात स्टेशन पर एक ट्रेन रुकी थी। वहाँ छात्रों का एक समूह था, जो ट्रेन के अलग-अलग डिब्बों में चढ़ने लगा। कुछ छात्र जब एक डिब्बे में चढ़ने लगे तो उस डिब्बे में मौजूद कुछ सुरक्षाकर्मियों ने उन छात्रों को रोका। छात्र नहीं माने और
जबरन चढ़ने की कोशिश करने लगे। उन सुरक्षाकर्मियों ने गोली चलायी - एक छात्र की मौत हो गयी और एक घायल हो गया।
इस बात पर तो बवाल मच जाना चाहिए था, बहुत बड़ा छात्र आंदोलन खड़ा हो जाना चाहिए था। राजनीति भी जम कर होनी चाहिए थी, क्योंकि वे सुरक्षाकर्मी एक राजनेता की सुरक्षा
के लिए उस डिब्बे में थे।
पर ऐसा नहीं हुआ। इसलिए नहीं हुआ, कि उस डिब्बे में चल रहे राजनेता थे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, और उनकी सुरक्षा में लगे जवान साधारण पुलिस के जवान नहीं थे, एसपीजी के सुरक्षाकर्मी थे।
उन छात्रों को तो पता भी नहीं था कि उस डिब्बे में चंद्रशेखर बैठे हैं।
देश एक विकट परिस्तिथि से गुजर रहा है -
देश के आंतरिक और बाहरी दुश्मनों
के निशाने पर केवल मोदी और योगी
ही नहीं हैं, पूरा हिन्दू समाज है --
इसलिए किसी भी हालत में मोदी का
साथ मत छोड़िये --छोटी मोटी बातों
में उलझ कर उस पर सवाल मत
कीजिये -
10 रुपये दाल के दाम बढ़ गए, सब्जी
5 रुपये किलो महंगी हो गई, पेट्रोल,
गैस ये सब बातें समय के अनुसार
ठीक हो जाएँगी --मगर मोदी गया तो
फिर कुछ नहीं रहेगा और ये ही सच
है -
एक बार दिल पर हाथ रख कर सोचो
कि जो ओवैसी मुसलमानों को मोदी
के लिए नफरत के सिवाय कुछ नहीं
दे सकता,
उसके खिलाफ मुसलमान
कभी कुछ क्यों नहीं बोलते --
विपक्ष दलों के लोग राहुल गाँधी समेत
अपने किसी नेता से सवाल नहीं करते
फिर मोदी के ही समर्थक छोटे छोटे
मसलों पर उसको क्यों कटघरे में खड़ा
करने को आतुर रहते हैं -
फ़िरोज़पुर में हुए षड़यंत्र के बावजूद
कांग्रेस मोदी पर निशाना