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Jan 17, 2022 115 tweets 20 min read Read on X
सुबह से लगातार हो रही बारिश अभी थोड़ी थमी थी। यूनिवर्सिटी के साइंस कॉलेज का कैंपस शान्त था। ग्यारह बजने को थे। अब्बास सर का उबाऊ क्लास बन्क कर के मैं बाहर आ गया। सब स्टूडेंट्स क्लास अटेंड कर रहे हों तब इस समय कैंपस में बाहर रह कर प्रोफेसर्स के नजरों से बचे रहना मुश्किल था इसलिए…
रोज़ की तरह मैं ग्राउंड फ्लोर से मैथ्स डिपार्टमेंट और फर्स्ट फ्लोर से बोटनी डिपार्टमेंट की सीढ़ियां चढ़ते हुए दुसरी मंजिल पर जूलॉजी डिपार्टमेंट पहुंच गया। जूलॉजी में विद्यार्थियों की संख्या कम होने के कारण यहां आवाजाही कम रहती थी…
और इसी कारण मैं अब्बास सर का क्लास बन्क कर के हमेशा यहां समय बिताने आ जाता था। हालांकि जूलॉजी डिपार्टमेंट के उपर छत थी लेकिन छत पर जाने वाला गेट हमेशा लॉक्ड रहता था इसलिए मैं कभी उपर नहीं जा पाया था। आश्चर्यजनक रूप से आज छत पर जाने वाला गेट खुला था। »»
मैंने आसपास देखा, कोई भी नहीं था। मैं छत पर जाने वाली सीढियां चढ़ गया। छत पर जगह-जगह पर बारिश का पानी भरा हुआ था। छत का विस्तार बडा था और बरसात के मौसम में ऐसी खुली जगह का आह्लादक अनुभव रोमांचित करने वाला था। वहां से आस-पास के सभी बिल्डिंग दिखाई दे रहे थे। »»
साइंस और आर्ट्स कॉलेज के बीच स्थित छोटे से शिव मंदिर का शिखर, उसके पीछे यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी और उसके पीछे आर्ट्स कॉलेज का बड़ा सा गुंबद… मैंने पैनोरमा शॉट लेने के आशय से मोबाइल कैमरा निकाला और लेफ्ट टू राईट घुमाते हुए फोटोग्राफ्स लेने लगा। »»
फोटोग्राफ्स लेते हुए मैंने देखा कि छत पर एक बड़ा सा कांक्रीट टैंक बना हुआ है, संभवतः इसी टैंक से साइंस कॉलेज के पानी की आपूर्ति होती है। टैंक के उपर से फोटोग्राफी के लिए अच्छा व्यू मिलने की उम्मीद से मैं टैंक की ओर आगे बढ़ा… लेकिन वहां पहले से कोई मौजूद था…
चैक शर्ट और डेनिम जींस में वहां टैंक पर कोई लड़की बैठी हुई थी। उसकी पीठ मेरी ओर होने के कारण मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था। जैसे ही मैं उसके करीब पहुंचा मेरे कदमों की आहट से उसने पलट कर मेरी ओर देखा।
घुंघराले बाल और सुरेख आकृति वाली उस लड़की का मेरे अनुमान से अधिक सुंदर होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। जब उसने अपनी बड़ी बड़ी विस्फारित आंखों से मेरी ओर देखा तब उसका सौन्दर्य देख कर कुछ क्षण के लिए मैं विचारशून्य सा हो गया। चैक शर्ट को उसने कोहनी तक फोल्ड किया हुआ था और…
उसका घुंघराले बाल वाला हेयर स्टाइल भी नब्बे के दशक के फैशन वाला था।‌ रैट्रो के चक्कर में शायद उसने यह लूक अपनाया हुआ था। खैर, जो भी हो लेकिन उसके व्यक्तित्व में एक अजब आकर्षण था। कुछ समय तक हम दोनों एक-दूसरे को ताक़ते रहे। इसी बीच मैं टैंक के करीब पहुंचा। »»
एक दूसरे का परिचय करते हुए उसने मुझे अपने पास बैठने का संकेत किया। बातों बातों में उसने अपना नाम प्राची बताया। पिछले दो वर्षों में मैंने उसे कैंपस में नहीं देखा था। उसने बताया कि वह लेक्चर अटेंड नहीं करती। वहीं टैंक पर बैठ गया और आस-पास की इमारतों के फोटो लेने लगा। »»
छत पर आने वाले गेट और टैंक के बीच करीब बीस फ़ीट की दूरी थी। हम दोनों टैंक पर बैठे हुए थे और गेट हमारी पीछे की ओर था। उसके साथ बतियाते हुए मैंने पाया कि हमारे पीछे कुछ हलचल है। मुझे घर इस बात का था कि कहीं वॉचमैन गेट लॉक कर के ना चला जाए। »»
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि वहां पीछे एक से अधिक लोगों के साये मंडरा रहे थे लेकिन जब भी मैं पीछे मुड़ कर देखता वहां कोई भी नहीं होता।‌ मैंने सोचा शायद टैंक के पीछे लगे दो पिलर्स पर बंधे काले कपड़े हवा में फहराने के कारण मुझे यह भ्रम हो रहा था।‌ »»
उसने बताया कि छत पर पहुंचने वाले गेट की एक चाबी उसके पास रहती है और जब भी मैं यहां आना चाहूं वह मुझे मदद कर सकती हैं। करीब आधा घंटा बीत चुका था। बातें करते हुए मैंने देखा तो… हमारे बिल्कुल सामने छत पर भरे पानी मैं हम दोनों का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था… लेकिन… लेकिन…
…लेकिन वहां पानी में हम दोनों के अलावा भी दो और आकृतियाँ प्रतिबिंबित थीं। बिल्कुल हमारे पीछे, सशक्त, श्यामवर्णी आकृतियाँ… पानी में प्रतिबिंबित वह भयावह परछाइयाँ देख कर मेरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ गई…!!!

~ क्रमशः
प्राची मेरे इतने करीब थी कि उसके परफ्यूम की सुगंध से मेरा पीछे दिख रही परछाइयों का भय भी जाता रहा। बातों बातों में उसने मेरे हाथ से नोटबुक ले ली & उसके पन्ने पलटने लगी। मैं उसकी चेहरे पर बिखरती जुल्फें और उसकी उंगलियों से उन्हें पीछे लेने की अदा के सम्मोहन में खो गया था।‌ »
मैं बस उसे ही देख रहा था लेकिन जैसे ही उसने जुल्फें झटकते हुए मेरी ओर देखा, मैं झेंप गया। उसने भी मेरी चोरी को पकड़ लिया था।‌ नोटबुक के पन्ने पलटते हुए उसने मुझसे पूछा “कया तुम्हें पता है कि अलजेब्रा में रिंग, ग्रूप और फिल्ड जैसे कांसेप्ट के नामाभिधान किस कारण से किए गए होंगे?”
मैं चुप-सा उसके प्रश्न को सोचता रहा। उसने दूसरा प्रश्न उठाया “क्या तुम बता सकते हो कि π की वैल्यू सबसे पहले किस भारतीय गणितज्ञ ने ढूंढी थी?” यह मेरे लिए बिल्कुल ही अनपेक्षित प्रश्न थे। गणित या कोई भी विषय पढ़ते हुए मेरे मन में कभी ऐसे प्रश्न नहीं उठे थे। »»
दोपहर का एक बज रहा था। मैंने वहां से उठते हुए उससे कहा “मैं कैंटिन जा रहा हूं। मुझे भूख लगी है। क्या तुम चलोगी मेरे साथ?” उसने मेरे प्रश्न की उपेक्षा करते हुए मुझे ही प्रश्न पूछ लिया “क्या तुम कल मुझसे मिलने आओगे? इसी जगह?” मैंने मुस्कुराते हुए हामी भरी और वहां से चल दिया।
मैं टैंक पर से उतरा। पीछे पिलर्स पर बंधे काले कपड़े हवा में वैसे ही फहरा रहे थे। मुझे लगा कि उन्हें किसी खास उद्देश्य से वहां बांधा गया था। मैं उन पिलर्स को लांघते हुए उनके बीच से निकला तब फिरसे वही काली परछाइयों का अनुभव हुआ… बिल्कुल मेरे करीब… मुझे स्पर्श करती हुई परछाइयां…
छत से बाहर निकलते हुए मैंने पीछे मुड़ कर देखा, प्राची मेरी और देख रही थी।‌मैं बूझ नहीं पाया कि उसकी आंखों में क्या था? विवशता? निस्सहायता? प्रेम? प्रश्न? करूणा? या रहस्य? »»
जब मैं कैंटिन पहुंचा तब वहां पहले से ही मानसी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। हम दोनों साथ ही क्लास अटेंड करते थे और मेरे अब्बास सर के बन्क किए क्लासेज के नोट्स मुझे मानसी से ही प्राप्त होते थे। वह अब्बास सर की फेवरेट स्टूडेंट थी। »»
साइंस कॉलेज में कैंटिन के नाम पर छोटा सा कॉटेज था जिसके बाहर खुले में cello के टूटे-फ़ूटे टेबल कुर्सी लगा कर बैठने की व्यवस्था की गई थी। मैं और मानसी सबसे कोने वाले टेबल पर थे और हमारे पीछे कोने में छोटू काका बर्तन धो रहे थे। »»
करीब पचपन साल के, स्वभाव से शान्त छोटू काका मानसिक रूप से विक्षिप्त थे और कैंटिन का ही छोटा मोटा काम कर के जीवन निर्वहन करते थे। हल्की सी बरसात फिर से शुरू हो चुकी थी। ऐसे मौसम में चाय समोसे का आनंद दुगुना हो जाता है।

»»
चाय की चुस्की लेते हुए मैंने मानसी के सामने प्राची के गणितीय प्रश्न दोहराए। जैसे ही मैंने ग्रूप रिंग फिल्ड और π के इतिहास के बारे में बात शुरू की वैसे ही पीछे बर्तन मांज रहे छोटू काका के चेहरे के भाव बदले, उन्होंने मेरी ओर…
उन्होंने मेरी ओर संदेह की दृष्टि से देखा। मैं समझ नहीं पाया कि गणित के प्रश्नों से छोटू काका क्यों विचलित हो उठे थे। »»
मानसी भी मेरे प्रश्नों से आश्चर्यचकित होते हुए मुझसे पूछा “हम गणित पढ़ते हैं, आज अचानक से यह गणित के इतिहास के प्रश्न कैसे?” मैंने कहा “यह प्रश्न मेरे नहीं, मेरी दोस्त प्राची के के हैं।”
उन दोनों प्रश्नों के साथ प्राची का नाम सुनते ही छोटू काका की भाव-भंगिमा बदली…
उनके हाथ कांप रहे थे और उन्होंने उत्तेजना भरे शब्दों में मुझसे पूछा “ऐसे प्रश्न सिर्फ प्राची ही पूछा करती थी, क्या तुम आज प्राची जोशी से मिले हो?
अब चौंकने की बारी मेरी थी… कैंटिन में बर्तन मांजने वाले छोटू काका को गणित के प्रश्नों में इतनी रुचि क्यों थी? मैं खुद दो साल में पहली बार उससे मिला था, वह प्राची को कैसे पहचानते थे?

~ क्रमशः
छोटू काका की उत्तेजनासभर प्रतिक्रिया देख कर मैं और मानसी दोनों हतप्रभ रह गए।‌ लंच ब्रेक खत्म होते ही मानसी फिर से क्लासरूम चली गई। मैंने छोटू काका से बातचीत का सूत्र जारी रखा। »»
मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के कारण बोलते वक्त उनकी वाक्य रचना अस्त-व्यस्त थी, वह कुछ बातें पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाते थे फिर भी करीब दो घंटे की बातचीत में मैं इतना तो समझ ही पाया कि…
वर्षों पूर्व वह इसी कॉलेज में पढ़ते थे और प्राची उनकी सहपाठी थी। या यूं कहें कि सहपाठी से अधिक मित्र थी। उनसे बात करते हुए मैंने महसूस किया कि उनकी युवावस्था में वह प्रखर विद्यार्थी रहे होंगे और किन्हीं कारणों से उनका मानसिक स्वास्थ्य इस स्थिति में पहुंच चुका था।
कहीं ना कहीं मेरा मन कह रहा था कि उनकी यह स्थिति का एक कारण प्राची थी। लेकिन… यदि प्राची उनकी सहपाठी थी तो उसकी उम्र ५० - ५५ वर्ष होनी चाहिए थी या फिर ऐसा भी हो सकता था कि मैं जिस प्राची से मिला था उसके और छोटू काका की मित्र के गणितीय प्रश्नों में साम्य संयोग मात्र था।
इस गुत्थी का निवारण करने के लिए मुझे फिर से प्राची से मिलना जरूरी था।‌ शाम ढल चुकी थी। काका को वहीं कैंटिन में छोड़कर मैं फिर से एक बार छत की ओर आगे बढ़ा।
मुझे नहीं पता था कि इस समय प्राची वहीं होगी या नहीं। रास्ते में मुझे अन्तिम क्लास अटेंड कर अपने घर जा रही मानसी दिखी लेकिन मैंने उस वक्त उससे बात करना सही नहीं समझा। मानसी होनहार छात्र थी और…
इसीलिए वह सभी प्राध्यापकों की प्रिय थी। कॉलेज के उपरांत वह अब्बास सर के कोचिंग सेंटर में भी जाती थी। दूसरी ओर मैं था, जिसके लिए गणित की डिग्री जॉब पाने से अधिक महत्व नहीं रखती थी।
जब सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर पहुंचा तब छत पर जाने वाले गेट पर ताला लगा हुआ था। लेकिन प्राची के कारण मुझे एक्स्ट्रा चाबी का पता मालूम था। मैंने जू-लॉजी डिपार्टमेंट के नोटिसबॉर्ड के पीछे से चाबी निकाल ली। मैं नहीं जानता था कि छत पर प्राची के अलावा कोई और भी मेरा इंतजार कर रहा था।
छत का गेट अनलॉक करते हुए मैंने छत पर क़दम रखा तब तक हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। बरसाती काले बादल फिर से घिरे हुए थे और इसी कारण रात होने से पहले ही अंधेरा छा गया था। दूर आर्ट्स कॉलेज का भव्य गुंबद अंधकार में ओझल हो गया था। »»
लाइब्रेरी भी बन्द हो चुकी थी। प्राची वहां टैंक पर नहीं थी, मैंने सोचा शायद वह घर चली गई होगी।‌ मैंने थोड़ा आगे बढ़ कर नीचे का दृश्य देखा। कैंपस में एकांत पसरा हुआ था। सब विद्यार्थी घर जा चुके थे। तभी मैंने देखा कि अब्बास सर पार्किंग में वॉचमैन से कुछ बात कर रहे हैं।
अब्बास सर के सत्तावाही रवैये और प्रभावशाली आवाज के कारण सभी उनसे डरते थे। और यही बात इस वक्त वॉचमैन की भाव-भंगिमा में स्पष्ट दृष्टिमान हो रही थी।
थोड़ी दूर स्थित कैंटिन का इलाका भी सूनसान था। कैंटिन के बाहर छोटू काका बारिश से बचते हुए कंबल बिछाए बैठे थे। कैंटिन के बाहर लगी लाइट के उजाले में उनका चेहरा मैं स्पष्ट देख पा रहा था।
तभी मैंने अब्बास सर को कैंटिन की ओर आगे बढ़ते हुए देखा।‌ वह छोटू काका के पास जा कर उनसे कुछ बात कर रहे थे। इतनी दूरी से मैं उन दोनों के बीच हो रही बातचीत नहीं सुन पा रहा था पर छोटू काका के भयभीत चेहरे से इतना तो समझ आ रहा था कि…
दोनों एक-दूसरे को वर्षों से जानते थे और छोटू काका अब्बास सर से डरते भी थे। मेरे मन में विचारों की शृंखला कड़ियाँ जोड़ने का प्रयास कर रहीं थीं। यदि संघर्षपूर्ण जीवन के कारण चेहरे पर पड़ी झुर्रियां निकाल दें तो छोटू काका और अब्बास सर समवयस्क ही रहे होंगे और…
जैसे कि दोपहर में छोटू काका ने बताया ग्रेजुएशन के समय दोनों एक साथ गणित के छात्र भी रहे होंगे। यह सब सोचते हुए मैं अब्बास सर की कार को कैंपस से बाहर जाते हुए देख रहा था। काफ़ी सारी अनसुलझी पहेलियाँ मेरे मनो-मस्तिष्क को घेरे हुए थीं। तभी मैंने महसूस किया की छत पर कोई रो रहा था।
झिलमिल बारिश में भी सुबकने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मैंने मुड कर देखा तो वहां घना अंधेरा था। मोबाइल टॉर्च की रोशनी में मैंने पाया की टैंक के पिछले हिस्से से कोई डर के मारे सिसकियाँ भर रहा था।‌ मैं टैंक के पीछे की ओर आगे बढ़ा और देखा तो वहां…
वहां छत की फर्श पर प्राची बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर आंसुओं की धारा बह रही थी और उसके दोनों हाथ मजबूत रस्सी से बंधे हुए थे। उसकी जगह जगह पर फटी जीन्स और उसकी नाज़ुक कलाईयों पर रस्सी के निशान देख कर मुझे लगा उसे बेरहमी से घसीट कर यहां लाया गया था।
प्राची को वहां पा कर मैं चौंक उठा। भागते हुए उसके पास पहुंचा & उसके हाथों की रस्सी खोलने लगा। यह देख कर वह और भयभीत हो उठी। उसने चिल्लाते हुए कहा “प्रमेय… इस वक्त तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए था। चले जाओ यहां से… जितना जल्दी हो सके…”
उसकी डर से कांपती हुई आवाज चर्रा रही थी।
जब मैं उसके हाथ खोल रहा था तब मैंने महसूस किया कि उसकी डरती हुई आंखे मेरे पीछे छत के खुले हिस्से में किसी को देख रही थीं। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वहाँ… वहाँ… दोनों पिलर्स के पास वही दो आकृतियाँ खड़ी थीं। वहां साढ़े छह फिट से उंचे दो कद्दावर, काले निर्वस्त्र शरीर खड़े थे और…
और इस बार यह मेरी आंखों का भ्रम नहीं था। यह वही दो लोगों की आकृतियां थीं जिन्हें मैंने दोपहर में महसूस किया था। मैंने मोबाइल टॉर्च उनकी ओर घुमा कर देखा और… एक ही क्षण में मुझे पता चल गया कि मेरा सामना अभौतिक, असाधारण और अनिष्ट शक्तियों से हो रहा था।
प्राची ने फिर से चिल्लाते हुए मुझे वहां से चले जाने का आग्रह किया लेकिन तब तक वह दोनों हमारे काफी करीब आ चुके थे। प्राची ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा “ इनसे बचना चाहते हो तो पीछे दोनों पिलर्स पर बंधे उन काले कपड़ों को तुम्हें पार करना होगा। ”
उसने कहा “यदि तुम आज बच निकले तो तुम मुझे बचाने फिर कोशिश कर पाओगे लेकिन इसके लिए अभी तुम्हारा जान बचा कर निकलना बहुत जरूरी है।”

उसकी आंसूओं से भरी आंखों में विवशता थी… तब तक वह दोनों हमारे इतने करीब आ चुके थे कि उनके शरीर से आ रही दुर्गंध भी हम महसूस कर पा रहे थे…
मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी और आंधी की तेज़ हवाएं आस-पास के माहौल को और भयानक बना रहीं थीं। मैं कुछ समझ पाता उससे पहले उसमें से एक भयावह आकृति ने प्राची का हाथ कस कर पकड़ लिया। वह उसे खींच कर मुझसे दूर करता उससे पहले मैंने प्राची का दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा…
बिजली की तेज कड़कड़ाहट में मैंने उसकी रक्तवर्णी आंखों में देखा। उसके सर पर ख़ून सवार था… प्राची का हाथ मेरे हाथों से फिसलता जा रहा था… और वह निसहाय दृष्टि से मेरी ओर देख रही थी…

~ क्रमशः
वह दोनों भयानक स्वर में एक-दूसरे से फारसी या अरबी भाषा में बातचीत कर रहे थे। वह भाषा मेरी समझ से बाहर थी लेकिन उनकी गतिविधियों से मैं इतना तो समझ ही पाया कि जब तक प्राची मेरे स्पर्श में थी वह दोनों मुझे नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे। »»»
प्राची किसी भी किमत पर मुझे उन दो पिलर्स पर बंधे काले कपड़ों के घेरे से बाहर भेजना चाहती थी। जब उसने पाया कि अब मेरा उनके चंगुल से बच निकलना मुश्किल है तब उसने…
आत्यंतिक निर्णय लेते हुए झटके से अपना हाथ उस शैतान की गिरफ्त से छुड़ाया और मुझे आलिंगन में भरते हुए अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन के इर्द गिर्द लपेट लिए…
यह देख कर वह दोनों शैतान आश्चर्यचकित हमें अलग करने का पैंतरा सोचने लगे। प्राची का बर्फ सा ठंडा शरीर बरसात में मुझसे लिपटा हुआ था। उसने धीरे से फुसफुसाते हुए मेरे कानों में कहा… आज अमावस्या है और आज अब्बास यहां एक और निर्दोष युवती की जिंदगी इन शैतानों को बलि चढ़ाने वाला है…
उसने कहा “पिछले पच्चीस वर्ष से चल रहा यह बलि चक्र सिर्फ तुम रोक सकते हो… इसलिए कहती हूं, जितनी जल्दी हो सके यहां से निकल जाओ।” तभी अचानक से छत पर आने वाली सीढ़ियों पर आहट सुनाई दी।
दोनों शैतानों ने मुड़ कर वहां देखा और इसी मौके का फायदा उठाकर प्राची ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुझे धक्का दिया और…
और मैं उन पिलर्स को पार कर गया। छत का गेट खुला, मैंने देखा कि वहां छोटू काका खड़े थे। जैसे ही उन्होंने देखाकि मैं फिर से प्राची की ओर बढ़ रहा हूं उन्होंने मुझे पीछे की ओर खींचा… प्राची ने चिल्लाते हुए कहा “अनूप… इसे यहां से ले जाओ।” छोटूकाका मुझे खींचते हुए सीढियां उतरने लगे…
और मैं सोच रहा था कि प्राची ने छोटू काका को अनूप नाम से क्यूं संबोधित किया था। अशक्त और जीर्ण दिखने वाले छोटू काका में इतनी शक्ति का संचार कैसे हो गया था कि वह मुझे खींच कर वहां से निकालने में सफल हो गए थे? आखिरकार यह गुत्थी क्या थी?
तीन मिनट बाद मैं & छोटू काका कैंटिन के आंगन में खड़े थे। बारिश अभी भी अपने पूरे दम-खम से बरस रही थी। मानसिक रूप से विक्षिप्त छोटू काका किसी सुलझे हुए प्रौढ़ की तरह मुझे समझा रहे थे।‌ उन्होंने पूरी कहानी बताते हुए कहा कि वर्षों पूर्व वह, प्राची और अब्बास सर एक ही वर्ग में पढ़ते थे
उन दिनों वह तीनों जिगरी दोस्त हुआ करते थे और उन तीनों में प्रथम क्रमांक के लिए प्रतिस्पर्धा भी होती रहती थी। अब्बास सर प्राची के एकतरफा प्रेम में थे लेकिन प्राची के लिए वह संबंध स्वस्थ मित्रता से अधिक कुछ नहीं था।
अब्बास सर किसी भी प्रकार से प्राची को प्राप्त करना चाहते थे और इसी प्यार के जूनून में वह कई बार आपा खो बैठते थे।

ऐसे ही एक दिन, जब परिक्षाएं करीब होने की वजह से तीनों लाइब्रेरी में देर शाम तक पढ़ाई कर के वापस घर लौट रहे थे तब…
तब उन्होंने आवेश में आकर प्राची की हत्या कर दी। निर्दोष प्राची अब्बास के घिनौने कृत्य का शिकार हो गई। छोटू काका उर्फ अनूप उस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे और इसी घटना के कारण उन्होंने मानसिक संतुलन खो दिया था।
छोटू काका ने बताया कि अब्बास ने प्राची का शव कहीं दफ़न कर दिया था और उसकी अतृप्त आत्मा को दो शैतानों की शह में छत पर बंधक बना लिया था। उन दो पिलर्स पर बंधे काले कपड़े और उन भयावह परछाइयों का रहस्य खुल चुका था।
और इन शैतानों की शर्त यह थी कि जब तक वर्ष में एक बार, अमावस्या की रात में, उन्हें किसी नवयुवती का कलेजा चढ़ाया जाएगा तब तक वह प्राची को बंधक बना कर रखेंगे। यह दुष्चक्र था… पिछले कई वर्षों से यहां कितनी ही युवतियों को शैतानों के हवाले किया जा चुका था और…
और आज अमावस्या थी और छोटू काका की बातें सुनकर मुझे सबसे पहले मानसी का ख्याल आया।‌वह अब्बास सर की फेवरेट स्टूडेंट थी… मेरा दिमाग कड़ियां जोड रहा था… आज रात यहां कुछ बहुत ही भयानक घटने वाला था… और मैं संयोग से इस घटनाक्रम के केंद्र में खड़ा था…
मैंने जेब से मोबाइल निकाला और मानसी को कॉल किया… उसका मोबाइल स्वीच्ड ऑफ था। मैंने फिर से एक बार प्रयास किया लेकिन… असफल!

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। समय के साथ साथ तनाव भी बढता जा रहा था। मेरे पास मानसी के छोटे भाई का नंबर था… मैंने उसे फ़ोन लगाया…
उसने बताया कि आधे घंटे पहले उसकी मानसी से बात हुई थी और उसकी मित्र अर्चना उसके साथ अब्बास सर के कोचिंग सेंटर पर थीं। मैंने अर्चना का नंबर मिलाया और उसने पहली ही रिंग में फोन उठाया…
अर्चना अपने घर पहुंच चुकी थी… लेकिन मानसी…? मानसी कहां थी? उसका फोन क्यूं स्विच्ड ऑफ था? मेरा दिमाग चकरा गया…
मैंने बुलेट में चाबी लगाई और यूनिवर्सिटी के पीछे स्थित प्रोफेसर्स क्वार्टर्स की ओर बुलेट मोड़ दिया… मुझे नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला था? मुझे यह भी नहीं पता था कि यह रात कितनी लंबी होने वाली थी, मुझे बस किसी भी कीमत पर इस दुष्चक्र का अन्त करना था…

~ क्रमशः
प्रोफ़ेसर्स क्वार्टर्स के हर ब्लॉक के बाहर प्राध्यापक का नाम लिखा हुआ था इसलिए मुझे अब्बास सर का घर ढूंढने में दिक्कत नहीं हुई। क्वार्टर्स के सबसे पिछले भाग में उनका घर था। पिछले कमरे में हल्की सी रोशनी के अलावा पूरे घर में अंधेरा छाया हुआ था। »»
मैं घर में घुसने का तरीका सोचने लगा लेकिन तभी मैंने पिछला दरवाजा खुलने की आवाज सुनी। मैंने देखा कि एक परछाई बरामदे से होते हुए अंधेरे में ओझल हो रही थी। मैंने हल्के से गेट खोला और सुरक्षित अंतर बनाते हुए उस आदमी का पीछा करने लगा।
मैंने देखा, वह अब्बास सर ही थे और उनके हाथ में कुल्हाड़ी थी। घर के पिछवाड़े में पेड़ों से घिरा हुआ बड़ा मैदान था और वहां एक जर्जरित बावड़ी थी। अब्बास सर कुल्हाड़ी लिए उस बावड़ी की संकरी सीढियां उतरने लगे। अब उनका पीछा करने में जोखिम था लेकिन…
लेकिन मेरे पास कोई और चारा भी नहीं था। पुरानी बावड़ी में यहां वहां जंगली पौधे उगे हुए थे और सीढ़ियों के पत्थर भी जगह-जगह पर टूटे हुए थे। इतनी विचित्र जगह पर भी अब्बास सर जिस आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहे थे वह देख कर एक बात तो तय थी कि वह यहां अक्सर आते रहे होंगे।
बावड़ी में सबसे नीचले तल पर पानी भरा हुआ था लेकिन अब्बास सर वहां नहीं रूके और पानी में होते हुए आगे बढ़ते रहे। मैं भी सुरक्षित दूरी पर उनके पीछे चलता रहा। वहां पानी जरूर था लेकिन वह ज्यादा गहरा नहीं था। बावड़ी के अन्दर घना अंधेरा था।
अब्बास सर वहां पानी में कुछ टटोलने लगे। शायद उन्होंने वहां कुछ छुपा रखा था लेकिन अंधेरे के कारण उन्हें वह जगह ढूंढने में दिक्कत हो रही थी। किसी शातिर अपराधी की तरह उनके चेहरे पर चिंता की कोई रेखा नहीं थी।
सही जगह पाते ही उन्होंने वहां कुल्हाड़ी से वार किया… खट्टाक्क… खट्टाक्क्क… शांत बावड़ी में कुल्हाड़ी की आवाज भी भयजनक प्रतीत हो रही थी। दो या तीन वार में ही उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली। उनके पैरों के पास पानी का भंवर बनने लगा। बावड़ी में भरा पानी धीरे-धीरे कम हो रहा था।
शायद वहां कोई आंतरिक निकास मार्ग था जिससे बावड़ी के तल में भरा सारा पानी बह गया। पानी उतरते ही मैंने देखा कि सामने अस्थि पिंजरों का ढेर लगा हुआ था… यह देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। वह जुगुप्सा प्रेरक दृश्य देख कर आघात के कारण मेरा शरीर सुन्न पड़ रहा था… लेकिन…
लेकिन यह घड़ी कमजोर होने की नहीं थी। बावड़ी के बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अब्बास सर ने वहां बिखरी हड्डियों को समेट कर एक जगह इकट्ठा किया। वह क्या करना चाहते थे यह मैं अब भी समझ नहीं पाया था। तभी… अचानक से… उन्होंने पलट कर सीढ़ियों का रूख किया…
वहां सीढ़ियों के मार्ग में मैं खड़ा था। कुछ क्षणों के लिए हम दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने पुतले से खड़े रहे। वह भी समझ नहीं पाए कि मैं वहां कैसे पहुंचा था।
अंधेरे और बरसात में मैंने देखा तो उनका हाथ त्वरा से जेब की ओर बढ़ रहा था… दुसरे ही क्षण मेरी नज़रों के सामने उनके हाथ में पिस्टल थी और उस पिस्टल की नोंक मेरी ओर तनी हुई थीं…
समय कम था… मैं पलटा और सीढ़ियों की ओर भागने लगा! लेकिन अब बचना मुश्किल था।‌ जैसे ही मैंने पहली सीढ़ी पर क़दम रखा, गीली फर्श पर मेरा पैर फिसला और तभी पीछे से मौन बावड़ी को चीरती हुई गोली की आवाज आई… मैं प्रारंभिक सीढ़ियों पर ही ढेर हो गया…

~ क्रमशः
किसी के ऊष्मा भरे ममतामयी स्पर्श से जब मेरी आंखें खुलीं तब काफी रात ढल चुकी थी। मेरा मस्तक अपने गोद में लिए एक प्रौढ़ महिला मेरे जगने की प्रतीक्षा कर रही थीं।‌ जैसे ही मैंने होश संभाला मेरे स्मृति पटल पर सभी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो उठी। मैं अभी भी बावड़ी में ही था…
मैं उठ खड़ा हुआ और प्रौढ़ा की ओर प्रश्नार्थ दृष्टि से देखा, उन्होंने कहा “बेटा, तुम्हारे सद्भाग्य से तुम्हें गोली नहीं लगी और तुम बच निकले। गिरने के कारण तुम्हारे सर में चोट थी और अब्बास भी यही मान कर तुम्हें यहां छोड़ कर चले गए।”
मैंने पूछा “आप कौन हैं? आप यहां कैसे पहुंचे?”

उनके प्रत्युत्तर ने मुझे चौंका दिया। वह अब्बास सर की पत्नी थीं।‌ एक ऐसी स्त्री जो वर्षों तक अब्बास सर की निर्दयता की साक्षी रहीं थीं।
उन्होंने बताया कि अब्बास सर जल्दबाजी में मुझे मरा हुआ समझ कर मानसी को लिए यूनिवर्सिटी चले गए थे। उनके चेहरे पर चिंता के भाव दर्शा रहे थे कि समय कम था।
एक स्त्री जो वर्षों तक अपने पति की क्रूरता पर ढांक-पिछौडा करती रहीं वह आज मेरी मदद क्यों कर रहीं थीं? जब मैंने यह प्रश्न पूछा तो उन्होंने कहा “पच्चीस वर्ष बाद आज पहली बार कोई अब्बास सर के कुकृत्यों का पीछा करते हुए यहां तक पहुंचा है…”
उन्होंने कहा कि “मौत के कालचक्र को समाप्त करने का इससे बेहतर अवसर नहीं हो सकता। और यदि आज वह मेरी मदद नहीं करतीं तो वह स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर पातीं।” उनके चेहरे पर मातृत्व झलक रहा था।
रात्रि का अन्तिम प्रहर शुरू हो चुका था। मेरे पास समय की कमी थी। मैंने मातृ स्वरूपा प्रौढा के चरणस्पर्श किए और बावड़ी की सीढ़ियों की तरफ आगे बढ़ने से पहले फिर से एक बार उन अस्थि पिंजरों की ओर देखा।‌
वह सभी आशा और उम्मीद से भरी युवा आत्माएं वर्षों से प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहीं थीं। मरने से पहले उन्होंने अपने भविष्य की कितनी ही योजनाएं बनाई होंगी। एक गुरु के रूप में अब्बास सर पर विश्वास कर के उन्होंने आकस्मिक अकाल मृत्यु का आलिंगन किया होगा। कल्पना मात्र से मैं सिहर उठा। »
यह सब सोचते हुए मेरी आंखों में क्रोध के आंसू उमड़े। उन निर्दोषों के प्रतिशोध का संकल्प लेते हुए मैं सीढियां चढ़ गया। बरसात में सूनसान सड़क से दौड़ रही बुलेट की गुर्राहट शहर की शांति को चीरती हुई जा रही थी।
मैंने बुलेट को कैंटिन के बाहर पार्क कर दिया और छोटू काका के साथ मैथेमेटिक्स डिपार्टमेंट की ओर आगे बढ़ा।‌ सुबह जब मैं क्लास बन्क कर के इन्हीं सीढ़ियों से ऊपर गया था तब मुझे पता भी नहीं था कि रात ऐसे बितने वाली है।
छत पर पहुंचाने वाले गेट के पास हमने छिप कर उपर के हालात का जायजा लिया। वहां टैंक के पास फर्श पर प्राची बैठी हुई थी।‌ सहमी हुई, रोती हुई और निस्तेज…
दोनों पिलर्स पर पर बंधे काले कपड़े निकाल कर उनमें बांधी गई तावीज़ जैसी चीज को छत की फर्श पर रखा गया था। वहीं दो पितल से निर्मित करीब छह इंच के हाथ स्टैंड पर खड़े किए गए थे। कुछ और भी चीजें नजर आ रही थीं लेकिन मैं उन्हें पहचानने में असमर्थ था।
अब्बास सर वहीं बैठ कर कुछ विचित्र इशारे कर रहे थे और उनसे कुछ दूरी पर वॉचमैन खड़ा था।‌ पिलर्स और टैंक के मध्य भाग में मानसी का शरीर बेसुध पड़ा था। वह दो शैतान नदारद थे।
उन्होंने तावीज़ खोल कर उनमें से कागज़ की पर्चियां निकालीं और उनमें लिखे फारसी या अरबी भाषा के शब्द बोलने लगे। ऐसा लग रहा था मानों वह किसी का आह्वान कर रहे थे। आखिरकार यहां क्या होने वाला था?
अचानक से मेरा ध्यान गया तो वहां रखीं काफी सारी सामग्री को ढंक दिया गया था। छोटू काका ने बताया कि उस सामग्री को यूरोप और मध्य एशिया के देशों में पवित्र माना जाता है और उन शैतानी ताकतों से बचने के लिए अब्बास सर अंत में उनका प्रयोग करते हैं।
शायद इसी कारण से उन्हें छुपा कर रखा गया था।
पूरी परिस्थिति का आंकलन करने पर मैंने पाया कि दो पिलर्स के मध्य में एक अदृश्य रेखा बनी हुई थी। पिलर्स की एक तरफ तावीज़ और अन्य चीजों से सर ने स्वयं को सुरक्षित कर लिया था और दूसरी ओर मानसी को शैतानों के हवाले कर दिया था।
मैंने देखा कि मानसी के शरीर में चेतना का संचार हो रहा था, वह सभानावस्था में वापस लौट रही थी। उसके पीछे बैठी प्राची मेरी ओर आशा भरी दृष्टि से देख रही थी। हम दोनों की नजरें मिली और कुछ क्षणों के लिए एक मौन संवाद हुआ।
उन कुछ क्षणों में आंखों के माध्यम से कुछ विचारों का आदान-प्रदान हुआ और हम दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई।
मैंने छोटू काका को हमारी यह योजना के बारे में बताया और हम दोनों सही मौके की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह के साढ़े छः बज रहे थे। बादलों से उतरी आकृति और वह दो महाकाय शक्तियों ने मानसी के शरीर को तीन दिशाओं से घेरा हुआ था। चौथी वॉटर टैंक की दिशा में प्राची थी।
जैसे ही मानसी के शरीर में चेतना का संचार हुआ और उसे उठ कर बैठते हुए देखा। तीनों शैतान उसकी ओर आगे बढ़े। प्राची ने मानसी का हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा। तीनों शैतान और सर अट्टहास कर रहे थे। उन्होंने सोचा था कि प्राची क्या ही कर पाएगी।
समय आ चुका था… जैसे ही मानसी होश में आते हुए उठ खड़ी हुई, मैं और छोटू काका तेज गति से टैंक की ओर लपके। मैंने अब्बास सर को और छोटू काका ने वॉचमैन को पीछे से धक्का देते हुए पिलर्स की दूसरी ओर धकेल दिया।
योजना के अंतर्गत प्राची ने भी स्फूर्ति दिखाते हुए मानसी को हमारी ओर धकेल दिया। शतरंज के खेल में प्यादे आमने-सामने धकेले जा चुके थे। छोटू काका ने सभी छुपाई हुई पवित्र सामग्री को खुला कर दिया।
अब मानसी पिलर्स की इस ओर पवित्र सामग्री के पास हमारे साथ खड़ी थी और अब्बास सर पिलर्स की सामने की ओर पर वॉचमैन के साथ वॉटर टैंक के पास गिरे पड़े थे।
शैतानों को बलि के रूप में एक के बदले दो शिकार मिल चुके थे। तीनों शैतान अट्टहास करते हुए उन दोनों अपराधियों की ओर आगे बढ़े।
उनके लिए शिकार बस शिकार था फिर चाहे वह मानसी हो या अब्बास सर। जैसे ही उन्होंने अब्बास सर को नोंचना शुरू किया। मैं छोटू काका और मानसी के साथ वापस सीढ़ियों की ओर चल पड़ा।
टैंक के पीछे सूर्योदय हो रहा था। बरसात थम गई थी। अब्बास सर का शरीर उन शैतानों के नाखून और दांतों से क्षत-विक्षत हो गया था।‌उनका प्राण पखेरु उड़ गया था।
प्राची का प्रतिशोध पूरा हुआ। सूर्य की किरणों से उसके खूबसूरत चेहरे की मुस्कान देखते ही बनती थी। उसने मेरी ओर हाथ हिलाते हुए हम तीनों को विदा किया।
अब्बास सर की मौत के साथ ही अब उन शैतानी ताकतों को बांधे रखने वाला कोई नहीं बचा था। अब वह प्राची को परेशान नहीं करने वाली थीं। हम तीनों सीढ़ियों से होते हुए नीचे उतर गए। सुबह होते ही कैंपस में हलचल बढ़ने लगी थी। स्टूडेंट्स के कोलाहल से कैंपस जीवंत हो उठा था।
बुलेट स्टार्ट करते हुए मैंने मानसी से कहा कि यह पवित्र सामग्री अब्बास सर की पत्नी को दे कर हम घर चले जाएंगे। दूसरी ओर छोटू काका कैंटिन की ओर आगे बढ़े। उनके चेहरे पर आश्वासन के भाव थे।
बुलेट लाइब्रेरी के पास पहुंचा ही था कि हमारी पिछली तरफ जोर से किसी चीज के गिरने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने और मानसी ने ब्रेक लगाते हुए पीछे देखा।
सांइस बिल्डिंग की छत से अब्बास सर का क्षत-विक्षत शव जमीन पर आ गिरा था और आसपास से गुजरने वाले कौतुहल वश वहां जमा हो रहे थे। मैंने साइंस कॉलेज के छत की तरफ देखा तो वहां प्राची खड़ी मुस्कुरा रही थी। •

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